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कविता संग्रह
अनुवाद
खण्डकाव्य
निबन्ध
संस्मरण
आलोचना
यात्रा-वृत्तान्त
डायरी
लघुकथा और गद्य-गीत
|
(23 सितम्बर 1908−24 अप्रैल 1974, बेगूसराय, बिहार)
कविता संग्रह
§
प्रणभंग (1929)
§
रेणुका (1935)
§
हुंकार (1938)
§
रसवन्ती (1939)
§
द्वन्द्वगीत (1940)
§
धूपछाँह (1946)
§
सामधेनी (1947)
§
बापू (1947)
§
इतिहास के आँसू (1951)
§
मिर्च का मज़ा (1951)
§
रश्मिरथी (1954)
§
नीम के पत्ते (1954)
§
दिल्ली (1954)
§
नील कुसुम (1955)
§
चक्रवाल (1956)
§
नये सुभाषित (1957)
§
उर्वशी (1961)
§
हारे को हरि नाम
(1970)
§
सूरज का ब्याह (1955)
§
कविश्री (1957)
§
कोयला और कवित्व 1964)
§
मृत्तितिलक (1964)
§
भगवान के डाकिए (1964)
अनुवाद
खण्डकाव्य
·
रश्मिरथी (1954)
·
चक्रवाल (1956)
·
उर्वशी (1961)
·
मृत्तितिलक (1964)
·
भगवान के डाकिए (1970)
गद्य कृतियाँ
निबन्ध
·
अर्द्धनारीश्वर (1953 ई॰)
·
रेती के फूल (1954 ई॰)
·
राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता (1955 ई॰)
·
वेणु वन (1958 ई॰)
·
धर्म, नैतिकता और विज्ञान (1959 ई॰)
·
वट पीपल (1961 ई॰)
·
राष्ट्रभाषा आन्दोलन और गाँधीजी (1968
ई॰)
·
हे राम (1969)
·
भारतीय एकता (1971 ई॰)
·
विवाह की मुसीबतें (1973 ई॰)
·
चेतना की शिखा (1973 ई॰)
संस्मरण
·
वट पीपल (1961 ई॰)
·
लोकदेव नेहरू (1965 ई॰)
·
संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ (1970 ई॰)
·
शेष-निःशेष (1985, इस संग्रह में 11
साक्षात्कार भी हैं)
आलोचना
·
साहित्यमुखी (1968 ई॰)
·
आधुनिक बोध (1973 ई॰)
·
शुद्ध कविता की खोज (1966 ई॰)
·
साहित्यमुखी (1968 ई॰)
·
आधुनिक बोध (1973 ई॰)
·
पंत, प्रसाद और मैथिलीशरण (1958 ई॰)
यात्रा-वृत्तान्त
·
देश-विदेश (1957 ई॰)
·
मेरी यात्राएँ (1971 ई॰)
डायरी
·
दिनकर की डायरी (1973 ई॰)
लघुकथा और गद्य-गीत
·
उजली आग (1956 ई॰)
गद्य कृतियाँ (कालक्रमानुसार(
·
अर्द्धनारीश्वर (1953 ई॰)
·
रेती के फूल (1954 ई॰)
·
राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता (1955 ई॰)
·
उजली आग (1956 ई॰)
·
देश-विदेश (1957 ई॰)
·
वेणु वन (1958 ई॰)
·
पंत, प्रसाद और मैथिलीशरण (1958 ई॰)
·
धर्म, नैतिकता और विज्ञान (1959 ई॰)
·
वट पीपल (1961 ई॰)
·
लोकदेव नेहरू (1965 ई॰)
·
शुद्ध कविता की खोज (1966 ई॰)
·
साहित्यमुखी (1968 ई॰)
·
राष्ट्रभाषा आन्दोलन और गाँधीजी (1968
ई॰)
·
साहित्यमुखी (1968 ई॰)
·
हे राम (1969)
·
संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ (1970 ई॰)
·
भारतीय एकता (1971 ई॰)
·
मेरी यात्राएँ (1971 ई॰)
·
आधुनिक बोध (1973 ई॰)
·
दिनकर की डायरी (1973 ई॰)
·
विवाह की मुसीबतें (1973 ई॰)
·
चेतना की शिखा (1973 ई॰)
·
शेष-निःशेष (1985, इस संग्रह में 11
साक्षात्कार भी हैं)
दिनकर के
विचार
कविता तो कवि की आत्मा का आलोक
है।−रामधारीसिंह दिनकर
