रविवार, 31 जुलाई 2022

अरबी भाषा का संस्मरण-साहित्य को योगदान

 अरबी भाषा का संस्मरण-साहित्य को योगदान

∆ मुहम्मद इलियास हुसैन



संस्मरण-साहित्य की दृष्टि से अरबी दुनिया की सबसे समृद्ध भाषा है। इसमें 'हदीस' के रूप में संस्मरणात्मक साहित्य मौजूद है। हदीसों का अनुवाद दुनिया की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में उपलब्ध है। ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के कथन, आशय, समाचार, घटना इत्यादि को 'हदीस' कहते हैं। अरबी भाषा में ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के व्यक्तित्व, कृतित्व एवं अध्यात्म-वृत्ति पर प्रकाश डालने वाली संस्मरणात्मक कृतियों का विशाल भंडार मौजूद है। हदीस की विश्व प्रसिद्ध अमर कृतियां ये हैं :

'सहीह बुख़ारी', 'सुनने-अबू दाऊद', 'जामेअ तिरमिज़ी', 'सुनने नसई' और 'इब्ने माज़ा'। इन संस्मरणात्मक हदीस-संग्रहों को 'सिहाह सित्ता' अर्थात 'षडसत्य ग्रंथ' (छ: सच्ची किताबें) कहते हैं। इन ग्रंथों का हिंदी-उर्दू में अनुवाद उपलब्ध है।

इनमें हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के कथनों एवं कर्मों को आप (सल्ल.) के प्यारे साथियों (रजि.) द्वारा संस्मरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इन संग्रहों को संसार का सर्वाधिक प्रामाणिक, ऐतिहासिक और पूर्णरूपेण सत्य पर आधारित संस्मरण-साहित्य कहा जा सकता है।

संसार की प्राय: हर प्रमुख भाषाओं में इनका अनुवाद उपलब्ध है। 

प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान, विचारक, लेखक और अनुवादक मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ ख़ान साहब ने उपर्युक्त कृतियों के आधार पर 'कलामे-नुबूवत' शीर्षक से उर्दू में पांच खंडों में हदीसों को संकलित किया है। इनका अनुवाद 'हदीस सौरभ' के नाम से हिंदी में भी हो चुका है। 'रियाज़ुस्सलिहीन' नाम से भी हदीसों का एक संग्रह उर्दू-हिंदी में प्रकाशित हो चुका है। अन्य भारतीय भाषाओं में हदीसों के कितने ही अनुवाद प्रकाशित हो चुके है।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के संबंध में आपके साथियों (रज़ि.) के कुछ संस्मरण निम्नलिखित हैं :

#फ़िलिस्तीन के निवासी उबादा-बिन-यसीर शामी अपने क़बीले की एक स्त्री फ़सैला के माध्यम से रिवायत करते हैं कि उसका कहना है कि मैंने अपने पिता को यह कहते हुए सुना कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्ल.) से पूछा, "क्या यह भी पक्षपात है कि कोई व्यक्ति अपनी क़ौम से प्रेम करें? आप (सल्ल.) ने कहा, "नहीं, बल्कि पक्षपात यह है कि कोई व्यक्ति अपनी क़ौम की सहायता उसी स्थिति में भी करे, जबकि वह अत्याचार कर रही हो।" (हदीस : मुसनद अहमद, इब्ने-माज़ा)

#हज़रत अब्दुल्लाह-बिन- आमिर (रज़ि.) से उल्लिखित है कि एक दिन मेरी मां ने मुझे बुलाया। उस समय अल्लाह के रसूल (सल्ल.) हमारे घर में बैठे हुए थे। मेरी मां ने कहा, "दौड़ कर आओ। मैं तुम्हें कुछ दूंगी।" अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने पूछा, "तुम इसे क्या देना चाहती हो?" उन्होंने कहा, "मैं मेरी उसे एक खजूर देने की इच्छा है।" इस पर अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने कहा, "याद रखो, अगर तुम उसे कुछ न देती तो एक झूठ तुम्हारे कर्मपत्र में लिख दिया जाता।" (हदीस : अबू-दाऊद)

#हज़रत इब्ने-मसऊद (रज़ि.) से उल्लिखित है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) बोरिए पर सोए। उठे तो आप (सल्ल.) के शरीर पर बोरिए के निशान पड़े हुए थे। इब्ने- मसऊद ने कहा, "अल्लाह के रसूल! अगर आप हमें आदेश देते तो हम आपके लिए फ़र्श बिछाते और अच्छे कपड़े की व्यवस्था कर देते।" आप (सल्ल.) ने कहा,

 "मुझे इस दुनिया से और इस दुनिया को मुझसे क्या सरोकार? मेरी और इस दुनिया की मिसाल तो बस ऐसी है, जैसे कोई सवार किसी वृक्ष के नीचे छाया की तलाश में आए और फिर उसे छोड़ कर चल दे।" (हदीस : मुस्नद अहमद, तिरमिज़ी, इब्ने-माज़ा)

#हज़रत सहल (रज़ि.) कहते हैं कि एक महिला अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के पास एक बुना हुआ हाशियादार बुर्दा लेकर आई। क्या तुम जानते हो कि बुर्दा क्या चीज़ है? शमला (चादर)। उन्होंने कहा कि हां। उस महिला ने कहा कि मैंने इसे अपने हाथ से बुना है। आई हूं कि आप (सल्ल.) को पहना (ओढ़ा) दूं। नबी (सल्ल.) ने उसे क़बूल कर लिया। उस समय आपको उसकी ज़रूरत भी थी। फिर आप (सल्ल.) हमारे पास आए। उस समय आपने उसे तहबंद (लूंगी) के रूप में पहन रखा था। एक व्यक्ति ने उसकी प्रशंसा की और कहा कि इसे आप हमें प्रदान कर दें। यह कितनी अच्छी है। लोगों ने कहा कि यह तूने अच्छा नहीं किया। इसे तो नबी (सल्ल.) ने आवश्यकतावश पहन रखा था और तूने इसे मांग लिया। हालांकि तुझे मालूम है कि आप (सल्ल.) किसी के सवाल को रद्द नहीं करते। उस व्यक्ति ने कहा कि अल्लाह की क़सम! इसे मैंने पहनने के लिए नहीं मांगा है, बल्कि इसलिए मांगा है कि यही मेरा कफ़न हो।" (हदीस : बुख़ारी)

#हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद से उल्लेखित है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने कहा, "जान लो कि विनष्टध हुए वे लोग जो बातों और मामलों में अति से काम लेते हैं।" यह बात आप (सल्ल.) ने तीन बार कही। (हदीस : मुस्लिम)

#हज़रत आयशा (रज़ि.) से उल्लिखित है कि नबी (सल्ल.) ने फ़रमाया, "अल्लाह को सबसे अधिक अप्रिय आदमी वह है जो अत्यंत झगड़ालू हो।" (हदीस : बुख़ारी)

#हज़रत आइज़-बिन-अम्र (रज़ि.) बयान करते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को यह कहते हुए सुना, "शासकों में सबसे बुरा शासक वह है जो ज़ालिम हो।" (हदीस : मुस्लिम)

#हजंरत अब्दुल्लाह-बिन-उमर (रज़ि.) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने फ़रमाया, "तुम में सबसे उत्तम वह है, जो नैतिकता की दृष्टि से उत्तम हो।" (हदीस : बुख़ारी, मुस्लिम)

#हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि.) से उल्लिखित है, नबी (सल्ल.) ने कहा, "क़सम है उस सत्ता की जिसके हाथ में मेरे प्राण हैं। तुम अनिवार्यत: भलाई का हुक्म देते रहोगे और बुराई से रोकते रहोगे। अन्यथा अल्लाह जल्द ही तुम पर यातना भेजेगा। उस समय तुम अल्लाह से प्रार्थना करोगे और तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार नहीं की जाएगी।" (हदीस : तिरमिज़ी)

#हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि.) से उल्लेखित है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने कहा, "मज़दूर को उसकी मज़दूरी उसका पसीना सूखने से पहले दे दो।" (हदीस : इब्ने-माज़ा)

#हज़रत औफ़-बिन-मालिक (रज़ि.) से उल्लिखित है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने कहा, "तुम्हारे सर्वोत्तम शासक वे हैं जिनसे तुम प्रेम करो और वे तुमसे प्रेम करें। तुम उनके लिए दुआ करो और वे तुम्हारे लिए दुआ करें और तुम्हारे शासकों में निकृष्टतम शासक वे हैं जिनसे तुम्हें द्वेष हो और उन्हें तुमसे द्वेष हों और तुम उन पर लानत करो और वे तुम पर लानत करें।" (हदीस : मुस्लिम)

#हज़रत आइज़-बिन-अम्र (रज़ि.) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को यह कहते हुए सुना, "शासकों में सबसे बुरा शासक वह है जो अत्याचारी हो।" (हदीस : मुस्लिम)

#हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़ि.) कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को यह कहते हुए सुना, "वह व्यक्ति मोमिन नहीं जो पेट भर खाए और उसका पड़ोसी उसके पहलू में भूखा रह जाए।" (हदीस : बैहक़ी, फ़ी शोबुल ईमान)

शनिवार, 30 जुलाई 2022

संस्मरण : उस्ताद शायर अबुल मुजाहिद 'ज़ाहिद' की याद

 संस्मरण : उस्ताद शायर अबुल मुजाहिद 'ज़ाहिद' की याद

∆ मुहम्मद इलियास हुसैन


पांच-छ: साल पहले की बात है। भारतीय उपमहाद्वीप में उर्दू के मशहूर शायर अल्लामा अबुल मुजाहिद 'ज़ाहिद' साहब ने एक लाइब्रेरी को भेंटस्वरूप दी गई पुस्तक के अंतिम पृष्ठ पर अपने सुंदर और सुपाठ्य अक्षरों में लिखा था : 

