शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

आई. ए. रिचर्ड्स की रचनाएँ (Works of I. A. Rechards) : Hindi sahitya vimarsh


आई. ए. रिचर्ड्स कीरचनाएँ (Works of I. A. Rechards) : Hindi sahitya vimarsh

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प्रिंसिपल ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज़्म (1926 ई.), कॉलरिज ऑन इमैजिनेशन (1934 ई.), मेन्सियस ऑफ द माइंड (1931 ई.), एक्सपेरिमेंट्स इन मल्टीपल डेफिनेशन (1932 ई.), बेसिक रूल्स ऑफ़ रीज़न (1933 ई.), द फिलॉसफ़ी ऑफ रेटरिक (1936 ई.), इंटरप्रटेशन इन टीचिंग (1938 ई.), द स्पेक्युलेटिव इंस्ट्रूमेंट्स (1955 ई.), पोएट्रीज़:देयर मीडिया एंड एड्स (1973 ई.) और बियॉन्ड (1974 ई.)


निम्नलिखित में से कौन-सी कृति आई॰ ए॰ रिचर्ड्स की नहीं है?
(1) प्रिंसिपल्स ऑफ़ लिटरेरी क्रिटिसिज्म   (2) द फिलॉसफी ऑफ रेटरिक
(3) कल्चर एंड अनार्की                 (4) इंटरप्रटेशन इन टीचिंग
ANS : (3) कल्चर एंड अनार्की

गुरुवार, 28 नवंबर 2019

ज्ञानदीप के रचयिता शेख नबी (SHEKH NABI) : आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टि में में

'ज्ञानदीप' के रचयिता शेख नबी (SHEKH NABI) : आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टि में में
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ये जौनपुर जिले में दोसपुर के पास मऊ नामक स्थान के रहने वाले थे और संवत् 1676 में जहाँगीर के समय में वर्तमान थे। इन्होंने 'ज्ञानदीप' नामक एक आख्यान काव्य लिखा, जिसमें राजा ज्ञानदीप और रानी देवजानी की कथा है
यहीं प्रेममार्गी सूफी कवियों की प्रचुरता की समाप्ति समझनी चाहिए। पर जैसा कहा जा चुका है, काव्यक्षेत्र में जब कोई परंपरा चल पड़ती है तब उसके प्रार्चुय काल के पीछे भी कुछ दिनों तक समय समय पर उस शैली की रचनाएँ थोड़ी बहुत होती रहती हैं, पर उनके बीच कालांतर भी अधिक रहता है और जनता पर उनका प्रभाव भी वैसा नहीं रह जाता। अत: शेख नबी से प्रेमगाथा परंपरा समाप्त समझना चाहिए। (आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का इतिहास, रीतिकाल, प्रकरण 2—ग्रंथकार कवि)

रविवार, 24 नवंबर 2019

नूर मुहम्मद (NOOR MUHAMMAD : THE HINDI POET): आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टि में : hindi sahitya vimarsh


नूर मुहम्मद : आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टि में : hindi sahitya vimarsh

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ये दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के समय में थे और 'सबरहद' नामक स्थान के रहने वाले थे जो जौनपुर, आज़मगढ़ की सरहद पर है।
नूर मुहम्मद फारसी के अच्छे आलिम थे और इनका हिन्दी काव्यभाषा का भी ज्ञान और सब सूफी कवियों से अधिक था। फारसी में इन्होंने एक दीवान के अतिरिक्त 'रौजतुल हकायक' इत्यादि बहुत सी किताबें लिखी थीं। इन्होंने 1157 हिजरी (संवत् 1801) में 'इंद्रावती' नामक एक सुंदर आख्यान काव्य लिखा जिसमें कालिंजर के राजकुमार राजकुँवर और आगमपुर की राजकुमारी इंद्रावती की प्रेम कहानी है। इसी ग्रंथ (इंद्रावती) को सूफी पद्धति का अंतिम ग्रंथ मानना चाहिए।
'अनुराग कई दृष्टियों से विलक्षण है। पहली बात तो इसकी भाषा है जो सूफी रचनाओं से बहुत अधिक संस्कृत गर्भित है। दूसरी बात है हिन्दी भाषा के प्रति मुसलमानों का भाव। 'इंद्रावती' की रचना करने पर शायद नूर मुहम्मद को समय समय पर यह उपालंभ सुनने को मिलता था कि तुम मुसलमान होकर हिन्दी भाषा में रचना करने क्यों गए। इसी से 'अनुराग बाँसुरी' के आरंभ में उन्हें यह सफाई देने की जरूरत पड़ी
जानत है वह सिरजनहारा । जो किछु है मन मरम हमारा।।
हिंदू मग पर पाँव न राखेउँ । का जौ बहुतै हिन्दी भाखेउ।।
'अनुराग बाँसुरी' का रचनाकाल 1178 हिजरी अर्थात् 1821 है। कवि ने इसकी रचना अधिक पांडित्यपूर्ण रखने का प्रयत्न किया है और विषय भी इसका तत्वज्ञान संबंधी है। शरीर, जीवात्मा और मनोवृत्तियों को लेकर पूरा अध्यवसित रूपक (एलेगरी) खड़ा करके कहानी बाँधी है। और सब सूफी कवियों की कहानियों के बीच में दूसरा पक्ष व्यंजित होता है पर यह सारी कहानी और सारे पात्र ही रूपक हैं।
(आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का इतिहास, रीतिकाल, प्रकरण 2—ग्रंथकार कवि)

