गांधीवादी, प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकार, हिन्दी गद्य में 'मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक' के रूप में मान्य, और 'प्रयोगवाद' के प्रारम्भकर्ता, मूलनाम : 'आनंदी लाल'।
उपन्यास
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'परख'
(1929, पात्र : सत्यधन, कट्टो, गरिमा, बिहारी)
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'सुनीता'
(1935, पात्र : सुनीता, श्रीकान्त और हरिप्रसन्न)
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'त्यागपत्र' (1937, पात्र : मृणाल, प्रमोद, शीला)
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'कल्याणी'
(1939, पात्र : डॉ. असरानी, )
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'विवर्त'
(1953, भुवनमोहिनी, जितेन)
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'सुखदा'
(1952)
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'व्यतीत'
(1953, पात्र : अनीता)
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'जयवर्धन'
(1956)
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'मुक्तिबोध' (1966, पात्र : सहाय, राजेश्वरी, नीलिमा)
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'अनन्तर' (1968,
पात्र : अपराजिता, प्रसाद, रामेश्वरी)
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'अनामस्वामी' (1974, पात्र : वसुन्धरा, कुमार, शंकर उपाध्याय)
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'दशार्क' (1985,
वेश्या समस्या पर, पात्र : सरस्वती, रंजना)
कहानी-संग्रह
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'फाँसी'
(1929)
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'वातायन'
(1930)
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'नीलम देश की राजकन्या' (1933)
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'एक रात'
(1934)
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'दो चिड़ियाँ' (1935)
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'पाजेब'
(1942)
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'जयसंधि'
(1949)
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'जैनेन्द्र की कहानियाँ' (सात भाग)
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'जैनेंद्र कुमार की कहानियाँ' (2000)
निबंध-संग्रह
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'प्रस्तुत प्रश्न'
(1936)
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'जड़ की बात'
(1945)
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'पूर्वोदय' (1951)
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'साहित्य का श्रेय और प्रेय'
(1953)
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'मंथन'
(1953)
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'सोच-विचार' (1953)
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'काम, प्रेम और परिवार' (1953)
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'समय और हम' (1962)
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'परिप्रेक्ष' (1964)
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'राष्ट्र और राज्य'
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'सूक्तिसंचयन'
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'इस्ततः' (1962)
संस्मरण
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'ये और वे'
(1954)
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'मेरे भटकाव'
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'जैनेन्द्रकुमार की मौत पर' (स्वयं पर)
आलोचनात्मक
ग्रंथ
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'कहानी : अनुभव और शिल्प' (1967)
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'प्रेमचन्द एक कृती व्यक्तित्व' (1967)
जीवनी
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'अकाल पुरुष गांधी' (1968)
अनूदित ग्रंथ
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'मंदालिनी' (नाटक, 1935)
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'प्रेम में भगवान'
(कहानी-संग्रह, 1937)
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'पाप और प्रकाश'
(नाटक, 1953)।
सह लेखन
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'तपोभूमि'
(उपन्यास, ऋषभचरण जैन के साथ, 1932)।
संपादित ग्रंथ
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'साहित्य चयन'
(निबंध-संग्रह, 1951)
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'विचारवल्लरी' (निबंध-संग्रह, 1952)
सम्मान और पुरस्कार
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हस्तीमल डालमिया पुरस्कार (नई दिल्ली)
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उत्तर प्रदेश राज्य सरकार (समय और हम,1970)
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उत्तर प्रदेश सरकार का शिखर सम्मान 'भारत-भारती'
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मानद डी. लिट् (दिल्ली विश्वविद्यालय, 1973, आगरा विश्वविद्यालय,1974)
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हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग (साहित्य वाचस्पति,1973)
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विद्या वाचस्पति (उपाधि : गुरुकुल कांगड़ी)
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साहित्य अकादमी की प्राथमिक सदस्यता
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प्रथम राष्ट्रीय यूनेस्को की सदस्यता
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भारतीय लेखक परिषद् की अध्यक्षता
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दिल्ली प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सभापतित्व।
'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में गोपाल राय जी लिखते हैं 'उनके उपन्यासों की कहानी अधिकतर एक परिवार की कहानी होती है और वे ’शहर की गली और कोठरी की सभ्यता’ में ही सिमट कर व्यक्ति-पात्रों की मानसिक गहराइयों में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं।'
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