(सीमा : संवत् 1700-1900, 1643-1843 ई.)
नामांकरण
विद्वान नाम
मिश्रबन्धु विनोद : अलंकृतकाल
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : रीतिकाल
आचार्य
विश्वनाथ त्रिपाठी : श्रृंगारकाल
रमाशंकर शुक्ल
रसाल : कलाकाल
रीति
रीति शब्द से अभिप्राय है
काव्य-रीति या काव्य-परिपाटी।
लक्षण-ग्रंथ
लक्षण-ग्रंथ से अभिप्राय है वह ग्रंथ जिसमें काव्यांग
का विवेचन किया गया हो।
रीति-निरूपण
रीति-निरूपण से
अभिप्राय है काव्यांग
का निरूपण।
रीति-श्रृंगार
काव्य में सामन्त-समाज का प्रतिबिम्बन
रीति-श्रृंगार काल का
काव्य आम आदमी की चित्तवृत्तियों का काव्य नहीं है। वह केवल सामन्त-समाज का काव्य
कहा जा सकता है। आम आदमी की चित्तवृत्तियों का प्रतिफलन इसमें बहुत कम हुआ है।
रीतिकालीन कवि
का वर्गीकरण
रीतिबद्ध कवि : जिन कवियों ने रीति-निरूपक ग्रंथों की रचना की, उन्हें आचार्य कवि,
लक्षण-ग्रंथकार या रीतिबद्ध कवि कहा जाता है।
रीतिसिद्ध कवि : जिन कवियों ने रीति-निरूपक ग्रंथों की नहीं रचना की, लेकिन रीति की जानकारी
का उपयोग करते हुए अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं, उन्हें रीतिसिद्ध कवि कहा जाता है। बिहारीलाल इस धारा के सर्वाधिक
नहत्वपूर्ण कवि हैं।
रीतिमुक्त
कवि : जिन कवियों ने न तो रीति-निरूपक ग्रंथों की रचना की और न ही
रीति की जानकारी का उपयोग करते हुए काव्य-रचना की, बल्कि जिन्होंने रीति के बंधन
से पूर्णतः मुक्त होकर श्रृंगारपरक कविताएँ लिखीं, वे ही रीतिमुक्त कवि कहलाए। घनानंद, आलम, बोधा इत्यादि रीतिमुक्त श्रृंगारी कवि हैं।
रीतिकाल के कवि (कालक्रमानुसार)
1533-1585 ई. रसखान : रचनाएँ ౼ 1. सुजान रसखान (स्फुट छन्दों का संग्रह, भक्ति, प्रेम,
राधा-कृष्ण प्रेम माधुरी), 2. दानलीला
(पौराणिक प्रसंग का राधा-कृष्ण के संवाद के रूप में चित्रण) 3. अष्टयाम (कृष्ण की दिनचर्या का वर्णन) 4.
प्रेमवाटिका (1614 ई., राधा-कृष्ण को प्रेमोद्यान के मालिन-माली मानकर
मानकर प्रेम के गूढ़तत्व का वर्णन ) ।
वैरीसाल रचनाएँ : भाषाभूषण (अलंकार-निरूपक ग्रंथ,1568 ई.)
1555 -1617 ई. केशवदास (रीतिकाल के प्रवर्त्तकों में से एक, ब्रजभाषा के अलंकारवादी
कवि) : रचनाएँ ౼ 1. रसिकप्रिया (1591 ई., श्रृंगार तथा अन्य रसों का विवेचन, नायिका भेदों, कामदशाओं, रसदोषों इत्यादि का वर्णन
16 प्रकाशों में), 2. नखशिख (1600 ई.), 3. बारहमासा
(1600 ई.), 4. रामचन्द्रिका (1601 ई., श्रीराम पर प्रबंधकाव्य), 5.
कविप्रिया (1601 ई., अलंकारों, काव्य दोषों आदि का वर्णन, 16 प्रभावों में), 6.
छन्दमाला (1602 ई., दो भागों में विभक्त, प्रथम भाग में 77 वर्णवृत्तों और द्वितीय
भाग में 26 मात्रावृत्तों का वर्णन), 7. रतनबावनी (1606 ई., प्रबंधकाव्य), 8.
वीरसिंहदेव चरित (1607 ई., प्रबंधकाव्य), 9. विज्ञानगीता (1610 ई., प्रबंधकाव्य),
10. जहांगीर जस चन्द्रिका (1612 ई., प्रबंधकाव्य) ।
केशव की काव्य-पंक्तियां
1. भाषा
बोलि न जानही जिलके कुल के दास।
भाषा कवि भो मन्दमति, तेहि कुल केशवदास।।౼कविप्रिया
2.
जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृत्त।
भूषण बिनु न विराजई कविती वनिता मित्त।।
3.
