हरिवंशराय बच्चन की रचनाएं और कथन
हरिवंशराय बच्चन (1907-2003 ईस्वी) को 'हालावाद' तथा 'मधु काव्य' का प्रवर्तक' 'क्षयी रोमांस का कवि' और 'हिंदी का बायरन' कहा जाता है।
हरिवंशराय बच्चन की रचनाएं :
'तेरा हार' (1932 ईस्वी), 'मधुशाला' (1935 ईस्वी), 'मधुबाला' (1936 ईस्वी), 'हलाहल' (1936 ईस्वी) 'मधुकलश' (1937 ईस्वी), 'निशा निमंत्रण' (1938 ईस्वी), 'एकांत संगीत' (1939 ईस्वी), आकुल अंतर (1943 ईस्वी), सतरंगिनी (1945 ईस्वी), 'बंगाल का अकाल' (1946 ईस्वी), 'सूत की माला' (1948 ईस्वी), 'खादी के फूल' (1948 ईस्वी), 'मिलन यामिनी' (1950 ईस्वी), 'धार के इधर-उधर' (1952 ईस्वी), 'प्रणय-पत्रिका' (1955 ईस्वी), 'आरती और अंगारे' (1958 ईस्वी), 'बुद्ध और नाचघर' (1958),
'जनगीता' (1958 ईस्वी), 'त्रिभंगिमा' (1961 ईस्वी), 'चार खेमे चौंसठ खूंटे' (1962 ईस्वी), 'दो चट्टानें' (1965 ईस्वी), 'नागर गीता' (1966 ईस्वी), 'बहुत दिन बीते' (1967 ईस्वी), 'कटती प्रतिमाओं की आवाज़' (1968 ईस्वी), 'उभरते प्रतिमानों के रूप' (1973 ईस्वी) और 'जाल समेटा' (1973 ईस्वी) इत्यादि।
आत्मकथा
क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969 ईस्वी),
नीड़ का निर्माण फिर (1970 ईस्वी),
बसेरे से दूर (1977 ईस्वी),
दशद्वार से सोपान तक (1985 ईस्वी)
कथन
#"धर्म ग्रंथ सब जला चुकी है जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मस्जिद, गिरजे--सबको तोड़ चुका है मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।" (हरिवंश राय बच्चन, मधुशाला)
#"मृदु मिट्टी के हैं बने हुए, मधुघट फूटा ही करते हैं,
लघु जीवन लेकर आए हैं प्याले फूटा ही करते हैं।"
(हरिवंश राय बच्चन, सतरंगिनी)
#"जो बीत गई सो बात गई।" (हरिवंश राय बच्चन, सतरंगिनी)
#"है अंधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है।" हरिवंश राय बच्चन, सतरंगिनी)
#"मुझे पुकार लोगे।" (हरिवंश राय बच्चन, सतरंगिनी)
#"अब शब्द ही घर है
घर ही जाल है
जाल ही तुम हो
अपने से ही उलझो।"
(हरिवंशराय बच्चन, चल चुका जीवन एक युग)
#"पर मेरे जीवन में कुछ ऐसा घोर घटा--
किसके द्वारा ?मैं नहीं बताऊँगा,पर,
आशा है आप समझ जायेंगे--
कि उसने मुझे बिल्कुल अकेला छोड़ दिया;
इतने बड़े संसार में--
सारहीन-सत्वहीन-तत्वहीन।" (हरिवंश राय बच्चन मेरी श्रेष्ठ कविताएं)
#"उल्लास चपल, उन्माद तरल, प्रतिपल पागल मेरा परिचय।" (बच्चन)
#"डूबता मैं किंतु उतरता
सदा व्यक्तित्व मेरा
हों युवकं डूबे भले ही
कभी डूबा न यौवन ।
तीर पर कैसे रुकूं मैं
आज लहरों में निमंत्रण।" (हरिवंशराय बच्चन, मधुकलश)
#"है आज भरा जीवन मुझ में
है आज भरी मेरी गागर।" (हरिवंशराय बच्चन, मधुकलश)
#"दिन जल्दी जल्दी ढलता है।" (बच्चन, निशा निमंत्रण)
#"बीत चली संध्या की बेला।" (बच्चन, निशा निमंत्रण)
#"संध्या सिंदूर लुटाती है।" (बच्चन, निशा निमंत्रण)
#"ये अपनी काग़ज़ की नावें
तट पर बांधो, आगे न बढ़ो
ये तुम्हें डूबा देंगी गल कर
श्वेत-केश-धर कर्णधार।" (हरिवंश)राय बच्चन, मधुबाला)
#"मैं खोज रहा हूं, अपना पथ
अपनी शंका समाधान
चांद सितारे मिलकर गाओ
इतने मत उन्मत्त बनो।" (हरिवंशराय बच्चन, आकुल अंतर)
#"उड़ि चलो हँसा औ देस,
हिंया नाहीं कोऊ हमार!" (हरिवंशराय बच्चन, हिंसा नाहीं कोए हमार)
#"आ रही रवि की सवारी।" (हरिवंशराय बच्चन, निशा-निमंत्रण)
#"जो बीत गई सो बात गई।" (हरिवंशराय बच्चन, सतरंगिनी)
#"युग का जुआ।" (हरिवंशराय बच्चन बुद्ध और नाचघर)
#"सीपी में नील परी सागर थरे, महुआ के नीचे मोती झरे।" (बच्चन, त्रिभंगिमा)
#"गांव बड़ा पहिले अंगना तो अपना बोहारूं।" (बच्चन, त्रिभंगिमा)
#"अस्त जो मेरा सितारा था हुआ,
फिर जगमगाया?" (बच्चन, एकांत संगीत)
#"क्षतशीश मगर नत शीश नहीं।" (बच्चन, एकांत संगीत)
#"अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
वृक्ष हों भले खड़े
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र-छांह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत!" (बच्चन, एकांत संगीत)
#"यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-श्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!" (बच्चन, एकांत संगीत)
#"झुकी हुई अभिमानी गर्दन
बंधे हाथ निष्प्रभ लोचन!