75 साल का मैं हो गया हूं क्या कम-कम ज़्यादा हो गया हूं

उमंगे हैं न कोई आरज़ू है बज़ाहिर जागता हूं सो गया हूं

साहित्य संगम, दिल्ली की एक गोष्ठी में उन्होंने पढ़ा था :

जाने कब टूट जाऊं टहनी से 

ज़र्द पत्ता हूं, थरथराता हूं बर्फ़ का एक पुतला है इंसां

घुलता जाए, घुलता जाए

 मौलाना अबुल मुजाहिद 'ज़ाहिद' साहब लंबी बीमारी के बाद कुछ स्वस्थ होकर अलीगढ़ से दिल्ली आए थे, तो मैंने पूछा था, "मौलाना! अब कैसी तबीयत है?" उन्होंने कहा था, "एक रोग (मौत) के अलावा सारे रोगों ने मेरे जिस्म में आशियाना बना लिया है।"

फिर जब दिल्ली से अलीगढ़ वापस जाने लगे तो मैंने उनसे पूछा था, "दिल्ली फिर कब आएंगे?" उन्होंने कहा, "सेहत ने इजाज़त दी तो इंशाअल्लाह मार्च में आऊंगा।"

और मार्च में मौलाना दिल्ली तो नहीं आ सके; हां, 6 मार्च 2009 को जुम्मा के दिन सुबह 11:00 बजे वहां ज़रूर चले गए, जहां से कोई कभी वापस नहीं आता। वह इस संसार रूपी वृक्ष की टहनी से टूटकर हमेशा-हमेशा के लिए हमसे बिछड़ गए, सदा-सर्वदा के लिए सो गए। आह, बर्फ़ का वह पुतला घुल-घुल कर जल में विलीन हो गया, मिट्टी का पुतला मिट्टी में मिल गया। इन्ना लिल्लाहि व

 इन्ना इलैहि राजिऊन (हम अल्लाह ही के हैं और अल्लाह ही की ओर लौट कर जाने वाले हैं)। 

मौलाना प्रत्येक अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में अपने किरदार का दामन मज़बूती से थामे रहे, कलियों की भांति मुस्कुराते रहे।

जीने का यह सलीक़ा बहुत कम लोगों को आता है :

मिसले-गुल तुम रहो शगुफ़्ता जबीं

मुस्कुराते रहो कली की तरह

अपनी तलवार की धार न गिरा

अपने ग़म को यूं निभाने का सलीक़ा भी किसे

फूल फिर भी हंस रहा है चाक दामां ही सही।

मौलाना का जन्म 28 जून 1928 को लखीमपुरखीरी (यूपी) में हुआ। आगे चलकर रामपुर (यूपी) में बस गए थे और ओरिएंटल कॉलेज रामपुर से फ़ाज़िल (एम.ए. के समकक्ष) की डिग्री हासिल की थी। इसके साथ ही अन्य कई डिग्रियां भी हासिल की थीं। 

वास्तव में मौलाना मर्दे-मुजाहिद थे, आजीवन जीवन-संघर्ष में जुटे रहे :

मेरे बस में क़ियाम है न ख़िराम

सत्हे-दरिया में एक तिनका हूं

हम तो दुनिया से भर पाए फूल लुटाए पत्थर खाए

हम तो ठहरे धूप के राही

हां, तुम जाओ साए साए

मेरी आशाओं का दीपक जलता जाए बुझता जाए

 मेहनत का फल मीठा होता है। जो कांटों भरे रास्ते पर चलकर जीवन-यात्रा पूरी करता है, वही आख़िर में मनोरम, सुवासित एवं आनंददायक पुण्य-लोक प्राप्त करता है :

जो कांटों से चल कर आए

वो फूलों को हाथ लगाए

 मौलाना यूं तो मौजूदा नज़रियाती अदब (विचारधारापरक साहित्य) के रहनुमा और पेशवा थे, परंतु फिर भी किसी तरह की हदबंदी के क़ाइल नहीं थे :

मुझको हदबंदियां क़बूल नहीं 

कुल ज़मीं मेरे घर का आंगन है

 दुनिया की चमक-दमक के बारे में मौलाना ने कहा है :

चमक-दमक सब शबाब तक है

यह धूप बस आफ़ताब तक है

 यह बात आदमी के जिस्म पर, सांसारिक चमक-दमक पर शत-प्रतिशत चरितार्थ होती है, परंतु मौलाना ने 'तगो-ताज़' (काव्य-संग्रह, 1957 ई.), 'खिलती कलियां' (बच्चों की नज़्में, 1957 ई.), 'यदे-बैज़ा' (काव्य-संग्रह, 1998 ई.) इत्यादि कई अमर काव्य-संग्रह का जो ख़ज़ाना आने वाली नस्लों के लिए विरासत के रूप में छोड़ा है, उन संग्रहों के बारे में यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि उनकी की चमक-दमक और रौशनी समय के साथ बढ़ती ही जाएगी, इंशाअल्लाह। इससे नई नस्ल रौशनी हासिल करती रहेगी।

 हिंदी में तो गुरु-शिष्य परंपरा प्रायः मरणासन्न है, लेकिन उर्दू में यह परंपरा आज भी ज़िंदा है। अबुल मुजाहिद 'ज़ाहिद' साहब अरबी, फ़ारसी और उर्दू के मशहूर विद्वान थे। वे 'शायरों के उस्ताद' थे। उदीयमान लेखकों और शायरों के लिए प्रेरणा-स्रोत थे। मौलाना के शागिर्दों की बड़ी संख्या मौजूद है। इन पंक्तियों के लेखक ने उर्दू के छोटे-बड़े अनेक शायरों को अपनी रचनाओं की इस्लाह (सुधार) उनसे करवाते देखा है। वे इन पंक्तियों के लेखक से अक्सर कहा करते थे, "इलियास साहब, लिखिए और लिखते रहिए, कुछ भी लिखिए, लिखते-लिखते ही लिखना आता है।"

जो पारखी नज़र वाले होते हैं, उनकी नज़र हमेशा सर्वोत्तम वस्तु पर होती है।

 मौलाना भी बड़ी गहरी पारखी नज़र वाले थे। तभी तो उन्होंने कहा है : 

चमन में फूल और भी हैं लेकिन 

मेरी नज़र सत्हे-गुलाब तक है 

समाज और देश-दुनिया के मौजूदा हालात पर मौलाना की गहरी नज़र थी। उनके शे'र देखिए :

वह तो धुआं था जलते घरों का 

लोग ये समझते बादल छाए

सोचता हूं कि आज का इंसां

आदमी है कि आदमी की तरह

 कोई उठकर लगाता आदमीयत को गले

कोई हिंदू ही सही, कोई मुसलमां ही सही

बिंब-प्रतिबिंब, प्रतीक और मानवीकरण जैसे अलंकार मौलाना की उंगलियों के इशारे पर नाचते हैं। देखिए उन्होंने अपने मौजूदा समाज तथा देश-दुनिया की भयावह स्थिति का सजीव और सरस वर्णन किया है। दानवता की आग में धू-धू जलती मानवता का बिंब और प्रतीक के माध्यम से कितना सुंदर और सजीव चित्रण किया है :

आग का ये रक्स ये फूलों के जलते पैरहन 

तुम गुलसितां इसको कहते हो गुलसितां ही सही।

 सच कड़वा होता है और इसे तो वहां 'करेला नीम चढ़ा' माना जाता है, जहां झूठों का बोलबाला हो। यह कहने की ज़रूरत नहीं कि आज पूरी दुनिया में निरंतर झूठ का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, हर जगह झूठ का बोलबाला क़ायम होता जा रहा है, झूठ ने मानो सच का रूप ले लिया है और सच बोलने वालों को तथाकथित शांति-रक्षकों द्वारा मारा और दबाया जा रहा है :

मैं कि एक सच हूं और मीठा हूं

फिर भी लोगों को तल्ख़ लगता हूं 

झूठों की नगरी में ज़ाहिद जो सच बोले मारा जाए।

 मौलाना कहते हैं कि इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है। जो ज़िंदा क़ौमें होती हैं, समस्याएं उनकी पहचान होती हैं। ये उनके बढ़ते क़दमों को रोक नहीं पातीं : 

मस्अले ज़िंदा क़ौमों की पहचान हैं

मुर्दा क़ौमौं के कोई मसाइल नहीं।

मौलाना अबुल मुजाहिद 'ज़ाहिद' साहब अपनी अंतिम सांस तक उर्दू भाषा और साहित्य की सेवा में लगे रहे।

बुधवार, 27 जुलाई 2022

हिंदी तथा अन्य भाषाओं में संस्मरण-साहित्य का विकास

 हिंदी तथा अन्य भाषाओं में संस्मरण-साहित्य का विकास 

∆ मुहम्मद इलियास हुसैन


अंग्रेज़ी के मेमायर्स (Memoirs) के पर्याय के रूप में हिंदी में प्रयुक्त होता है। अनेक विद्वान इसका प्रेरणा-स्रोत अंग्रेज़ी संस्मरण साहित्य को मानते हैं और कहते हैं कि हिंदी जगत् में संस्मरण साहित्य का आरंभ आधुनिक काल में बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में हुआ। निसंदेह इसका औमूलभूत और सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण था पश्चिमी प्रभाव और उसका वातावरण। प्रायः आलोचकगण इसका आरंभकर्ता है श्री पद्मसिंह शर्मा को मानते हैं। जहां तक इस विधा की परिभाषा का संबंध है, श्री अजीत कुमार के शब्दों में, इस प्रकार है, "संस्मरण का शब्दार्थ है--- 'स्मृत वस्तु या व्यक्ति'। विधा रूप में स्मृति के आधार पर किसी विषय या व्यक्ति के संबंध में लिखित लेख या ग्रंथ को संस्मरण कह सकते हैं।" इसी तथ्य को एक अन्य विद्वान ने इन शब्दों का सुंदर जामा इस प्रकार पहनाया है कि संस्मरण किसी स्मर्यमाण की स्मृति का शब्दांकन है। स्मर्यमाण के जीवन के वे पहलू, वे संदर्भ चारित्रिक और वे चारित्रिक वैशिष्ट्य जो संस्मरणकर्ता को स्मृत रह जाते हैं, उन्हें वह शब्दांकित करता है। स्मरण वहीं रह जाता है जो महान, विशिष्ट, विचित्र और प्रिय हो। स्मर्यमाण को अंकित करते हुए लेखक स्वयं भी अंकित होता चलता है। संस्मरण न में विषय और विषयी दोनों संपादित होते हैं। इसलिए इसमें संस्मरणकर्ता पूर्णत: तटस्थ नहीं रह पाता। अपने 'स्व' का वह पूर्ण विसर्जन नहीं कर पाता। वस्तुत: वह स्मर्यमाण के संदर्भित अपने 'स्व' का पुन: सर्जन करता है। 