कौन के सुत, बालि के वह कौन बालि, न जानिए।
कांख चांपि तुम्हें जो सात सागर न्हात बखनिए।
4.
अजहूं रघुनाथ प्रताप की बात, तुम्हें दसकंठ न जानि परी।
तेलनि तूलनि पूंछ जरी न, जरी जरी लंक दराइ जरी।
5.
छन्द विरोधी पंगु सुन नगन जो भूषण हीन।
मृतक कहावै
अर्थ बिनु, केशव सुनहु प्रवीन।
6.
ताते रुचि सों सोचि कै, कीजै सरस कवित्त।
7.
मातु, कहां नृपतात ? गए सुरलोक हि क्यों ? सुत शोक लिए।
8.
मूलन ही को मूल जहां अधोगति।
9.
एकै गति एकै मति एकै प्राण
एकै मन।
देखिबे को देह द्वै हैं नैनन की जोरी सी।।
केशव को कवि हृदय नहीं मिला था। उनमें वह सहृदयता और भावुकता न थी जो एक कवि
में होनी चाहिए। कवि कर्म में सफलता के लिए भाषा पर जैसा अधिकार चाहिए वैसा उन्हें
प्राप्त न था। केशव केवल उक्ति वैचित्र्य एवं शब्द क्रीड़ा के कवि थे।౼आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
प्रबन्ध रचना के योग्य न तो केशव में शक्ति थी और न अनुभूति। ౼आचार्य
रामचन्द्र शुक्ल
रीतिकाल का सम्यक प्रवर्तन केशवदास द्वारा भक्तिकाल में ही हो गया था।౼विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
केशवदास को कठिन काव्य का प्रेत कहा जाता है।
1589 ई. सेनापति : रचनाएँ ౼ कवित्त रत्नाकर (1649 ई., 394 छन्दों में रस,
अलंकार, रामभक्ति, ऋतु वर्णन) काव्यकल्पद्रुम, गुरु शोभा (1701 ई.), चाणक्य नीति का भावानुवाद ।
1595-1663 ई. बिहारीलाल : रचना౼ बिहारी सतसई (1662 ई.), कुल 713 दोहे।
बिहारी सतसई पर लिखी गई टीकाएँ : कृष्णलाल
कवि रचित बिहारी सतसई की पहली टीका (सं. 1719), मान कवि या मानसिंह रचित बिहारी
सतसई की दूसरी टीका (सं.1771), शुभकरण और कमलनयन द्वारा संयुक्त रूपेण रचित बिहारी
सतसई की 'अनवरचन्द्रिका' नामक टीका (सं. 1771), कर्ण कवि रचित 'साहित्यचन्द्रिका'
(सं. 1794), सूरति मिश्र रचित टीका 'अमरचन्द्रिका' (सं. 1794), हरिचरणदास रचित 'साहित्यचन्द्रिका'
(सं. 1734), असनी के ठाकुर की टीका देवकीनन्दन टीका (सं. 1861), लल्लूलाल रचित
टीका 'लालचन्द्रिका', पं. ज्वाला प्रसाद की टीका 'भावार्थ प्रकाशिका', पद्मसिंह
शर्मा की टीका 'संजीवनभाष्य', लाला भगवानदीन का टीका 'बिहारीबोधिनी' और जगन्नाथदास
रत्नाकर रचित टीका 'बिहारी रत्नाकर'।
1600-1685 ई. चिंतामणि : रचना౼ रचनाएँ : 1. रस-विलास (1630-80 ई., रसविवेचन) 2. श्रृंगार मंजरी (नायक-नायिका भेद) 3, कविकुलकल्पतरु (1650 ई.,सर्वांग निरूपक ग्रंथ) 4. रामायण (रामकथा) 5. रामाश्मेध (रामकथा) 6. काव्य-विवेक 7. छंद-विचार
8.
