गुरुवार, 15 मई 2014

जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ/jayshankar prasad ki rachnayen


जयशंकर प्रसाद

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(जन्म- 30 जनवरी, 1889 ई., वाराणसी, उत्तर प्रदेश, मृत्यु—15 नवम्बर, सन् 1937), भावना-प्रधान कहानी लेखक।
काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है।—प्रसाद
शाश्वत चेतना जब श्रेय ज्ञान को मूल चारुत्व में ग्रहण करती है, तब काव्य का सृजन होता है।—प्रसाद
काव्य में आत्मा की संकल्पनात्मक मूल अनुभूति की मुख्यधारा रहस्यवाद है।—प्रसाद
आधुनिक युग का रहस्यवाद उसी प्राचीन आनन्दवादी रहस्यवाद का स्वभाविक विकास है।—प्रसाद
कला स्व को कलन करने या रूपायित करने का माध्यम है।—प्रसाद
सर्वप्रथम छायावादी रचना 'खोलो द्वार' 1914 ई. में इंदु में प्रकाशित हुई।
हिंदी में 'करुणालय' द्वारा गीत नाट्य का भी आरंभ किया।
नाटक और रंगमंच
प्रसाद ने एक बार कहा था— “रंगमंच नाटक के अनुकूल होना चाहिये न कि नाटक रंगमंच के अनुकूल।”
आरम्भिक रचनाएँ
जयशंकर प्रसाद की आरम्भिक रचनाएँ यद्यपि ब्रजभाषा में मिलती हैं। प्रसाद की ही प्रेरणा से 1909 ई. में उनके भांजे अम्बिका प्रसाद गुप्त के सम्पादकत्व में "इन्दु" नामक मासिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ।

काव्य-संग्रह
• 'प्रेम पथिक' का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले 'इन्दू' (1909 ई.) में प्रकाशित हुआ था
• 'चित्राधार' (1918, अयोध्या का उद्धार, वनमिलन और प्रेमराज्य तीन कथाकाव्य इसमें संगृहीत हैं।)
• झरना (1918, छायावादी शैली में रचित कविताएँ इसमें संगृहीत)
• 'कानन कुसुम' है (1918, खड़ीबोली की कविताओं का प्रथम संग्रह है)
• 'आँसू' (1925 ई.) 'आँसू' एक श्रेष्ठ गीतिकाव्य है।
• 'महाराणा का महत्त्व' (1928) 1914 ई. में 'इन्दु' में प्रकाशित हुआ था। यह भी 'चित्राधार' में संकलित था, पर 1928 ई. में इसका स्वतन्त्र प्रकाशन हुआ। इसमें महाराणा प्रताप की कथा है।
• लहर (1933, मुक्तक रचनाओं का संग्रह)
• कामायनी (1936, महाकाव्य)
नाटक
• सज्जन (1910 ई., महाभारत से)
• कल्याणी-परिणय (1912 ई., चन्द्रगुप्त मौर्य, सिल्यूकस, कार्नेलिया, कल्याणी)
• 'करुणालय' (1913, 1928 स्वतंत्र प्रकाशन, गीतिनाट्य, राजा हरिश्चन्द्र की कथा) इसका प्रथम प्रकाशन 'इन्दु' (1913 ई.) में हुआ।
• प्रायश्चित् (1013, जयचन्द, पृथ्वीराज, संयोगिता)
• राज्यश्री (1914)
• विशाख (1921)
• अजातशत्रु (1922)
• जनमेजय का नागयज्ञ (1926)
• कामना (1927)
• स्कन्दगुप्त (1928, विक्रमादित्य, पर्णदत्त, बन्धवर्मा, भीमवर्मा, मातृगुप्त, प्रपंचबुद्धि, शर्वनाग, धातुसेन (कुमारदास), भटार्क, पृथ्वीसेन, खिंगिल, मुद्गल,कुमारगुप्त, अननतदेवी, देवकी, जयमाला, देवसेना, विजया, तमला,रामा,मालिनी, स्कन्दगुप्त)
• एक घूँट (1929, बनलता, रसाल, आनन्द, प्रेमलता)
• चन्द्रगुप्त (1931, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, सिकन्दर, पर्वतेश्वर, सिंहरण, आम्भीक, अलका, कल्याणी, कार्नेलिया, मालविका, शकटार)
• ध्रुवस्वामिनी (1933, चन्द्रगुप्त, रामगुप्त, शिखरस्वामी, पुरोहित, शकराज, खिंगिल, मिहिरदेव, ध्रुवस्वामिनी, मंदाकिनी, कोमा)

गीतिनाट्य
• 'करुणालय' (1913, 1928 स्वतंत्र प्रकाशन, गीतिनाट्य, राजा हरिश्चन्द्र की कथा)