संस्मरण यथार्थ जीवन से संबंध, संक्षिप्त, रोचक, चित्ताकर्षक, भावुकतापूर्ण, लेखक के व्यक्तित्व की आभा से युक्त, चरित्र की गरिमा से मंडित, सांकेतिक एवं प्रभावपूर्ण ढंग से लिखित अविस्मरणीय घटना होने से साहित्य की एक स्वतंत्र विधा है।

संस्मरण घटनात्मक अधिक होते हैं, किंतु यह घटनाएं प्राय: सत्य होती हैं और वर्णित व्यक्ति या वस्तु के चरित्र का परिचय देती हैं। यह विधा किसी व्यक्ति या विषय विशेष है की याद में आमतौर पर आत्मकथात्मक अथवा/ विवरणात्मक शैली में लिखित लेखक के व्यक्तित्व के बहुत क़रीब होती है। 

किसी संस्मरणात्मक रचना में व्यक्ति या विषय विशेष, उसकी विशिष्टता-विचित्रता और लेखक (के मन पर पड़ा प्रभाव) इसके तीन आवश्यक पक्ष होते हैं अर्थात स्मृति के आधार पर किसी व्यक्ति या विषय के संबंध में लिखित रचना संस्मरण है। इसमें वर्ण्य व्यक्ति या विषय के अतिरिक्त लेखक स्वयं भी अंकित होता चलता है। इसलिए इसमें लेखक तटस्थ नहीं रह पाता है लेखक स्वयं जो देखता है, अनुभव करता है, उसी का वर्णन करता है। इसमें लेखक की स्वयं की अनुभूतियां---संवेदनाएं भी रहती हैं। शैली की दृष्टि से यह निबंध के अधिक निकट होता है। यह विवरणात्मक अधिक होता है। रेखाचित्र और आत्मचरित्र (आत्मकथा) की भांति इसे भी विद्वानों ने 'जीवनी साहित्य की संतान' कहा है। तो

संस्मरण रेखाचित्र और आत्मचरित्

संस्मरण, रेखाचित्र और आत्मचरित् (आत्मकथा) के बीच अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। ये तीनों जीवनी-साहित्य की संतान है। इसलिए यह अपने सगे भाई माने जाते हैं। बनारसीदास चतुर्वेदी इन तीनों के मध्य संबंध की प्रगाढ़ता को इन शब्दों में व्यक्त करते हैं, "संस्मरण, रेखाचित्र, आत्मचरित्र---इन तीनों का एक-दूसरे से इतना घनिष्ठ संबंध है कि एक की सीमा दूसरे की सीमा कहां मिलती है और कहां अलग हो जाती है, इसका निर्णय करना कठिन है।"

फिर भी संस्मरण, रेखाचित्र और आत्मचरित् को सर्वथा अभिन्न नहीं माना जा सकता।

संस्मरण में लेखक तटस्थ नहीं रहता। वह अपने 'स्व' का सर्वथा परित्याग नहीं कर पाता। इसके विपरीत रेखाचित्र में किसी व्यक्ति या संदर्भ का अंकन तटस्थ एवं निर्लिप्त होकर किया जाता है तथा आत्मचरित् मेंं लेखक का 'स्व' प्रधान होता है।

हां, इन सब के बावजूद यह तथ्य उल्लेखनीय है कि संस्मरण और रेखाचित्र के बीच निकटता कुछ अधिक ही है। इन दोनों में रचना की दृष्टि से इतना अधिक है निकटता है कि दोनों की चर्चा प्रायः एक साथ होती है। परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि आत्मचरित् का संबंध संस्मरण और रेखाचित्र के साथ भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान की भांति कटु है।

संस्मरण और रेखाचित्र एक-दूसरे के सन्निकट तो हैं, परंतु इनमें कुछ अंतर भी हैं। बाबू गुलाब राय रेखाचित्र और संस्मरण के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहते हैं, "जहां रेखाचित्र वर्णनात्मक अधिक होते हैं। संस्मरण विवरणात्मक अधिक होते हैं। संस्मरण जीवनी-साहित्य के अंतर्गत आते हैं। वह प्रायः घटनात्मक होते हैं, किंतु ये घटनाएं सत्य होती हैं तथा साथ ही चरित्र की परिचायक भी। संस्मरण चरित्र के किसी पहलू की झांकी देते हैं, किंतु रेखाचित्र व्यक्ति के व्यापक व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हैं।"

संस्मरण और रेखाचित्र के बीच अंतर को और अधिक स्पष्ट करते हुए शांतिप्रिय द्विवेदी लिखते हैं, "अपेक्षाकृत आधुनिक विधा होते हुए भी भारतीय भाषाओं में रेखाचित्र और संस्मरण-साहित्य गुण और परिमाण दोनों दृष्टियों से पर्याप्त संपन्न हैं। रेखाचित्रकार संक्षेप में, परंतु प्रभावी एवं कलात्मक शैली में व्यक्ति के व्यक्तित्व को उभारकर रख देता है। संस्मरण में लेखक स्मृति की सहायता से अपने जीवन में आने वाले और हृदय पर अमिट प्रभाव छोड़ने वाले व्यक्तियों के जीवन, रहन-सहन, विचारधारा, कृतित्व इत्यादि के विषय में बताता है, जिससे उस व्यक्ति और युगीन समाज के संबंध में पाठक की जानकारी बढ़ती है। अधिकांश रेखाचित्र और संस्मरण संबंधों के विषय कवि, साहित्यकार और कलाकार रहे हैं। कदाचित इसका कारण यह है कि अधिकतर रेखाचित्र और संस्मरण के लेखक स्वयं साहित्यकार और कवि रहे हैं।" 

संस्मरण विधा के प्रारंभिक लेखकों में बालमुकुंद गुप्त आदि का नाम लिया जा सकता है, किंतु इस विधा के आदि जनक आचार्य पद्मसिंह शर्मा हैं। हिंदी साहित्य के अनेक इतिहासकारों ने पद्मसिंह शर्मा के 'पद्मपराग' में संस्मरण और रेखाचित्र दोनों का आरंभ माना है। वे अनेक रचनाओं को दोनों कोटि में रखते हैं। इनके संस्मरण 'पद्मपराग' में संकलित हैं। इस विधा के उन्नायकों में पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी उल्लेख्य हैं। चतुर्वेदी ने 'संस्मरण', 'हमारे आराध्य' और 'सेतुबंध' नामक कृतियों में अपने जीवन के विविध संस्मरण आकर्षक शैली में प्रस्तुत किए हैं। यही बात शिवारानी देवी के 'प्रेमचंद घर में' पर भी लागू होती है। 

हिंदी साहित्य के कुछ उल्लेखनीय संस्मरणकार एवं संस्मरण-कृतियां ये हैं : 

महावीरप्रसाद द्विवेदी: अनुमोदन का अन्त (1905 ईस्वी); 

इंग्लैंड के देहात में महाराज बनारस का कुआं (1907 ईस्वी); प्यारेलाल मिश्र : फाग या कुहरा (1908 ईस्वी); भोलदत्त पांडेय : मेरी नई दुनिया सम्बन्धिनी रामकहानी (1909 ई.); जगन्नाथ खन्ना : अमेरिका में आनेवाले विद्यार्थियों की सूचना (1911 ईस्वी); जगदीश बिहारी सेठ : मेरी छुट्टियों का प्रथम सप्ताह (1913 ईस्वी); पांडुरंग खानखोजे : वाशिंगटन महाविद्यालय का संस्थापन दिनोत्सव (1913 ईस्वी); रामकुमार खेमका : इधर-उधर की बातें (1918 ईस्वी); वृन्दालाल वर्मा : कुछ संस्मरण (सुधा 1921 में प्रकाशित); इलाचंद्र जोशी : मेरे प्राथमिक जीवन की स्मृतियां (सुधा 1921 में प्रकाशित); पद्मसिंह शर्मा : पद्मपराग (1929 ईस्वी); महादेवी वर्मा : रामा (1930 ईस्वी); शिवराम पांडेय : मदन मोहन के सम्बन्ध की कुछ पुरानी स्मृतियां (1932 ईस्वी);  महादेवी वर्मा : बिन्दा (1934 ईस्वी), घीसा (1935 ईस्वी), बिट्टो (1935 ईस्वी),‌ सबिया (1935 ईस्वी); श्रीराम शर्मा : शिकार (1936), बोलती प्रतिमा (1937 ईस्वी, 'भाई जगन्नाथ' इस संकलन का सर्वश्रेष्ठ संस्मरण); ज्योतिलाल भार्गव : साहित्यिकों के संस्मरण (हंस के प्रेमचन्द स्मृति अंक 1937 ईस्वी, सं. पराड़कर); मन्मथनाथ गुप्त : क्रान्तियुग के संस्मरण (1937 ईस्वी); शिवनारायण टंडन : झलक (1938 ईस्वी); रामवृक्ष बेनीपुरी लाल तारा (1938 ईस्वी); श्रीराम शर्मा : प्राणों का सौदा (1939 ईस्वी); राजा राधिकारमण प्र. सिंह : टूटा तारा ( 1940 ई., संस्मरण : मौलवी साहब, देवी बाबा); महादेवी वर्मा : अतीत के चलचित्र (1941 ईस्वी); रामनरेश त्रिपाठी : तीस दिन मालवीय जी के साथ (1942 ईस्वी); इलाचन्द्र जोशी : गोर्की के संस्मरण (1942 ईस्वी); महादेवी वर्मा : स्मृति की रेखाएं (1943 ईस्वी); जनार्दन प्रसाद द्विज : चरित्र रेखा ( 1943 ईस्वी); रामवृक्ष बेनीपुरी : माटी की मूरतें (1946 ईस्वी); शिवपूजन सहाय : वे दिन, वे लोग (1946 ईस्वी); शांतिप्रिय द्विवेदी पद-चिह्न (1946 ईस्वी); प्रकाशचंद्र गुप्त : मिट्टी के पुतले (1947 ईस्वी); पुरानी स्मृतियां और नए स्केच (1947 ईस्वी); महादेवी वर्मा : स्मृति की रेखाएं (1947 ईस्वी);