काव्य-प्रकाश 9. श्रृंगार-मंजरी 7. 8. कृष्ण-चरित 9. कवित्त-विचार 10. पिंगल। (भाषा : ब्रज)
तोष कवि रचनाएँ : सुधानिधि (1634 ई., रसभेद और भावभेद, दो पुस्तकें और मिली हैं--'विनय शतक और नखशिख')। ‘मिश्रबंधु विनोद’ के अनुसार इनके छह ग्रंथों का पता चलता है- ‘कामधेनु’, ‘भैयालाल पचीसी’, ‘कमलापति चालीसा’, ‘दीन व्यंग्यशतक’ और ‘महाभारती छप्पनी’। (माधुरी, नवम्बर-1927, पृ0-584-85) में इनकी सात रचनाओं का उल्लेख है- ‘भारत पंचशिका’ (यही विनोद का ‘महाभारत’ छप्पनी ग्रंथ प्रतीत होता है।) ‘दौलत चन्द्रिका’, ‘राजनीति’, ‘आत्मशिक्षा’, ‘दुर्गापचीसी’ (संभवतः यही भैयालाल पचीसी है), ‘नायिका भेद’ (अपूर्ण) और ‘व्यंग्यशतक’। इनकी शैली सरल, सरस तथा स्वाभाविक है।
भूषन भूषित दूषन हीन प्रवीन महारस मैं छबि छाई।
पूरी अनेक पदारथ तें जेहि में परमारथ स्वारथ पाई
औ उकतैं मुकतै उलही कवि तोष अनोषभरी चतुराई।
सुखदेव मिश्र रचनाएँ : रस रत्नाकर (1633-1703 ई.), रसार्णव (1633-1703 ई.), वृत्तविचार (1633-1703 ई.),
अध्यात्म प्रकाश (1633-1703 ई.)।
1603-1660 ई. रसनिधि : रचनाएँ౼ रतनहजारा (बिहारी के अनुकरण पर श्रृंगार, भक्ति, नीति आदि
के दोहे), विष्णुपद कीर्तन, कवित्त, बारहमासा, रसनिधि सागर, ह्डोला, अरिल्ल आदि।
1604-1701 ई. मतिराम : रचनाएँ౼ 1. रसराज (1633 ई.) 2. ललितललाम (1661 ई.) 3. मतिराम सतसई (1681 ई.), 4, अलंकार पंचशिका (1690 ई.), 5. छंदसार (1701
ई., वृत्त कौमुदी) 6. साहित्य सार 5. लक्षण श्रृंगार 6. 7. फूलमंजरी 8. (भाषा : ब्रज)।
1613-1715 ई. भूषण : रचनाएँ౼ 1. शिवराज भूषण 2. भूषण उल्लास 3. दूषण
उल्लास 4. भूषण-हजारा 5. शिवा बावनी 6. छत्रसाल दशक । (भाषा ब्रज)
1627-1729 ई. जसवंतसिंह रचनाएँ : भाषाभूषण (1650 ई.-85 ई.), प्रबंधचन्द्रोदय (1650 ई.-85
ई., नाटक)
1630-1700 ई. कुलपति मिश्र : रचनाएँ౼ 1. रस रहस्य (1727 ई., मम्मट के काव्य प्रकाश का छायानुवाद) 2. द्रोणपर्व (संवत् 1737), 3. युक्तितरंगिणी (1743), 4. नखशिख, 5. संग्रहसार, 6. गुण रसरहस्य (1724) ।
आश्रयदाता : जयपुर महाराज रायसिंह ।
1633 ई. मंडन : जानकी जू का ब्याह, पुरन्दरमाया।
मुरलीधर भूषण रचनाएँ :
छन्दोहृदय प्रकाश (1666 ई.)।
1643-1723 ई. वृन्द : रचनाएँ : बारहमासा
(1668 ई.), भाव पंचाशिका (1680), नयनपचीसी
(1686 ई.), श्रृंगार शिक्षा (1691 ई.), पवन पचीसी (1991
ई.), वृंद सतसई (1704 ई.), यमक सतसई (1706 ई.), चोर पंचाशिका, सत्यस्वरूप 8. भारतकथा, समेतशिखर
सूरति मिश्र
रचनाएँ : 'श्रीनाथबिलास' (प्रथम कृति, कृष्ण की लीलाओं का वर्णन), 'भक्तविनोद' (भक्तों की दिनचर्या वर्णित) 'कामधेनु' (भगवन्नाम स्मरण
के लिए चमत्कारी रचना), 'अलंकारमाला' (1709 ई., अलंकार-ग्रंथ)), रसरत्नमाला, रससरस, रसिकप्रिया की टीका 'रसगाहक चंद्रिका' (1734 ई., जहानाबाद के नसरुल्लाह खाँ के लिए), बिहारी
सतसई की 'अमर चंद्रिका' टीका (1737 ई., जोधपुर के दीवान अमरसिंह के लिए), 'जोरावरप्रकाश' (1843 ई., बीकानेर
नरेश जोरावर सिंह के आग्रह पर), नखशिख, 'छंदसार' (पिंगलनिरूपक), 'काव्यसिद्धांत' (कविशिक्षा), 'रसरत्न' (नायिकाभेद) तथा 'श्रृंगारसार' (रस से संबंधित)। रसरत्नमाला और रसरत्नाकर नामक रचनाएँ भी इनकी बताई जाती है,
परंतु 'रसरत्न' के अतिरिक्त इनका पृथक् अस्तित्व नहीं है। ब्रजभाषा गद्य में 'कविप्रिया' और 'रसिकप्रिया' पर विस्तृत टीकाएँ, संस्कृत के प्रसिद्ध 'प्रबोधचंद्रोदय नाटक' और 'वैताल पंचविंशति' का ब्रजभाषा पद्ममय अनुवाद।
आश्रयदाता : जहानाबाद के नसरुल्लाह खाँ, दिल्ली
के बादशाह मुहम्मदशाह, जोधपुर के दीवान अमरसिंह, बीकानेर नरेश जोरावर सिंह।
'नखशिख' से इनका एक कवित्त इस प्रकार है౼
तेरे ये कपोल बाल अतिही रसाल,
मन जिनकी सदाई उपमा बिचारियत है।
कोऊ न समान जाहि कीजै उपमान,
अरु बापुरे मधूकन की देह जारियत है
नेकु दरपन समता की चाह करी कहूँ,
भए अपराधी ऐसो चित्त धारियत है।
'सूरति' सो याही तें जगत बीच आजहूँ लौ,
उनके बदन पर छार डारियत है
1665 ई. कुमारमणि रचनाएँ : रसिकरंजन (1708 ई.), रसिकरसाल (1719 ई.)
