बालकृष्ण शर्मा नवीन का रचनाएँ (कालक्रमानुसार)
(जन्म : 8 दिसंबर 1897-29 अप्रैल 1960 ई., ग्वालियर राज्य के भवाना ग्राम में)
राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि, प्रेम और मस्तीपरक काव्य के अग्रदूत, हालावाद के आदि प्रवर्तक।
इनकी प्रथम कहानी ‘संतू’ (1918 ई.) सरस्वती में
प्रकाशित हुई।
सात काव्य-संग्रह :
कुंकुम (1936 ई.), अपलक (1951 ई.), रश्मिरेखा (1952 ई.), क्वासी (1952 ई.), विनोबा स्तवन (1955 ई.), उर्मिला (1957 ई., खंडकाव्य, यह छः सर्गों में विभक्त, उर्मिला के जन्म से लेकर लक्ष्मण से
पुनर्मिलन तक की कथा वर्णित, लक्ष्मण-पत्नी उर्मिला का उज्ज्वल चरित्र-चित्रण), प्रार्णव (गणेशशंकर विद्यार्थी के बलिदान पर लिखित
अप्रकाशित खंडकाव्य), हम विषपायी जनम के (1964 ई.)।
सं. : प्रताप (1931 ई.), प्रभा (1921-1923 ई.)
काव्य-पंक्तियां :
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए।
एक हिलोर इधर से आए एक हिलोर उधर से आए। (विप्लव गान, हम विषपायी जनम के)
आज खडेग की धार कुंठिता है, ख़ाली तूणीर हुआ
विजय पताका झुकी हुई है, लक्ष्य भ्रष्ट यह तीर हुआ। (कुंकुम)
है बलिवेदी, सखे, प्रज्वलित मांग रही ईंधन क्षण-क्षण,
आओ युवक, तुम लगा दो अपने यौवन का ईंधन,
भस्मसात हो जाने दो ये प्रबल उमंगें जीवन की,
अरे सुलगने दो बलिवेदी, चढ़ने दो बलि यौवन की। (हम विषपायी जनम के)
स्वार्गादपि गरीयसी प्यारी, जन्मभूमि का पल्ला
खींचा है दुष्टों ने, बोला है स्वदेश पर हल्ला
कौन हृदय है जो कि न उबले निज समाज की क्षति में ?
कौन आँख है देख सके जो माँ को इस दुर्गति में ? (उर्मिला)
पर चलने के पूर्व यहाँ से कर ले तू वंदन अभिराम
इस सरयू सरिता का, जिस बालू में खेले राम। (उर्मिला)
मैं ही भारत के भविष्य का मूर्तिमन्त विश्वास महान।
हम विषपायी जनम के सहे सुबोल कुबोल।
कोटि-कोटि कंठों से निकली आज यही स्वर धारा है
भारतवर्ष हमारा यह, हिंदुस्तान हमारा है।
मैं देवदूत, मैं अग्निदूत, मैं मनःपूत चिर बलिदानी।
जगजीवन का उन्नायक मैं, अंगारों की मेरी वाणी।
साहित्यिक-सामाजिक सेवाओं के लिए 1960 ई. में पद्मभूषण की उपाधि प्रदान की गई।
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