श्रीराम शर्मा : सन् बयालीस के संस्मरण (1948 ईस्वी); कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' : माटी हो गई सोना (1949 ईस्वी); सत्यजीवन वर्मा 'भारतीय' : एलबम (1949 ईस्वी); देवेन्द्र सत्यार्थी : रेखाएं बोल उठीं (1949 ईस्वी); कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ : दीप जले शंख बजे (1949 ईस्वी); उपेंद्रनाथ 'अश्क' : ज़्यादा अपनी, कम पराई (1949 ईस्वी); श्रीराम शर्मा : जंगल के जीव (1949 ईस्वी); कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ : माटी हो गई सोना (1949 ईस्वी);

 सत्यजीवन वर्मा ‘भारतीय’ : एलबम (1949 ईस्वी);देवेन्द्र सत्यार्थी : रेखाएं बोल उठीं (1949 ईस्वी);  कन्मिहैयाा  लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ : दीप जले शंख बजे (1949 ईस्वी); उपेंद्रनाथ 'अश्क' : ज़्यादा अपनी, कम पराई (1949 ईस्वी); श्रीराम शर्मा : जंगल के जीव (1949 ईस्वी); रामवृक्ष बेनीपुरी : गेहूं और गुलाब (1950 ईस्वी); देवेन्द्र सत्यार्थी : क्या गोरी, क्या सांवरी (1950 ईस्वी); ओंकार शरद : लंका महाराजिन (1950 ईस्वी); बनारसीदास चतुर्वेदी : हमारे आराध्य (1952 ईस्वी), संस्मरण (1952), सेतुबन्ध (1952 ईस्वी), संस्मरण (1953 ईस्वी);

 कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर : ज़िन्दगी मुस्कायी (1954 ईस्वी);

1954 जैनेंद्र कुमार : गांधी : कुछ स्मृतियां, ये और वे (1954 ईस्वी);

 राहुल सांकृत्यायन : बचपन की स्मृतियां (1955 ईस्वी);

 कैलाशनाथ काटजू : मैं भूल नहीं सकता (1955 ईस्वी);

 उपेन्द्रनाथ 'अश्क' : मंटो, मेरा दुश्मन या मेरा दोस्त मेरा दुश्मन (1956 ईस्वी);

 महादेवी वर्मा : पथ के साथी (1956 ईस्वी);

 राहुल सांकृत्यायन : जिनका मैं कृतज्ञ (1957 ईस्वी)

 श्रीराम शर्मा : वे जीते कैसे हैं (1957 ईस्वी);

1957 कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' : माटी हो गई सोना (1957 ईस्वी), दीप जले, शंख बजे (1958 ईस्वी), बाजे पायलिया के घुंघरू (1958 ईस्वी);

 सेठ गोविन्ददास : स्मृति-कण (1959 ईस्वी);

उपेंद्रनाथ 'अश्क' : ज़्यादा अपनी, कम परायी (1959 ईस्वी);

 इन्द्र विद्यावाचस्पती : मैं इनका ऋणी हूं (1959 ईस्वी);

 विनोद शंकर व्यास : प्रसाद और उनके समकालीन (1960 ईस्वी);

 विष्णु प्रभाकर : जाने-अनजाने (1962 ईस्वी);

 डॉ॰ सम्पूर्णानन्द : कुछ स्मृतियां और स्फुट विचार (1962 ईस्वी);

 माखनलाल चतुर्वेदी : समय के पांव (1962 ईस्वी);

हरिवंशराय बच्चन : नए-पुराने झरोखे (1962 ईस्वी);

  अमृता प्रीतम : अतीत की परछाइयां (1962 ईस्वी);

 जगदीशचन्द्र माथुर : दस तस्वीरें (1963 ईस्वी);

 सुमित्रानन्दन पन्त : साठ वर्ष : एक रेखांकन

(1963 ईस्वी);

 क्षेमचंद्र सुमन : जैसा हमने देखा (1963 ईस्वी);

 विष्णु प्रभाकर : कुछ शब्द : कुछन रेखाएं (1965 ईस्वी);

 हरिभाऊ उपाध्याय : मेरे हृदय देव (1965 ईस्वी);

 शिवपूजन सहाय : वे दिन वे लोग (1965 ईस्वी);

 रायकृष्ण दास : जवाहर भाई : उनकी आत्मीयता और सहृदयता (1965 ईस्वी);

 रामधारीसिंह दिनकर : लोकदेव नेहरू (1965 ईस्वी);

 महेंद्र भटनागर : विकृत रेखाएं : धुंधले चित्र (1966 ईस्वी);

 शान्तिप्रय द्विवेदी : स्मृतियां और कृतियां (1966 ईस्वी);

 सेठ गोविन्ददास : चेहरे जाने-पहचाने (1966 ईस्वी);

 कुन्तल गोयल : कुछ रेखाएं : कुछ चित्र (1967 ईस्वी);

 डॉ॰ नगेन्द्र : चेतना के बिम्ब (1967 ईस्वी):

अजित कुमार ओंकारनाथ श्रीवास्तव : बच्चन निकट से (1968 ईस्वी);

 काका साहेब कालेलकर : संस्मरण और विचार (1968 ईस्वी);

 जानकीवल्लभ शास्त्री : स्मृति के वातायन से (1968 ईस्वी);

 डाॅ॰ हरगुलाल : घेरे के भीतर और बाहर (1968 ईस्वी);

 रामधारी सिंह दिनकर : संस्मरण और श्रद्धांजलियां (1969 ईस्वी);

 पद्मिनी मेनन : चांद (1969 ईस्वी);

लक्ष्मीनारायण सुधांशु : व्यक्तित्व की झांकियां (1970 ईस्वी);

जगदीशचन्द्र माथुर : जिन्होंने जीना जाना (1971 ईस्वी);

 महादेवी वर्मा : स्मारिका

 (1971 ईस्वी), मेरा परिवार (1972 ईस्वी)

  पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी : अन्तिम अध्याय (1972 ईस्वी)

  अमृतलाल नागर : जिनके साथ जिया (1973 ईस्वी)

लक्ष्मी शंकर व्यास : स्मृति की त्रिवेणिका (1974 ईस्वी)

अनीता राकेश : चन्द सतरें और (1975 ईस्वी)

 कमलेश्वर : मेरा हमदम मेरा दोस्त (1975 ईस्वी);

परिपूर्णानंद : बीती बातें (1976 ईस्वी);

 रामनाथ सुमन : मैंने स्मृति के दीप जलाए (1976 ईस्वी);

भगतसिंह : मेरे क्रान्तिकारी साथी (1977 ईस्वी):

कृष्णा सोबती : हम हशमत (भाग-2, 1977 ईस्वी):

विष्णुकान्त शास्त्री : संस्मरण को पाथेय बनने दो (1978 ईस्वी);

 शंकर दयाल सिंह : कुछ ख़्वाबों में कुछ ख़यालों में (1978 ईस्वी);

 भगवतीचरण वर्मा : अतीत के गर्त से (1979 ईस्वी);

मैथिलीशरण गुप्त : श्रद्धांजलि संस्मरण (1979 ईस्वी);

सुलोचना रांगेय राघव : पुनः (1979 ईस्वी);

भारतभूषण अग्रवाल; लीक-अलीक (1980 ईस्वी);

 विष्णु प्रभाकर : यादों की तीर्थयात्रा (1981 ईस्वी);

राजेंद्र यादव : औरों के बहाने (1981 ईस्वी); 

अमृतलाल नागर : जिनके साथ जिया (1981 ईस्वी);

 प्रतिभा अग्रवाल : सृजन का सुख-दुख (1981 ईस्वी);

रामकुमार वर्मा : संस्मरणों के सुमन (1982 ईस्वी);

  सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' : स्मृति-लेखा (1982 ईस्वी);

  भीमसेन त्यागी : आदमी से आदमी तक (1982 ईस्वी);

 विष्णु प्रभाकर : मेरे अग्रज : मेरे मीत (1983 ईस्वी);

रामेश्वरशुक्ल 'अंचल' : युगपुरुष (1983 ईस्वी);

डॉ॰ओ ये॰ पे॰ चेलीशेव : निराला जीवन और संघर्ष के मूर्तिमान रूप (1983 ईस्वी);

फणीश्वरनाथ रेणु : बन तुलसी की गन्ध (1984 ईस्वी);

पद्मा सचदेव : दीवानख़ाना (1984 ईस्वी);