1673-1767
ई. देव कवि रचनाएँ : 1. रस-विलास (संवत 1783, 'राजा भोगीलाल को
समर्पित)
2. भवानी-विलास (भवानीदत्ता वैश्य के नाम पर) 3. भाव-विलास (1689 ई., रीति कथन, औरंगज़ेब
के बड़े पुत्र आजमशाह को सुनाया था) 4. कुशल-विलास (भवानीदत्ता वैश्य के नाम पर) 5. जातिविलास (भिन्न-भिन्न
जातियों और भिन्न-भिन्न प्रदेशों की स्त्रियों का वर्णन), 6. प्रेमपचीसी 7. प्रेम-तरंग 8. प्रेम चंद्रिका (राजा उद्योत सिंह
वैश्य के लिए) 9. प्रेमदीपिका 10. शब्द-रसायन (1680 ई., काव्य-रसायन, काव्यशास्त्र के
सभी अंगो का वर्णन, आचार्यत्व), रागरत्नाकर (राग रागनियों के
स्वरूप का वर्णन), देव शतक, देवचरित्र (कृष्ण कथा), सुजान विनोद, सुखसागर तरंग (1689 ई., अनेक ग्रंथों से
लिए हुए कवित्तों का संग्रह), अष्टयाम (रात-दिन के
भोगविलास की दिनचर्या, औरंगज़ेब के बड़े पुत्र आजमशाह को सुनाया था), देवमाया प्रपंच (नाटक, धर्म विवेचन), राधिकाविलास, ब्रह्मदर्शन पचीसी (विरक्ति का भाव), तत्वदर्शन पचीसी (विरक्ति का भाव), वृक्ष विलास (अन्योक्ति)
। ( भाषा : ब्रज)
आश्रयदाता : राजा भोगीलाल
अभिधा उत्तम काव्य है; मध्य लक्षणा लीन।
अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन।౼ देव
अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन।౼ देव
1689-1739 ई. घनानन्द : रचनाएँ ౼ 1. सुजानसागर 2. विरहलीला
3. कोकसार 4. रसकेलिबल्ली 5. कृपाकांड।
आलम : रचनाएँ
౼ 1. माधवानलकामकंदला 2. आलमकेलि 3. श्यामस्नेही 4. सुदामा चरित ।
बोधा : रचनाएँ ౼ 1. विरहवारीश 2. विरही सुभान दम्पत्ति विलास౼इश्क़नामा ।
ठाकुर : रचनाएँ
౼ 1. ठाकुर ठसक 2. शतक
।
1699-1750 ई. रसलीन (पूरा नाम : सैयद ग़ुलाम नबी रसलीन) : रचनाएँ౼ अंगदर्पण (1737 ई., नखशिख-वर्णन, कुल 180 दोहे में नायिका के अंगों, आभूषणों, भंगिमाओं, चेष्टाओं आदि का उपमा तथा उत्प्रेक्षा युक्त चमत्कारपूर्ण
वर्णन), रसप्रबोध (1742 ई., 1127 दोहे में रस, भाव, नायिकाभेद, षट्ऋतु वर्णन, बारहमासा आदि अनेकानेक प्रसंग वर्णित) स्फुट
छन्द ।
अमिय, हलाहल, मद भरे, सेत स्याम रतनार।
जियत, मरत, झुकि झुकि परत, जेहि चितवत इक बार।
1700-1760
ई. सोमनाथ
रचनाएँ : 1. रसपीयूषनिधि (1737 ई.) 2. श्रृंगार-विलास (1725-1760 ई.) 3. सुजान-विलास (1730 ई.) 4. पंचाध्यायी 5. कृष्णलीलावती 6. माधवविनोद (1752 ई., नाटक)।
1705-1770 ई. भिखारीदास रचनाएँ : 1. काव्य-निर्णय (1725-60 ई., सभी काव्यांगों का विवेचन) 2. रस-सारांश (1725-60 ई., नायक-नायिका भेद) 3. श्रृंगार निर्णय (1725-60 ई.) 4. छंदोर्णवपिंगल (1725-60 ई.), 5. शब्द नामकोश (1725-60 ई.) 6. विष्णु पुराण भाषा (1725-60 ई.) 7. शतरंज शतिका (1725-60 ई.) 8. छन्दप्रकाश।
