अष्टछाप के कवि कालक्रमानुसार
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Mobile : 9717324769
अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास
स्मरण-सूत्र : कु सू प कृ गो छी च न
1525 कुम्भनदास
1535 सूरदास
1550 परमानंद दास
1553 कृष्णदास
1562 गोविंदस्वामी
1572 छीतस्वामी
1587 चतुर्भुजदास
1590 नंददास
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कुम्भनदास (1525)
जन्म सन् 1468 ई. में, सम्प्रदाय
प्रवेश सन् 1492 ई. में और गोलोकवास सन् 1582 ई. के लगभग हुआ था।
1468-1583
कुम्भनदास भक्तन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पनहिया टूटी बिसरि
गयो हरि नाम।
जाको मुख देखे दुख लागे ताको
करन करी परनाम।
कुम्भनदास लाला गिरिधर बिन
यह सब झूठो धाम।
अष्टछाप के
कवियों में सबसे पहले कुम्भनदास ने महाप्रभु वल्लभाचार्य से पुष्टिमार्ग में दीक्षा
ली थी। इन्हें मधुरभाव की भक्ति प्रिय थी और इनके रचे हुए लगभग 500 पद उपलब्ध हैं।
परिचय
राजा मानसिंह ने इन्हें एक बार सोने की आरसी और
एक हज़ार मोहरों की थैली भेंट करनी चाही थी परन्तु कुम्भनदास ने उसे अस्वीकार कर
दिया था।
प्रसिद्ध है कि एक बार अकबर ने
इन्हें फ़तेहपुर
सीकरी बुलाया था। सम्राट की भेजी हुई सवारी पर न
जाकर ये पैदल ही गये और जब सम्राट ने इनका कुछ गायन सुनने की इच्छा प्रकट की तो
इन्होंने गाया :
भक्तन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पनहिया टूटी बिसरि
गयो हरि नाम।
जाको मुख देखे दुख लागे ताको
करन करी परनाम।
कुम्भनदास लाला गिरिधर बिन
यह सब झूठो धाम।
कुंभनदास के सात पुत्र थे।
परन्तु गोस्वामी विट्ठलनाथ के पूछने पर उन्होंने कहा था कि वास्तव में उनके डेढ़
ही पुत्र हैं क्योंकि पाँच लोकासक्त हैं, एक चतुर्भुजदास भक्त
हैं और आधे कृष्णदास हैं, क्योंकि वे भी गोवर्धन नाथ जी की गायों की सेवा
करते हैं। कृष्णदास को जब गायें चराते हुए सिंह ने मार डाला। श्रीनाथजी का वियोग
सहन न कर सकने के कारण ही कुम्भनदास गोस्वामी विट्ठलनाथ के
साथ द्वारका नहीं
गये थे और रास्ते से लौट आये थे।
मधुर-भाव
की भक्ति
कुम्भनदास को निकुंजलीला का
रस अर्थात् मधुर-भाव की भक्ति प्रिय थी और इन्होंने महाप्रभु से इसी भक्ति का
वरदान माँगा था। कुम्भनदास ने गाया था-
रसिकिनि रस में रहत गड़ी।
कनक बेलि वृषभान नन्दिनी
स्याम तमाल चढ़ी।।
विहरत श्री गोवर्धन धर रति
रस केलि बढ़ी ।।
रचनायें
- कुम्भनदास के
पदों की कुल संख्या, जो 'राग-कल्पद्रुम' 'राग-रत्नाकर' तथा
सम्प्रदाय के कीर्तन-संग्रहों में मिलते हैं, 500 के लगभग
हैं।
- कुम्भनदास के
पदों का एक संग्रह 'कुम्भनदास' शीर्षक से
श्रीविद्या विभाग, कांकरोली द्वारा प्रकाशित हुआ है।
- अष्टछाप और
वल्लभ सम्प्रदाय : डा. दीनदयाल गुप्त
- अष्टछाप
परिचय : श्रीप्रभुदयाल मीत्तल।
अष्टछाप का वस्तुनिष्ठ एवं ज्ञानवर्धक परिचय।
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