भगवतीचरण उपाध्याय : रस गगन गुफा में (1986 ईस्वी);

कमल किशोर गोयंका : हज़ारीप्रसाद द्विवेदी : कुछ संस्मरण (1988 ईस्वी);

बिंदु अग्रवाल : भारत भूषण अग्रवाल : कुछ यादें, कुछ चर्चाएं (1989 ई.);

विष्णु प्रभाकर : सृजन के सेतु (विष्णु प्रभाकर 1990 ईस्वी);

काशीनाथ सिंह : याद हो कि न याद हो ( 1992 ईस्वी);

अजित कुमार : निकट मन मं (1992 ईस्वी);

अमृतराय : जिनकी याद हमेशा रहेगी (1992 ईस्वी);

विष्णुकांत शास्त्री : सुधियां उस चन्दन के वन की (1992 ईस्वी);

 प्रकाशवती पाल : लाहौर से लखनऊ तक (1994 ईस्वी);

गिरिराज किशोर : सप्तवर्णी (1994 ईस्वी);

दूधनाथ सिंह : लौट आ ओ धार (1995 ईस्वी);

रामदरश मिश्र : स्मृतियों के छंद (1995 ईस्वी);

पद्मा सचदेव : मितवा घर (1995 ईस्वी); 

प्रफुल्लचंद्र ओझा : अग्निजीवी (1995 ईस्वी);

रवींद्र कालिया : सृजन के सहयात्री (1996 ईस्वी); विष्णुचन्द्र शर्मा : अभिन्न (1996 ईस्वी);

बिन्दु अग्रवाल : यादें और बातें (1998 ईस्वी);

कृष्णा सोबती : हम हशमत (भाग-2, 1998 ईस्वी);

पद्मा सचदेव : अमराई (2000 ईस्वी);

राजेन्द्र यादव : वे देवता नहीं हैं (2000 ईस्वी);

देवेंद्र सत्यार्थी : यादों के काफ़िले (2000 ईस्वी);

मोहनकिशोर दीवान :

नेपथ्य नायक : लक्ष्मीचन्द्र जैन (2000 ईस्वी);

 मनमथनाथ अवस्थी: याद आते हैं (2000 ईस्वी);

रामदरश मिश्र : अपने-अपने रास्ते (2001 ईस्वी);

सं. पुरुषोत्तमदास मोदी : अंतरंग संस्मरणों में प्रसाद (2001 ईस्वी);

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी : एक नाव के यात्री (2001 ईस्वी);

नरेश मेहता : प्रदक्षिणा अपने समय की (2001 ईस्वी);

विद्यानिवास मिश्र : चिडि़या रैन बसेरा (2002 ईस्वी);

मनोहर श्याम जोशी : लखनऊ मेरा लखनऊ (2002 ईस्वी)

काशीनाथ सिंह : काशी का अस्सी (2002 ईस्वी);

कांति कुमार जैन : लौट कर आना नहीं होगा (2002 ईस्वी);

कृष्ण शबिहारी मिश्र : नेह के नाते अनेक (2002 ईस्वी);

डॉ. राजकमल राय : स्मृतियों का शुक्ल पक्ष (2002 ईस्वीं);

विवेकी राय : आंगन के वंदनवार (2003 ईस्वी);

रघुवीर सहाय : रचनाओं के मनोहर श्याम जोशी : बहाने एक संस्मरण (2003 ईस्वी);

कांति कुमार जैन : तुम्हारा परसाई (2004 ईस्वी); विष्णु कांत शास्त्री : पर साथ-साथ चली रही याद (2004 ईस्वीं);

डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी : नंगा तलाई का गांव (2004 ईस्वी);

लक्ष्मीधर मालवीय : लाई हयात आए (2004 ईस्वी);

 सिंह : आछे दिन पाछे गए (2004 ईस्वी); केशवचन्द्र वर्मा : सुमिरन को बहानो (2005 ईस्वी);

विवेकी राय : मेरे सुहृद : मेरे श्रद्धेय (2005 ईस्वी);

मधुरेश : ये जो आईना है (2006 ईस्वी); 

डाॅ॰ कान्ति कुमार जैन : जो कहूंगा सच कहूंगा (2006 ईस्वी); 

काशीनाथ सिंह : घर का जोगी जोगड़ा (2006 ईस्वी); 

डॉ॰ रामदरश मिश्र : एक दुनिया अपनी (2007 ईस्वी);

 कान्तिकुमार जैन : अब तो बात फैल गई (2007 ईस्वी);

 अमरकान्त : कुछ यादें : कुछ बातें (2009 ईस्वी);

डॉ. निर्मला जैन : दिल्ली शहर दर शहरो (2009 ईस्वी);

मुद्राराक्षस : कालातीत (2009 ईस्वी);)

ममता कालिया : कितने शहरों में कितनी बार (2009 ईस्वी);

 चन्द्रकान्ता : हाशिए की इबारतें (2009 ईस्वीं), मेरे भोजपत्र (2009 ईस्वी);

 अजीत कुमार : कविवर बच्चन के साथ (2009 ईस्वी);

सं॰ सुमन केशरी : जे॰ एन॰ यू॰ में नामवर सिंह (2010 ईस्वी);

अजीत कुमार : अंधेरे में जुगनू (2010 ईस्वी);

कान्तिकुमार जैन : बैकुंठ में बचपन (2010 ईस्वी);

 डॉ॰ वीरेन्द्र सक्सेना : अ से लेकर ह तक (यानी अज्ञेय से लेकर हृदयेश तक, 2010 ईस्वी); 

ममता कालिया : कल परसों बरसों (2011 ईस्वी);

शेखर जोशी : स्मृति में रहेंगे वे (2011 ईस्वी);

 नन्द चतुर्वेदी : अतीत राग (2011 ईस्वी);

नरेन्द्र कोहली : स्मृतियों के गलियारे से (2012 ईस्वी);

डॉ. विश्वनाथ तिवारी : गंगा स्नान करने चलोगे (2012 ईस्वी, );

 मधुरेश : आलोचक का आकाश (2012 ईस्वी);

बलराम : माफ़ करना यार (2012 ईस्वी);

ओम थानवी : 'अपने-अपने अज्ञेय' (दो खंड, 2012 ईस्वी); प्रकाश मनु) :

यादों का सफ़र (2012 ईस्वी); कृष्णा सोबती : हम हशमत (भाग-3, 2012 ईस्वी);

देवेंद्र मेवाड़ी : मेरी यादों का पहाड़ (2013 ईस्वी)

हिंदी संस्करणकारों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय नाम एवं सर्वोपरि स्थान महादेवी वर्मा का है। 'अतीत के चलचित्र' (1941 ई.), 'स्मृति की रेखाएं' (1943 ई.), 'पथ के साथी' (1944 ई.), 'मेरा परिवार' (1972 ई.) में इनके संस्मरण संकलित हैं। इनके संस्मरण की भाषा में लालित्य, चापल्य, माधुर्य एवं सौंदर्य है। समाज के दलित वर्ग के प्रति करुणा की स्रोतस्विनी इनके संस्मरण में प्रवाहित है। समकालीन साहित्यकारों से संबंधित इनके संस्मरण अपने ढंग के अकेले हैं। महादेवी के संस्मरण हिंदी- संस्मरण-साहित्य में मील के पत्थर माने जाते हैं। संस्मरण तयसाहित्य का एक विशिष्ट भंडार साहित्यकारों एवं राष्ट्रप्रेमियों को समर्पित किए गए अभिनंदन ग्रंथों में संकलित हैं। 

भारतीय भारतीय भाषाओं में संस्मरण-साहित्य 

हिंदी में हरिवंशराय बच्चन और सुमित्रानंदन पंत की पुस्तकों 'नए पुराने झरोखे', 'संस्मरण और श्रद्धा श्रद्धांजलियां' में सहयोगी साहित्यकारों और राजनेताओं---गांधी, नेहरू, राधाकृष्णन, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और लाल बहादुर शास्त्री से संबंधित रेखाचित्र एवं संस्मरण प्रस्तुत किए गए हैं। 'मेरे हमसफ़र' में विष्णु प्रभाकर ने अपने अग्रज और समकालीन साहित्यकारकारों को विनम्रतापूर्वक स्मरण किया है। 

गण्यमान्यऔर प्रतिष्ठित व्यक्तियों के अतिरिक्त सामान्य ग़रीब और समाज में तिरस्कृत व्यक्ति भी रेखाचित्र और संस्मरण के विषय रहे हैं। हिंदी में महादेवी वर्मा की पुस्तकें 'अतीत के चलचित्र' (1941 ई.) और 'स्मृति की रेखाएं' (1943 ई.) तथा कन्नड़ में डी.वी. गुंडप्पा की 'ज्ञापक चित्रशाला' इस कोटि की उल्लेखनीय कृतियां हैं। 

मलयालम में वक्कम अब्दुलखादर की तीन पुस्तकों---'तूलिका चित्रण्णल', 'चित्रदर्शनी' और 'चित्रमंडपम्' में मलयालम के कवियों और लेखकों के रेखाचित्र और संस्मरण हैं।


कन्नड़ में नवरत्नरामा राव का 'केलवु नैनपुगलू' तथा

हिंदी में जगदीशचंद्र माथुर की 'दस तस्वीरें' इसी प्रकार की रचनाएं हैं। स्वतंत्रता-सेनानियों ने अपने क्रांतिकारी जीवन की अविस्मरणीय घटनाओं को लिपिबद्ध करते हुए कुछ संस्मरण लिखें हैं।

पंजाबी का रेखाचित्र और संस्मरण-साहित्य भी पर्याप्त समृद्ध है। गुरुमुख सिंह 'मुसाफ़िर' का 'बिहवीं सदी दे सहीद', बलवंत गार्गी की 'नीम दे पत्ती' और करमजीत सिंह की 'क़लम की अक्ख' प्रसिद्ध रचनाएं हैं। कुछ रचनाओं में लेखकों ने, जो प्रशासन में उच्च अधिकारी रहे हैं, अपनें संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के रेखाचित्र और संस्मरण लिखे हैं।