आश्रयदाता : प्रतापगढ़ के सोमवंशी राजा पृथ्वीसिंह के भाई
बाबू हिंदूपतिसिंह।
कालिदास त्रिवेदी रचनाएँ : 'वधू विनोद' (संवत 1749, नायिका भेद और नख शिख की पुस्तक), 'जँजीराबंद' (बत्तीस कवित्तों की), 'राधा माधव बुधा मिलन विनोद', 'कालिदास हज़ारा' (इसमें संवत 1481 से लेकर संवत 1776 तक के 212 कवियों
के 1000 पद्य संग्रहीत)
कहा जाता है कि संवत 1745 की गोलकुंडा की चढ़ाई
में यह औरंगज़ेब की सेना में किसी राजा के साथ गए थे। इस लड़ाई का औरंगज़ेब की प्रशंसा
से युक्त वर्णन इन्होंने इस प्रकार किया है -
गढ़न गढ़ी से गढ़ि, महल मढ़ी से मढ़ि,
बीजापुर ओप्यो दलमलि सुघराई में।
कालिदास कोप्यो वीर औलिया अलमगीर,
तीन तरवारि गही पुहुमी पराई में
बूँद तें निकसि महिमंडल घमंड मची,
लोहू की लहरि हिमगिरि की तराई में।
गाड़ि के सुझंडा आड़ कीनी बादशाह तातें,
डकरी चमुंडा गोलकुंडा की लराई में
आश्रयदाता : औरंगजेब, जंबू नरेश 'जोगजीत' सिंह।
श्रीपति रचनाएँ : 1. काव्य-सरोज (1750 ई., काव्यांगों का निरूपण) 2. कविकल्पद्रुम 3. सरोजकालिका 4. विक्रम-विलास 5. अनुप्रास-विनोद 6. अलंकार-गंगा, रससागर। श्रीपति
ने काव्य के सब अंगों का निरूपण किया है।
रंजन मदन, तन गंजन बिरह, बिबि,
खंजन सहित चंदबदन तिहारो है
1733 ई. ब्रजवासीदास : प्रबोधचन्द्रोदय
नाटक।
1743-1838 ई. रसिक गोविन्द : रामायणसूचनिका।
1750 ई. दूलह 'कविकुल कंठाभरण' (1750 ई., अलंकार ग्रंथ)
1753-1833 ई. पद्माकर रचनाएँ : 1. पदमाभरण (1810 ई.) 2. हिम्मत बहादुर विरुदावली 3. जगद् विनोद (1803-21 ई.) 4. प्रबोध पचासा (1803-21 ई.) 5. 6. 7. गंगालहरी (1803-21 ई.) राम रसायन (1803-21 ई.) 8. हिम्मत बहादुर विरुदावली (1792 ई.), प्रतापसिंह
विरुदावली (1803-21 ई.) विनोद पचासा, यमुनालहरी । (भाषा : ब्रजभाषा)
गुलगुली गिल में गलीचा हैं,
गुनीजन हैं,
चाँदनी है,
चिक है चिरागन की माला हैं।
कहैं पद्माकर त्यौं गजक गिजा
है सजी
सेज हैं सुराही हैं सुरा हैं
और प्याला हैं।
तान तुक ताला है,
विनोद के रसाला है,
सुबाला हैं,
दुसाला हैं विसाला चित्रसाला हैं।
बेनी प्रवीन रचनाएँ : श्रृंगार भूषण, नवरसतरंग (1817 ई., नायिका भेद के उपरांत रस भेद और भाव भेद का संक्षेप में निरूपण),
'नानारावप्रकाश' (अलंकार ग्रंथ) ।
1794-1834 ई. (रचनाकाल) रसिक गोविंद : रचनाएँ౼ रसिक गोविंदानंद घन (सं. 1858, रस, नायक-नायिका भेद, अलंकार, गुण, दोष आदि का विस्तृत वर्णन), अष्टदेशभाषा (ब्रज, खड़ी बोली, पंजाबी, पूरबी आदि आठ बोलियों में राधाकृष्ण की शृंगारलीला
का वर्णन), 'पिंगल' (छंदों का निरूपण), 'समयप्रबंध' (राधा-कृष्ण की शृंगारलीलाओं का अनेक ऋतुओं के संदर्भ