कहानी-संग्रह
• ग्राम (1910, प्रथम कहानी)
• छाया (1912, प्रथम कहानी-संग्रह, 6 कहानियाँ)—ग्राम, चन्दा, रसिया बालम, मदन-मृणालिनी, तानसेन। छाया के दूसरे संस्करण (1918) में छह कहानियाँ शामिल की गई हैं— शरणागत, सिकन्दर की शपथ, चित्तौर का उद्धार, अशोक, जहाँआरा और ग़ुलाम
• प्रतिध्वनि (1926, 15 कहानियाँ)—प्रसाद, गूदड़भाई, गुदड़ी के लाल, अघोरी के लाल, पाप की पराजय, सहयोग, पत्थर की पुकार, फस पार का योगी, करुणा की विजय, खंडहर की लिपि, कलावती की शिक्षा, चक्रवर्ती की स्तम्भ, दुखिया, प्रतिमा, प्रलय।
• आकाशदीप (1929, 19 कहानियाँ)—आकाशद्वीप, ममता, स्वर्ग के खंडहर, सुनहला साँप, हिमालय का पथिक, भिखारिन, प्रतिध्वनि, कला, देवदासी, समुद्र-संतरण, बैरागी, बंजारा, चूड़ीवाला, अपराधी, प्रणय-चिह्न, रूप की छाया, ज्योतिष्मती, रमला और बिसाती।
• आँधी (1929, 11 कहानियाँ)—आँधी, मधुआ, दासी, घीसू, बेड़ी, व्रतभंग, ग्राम-गीत, विजया, अमिट स्मृति, नीरा और पुरस्कार।
• इन्द्रजाल (1936, 14 कहानियाँ)— इन्द्रजाल, सलीम, छोटा जादूगर, नूरी, परिवर्तन, सन्देह, भीख में, चित्रवाले पत्थर, चित्रमन्दिर, ग़ुण्डा, अनबोला, देवरथ, विराम चिह्न और सालवती।

उपन्यास
• कंकाल (1929, पात्र : श्रीचन्द, देवनिरंजन, मंगलदेव, बाथम, कृष्णशरण, विजय, किशोरी, यमुना, तारा, घंटी, लतिका, माला)
• तितली (1934, पात्र : मधुबन, रामनाथ, तितली, राजकुमारी, इन्द्रदेव, श्यामदुलारी, माधुरी, शैला)
• इरावती (1934 अपूर्ण, पात्र : बृहस्पतिमित्र, पुष्यमित्र, अग्निमित्र, खारवेल, कालिन्दी, इरावती, मणिमाला, धनदत्त, आनन्द)
चम्पू
• उर्वशी (1906), बभ्रुवाहन (1907), चित्रांगदा।
निबन्ध
• काव्य-कला और अन्य निबन्ध (1939, कुल 8 निबन्धे)
'आँसू' और 'कामायनी' आपके छायावादी कवित्व के परिचायक हैं। छायावादी काव्य की सभी विशेषताएँ आपकी रचनाओं में प्राप्त होती हैं।
काव्यक्षेत्र में प्रसाद की कीर्ति का मूलाधार 'कामायनी' है। मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर संयोजित किया गया है। सुमित्रानंदन पंत इसे 'हिंदी में ताजमहल के समान' मानते हैं।

कहानियाँ
1. तानसेन
2. चंदा
3. ग्राम
4. रसिया बालम
5. शरणागत
6. सिकंदर की शपथ
7. चित्तौड़-उद्धार
8. अशोक
9. गुलाम
10. जहाँआरा
11. मदन-मृणालिनी
12. प्रसाद
13. गूदड़ साईं
14. गुदड़ी में लाल
15. अघोरी का मोह
16. पाप की पराजय
17. सहयोग
18. पत्थर की पुकार
19. उस पार का योगी
20. करुणा की विजय
21. खंडहर की लिपि
22. कलावती की शिक्षा
23. चक्रवर्ती का स्तंभ
24. दुखिया
25. प्रतिमा
26. प्रलय
27. आकाशदीप
28. ममता
29. स्वर्ग के खंडहर में
30. सुनहला साँप
31. हिमालय का पथिक
32. भिखारिन
33. प्रतिध्वनि
34. कला
35. देवदासी
36. समुद्र-संतरण
37. वैरागी
38. बनजारा
39. चूड़ीवाली
40. अपराधी
41. प्रणय-चिह्न
42. रूप की छाया
43. ज्योतिष्मती
44. रमला
45. बिसाती
46. आँधी
47. मधुआ
48. दासी
49. घीसू
50. बेड़ी
51. व्रत-भंग
52. ग्राम-गीत
53. विजया
54. अमिट स्मृति
55. नीरा
56. पुरस्कार
57. इंद्रजाल
58. सलीम
59. छोटा जादूगर
60. नूरी
61. परिवर्तन
62. संदेह
63. भीख में
64. चित्रवाले पत्थर
65. चित्र-मंदिर
66. गुंडा
67. अनबोला
68. देवरथ
69. विराम-चिह्न
70. सालवती
71. उर्वशी
72. बभ्रुवाहन
73. ब्रह्मर्षि
74. पंचायत