उर्दू में अनेक संस्मरणात्मक कृतियां मौजूद हैं, परंतु मौलाना अल्ताफ़ हुसैन 'हाली' द्वारा लिखित 'यादगारे-ग़ालिब' सर्वाधिक लोकप्रिय एवं कालजयी कृति है। मशहूर लेखक उपेंद्रनाथ 'अश्क' ने 'उर्दू में बेहतरीन संस्मरण' (1962 ई.) नामक पुस्तक संकलित की। प्रोफ़ेसर शमीम हनफ़ी द्वारा लिखित 'आज़ादी के बाद दिल्ली में उर्दू ख़ाका' (1991 ई.) भी एक उल्लेखनीय कृति है।

यदि विदेशी भाषा की बात करें और अंग्रेज़ी को छोड़ दें तो अरबी भाषा को ही यह ंसौभाग्य प्राप्त है कि इसमें संस्मरण-साहित्य भरा पड़ा है। अरबी भाषा का संस्मरण-साहित्य दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में अनूदित रूप में उपलब्ध है। अरबी में ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के व्यक्तित्व, कृतित्व एवं अध्यात्म-वृत्ति पर प्रकाश डालने वाली संस्मरणात्मक कृतियों का विशाल भंडार मौजूद है। 

कुछ विश्व प्रसिद्ध अमर कृतियां यह हैं :

'सहीह बुख़ारी', 'सुनने-अबू दाऊद', 'जामेअ तिरमिज़ी', 'सुनने नसई' और 'इब्ने माज़ा'। इन संस्मरणात्मक हदीस-संग्रहों को 'सिहाह सित्ता' अर्थात 'षडसत्य ग्रंथ' कहते हैं।

इनमें हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के कथनों एवं कर्मों को आप (सल्ल.) के प्यारे साथियों (रजि.) द्वारा संस्मरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इन संग्रहों को संसार का सर्वाधिक प्रामाणिक, ऐतिहासिक और पूर्णरूपेण सत्य पर आधारित संस्मरण-साहित्य कहा जा सकता है।

संसार की प्राय: हर मशहूर भाषाओं में इनका अनुवाद उपलब्ध है।

प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान, विचारक, लेखक और अनुवादक मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ ख़ान साहब ने उपर्युक्त कृतियों के आधार पर 'कलामे नुवबूवत शीर्षक से उर्दू में पांच खंडों में हदीसों को संकलित् किया है। इनका अनुवाद 'हदीस सौरभ' के नाम से हिंदी में भी हो चुका है। भारतीय भाषाओं में हदीसों के कितने ही अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं।


पत्रिकाओं का योगदान


संस्मरण का आरंभिक स्वरूप 'सरस्वती', 'माधुरी', 'विशाल भारत' जैसी पत्रिकाओं में तो मिलता ही है, 'हंस', 'राष्ट्रवाणी', 'ज्ञानोदय', 'धर्मयुग' 'साप्ताहिक हिंदुस्तान', 'आजकल' इत्यादि पत्रिकाओं का संस्मरण के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज भी पत्र-पत्रिकाओं में संस्मरणात्मक रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है। अनेक संस्मरण-संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि हिंदी में संस्मरण-साहित्य विकास के पथ पर अग्रसर है।

शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय रचनाएं/काव्य-पंक्तियां/कथन

 

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय रचनाएं/काव्य-पंक्तियां/कथन


 (जन्म : 7 मार्च, 1911 कुशीनगर, देवरिया, उ. प्र. – मृत्यु : 4 अप्रैल, 1987 नई दिल्ली)

#नाम : #सच्चिदानंद वात्स्यायन

#बचपन का नाम : #सच्चा

#ललित निबंधकार नाम  : #कुट्रिटचातन

रचनाकार नाम : #अज्ञेय (#जैनेद्र और #प्रेमचंद का दिया नाम है)।

#अज्ञेय #प्रयोगवाद एवं #नई कविता को साहित्य-जगत् में #प्रतिष्ठित करने वाले कवि, प्रयोगधर्मी साहित्यकार। अज्ञेय के विषय में यह कहा जाता है कि, वह #'कठिन काव्य के प्रेत हैं'

अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत् में प्रतिष्ठित करने वाले कवि ।

 

#अज्ञेय की कहानियां

#पहला कहानी : जिज्ञासा (1935 ई.)

#पहला कहानी-संग्रह :  विपथगा (1932 ई.)

#अंतिम कहानी : हज़ामत का साबुन (1959)

#अधूरी कहानी : गृहत्याग (1932 ई., विपथगा में संकलित)

कहानी-संग्रह

#विपथगा (1937), भारतीय भड़ार, लीडर प्रेस इलहाबाद

#परंपरा (1944), सस्वती प्रेस, बनारस

#अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ, सस्वती प्रेस, बनारस

#कड़ियाँ तथा अन्य कहानियाँ, सस्वती प्रेस, बनारस

#कठोरी की बात (1945), प्रतीक प्रकाशन, दिल्ली

#शरणार्थी (1948), शारदा प्रकाशन, बनारस

#जयदोल (1951) प्रतीक प्रकाशन, दिल्ली

#ये तेरे प्रतिरूप (1961), राजपाल एंड संज, दिल्ली

#जिज्ञासा एवं अन्य कहनियाँ (1965 ई.)

#संपूर्ण कहानियाँ (दो खंडों में, 1975), राजपाल एंड संज, दिल्ली

 

1. अज्ञेय की मशहूर कहानियां

विपथगा (वार्तालाप-शैली), कविप्रिया (वार्तालाप-शैली में), सांप, धीरज और पठार का धीरज (तीनों प्रतीकात्मक शैली में), हीली बोन की बत्तखें, मेजर चौधुरी की वापसी (दोनों मनोविश्लेषण-प्रधान शैली में), देवी (व्यंग्यप्रधान-शैली में), खित्तीन बाबू (रेखाचित्र या संस्मरण शैली), पगोडा वृक्ष, अकलंक, कड़िया, पुलिस की सीटी (नाटकीय शैली), द्रोही, मनसो, अमरबल्लारी (आत्मकथात्मक शैली), शरणदाता, मुस्लिम-मुस्लिम भाई-भाई, बदला, रमंते तत्र देवता, नारंगियां (देश-विभाजन-संबंधी कहानियां)  गैंग्रीन (रोज़), हारीति, छाया, क्षमा, दारोगा अमीचंद, अलिखित कहानी, शांति हंसी थी, शत्रु, पुरुष का भाग्य, कोठरी की बात, सिगनेलर, पुलिस की सीटी, चिड़ियाघर, पठार का धीरज इत्यादि अज्ञेय की मशहूर कहानियां हैं।

 

उपन्यास

1. शेखर : एक जीवनी खंड-1 (1941), सस्वती प्रेस, बनारस

2. शेखर : एक जीवनी खंड-2 (1944), सस्वती प्रेस, बनारस

3. नदी के द्वीप (1951)

4. अपने–अपने अजनबी (1979), भारतीय ज्ञानपीठ, काशी

5. बारह खंभा (संयुक्त कृति), दस अन्य लेखकों के संग एक प्रयोग प्रभात प्रकाशन

6. छाया मेंखल, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

7. बीनू भगत, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

 

कविता-संग्रह

1. भग्नदूत (1933), वी.एच. वात्स्यायन, लाहौर

2. चिंता (1942), सस्वती प्रेस, बनारस

3. इत्यलम् (1946), प्रगति प्रकाशन, दिल्ली

4. हरी घास पर क्षण भर (1949), प्रगति प्रकाशन, दिल्ली

5. बावरा अहेरी (1954), भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली

6. इंद्रधनु रौंदे हुए ये (1957),  सरस्वती प्रेस, दिल्ली

7. अरी ओ करुणा प्रभामय (1951), भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली

8. पुष्करिणी (1959), साहित्य सदन, झाँसी

9. आँगन के पार द्वार (1961), भारतीय ज्ञानपीठ, काशी

10. पूर्वा (भग्नदूत, इत्यलम्, हरि घास पर क्षण भर का संकलन, 1965) राजपाल एंड संज

11. सुनहरे शैवाल (1966), अक्षर प्रकाशन, नयी दिल्ली

12. कितनी नावों में कितनी बार (1967), भारतीय ज्ञानपीठ, काशी

13. क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1969), भारतीय ज्ञानपीठ, काशी

14. सागर मुद्रा (1970), राजपाल एंड संज, दिल्ली

15. पहले मै सन्नाटा बुनता हूँ (1974), राजपाल एंड संज, दिल्ली

16. महावृक्ष के नीचे (1977), राजपाल एंड संज, दिल्ली

17. नदी की बाँक पर छाया (1981), राजपाल एंड संज, दिल्ली

18. सदानीरा (दो खंडो में, 1984), नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली

19. ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986), नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली

20. मरुस्थल (1995),  प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

21. कारावास के दिन तथा अन्‍य कविताएं / अज्ञेय (अज्ञेय की अंग्रेजी कविताओं का अनुवाद)

लंबी रचनाएँ

असाध्य वीणा / अज्ञेय

 

चुनी हुई रचनाओं के संग्रह

पूर्वा / अज्ञेय (कविता संग्रह, 1965)

सुनहरे शैवाल / अज्ञेय (कविता संग्रह, 1965)

अज्ञेय काव्य स्तबक / अज्ञेय (कविता संग्रह, 1995)

सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय (कविता संग्रह)

 

उपन्यास

#शेखर : एक जीवनी (पहला भाग, 1952 ई.)

#शेखर : एक जीवनी (दूसरा भाग, 19 ई.)