में वर्णन), रामायण सूचनिका या ककहरा रामायण (ककारादि क्रम से सारी राम-कथा का 33 दोहों में वर्णन, सं. 1859
वि. के पूर्व), कलियुगरासो (16 कवित्त में कलि के दुष्प्रभावों से बचने के लिए श्रीकृष्ण
से प्रार्थना, संवत् 1866 विक्रमी)), 'लछिमनचंद्रिका' (काशीवासी जगन्नाथ कान्यकुब्ज के बेटे लक्ष्मण के लिए, संवत् 1887 वि., 'रसिक-गोविंदानंदधन' के वर्ण्यविषय को समझाने के लिए), रसिक गोविंद (सं.1890, चंद्रालोक या भाषाभूषण के ढंग की अलंकार
की पुस्तक), युगलरस माधुरी (रोलाछंद में 'राधा-कृष्ण विहार' और वृंदावन का बहुत ही सरल और मधुर भाषा में वर्णन)
'रसिकगोविंद' (अलंकारनिरूपक ग्रंथ, अलंकार-लक्षण-उदाहरण छंदबद्ध
रूप में, संवत 1891 वि.)।
1770-1827 ई. ठाकुर : रचनाएँ ౼ 1. ठाकुर ठसक 2. शतक
।
1783-1868 ई. अमीरदास : रचनाएँ౼ 1. सभा मंडन
(1827 ई.) 2. वृतचंद्रोदय (1830 ई.) 3. ब्रजविलास सतसई (1832 ई.) 4. अमीर प्रकाश 5. श्रीकृष्ण साहित्य सिंधु 6. शेरसिंह प्रकाश 7. वैद्यकल्पतरु 8. (भाषा : ब्रजभाषा)
1791-1868 ई. ग्वाल कवि (रीतिकाल के रीतिग्रंथकार कवि और अन्तिम आचार्य) : रचनाएँ౼ रसिकानन्द, साहित्यानन्द, रसरंग, अलंकार भ्रमभंजन, दूषणदर्पण (कवि दर्पण) तथा प्रस्तार प्रकाश। 'दूषण दर्पण' में हिन्दी कवियों की कविताओं के उदाहरण संकलित
करके उनका विस्तार से दोष विवेचन किया है।
रचनाएँ : अलंकारमाला, रसरत्नमाला, नखशिख, काव्य-सिद्धांत, रसरत्नाकर, श्रृंगार सागर, भक्तिविनोद
1792-1833 ई. बेनीबन्दीजन : रचनाएँ౼ टिकैतराय प्रकाश, भड़ैवा संग्रह, रसविलास।
1798-1875 ई. चंद्रशेखर वाजपेयी रचनाएँ : हम्मीर हठ (1845 ई. ), नखशिख, रसिकविनोद (1846 ई., नायिकाभेद और रसों का वर्णन), वृंदावनशतक, गुरुपंचाशिंका, ज्योतिष का ताजक, माधवी वसंत, हरि-भक्ति-विलास (हरि-मानसविलास), विवेकविलास, राजनीति का एक वृहत् ग्रंथ।
जोधपुर के राजा
मानसिंह, पटियालाधीश कर्मसिंह और महाराज नरेंद्रसिंह के आश्रय
में रहे।
1823 से 1842 ई. (कविताकाल) प्रताप साहि : 'व्यंग्यार्थ कौमुदी' (सं. 1882, कवित्त, दोहे, सवैये मिलाकर 130 पद्य, सब व्यंजना या ध्वनि के उदाहरण हैं) 'काव्य विलास' (सं. 1886), जयसिंह प्रकाश, शृंगारमंजरी, शृंगार शिरोमणि, अलंकार चिंतामणि, काव्य विनोद, रसराज की टीका, रत्नचंद्रिका, जुगल नखशिख, बलभद्र नखशिख की टीका।
'व्यंग्यार्थ कौमुदी' का सवैया౼
सीख सिखाई न मानति है, बर ही बस संग सखीन के आवै।
खेलत खेल नए जल में, बिना काम बृथा कत जाम बितावै
छोड़ि कै साथ सहेलिन को, रहि कै कहि कौन सवादहि पावै।
कौन परी यह बानि, अरी! नित नीरभरी गगरी ढरकावै