यह मनुष्य का चित्र नहीं, पशु का है रे कायर!" (बच्चन, एकांत संगीत)
#"कितना अकेला आज मैं।" (बच्चन, एकांत संगीत)
#"प्रार्थना मत कर।" (बच्चन, एकांत संगीत)
#"तब रोक न पाया मैं आंसू।"। (बच्चन, एकांत संगीत)
#"जीवन में जो कुछ बचता है
उसका भी है कुछ आकर्षण।" (बच्चन, जिसके आगे झंझा रुकते)
#"मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला प्रियतम अपने ही हाथों से आज भी लाऊंगा प्याला पहले भोग लगा लूं तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा।
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।" (हरिवंशराय बच्चन, मधुशाला)
#"यह महासंग्राम
जीवन का/जगत का जीतना तो दूर लड़ना भी उपासक मानवों से
एक महिमा ही सकेगी होड़ ले इन दानवों से।" (बच्चन)
#"मनुज पराजय के स्मारक हैं मठ, मस्जिद, गिरजाघर।"
(हरिवंशराय बच्चन, एकांत संगीत)
#"मिट्टी का तन, मस्ती का मन क्षणभर जीवन मेरा परिचय।" (बच्चन)
#"कर रहा हूं आज मैं आज़ाद हिंदुस्तान का आह्वान।" (बच्चन)
#"बच्चन मुलत: आत्मानुभूति के कवि हैं, इसलिए उनकी जिन कृतियों में आत्मानुभूति की सघनता है, वे अपने प्रभाव में तीव्र और मर्मस्पर्शी हैं।" (डॉं नगेंद्र, हिंदी साहित्य का इतिहास)
#"बच्चन ने उस समय (1935 1940 ईस्वी) के व्यापक के खिन्नता और अवसाद के युग में) मध्यवर्ग के विक्षुब्ध, वेदनाग्रस्त मन को वाणी का वरदान दिया। उन्होंने सीधी-सादी जीवंत भाषा और सर्वग्राह्य गेय शैली में छायावादी की लाक्षणिक वक्रता की जगह संवेदनासिक्त अभिधा-के माध्यम से, अपनी बात कहना आरंभ किया और हिंदी काव्य-रसिक सहसा चौक पड़ा, क्योंकि उसने पाया यह कि गोया वह भी उसके दिल में है (सं. धीरेंद्र वर्मा, हिंदी साहित्य कोश, द्वितीय भाग)
#"समाज की व्यवस्था, अभावग्रस्त व्यथा, परिवेश का चमकता हुआ खोखलापन, नियति और व्यवस्था के आगे व्यक्ति की असहायता और बेबसी-- 'बच्चन' के लिए ये सहज, व्यक्तिगत अनुभूति पर आधारित काव्य-विषय थे। उन्होंने साहस और सत्यता के साथ सीधी-सादी भाषा और शैली में सहज कल्पनाशीलता और सामान्य विंबो से सज-संवार कर अपने नए गीत हिंदी जगत् को भेंट किए। हिंदी जगत् ने उत्साह से उनका स्वागत किया।" (सं. धीरेंद्र वर्मा, हिंदी साहित्य कोश, द्वितीय भाग)
#"शुद्ध रूमानी कवि जब आत्मपरक के बदले वस्तुपरक और भावुख के बदले बौद्धिक होने की कोशिश करता है तो इसी तरह असफल होता है।" (नंदकिशोर नवल आधुनिक हिंदी कविता का इतिहास)
#"'मधुशाला' की मादकता अक्षय है। मधुशाला में हाला, प्याला, मधुबाला और मधुशाला के चार प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अनेक क्रांतिकारी, मर्मस्पर्शी, रागात्मक एवं रहस्यपूर्ण भावों को वाणी दी है।" (सुमित्रानंदन पंत)
#"बच्चन के अधिकांश काव्य में उनकी ही आत्मकथा के पन्ने बिखरे हुए मिलेंगे।" (सुमित्रानंदन पंत)
#"मेरी कविताओं की आधी सदी चुनी हुई कविताओं का संकलन है।" (बच्चन)
#"'बच्चन' की भाषा, वाक्य विन्यास को आगे चल कर अधिकांश कवियों ने, बिना ऋण स्वीकार के, अपना आदर्श माना है।" (बच्चन सिंह, आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास)
#"जब तक मानव हृदय में रागात्मकता का अवशेष रहेगा, तब तक बच्चन की कविता का आकर्षण चिरंतन एवं चिरस्थायी रहेगा।" (डॉ. गणपतिचंद्रगुप्त)
#"'बच्चन' में दूसरों को रुला सकने की अपूर्व क्षमता है।" (मुक्तिबोध)
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