अज्ञेय की काव्य-पंक्तियाँ
तुमने तुम्हारा शेष कष्ट भोगने के लिए मुझे चुना
मैं अपने ही नहीं, तुम्हारे भी सलीब का वाहक हूँ।
हम अतीत के शरणार्थी हैं।
जिन की भाषा में अतिशय चिकनाई है साबुन की
किन्तु नहीं है करुणा।
दुख सबको मांजता है
जिनको मांजता है
उन्हें यह सीख देता है कि
सबको मुक्त रखें।
निचले हर शिखर पर देवल :
ऊपर निराकार तुम केवल।
उड़ गयी चिड़िया
कांपी, फिर
थिर
हो गई पत्ती।
ये उपमान मैले हो गये हैं
देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच
कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है।
मैं सेतु हूँ, वह सेतु हूँ
जो मानव से मानव का हाथ मिलाने से बनता है।
पर
तुमने तुम्हारा शेष कष्ट भोगने के लिए मुझे चुना
मैं अपने ही नहीं, तुम्हारे भी सलीब का वाहक हूँ।
हम अतीत के शरणार्थी हैं।
जिन की भाषा में अतिशय चिकनाई है साबुन की
किन्तु नहीं है करुणा।
दुख सबको मांजता है
जिनको मांजता है
उन्हें यह सीख देता है कि
सबको मुक्त रखें।
निचले हर शिखर पर देवल :
ऊपर निराकार तुम केवल।
उड़ गयी चिड़िया
कांपी, फिर
थिर
हो गई पत्ती।
ये उपमान मैले हो गये हैं
देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच
कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है।
मैं सेतु हूँ, वह सेतु हूँ
जो मानव से मानव का हाथ मिलाने से बनता है।
पर
अद्भुत पंक्तियाँ! रोएँ सिहरा देती हैं! कालजयी अज्ञेय
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