बुधवार, 20 सितंबर 2017

द्विवेदी युग की कविता ౼पूर्ण, उपाध्याय, सनेही

द्विवेदी युग कीकविता ౼ पूर्ण, उपाध्याय, सनेही

द्विवेदी युग की सीमा 1900-1920 ई.

मुहम्मद इलियास हुसैन
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Mob : 9717324769

राय देवी प्रसाद पूर्ण (1868-1915 ई.)
काव्य-ग्रंथ : धारादर-धावन (मेघदूत का पद्यानुवाद, 1902 ई.), मृत्युंजय (1904 ई., मृत्यु और ज्ञान पर91 अतुकान्त छन्द), प्रदर्शनी स्वागत (1906 ई., खड़ीबोली के 206 छप्पय). राम-रावण-विरोध (1906 ई., चम्पूकाव्य), स्वदेशी-कुण्डल (1910 ई., देशभक्ति विष.क 52 कुण्डलिया) नए सन् (1910) का स्वागत, मन-मन्दिर, अमलतास, वसन्त वियोग (1912 ई., खड़ीबोली काव्य) आदि।

पं. रामचरित उपाध्याय (1872-1938 ई.)
ब्रजभाषा-काव्य  : विजयी वसन्त, श्रावण श्रृंगार, सपधाशतक का बरवा
खड़ीबोली-काव्य : पवनदूत (1906 ई.), देवसभा, वि.त्र विवाह, राष्ट्र भारती, भव्य भारत, सूक्ति मुक्तावली (1915 ई.), देवदूत (1918 ई.), भारत भक्ति (1919 ई.), रामचरित-चन्द्रिका (1919 ई.), रामचरित-चिन्तामणि (1920 ई., प्रबन्धकाव्य, 25 सर्ग, राम के बचपन से लेकर लव-कुश प्रसंग तक की कथा वर्णित)
रामचरित उपाध्याय की काव्य-पंक्तियाँ
कुशल से रहना है यदि तुम्हें, दनुज, तो फिर गर्व न कीजिए।
शरण में गिरिए रघुनाथ के, निबल के बल केवल राम हैं। अंगद-रावण-संवाद, रामचरित-चिन्तामणि
न्यायपरायण जो नर होगा, उसकी कभी न होगी हार।
कपटी कुटिल कोटि रिपु उसके हो जावेंगे क्षण में छार।
गयाप्रसाद शुक्ल सनेही (1883-1972 ई.)
उपनाम : सनेही, त्रिशूल, तरंगी, अलमस्त
काव्य-ग्रंथ : प्रेम-पचीसी, कृषक क्रन्दन, राष्ट्रीय मंत्र, राष्ट्रीय वीणा, त्रिशूल-तरंग, मानस-तरंग, कला में त्रिशूल, संजीवनी, करुणा कादम्बिनी, करुण भारती, कुसुमांजलि
गयाप्रसाद शुक्ल सनेही  की काव्य-पंक्तियाँ
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है,

वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।

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