कामायनी के सर्ग

1. चिंता
2. आशा
3. श्रद्धा
4. काम
5. वासना
6. लज्जा
7. कर्म
8. ईर्ष्या
9. इड़ा
10. स्वप्न
11. संघर्ष
12. निर्वेद
13. दर्शन
14. रहस्य
15. आनंद


8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया और व्यवस्थित जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए धन्यवाद।

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  2. बहुत बढ़िया और व्यवस्थित जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए धन्यवाद।

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  3. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 19/07/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  4. [01/12/2016, 10:06 a.m.] Bhat Mam Hal: 🌺आशा अमरधन 🌺
    .......................................

    हर बार एक,
    हर बार नया,
    जाने मैं कितनी दूर तक गया. !
    भविष्य काे देखा,
    भूत काे खाेया,
    वतॆमान में ना जाने,
    क्या ले कर बाेया !
    छाेटा सा सपना आँखाें में संजाेया,
    यह ले कर मैं सारी रात ना साेया !
    फिर एक दिन नसीब ने कहा,
    तू किस्मत से आगे चल ।
    भूल जा तू अपने बीते हुए पल,
    नसीब काे भला काेई बदल है पाया !!
    वह सब उसने श्रम से दिखलाया ।।

    सी0 के0 तिवारी 💐🙏
    [04/05, 10:46 a.m.] 🌹: जिंदगी के किराये का घर है, एक न एक दिन बदलना पड़ेगा । मौत जब तुझको आवाज देगी, घर से बाहर निकलना पड़ेगा ।।🌿🌷☘ सुप्रभात 🌷🙏
    [08/05, 7:46 a.m.] 🌹: एक छोटा सा सपना है प्यार, कोई अपना है प्यार। साॅसों का चलना है प्यार, साॅसों का ढलना है प्यार, सूरज का उगना है प्यार, सूरज का ढलना है प्यार, सागर की गहराई है प्यार, अंतरिक्ष की ऊँचाई है प्यार, अपनों का बिछड़ना है प्यार, बिछड़ों का मिलना है प्यार, किसी की आहट है प्यार, किसी का आभाष है प्यार, तकरार में है प्यार, इनकार में है प्यार, आशा में है प्यार, निराशा में है प्यार, सागर में है प्यार, एक बूँद में अपार, जलती हुई आग है प्यार, बुझता हुआ चिराग है प्यार, चिड़ियों का चहकना है प्यार, शेर की दहाड़ में है प्यार, पत्ते के गिरने में है प्यार, हवाओं के चलने में है प्यार, फूल के खिलने में है प्यार, जीवन का सार है प्यार, छोटा सा सपना है प्यार, कोई अपना है प्यार । डॉ0 चन्द्रकान्त तिवारी फरीदाबाद 🌿🌷🌷🌿
    [11/06, 11:44 a.m.] 🌹: खामोशियों की आवाज कौन सुनता है,
    कटे पेड़ों की आवाज कौन सुनता है ।
    कहने को तो पक्षियों की भी बोली होती है,
    पर उनकी बात कौन सुनता है ।
    छोड़ आते हैं रिश्तों को मरघट पर ,
    घर तो दिखावे का रोना होता है ।
    ये सागर. ये लहरें ये लहरों का बढ़ना ,
    गीली रेत पर पाॅव का धसना ,
    पल में बदलती ये सूरज की छाया ,
    रेत का घर किसने बनाया ।
    लहरों का तट को मिलना दोबारा,
    घर के ददॆ को कौन सुनता है ।
    खामोशियों की आवाज कौन सुनता है ।
    ददॆ अब भीतर ही रह जायेगा,
    न सुनेगा कोई और न सुना पायेगा ।
    सच में आवाजों के शहर में,
    खामोशी पहचानेगा कौन ।
    फिर भी मन तो सपना बुनता है ।
    खामोशियों की आवाज कौन सुनता है ।
    .
    डॉ0 चन्द्रकान्त तिवारी फरीदाबाद

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  5. प्रसाद जी की अंतिम कहानी का नाम बताइये

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  6. जयशंकर प्रसाद की अन्तिम कहानी सालवती है।

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