शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

हिंदी भाषा और साहित्य प्रश्नोत्तरी (आचार्य रामचंद्र शुक्ल पर विशेष)-2


 प्रश्नोत्तरी-10 (हिंदी भाषा और साहित्य  आचार्य रामचंद्र शुक्ल पर विशेष)


1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म कहाँ हुआ था?
(1) बस्ती (उत्तर प्रदेश) (2) वाराणसी (उत्तर प्रदेश)  (3) इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) (4) पटना (बिहार)
 (1) बस्ती (उत्तर प्रदेश)
2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल को क्या नाम दिया है?
(1) वीरगाथा काल (2) अलंकृत काल (3) चारणकाल (4) वीरकाल
2. (1) वीरगाथा काल
3. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार वीरगाथा काल की समयावधि है :
 (1) संवत् 800-1000 (2) संवत् 950-1300 (3) संवत् 1000-1000 (4) संवत् 1050 - 1375
3. (4) संवत् 1050 - 1375
4. हिंदी साहित्य के इतिहास में वीरगाथा काल को कहा जाता है :
(1) आदिकाल (2) भक्ति काल (3) रीति काल (4) आधुनिक काल
4. (1) आदिकाल
5. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार पूर्व मध्य काल को कहा जाता है :
(1) आदिकाल (2) भक्ति काल (3) रीति काल (4) आधुनिक काल
5. (2) भक्ति काल
6. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार पूर्व मध्य काल (भक्ति काल) की अवधि है :
 (1) संवत् 1050 – 1375 (2) संवत् 1375-1700 (3) संवत् 1700-1900 (4) संवत् 1900 – 1975
6. (2) संवत् 1375-1700
7. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार पूर्व मध्य काल (भक्ति काल) की समयावधि है :
 (1) संवत् 1050 – 1375 (2) संवत् 1375-1700 (3) संवत् 1700-1900 (4) संवत् 1900 – 1975
7. (2) संवत् 1375-1700
8. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार उत्तर मध्यकाल (रीति काल) की समयावधि है :
(1) संवत् 1050 –1375 (2) संवत् 1375-1700 (3) संवत् 1700-1900 (4) संवत् 1900 – 1975
8. (3) संवत् 1700-1900
9. ठाकुर शिवसिंह सेंगर कृत शिवसिंह सरोज को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है :
(1) वृत्तसंग्रह (2) कविवृत्त-संग्रह (3) व्यंग्य-संग्रह (4) काव्य-संग्रह
 9. (1) वृत्तसंग्रह
10. डॉक्टर ग्रियर्सन रचित 'मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑव नार्दर्न हिंदुस्तान'  को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है :
(1) वृत्त-संग्रह (2) कविवृत्त-संग्रह (3) निबंध-संग्रह (4) काव्य-संग्रह
10. (2) कविवृत्त-संग्रह

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बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

बालकृष्ण शर्मा नवीन का रचनाएँ (कालक्रमानुसार)


बालकृष्ण शर्मा नवीन का रचनाएँ (कालक्रमानुसार)

(जन्म : 8 दिसंबर 1897-29 अप्रैल 1960 ई., ग्वालियर राज्य के भवाना ग्राम में)

राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि, प्रेम और मस्तीपरक काव्य के अग्रदूत, हालावाद के आदि प्रवर्तक।
इनकी प्रथम कहानी संतू (1918 ई.) सरस्वती में प्रकाशित हुई।
सात काव्य-संग्रह :
कुंकुम (1936 ई.), अपलक (1951 ई.), रश्मिरेखा (1952 ई.), क्वासी (1952 ई.), विनोबा स्तवन (1955 ई.), उर्मिला (1957 ई., खंडकाव्य, यह छः सर्गों में विभक्त, उर्मिला के जन्म से लेकर लक्ष्मण से पुनर्मिलन तक की कथा वर्णित, लक्ष्मण-पत्नी उर्मिला का उज्ज्वल चरित्र-चित्रण),  प्रार्णव (गणेशशंकर विद्यार्थी के बलिदान पर लिखित अप्रकाशित खंडकाव्य), हम विषपायी जनम के (1964 ई.)।
सं. : प्रताप (1931 ई.), प्रभा (1921-1923 ई.)
काव्य-पंक्तियां :
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए।
एक हिलोर इधर से आए एक हिलोर उधर से आए। (विप्लव गान, हम विषपायी जनम के)
आज खडेग की धार कुंठिता है, ख़ाली तूणीर हुआ
विजय पताका झुकी हुई है, लक्ष्य भ्रष्ट यह तीर हुआ। (कुंकुम)
है बलिवेदी, सखे, प्रज्वलित मांग रही ईंधन क्षण-क्षण,
आओ युवक, तुम लगा दो अपने यौवन का ईंधन,
भस्मसात हो जाने दो ये प्रबल उमंगें जीवन की,
अरे सुलगने दो बलिवेदी, चढ़ने दो बलि यौवन की। (हम विषपायी जनम के)
स्वार्गादपि गरीयसी प्यारी, जन्मभूमि का पल्ला
खींचा है दुष्टों ने, बोला है स्वदेश पर हल्ला
कौन हृदय है जो कि न उबले निज समाज की क्षति में ?
कौन आँख है देख सके जो माँ को इस दुर्गति में ? (उर्मिला)
पर चलने के पूर्व यहाँ से कर ले तू वंदन अभिराम
इस सरयू सरिता का, जिस बालू में खेले राम। (उर्मिला)
मैं ही भारत के भविष्य का मूर्तिमन्त विश्वास महान।

हम विषपायी जनम के सहे सुबोल कुबोल।

कोटि-कोटि कंठों से निकली आज यही स्वर धारा है
भारतवर्ष हमारा यह, हिंदुस्तान हमारा है।

मैं देवदूत, मैं अग्निदूत, मैं मनःपूत चिर बलिदानी।

जगजीवन का उन्नायक मैं, अंगारों की मेरी वाणी।

साहित्यिक-सामाजिक सेवाओं के लिए 1960 ई. में पद्मभूषण की उपाधि प्रदान की गई।
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