घड़े के पानी में अपने नेत्रों का प्रतिबिंब देख उसे मछलियों
का भ्रम होता है। इस प्रकार का भ्रम एक अलंकार है। अत: भ्रम या भ्रांति अलंकार,
यहाँ व्यंग्य हुआ।
'भ्रम' अलंकार में 'सादृश्य' व्यंग्य रहा करता है। अत: अब इस व्यंग्यार्थ पर पहुँचे कि 'नेत्र मीन के समान हैं'।
इनकी करनी बरनी न परै, मगरूर गुमानन सों गहरैं।
घन ये नभमंडल में छहरैं, घहरैं कहुँ जाय, कहूँ ठहरैं
सिसिर के पाला को व्यापत न
कसाला तिन्हें,
जिनके अधीन ऐते उदित मसाला
हैं।
आश्रयदाता : चरखारी (बुंदेलखंड) के महाराज 'विक्रमसाहि'
1830-1871 ई. द्विजदेव (अयोध्या के महाराज मान
सिंह, रीतिकालीन स्वच्छन्द मुक्तक काव्य परम्परा के अंतिम कवि)
रचनाएँ : श्रृंगार
लतिका (वसन्त और नखशिख वर्णन), श्रृंगार बत्तीसी (यह पहलब पुस्तक का ही अंश
है)।
तू जो कही, सखि ! लोनो सरूप, सो मो अँखियान
कों लोनी गई लगि।
खोलि इन नैननि निहारौ तो निहारौ कहा।
आश्रयदाता : चरखारी (बुंदेलखंड) के महाराज 'विक्रमसाहि'
1833-1879 ई. रघुराज सिंह रचनाएँ : रामस्वयंवर (रामकथा पर आधारित प्रबंध-काव्य संवत् 1926)
रसरूप रचनाएँ : तुलसी भूषण (अलंकार-निरूपक ग्रंथ)
जगत् सिंह रचनाएँ :
साहित्यसुधानिधि।
गिरधरदास रचनाएँ :
रसरत्नाकर, भारती भूषण, उत्तरार्द्ध नायिका भेद।
रहीम रचनाएँ :
बरवै नायिका भेद, नगरशोभा।
रामसहायदास (कविताकाल
1803-1823 ई.) रचनाएँ : रामसहाय ने 'रामसतसई' (शृंगार रस का उत्तम ग्रंथ, बिहारी सतसई के अनुकरण पर)), 'श्रृंगार सतसई', रामसप्तसति , 'ककहरा', 'बानी भूषण', नामक
काव्य ग्रंथ रचे थे।
'बिहारी
सतसई' के अनुकरण पर इन्होंने
'रामसतसई' बनाई थी। 'रामसतसई', 'रामसप्तसति' और
'शृंगारसतसई' तीनों एक ही रचना के तीन नाम ज्ञात होते हैं। इस के अतिरिक्त
इन्होंने तीन पुस्तकें और लिखी हैं – वाणीभूषण (अलंकारनिरूपक ग्रंथ), वृत्ततरंगिणी (संवत्र् 1873,
पिंगल-ग्रंथ), 'राम सप्त शतिका'
और ककहरा (अंतिम रचना, जायसी की 'अखरावट' के ढंग पर लिखित धर्म और नीति के उपदेश की पुस्तक)।
ये काशी नरेश 'महाराज
उदित नारायण सिंह' के
आश्रय में रहते थे।
रीतिकालीन
वीर काव्य-कवि
भूषण, लाल, सूदन, पद्माकर, सेनापति, चन्द्रशेखर, जोधराज, भान, सदानंद इत्यादि ।
लाल कवि रचनाएँ : छत्रप्रकाश
सूदन रचनाएँ : सुजानचरित
चंद्रशेखर वाजपेयी (रचनाएँ : हम्मीरहठ)
चंद्रशेखर वाजपेयी (रचनाएँ : हम्मीरहठ)
नीति कवि
वृंद (1704 ई.) रचनाएँ : बारहमासा
(1668 ई.), भाव पंचाशिका (1680 ई.), नयनपचीसी
(1686 ई.), श्रृंगार शिक्षा (1691 ई.), पवन पचीसी (1991
ई.), वृंद सतसई (1704 ई.), यमक सतसई (1706 ई.), चोर पंचाशिका, सत्यस्वरूप 8. भारतकथा, समेतशिखर
गिरधर कविराय रचनाएँ : सांई (कुंडलियाँ, 1743 ई.)
