(28 जनवरी, 1926 - 14 फरवरी, 2005)
चर्चित कृतियां
‘छितवन की छाँह' (पहला निबन्ध संग्रह,
1953)
‘हल्दी दूब' (1955)
'कदम की फूली डाल' (1956)
‘तुम चन्दन हम पानी' (1957)
‘आंगन का पंछी और
बनजारा मन' (1963)
'मैंने सिल पहुचाई' (1966)
'बसन्त आ गया पर कोई
उत्कण्ठा नहीं' (1972)
'मेरे राम का मुकुट
भीग रहा है' (1974)
‘परम्परा बन्धन नहीं' (1976)
‘कँटीले तारों के आरपार' (1976)
‘कौन तू फुलवा बीननिहारी' (1980)
‘निज मन मुकुर' (1981)
'भ्रमरानंद के पत्र' (1981)
'तमाल के झरोखे से' (1981)
'अस्मिता के लिए' (1981)
‘संचारिणी' (1982)
‘अंगद की नियति' (1984)
'लागो रंग हरी' (1985)
‘गांव का मन' (1985)
'नैरन्तर्य और चुनौती' (1988)
'शैफाली झर रही है' (1989)
'भारतीयता की पहचान' (1989)
'भाव पुरुष श्रीकृष्ण' (1990)
‘सोऽहम्' (1991)
'जीवन अलभ्य है जीवन सौभाग्य है' (1991)
'देश, धर्म और राजनीति' (1992)
'नदी नारी और संस्कृति' (1993)
'फागुन दुइ रे दिना' (1994)
'बूंद मिले सागर
में' (1994)
'पीपल के बहाने' (1994)
'शिरीष की याद आई' (1995)
'भारतीय चिन्तन
धारा' (1995)
'साहित्य का खुला
आकाश' (1996)
'स्वरूप-विमर्श' (सांस्कृतिक पर्यालोचन
से सम्बद्ध निबन्धों का संकलन, 2001)
'गांधी का करुण रस' (2002)
‘थोड़ी सी जगह दें' (घुसपैठियों पर आधारित
निबन्ध, 2004)
'वाचिक कविता अवधी' (सं, 2005)
'रहिमन पानी राखिए' (2006)
'कितने मोरचे' (2007)
'साहित्य के सरोकार' (2007)
'तुलसीदास भक्ति प्रबंध का नया उत्कर्ष'
'भारतीय संस्कृति के
आधार' (भारतीय संस्कृति
के जीवन पर आधारित पुस्तक)
'चिड़िया रैन बसेरा'
'भ्रमरानंद का पचड़ा' (श्रेष्ठ कहानी-संग्रह)
'राधा माधव रंग रंगी' (गीतगोविन्द की सरस
व्याख्या)
'लोक और लोक का
स्वर' (लोक की भारतीय जीवनसम्मत
परिभाषा और उसकी अभिव्यक्ति)
'व्यक्ति-व्यंजना' (विशिष्ट व्यक्त व्यंजक
निबन्ध)
‘सपने कहाँ गए' (स्वाधीनता संग्राम
पर आधारित पुस्तक)
'आज के हिन्दी कवि-अज्ञेय'
'हिन्दी और हम'
'हिंदी साहित्य का
पुनरालोकन'
'व्यक्ति व्यंजना'
'वाचिक कविता भोजपुरी (सं) '
‘बीत गया है'
'अग्निरथ',
'तुलसी
मंजरी'
'महाभारत का काव्यार्थ'
('महाभारत का काव्यार्थ' अज्ञेयजी
द्वारा डॉ. वत्सल निधि की ओर से डॉ. हीरानन्द शास्त्री व्याख्यान माला की पाँचवीं
लड़ी के रूप में दिलवाए गए तीन व्याख्यानों का संकलन है।)
पुरस्कार और सम्मान
विद्यानिवास मिश्र को 'भारतीय ज्ञानपीठ' के 'मूर्तिदेवी पुरस्कार', 'के. के. बिड़ला
फाउंडेशन'
के 'शंकर सम्मान' से नवाजा गया।
भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' और 'पद्मभूषण' से भी सम्मानित
किया था। राजग शासन काल में उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया।
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