शनिवार, 23 नवंबर 2019

शारंगधर (SHARANGDHAR): आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टि में (HINDI SAHITYA VIMARSH)

शारंगधर (SHARANGDHAR): आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टि में (HINDI SAHITYA VIMARSH)

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शारंगधर का आयुर्वेद का ग्रंथ तो प्रसिद्ध ही है। ये अच्छे कवि और सूत्रकार भी थे। इन्होंने 'शारंगधर पद्धति' के नाम से एक सुभाषित संग्रह भी बनाया है और अपना परिचय भी दिया है। रणथंभौर के सुप्रसिद्ध वीर महाराज हम्मीरदेव के प्रधान सभासदों में राघवदेव थे। उनके भोपाल, दामोदर और देवदास ये तीन पुत्र हुए। दामोदर के तीन पुत्र हुए शारंगधर, लक्ष्मीधर और कृष्ण। हम्मीरदेव संवत् 1357 में अलाउद्दीन की चढ़ाई में मारे गए थे। अत: शारंगधर के ग्रंथों का समय उक्त संवत् के कुछ पीछे अर्थात् विक्रम की चौदहवीं शताब्दी के अंतिम चरण में मानना चाहिए।

'शारंगधर पद्धति' में बहुत-से शाबर मंत्र और भाषा-चित्र-काव्य दिए हैं जिनमं बीच-बीच में देशभाषा के वाक्य आए हैं

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गुरुवार, 7 नवंबर 2019

संविधान की आठवीं अनुसूची में स्वीकृत भाषाओं पर संभावित प्रश्न

प्रश्नोत्तरी-14 (संविधान की आठवीं अनुसूची में स्वीकृत भाषाओं पर संभावित प्रश्न)

1. वर्तमान समय में संविधान द्वारा स्वीकृत भाषाओं की संख्या है :
(A) चौदह (B) बीस (C) बाईस (D) छब्बीस
ANS. (C) बाईस
2. संविधान के किस अनुच्छेद में देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया है ?
(A) 347 (B) 348 (C) 343 (D) 345
ANS. (C) 343
3. भारतीय संविधान के किन अनुच्छेदों में राजभाषा-सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख है?
(A) 343 से 351 तक (B) 434 से 315 तक
(C) 443 से 115 तक (D) 334 से 153 तक
ANS. (A) 343 से 351 तक
4. हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यता कब मिली ?
 (A) 26 जनवरी, 1950    (B) 14 सितम्बर, 1949
(C) 15 अगस्त, 1947     (D) 14 सितम्बर, 1955
ANS. (B) 14 सितम्बर, 1949
5. निम्नलिखित में से किस भाषा को संविधान की अष्टम सूची में सम्मिलित नहीं किया गया है: 
(A) डोगरी (B) मणिपुरी (C) मैथिली (D) छत्तीसगढ़ी
ANS. (D) छत्तीसगढ़ी
6. संविधान की आठवीं सूची में कौन-सी भाषा शामिल नहीं है ?
(A) बोडो (B) मैथिली (C) भोजपुरी (D) डोंगरी
ANS. (C) भोजपुरी
7. निम्नलिखित में से कौन-सी भाषा संविधान की आठवीं सूची में है?
1. नेपाली 2. कांगड़ी 3. राजस्थानी 4. गोंडवी
ANS. 1. नेपाली
8. वर्तमान समय में संविधान द्वारा स्वीकृत भाषाओं की संख्या है :
(A) चौदह (B) बीस (C)  बाईस (D) छब्बीस
ANS. (C) बाईस
9इनमें कौन-सी भाषा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में नहीं है :
(A) डोगरी (B) संथाली (C) बोडो (D) भोजपुरी
ANS. (D) भोजपुरी