#शेखर : एक जीवनी (तीसरा भाग, अप्रकाशित)

#नदी के द्वीप (1952 ई‌.)

#अपने अपने अजनबी (1967 ई.)

 

कहानियां

#बृहद भाग (1937 ई.)

#परंपरा (1944 ई.)

#कोठरी की बात (1945 ई.)

#शरणार्थी (1948 ई.)

#जयदोल (1951 ई.)

#ये तेरे प्रतिरूप (1939 ई.)

#संपूर्ण कहानियां (दो भाग, 1975 ई.)

 

नाटक

1. उत्तर प्रियदर्शी (काव्य नाटक,1967 ई.), अक्षर प्रकाशन दिल्ली

 

यात्रा-वृत्तान्त

1. अरे यायवर रहेगा याद (1953) सस्वती प्रेस, बनारस

2. एक बूँद सहसा उछली (1960) भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली

3. बहता पानी निर्मला

 

डायरी

1. भवंती (1972, 1964-70), राजपाल एंड संज, दिल्ली

2. अतंरा (1970, 1970-74), राजपाल एंड संज, दिल्ली

3. शाश्वती (1979, 1975-79), राजपाल एंड संज, दिल्ली

4. शेषा (1995), प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

 

निबंध/गद्य

1. त्रिशंकु (1945), सस्वती प्रेस, बनारस

2. सबरंग (1964)

3. आत्मनेपद (1960), भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली

4. हिंदी साहित्यः एक आधुनिक परिदृश्य (1967), अभिनव भारती ग्रथमाला, कलकत्ता

5. सबरंग और कुछ राग (1969)

6. आलवाल (1971) राजकमल, दिल्ली

7. लिखि कागद कोरे (1972) राजपाल एंड संज दिल्ली

8. अद्यतन (1977), सरस्वती विहार, दिल्ली

9. जोग लिखी (1977), राजपाल एंड संज दिल्ली

10. संवत्सर, नेशनल परिब्लिशिग हाउस, दिल्ली

11. स्त्रोत और सेतु (1978), राजपाल एंड संज दिल्ली

12. व्यक्ति और व्यवस्था (1979), नेशनल परिब्लिशिग हाउस, दिल्ली

13. अपरोक्ष (1979), सरस्वती विहार, दिल्ली

14. युग संधियों पर (1981), सरस्वती विहार, दिल्ली

15. धारा और किनारे (1982), सरस्वती विहार, दिल्ली

16. स्मृति लेखा (1982), नेशनल परिब्लिशिग हाउस, दिल्ली

17. कहाँ है द्वारका (1982), राजपाल एंड संज दिल्ली

18. छाया का जंगल (1984), सरस्वती विहार, दिल्ली

19. अ सेंस ऑफ टाइम (1981), ओ.यु.पी.,दिल्ली

20. स्मृतिछंदा (1989), नेशनल परिब्लिशिग हाउस, दिल्ली

21. आत्मपरक (1983), नेशनल परिब्लिशिग हाउस, दिल्ली

22. केंद्र और परिधि (1984),  नेशनल परिब्लिशिग हाउस, दिल्ली

 

अनुवाद

1. अंग्रेजी ‘विजिर’, स एलीफेट (इवो आंद्रिक) से ‘वजीर का फीता’,

2. अंग्रेजी ‘विवेकानंद’ (रोमांरोला) से हिंदी ‘विवेकानंद’,

3. हिंदी ‘त्यागपत्र’, (जैनेद्र कुमार) से अंग्रेजी ‘द रेजिग्नेशन’ (1946)

4. बांग्ला ‘गोरा’,( रवींद्रनाथ ठाकुर) से हिंदी ‘गोरा’,

5. बांग्ला ‘राजा’, (रवीद्रनाथ ठाकुर) से हिंदी ‘राजा’,

6. लागरक्विस्त के तीन उपन्यासों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद

7. बाग्ला ‘श्रीकांत’, (शरतचंद्र चट्रटोपाध्याय) से हिंदी, ‘श्रीकांत’

8. लिंकन वाणी (1951)

 

संपादित ग्रंथ

1. आधुनिक हिंदी साहित्य (1940), मेरठ साहित्य-संस्थान

2. पुष्करिणी (1959), साहित्य-सदन, झाँसी

3. नये एकांकी (1952), भारतीय ज्ञानपीठ, काशी

4. नेहरु अभिनंदन ग्रंथ (संयुक्त रूप से,1999)

5. रुपांबरा (हिंदी प्रकृति काव्य-संकलन, 1960),

6. सर्जन और संप्रेषण (वत्सल निधि ले. शिविर, लखनऊ, ने. प. हाऊस, न. दिल्ली,1985)

7. साहित्य का परिवेश (व. निधि लेखन शिविर, आबू, ने. प. हाऊस, नयी दिल्ली,1985)

8. साहित्य और समाज परिवर्तन (वत्सल निधि लेखक शिविर, बरगी नगर, नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, नयी दिल्ली,1986)

9. समकालीन कविता में छंद (वत्सल निधि लेखन शिविर, बोधगया, नेशनल पब्शिंग हाऊस, नयी दिल्ली,1987)

10. स्मृति के परिदृश्य (संवत्सर व्याख्यानमाला, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली,1987)

11. भविष्य और साहित्य (वत्सल निधि लेखन शिविर, जम्मू, ने. प. हाउस, नई  दिल्ली,1989)

12. होमवती स्मारक ग्रंथ नये साहित्य-सृष्टा, ग्रंथमाला (भारतीय ज्ञानपीठ) में रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, अजित कुमार, शांति मेहरोत्रा के रचना-संकलन

12. भारतीय कला-दृष्टि, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

13. जन जनक जानकी, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

13. सामाजिकक-यथार्थ और कला-भाषा (1986)

 

पत्रकारिता

1936        : कुछ दिनों तक आगरा के समाचार पत्र सैनिक के संपादन मंडल में

1937-39     : विशाल भारत के संपादकीय विभाग में, कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियो में

1946        : प्रतीक का संपादन

1965-1968 : साप्ताहिक दिनमान का संपादन

1973        : प्रतीक को नाम, नया प्रतीक देकर निकाला

1977        : दैनिक पत्र नवभारत टाइम्स का संपादन

 

यात्रा-वृत्तान्त

1. अरे यायवर रहेगा याद (1953) सस्वती प्रेस, बनारस

2. एक बूँद सहसा उछली (1960) भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली

3. बहता पानी निर्मल

 

डायरी

1. भवंती (1972, 1964-70), राजपाल एंड संज, दिल्ली

2. अतंरा (1970, 1970-74), राजपाल एंड संज, दिल्ली

3. शाश्वती (1979, 1975-79), राजपाल एंड संज, दिल्ली

4. शेषा (1995), प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

 

1964 में आँगन के पार द्वार पर साहित्य अकादमी पुरस्कार

1979 में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

 

 

कविताएँ

अनुभव-परिपक्व / अज्ञेय

अरे ! ऋतुराज आ गया !! / अज्ञेय

अलाव / अज्ञेय

आंगन के पार द्वार खुले / अज्ञेय

उड़ चल हारिल / अज्ञेय

उधार / अज्ञेय

उषा-दर्शन / अज्ञेय

औद्योगिक बस्ती / अज्ञेय

कतकी पूनो / अज्ञेय

कदम्ब-कालिन्दी-1-2 / अज्ञेय

कलगी बाजरे की / अज्ञेय

काँपती है / अज्ञेय

क्योंकि मैं / अज्ञेय

क्वाँर की बयार / अज्ञेय

खुल गई नाव / अज्ञेय

घर-1-5 / अज्ञेय 

चाँदनी चुपचाप सारी रात / अज्ञेय

चांदनी जी लो / अज्ञेय

जाड़ों में / अज्ञेय

जो कहा नही गया / अज्ञेय

जो पुल बनाएंगे / अज्ञेय

ताजमहल की छाया में / अज्ञेय

तुम्हारी पलकों का कँपना / अज्ञेय

दूर्वांचल / अज्ञेय

दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब / अज्ञेय

देखिये न मेरी कारगुज़ारी / अज्ञेय

देना-पाना / अज्ञेय

नया कवि : आत्म-स्वीकार / अज्ञेय

नाता-रिश्ता-1-5 / अज्ञेय 

पक गई खेती / अज्ञेय

पराजय है याद / अज्ञेय

पानी बरसा / अज्ञेय

प्रतीक्षा-गीत / अज्ञेय

प्रथम किरण / अज्ञेय

प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली / अज्ञेय

फूल की स्मरण-प्रतिमा / अज्ञेय

मेरे देश की आँखें / अज्ञेय

मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय

मैं ने देखा, एक बूँद / अज्ञेय

मैं ने देखा : एक बूंद / अज्ञेय

मैंने पूछा क्या कर रही हो / अज्ञेय

मैं वह धनु हूँ / अज्ञेय

यह दीप अकेला / अज्ञेय

याद / अज्ञेय

ये मेघ साहसिक सैलानी / अज्ञेय

योगफल / अज्ञेय

रात में गाँव / अज्ञेय

रात होते-प्रात होते / अज्ञेय

वन झरने की धार / अज्ञेय

वसंत आ गया / अज्ञेय

वसीयत / अज्ञेय

वासंती / अज्ञेय

विपर्यय / अज्ञेय

शब्द और सत्य / अज्ञेय

शरद / अज्ञेय

शिशिर ने पहन लिया / अज्ञेय

शोषक भैया / अज्ञेय

सत्य तो बहुत मिले / अज्ञेय

सर्जना के क्षण / अज्ञेय

साँप / अज्ञेय

सारस अकेले / अज्ञेय

हँसती रहने देना / अज्ञेय

हमारा देश / अज्ञेय

हवाएँ चैत की / अज्ञेय

हीरो / अज्ञेय

क्षणिकाएँ

चुप-चाप / अज्ञेय

जीवन-छाया / अज्ञेय

धूप / अज्ञेय

नन्दा देवी-1-14 / अज्ञेय

पहाड़ी यात्रा / अज्ञेय

सोन-मछली / अज्ञेय

हाइकु / अज्ञेय

हाइकु

मात्सुओ बाशो का हाइकु (अज्ञेय द्वारा अनुदित)