लाल कवि रचनाएँ : 1. छत्रप्रकाश 2. विष्णुविलास
सूदन रचनाएँ :1. सुजानचरित
दीनदयाल गिरि रचनाएँ : अन्योक्ति कल्पद्रुम,
अनुराग बाग़, दृष्टान्त तरंगिणी, वैराग्य दिनेश
बैताल रचनाएँ :
विक्रम सतसई
रीतिकाल में रचित प्रबंध-काव्य
चिन्तामणि : रामायण,
रामाश्वमेध, कृष्णचरित।
गोविन्दसिंह : चण्डीचरित्र।
मंडन : जानकी जू का
ब्याह, पुरन्दरमाया।
कुलपति मिश्र : द्रोणपर्व
(संग्रामसार)।
लाल कवि : छत्रप्रकाश
सूरति मिश्र : रामचरित,
श्रीकृष्णचरित।
श्रीधर : जंगनामा।
सोमनाथ : पंचाध्यायी,
सुजानविलास।
रघुनाथ : जगतमोहन।
गुमान मिश्र : नैषधचरित
(काव्यकलानिधि)।
सूदन : सुदानचरित।
रामसिंह : जुगलविलास।
चन्दन : सीतवसन्त,
कृष्णकाव्य।
पद्माकर : हिम्मतबहादुर विरुदावली।
ग्वाल : हम्मीर हठ, विजयविनोद, गोपी पच्चीसी।
रीतिकाल में रचित सतसई-काव्य-ग्रंथ :
बिहारी :
बिहारी सतसई (1662 ई.)
मतिराम :
मतिराम सतसई
बैताल : विक्रमसतसई
रामसहायदास : रामसतसई
वृन्द : यमक सतसई (वृन्दसतसई, 1706 ई.)
रीतिकाल में रचित नाटक
जसवन्तसिंह : प्रबोधनाटक चन्द्रोदय (ब्रजभाषा का पेरथम नाटक)।
राम : हनुमान नाटक।
नेवाज : सोमनाथ
सोमनाथ : माधवविनोद नाटक।
देव : देवमायाप्रपंच नाटक।
नेवाज : माधवानल कामकन्दला।
ब्रजवासीदास : प्रबोधचन्द्रोदय
नाटक।
रीतिकाल से
पूर्व रीतिकाव्य-परम्परा (भक्तिकाल में
रचित रीतिग्रंथ)
कवि ग्रंथ विक्रम
संवत्
कृपाराम हिततरंगिणी सं. 1598 (1541 ई.)
सूरदास साहित्यलहरी सं. 1607 (1550 ई.)
नन्ददास रसमंजरी,
विरहमंजरी सं.
1608 (1551 ई.)
मोहनलाल मिश्र श्रृंगारसागर सं. 1616 (1559 ई.)
करनेस कवि कर्णाभरण,
श्रुतिभूषण, भूपभूषण सं. 1636 (1579 ई.)
बलभद्र मिश्र नख-शिख सं.
1640 (1583 ई.)
रहीम बरवै
नायिकाभेद सं.
1640 (1583 ई.)
केशवदास रसिकप्रिया सं. 1648 (1591 ई.)
कविप्रिया सं. 1658 (1658 ई.)
मोहनदास बारहमासा सं.
1650 (1593 ई.)
हरिराम छन्द
रत्नावली सं.
1651 (1594 ई.)
बालकृष्ण रामचन्दप्रिया
(पिंगल) सं.
1657 (1600 ई.)
मुबारक अलक
शतक, तिलक शतक सं.
1660 (1603 ई.)
गोप अलंकार
चन्द्रिका सं.
1670 (1613 ई.)
लीलाधर नखशिख सं.
1676 (1619 ई.)
ब्रजपति भट्ट रंगभावमाधुरी सं. 1680 (1623 ई.)
छेमराज फ़तेहप्रकाश सं. 1685 (1628 ई.)
सुन्दर सुन्दर
श्रृंगार सं.
1688 (1631 ई.)
सेनापति षड्ऋतुवर्णन सं. 1700 (1643 ई.)
उत्तर मध्यकाल (रीतिकील) की मुख्य काव्यधाराएँ (प्रवृत्तियाँ)
1. रीतिकाव्य प्रवृत्ति
2. रीतिबद्ध या रीतिसिद्ध श्रृंगार काव्य
3. रीतिमुक्त प्रेमकाव्य-धारा
4. वीर काव्य-धारा
5. नीति काव्य-धारा
6. दक्खिनी हिन्दी प्रेमाख्यान या मसनवी काव्य-धारा
7. उत्तर भारत की प्रेमाख्यान काव्य-धारा
8. भक्तिकाव्य-धारा।
👉मिश्र बंधुओं ने देव को बिहारी
से भी बडा कवि मानकर " देव बडे की बिहारी" विवाद को जन्म दिया।
पं. कृष्णबिहारी मिश्र : देव और बिहारी
लाला भगवानदीन : बिहारी और देव
पं. कृष्णबिहारी मिश्र : देव और बिहारी
लाला भगवानदीन : बिहारी और देव
"बिहारीलाल की कविता यदि
जूही या चमेली का फूल है तो देव की कविता गुलाब या कमल का फूल
। दोनों में सुवास है । भिन्न भिन्न लोग भिन्न भिन्न सुगन्ध के प्रेमी हैं ।"౼ पं कृष्णबिहारी
मिश्र