चिड़िया की कहानी / अज्ञेय

धरा-व्योम / अज्ञेय

सोन-मछली / अज्ञेय

हाइकु / अज्ञेय

हे अमिताभ / अज्ञेय

 

काव्य-पंक्तियां/कथन

 नदी के द्वीप (कविता)

हम नदी के द्वीप हैं।

हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाए।

वह हमें आकार देती है।

हमारे कोण, गलियाँ, अंतरीप, उभार, सैकत-कूल

सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी हैं।

 

माँ है वह! है, इसी से हम बने हैं।

किंतु हम हैं द्वीप। हम धारा नहीं हैं।

स्थिर समर्पण है हमारा। हम सदा से द्वीप हैं स्रोतस्विनी के।

किंतु हम बहते नहीं हैं। क्योंकि बहना रेत होना है।

हम बहेंगे तो रहेंगे ही नहीं।

पैर उखड़ेंगे। प्लवन होगा। ढहेंगे। सहेंगे। बह जाएँगे।

 

और फिर हम चूर्ण होकर भी कभी क्या धार बन सकते?

रेत बनकर हम सलिल को तनिक गँदला ही करेंगे।

अनुपयोगी ही बनाएँगे।

 

द्वीप हैं हम! यह नहीं है शाप। यह अपनी नियती है।

हम नदी के पुत्र हैं। बैठे नदी की क्रोड में।

वह बृहत भूखंड से हम को मिलाती है।

और वह भूखंड अपना पितर है।

नदी तुम बहती चलो।

भूखंड से जो दाय हमको मिला है, मिलता रहा है,

माँजती, सस्कार देती चलो। यदि ऐसा कभी हो -

 

तुम्हारे आह्लाद से या दूसरों के,

किसी स्वैराचार से, अतिचार से,

तुम बढ़ो, प्लावन तुम्हारा घरघराता उठे -

यह स्रोतस्विनी ही कर्मनाशा कीर्तिनाशा घोर काल,

प्रावाहिनी बन जाए -

तो हमें स्वीकार है वह भी। उसी में रेत होकर।

फिर छनेंगे हम। जमेंगे हम। कहीं फिर पैर टेकेंगे।

कहीं फिर भी खड़ा होगा नए व्यक्तित्व का आकार।

मात:, उसे फिर संस्कार तुम देना।

 

रजनी की लकीर लाल 

नभ का चीर दिया

पुरुष उठा, पीछे न देख मुड़ चला गया 

यों नारी का, जो रजनी है, धरती है

शप्यार हर बार छला गया। (अज्ञेय)

 

#"किंतु हम हैं द्वीप

हम धारा नहीं हैं

स्थिर समर्पण है हमारा

यदि ऐसा कभी हो 

यह स्रोतस्विनी ही कर्मनाशा, घोरै 

काल प्रवाहिनी बन जाए 

तो हमें स्वीकार है वह भी, उसी में रेत होकर 

फिर बनेंगे, हम जमेंगे हम, कहीं फिर पैर टेकेंगे  

कहीं फिर भी खड़ा होगा नई व्यक्तित्व का आकार। (अज्ञेय, नदी के द्वीप)

 

#"मैं सेतु हूं, वह सेतु हूं  

जो मानव से मानव का हाथ मिलाने से बनता है। (अज्ञेय، मैं यहां हूं)

 

#"सांप तुम सभ्य तो हुए नहीं, नहीं होगे 

नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया

 फिर कैसे सीखा डसना 

विष कहां पाया?" (अज्ञेय)

 

एक छाप‌ रंगों की

एक छाप ध्वनि की

एक सुख स्मृति का 

एक व्यथा मन की। (अज्ञेय)

 

न आए याद 

मैं हूं 

किसी बीते साल के 

सिले कैलेंडर की 

एक बस तारीख़ जो 

हर साल आती है। (अज्ञेय)

 

चुक गया दिन एक

लंबी सांस उठी बनने

मूक आशीर्वाद

सामने था आर्द्र 

तारा नील

उमड़ आई असह 

तेरी याद। (अज्ञेय)

 

मैं देख रहा हूं 

झड़ी फूल से पंखुरी

--मैं देख रहा हूं 

अपने को ही झड़ते 

मैं चुप हूं : 

यह मेरे भीतर वसंत 

गाता है। (अज्ञेय)

 

मैं भी असीम हूं

एक असीम बूंद

असीम समुद्र को

अपने भीतर

प्रतिबिंबित करती है। (अज्ञेय)

 

तुम्हारे साथ मैंने

कष्ट पाया है

यातनाएं सही हैं

किंतु तुम्हारे साथ मैं

मरा नहीं हूं

क्योंकि

तुमने तुम्हारा शेष कष्ट

भोगने के लिए

मुझे चुना :

मैं अपने ही नहीं,

तुम्हारी भी

सलीब का वाहक हूं। (अज्ञेय)

 

हम अतीत के शरणार्थी हैं;

स्मरण हमारा---जीवन के अनुभव का प्रत्यावर्तन 

हमें न हीन बनावे प्रत्याभिमुख होने के पाप- बोध से। (हरी घास पर क्षण भर, अज्ञेय)

 

यह क्षण हमें मिला है नहीं नगर-सेठों की फ़ैयाज़ी से।

हमें मिला है यह अपने जीवन की निधि से ब्याज सरीखा। (हरी घास पर क्षण भर, अज्ञेय)

 

और रहे बैठे तो लोग कहेंगे

धुंधले में दुबके प्रेमी बैठे हैं। 

(हरी घास पर क्षण भर, अज्ञेय)

 

नहीं सुने हम वह नगरी के नागरिकों से 

जिनकी भाषा में अतिशयं चिकनाई है साबुन की 

किंतु नहीं है करुणा। (हरी घास पर क्षण भर, अज्ञेय)

 

दुख सबको मांजता है

जिनको मांजता है

उन्हें यह सीख देता है कि

सबको मुक्त रखें। (अज्ञेय)

 

नंदा देवी

निचले 

हर शिखर पर 

देवल :

ऊपर ही

निराकार 

तुम 

केवल---- (अज्ञेय)

 

"कोई भी कभी केवल स्वांत: सुखाय लिखता है या लिख सकता है, यह स्वीकार करने में मैंने अपने को सदा असमर्थ पाया है..... अपनी अभिव्यक्ति-- किंतु किस पर अभिव्यक्ति। कविता किसी पर किसी की अभिव्यक्ति है।" (अज्ञेय)

 

#"हिंदी साहित्य के पिछले 20 वर्षों क्यों, 50 वर्षों में जितनी नई प्रवृतियां लक्षित हुई हैं सब के मूल में यही सामाजिक संचरण है। हम जो देख रहे हैं वह संस्कृति का निथरना और विकसना नहीं है, बल्कि ऐंठन और टूटन ही अधिक रहा है। मेरा विश्वास है कि नई संस्कृति आएगी और जब वह आएगी तो उसका सांस्कृतिक पारंपरिक से संबंध न केवल होगा, बल्कि उसका लक्ष्य होगा जो जीवन में स्पंदित होगा। पर अभी? अभी तक का दर्द नई संस्कृति के आविर्भाव का नहीं, पुरानी की जकड़न का या उसकी टूटन का दर्द है।" (अज्ञेय)

 

#"मैं खड़ा खोलें सभी कटिबंध पिंगल के मुक्त मेरे छन भाषा मुख्तसर है मुफ्त में भाव पागल के।

ज्ञेय हो, दुर्जेय हो, अज्ञेय निश्चय हो

अर्थ के अभिलाषियों से सतत निर्भय हो।" (अज्ञेय)

 

#"दान कर दो खुले कर से, खुले डर से होम कर दो 

स्वयं को समिधा बनाकर। शून्य होगा तिमिरमय भी, तुम यही मानो कि 

अनुदान मुक्त है आकाश।" 

(अज्ञेय)

 

 

सप्तकों के कवि/saptakon  ke kavi

 तारसप्तक : संपादक- अज्ञेय (1943)

 

   मुक्तिबोध, नेमिचंद्र जैन, भारतभूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर, रामविलास शर्मा, अज्ञेय।

   (स्मरण-सूत्र : मुनेभाप्रगिराअ)

 

दूसरा सप्तक : संपादक- अज्ञेय (1951)

 

      भवानीप्रसाद मिश्र, शंकुन्तला माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहत्ता, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती।     

   (स्मरण-सूत्र : भशंहशनरध)

 

तीसरा सप्तक : संपादक- अज्ञेय (1959)

    

   प्रयागनारायण त्रिपाठी, कीर्ति चौधरी, मदन वात्स्यायन, केदारनाथ सिंह,

   कुंवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।

(स्मरण-सूत्र : प्रकीमकेकुंविस)

 

चौथा सप्तक : संपादक- अज्ञेय (1979 ई.)

अवधेश कुमार (जन्म और मृत्यु तिथि अनुपलब्ध)

श्रीराम वर्मा (1935 ई.)

सुमन राजे (23 अगस्त, 1938-2008 ई.)

स्वदेश भारती (12 दिसम्बर 1939-10 मार्च 2018 ई.)

राजेन्द्र किशोर (23 जुलाई 1943 ई.)

नंद किशोर आचार्य (31 अगस्त 1945 ई.)

राजकुमार कुंभज (12 फ़रवरी 1947 ई.)

(स्मरण-सूत्र : कुमारवर्माराजेभारतीकिशोराचार्यकुम्भज)