मैं कविता को
जजजजजीवन तक पहंचने की सबसे सीसधी और सबसे ोटी राह मालता हूं। यह मस्तिष्क की नहीं
हृदय की राह है।−रामधारीसिंह दिनकर
चित्रकारी और
बिम्ब योना कविता को ख़ूबसूरत तो बनाती
है,लेकिन कविता की शक्ति किसी ऐर दिशा से आती है। कोरे बिम्बों का खेल कोरी आतिशबाज़ का काम है।−रामधारीसिंह
दिनकर
चिन्तन की
अपेक्षा कर्म सत्य के अधिक समीप होता है।−रामधारीसिंह दिनकर
समालोचना
काव्य की अन्तरधाराओं का विश्लेषण है।−रामधारीसिंह दिनकर
नयी कविता का
मनसूबा सूत्र-शैली में बोलने का मनसूबा है।−रामधारीसिंह दिनकर
काव्य-पंक्तियाँ
पत्थर सी हों मांसपेशियाँ, लौहदंड भुजबल अभय;
नस-नस में हो लहर आग की, तभी जवानी पाती जय। −रश्मिरथी से
हटो व्योम के मेघ पंथ से, स्वर्ग लूटने हम जाते हैं;
दूध-दूध ओ वत्स तुम्हारा, दूध खोजने हम जाते है। −रश्मिरथी / तृतीय सर्ग
सच पूछो तो सर में ही, बसती है दीप्ति विनय की;
सन्धि वचन संपूज्य उसी का, जिसमें शक्ति विजय की। −रश्मिरथी / तृतीय सर्ग
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है;
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है। −रश्मिरथी
/ तृतीय सर्ग
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है। −रश्मिरथी / तृतीय सर्ग
/ भाग 3
मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,
दो न्याय अगर तो आधा दो और उसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! −रश्मिरथी / तृतीय सर्ग
दुर्योधन वह भी दे न सका, आशिष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य,
साधने चला। −रश्मिरथी से
यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
सब जन्म मुझी से पाते हैं, फिर लौट मुझी में आते हैं। −रश्मिरथी से
यह देख जगत का आदि-अन्त, यह देख, महाभारत का
रण,
मृतकों से पटी हुई भू है, पहचान, कहाँ इसमें तू
है? −रश्मिरथी से
रे रोक युधिष्ठर को न यहाँ, जाने दे उनको स्वर्ग धीर
पर फिरा हमें गांडीव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर। −हिमालय से
क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो;
उसको क्या जो दन्तहीन, विषहीन, विनीत,
सरल हो। −कुरुक्षेत्र से
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है। −कुरुक्षेत्र
सोचा, क्या अच्छे दाने हैं, खाने से बल होगा,
यह ज़रूर इस मौसम का कोई मीठा फल होगा। −मिर्च
का मज़ा
धन है तन का मैल, पसीने का जैसे हो पानी,
एक आन को ही जीते हैं इज्जत के अभिमानी। −सूरज
का ब्याह
पुरस्कार और सम्मान
1952 राज्यसभा के लिए चुने गये
1959 पद्म विभूषण भारत सरकार की ओर से
1959 साहित्य अकादमी ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर
1968 साहित्य-चूड़ामणि राजस्थान विद्यापीठ की ओर से
1972 ज्ञानपीठ पुरस्कार ‘उर्वशी’ पर
प्रूफ की त्रुटियों का सुधार आवश्यक।
जवाब देंहटाएंहमारी सांस्कृतिक एकता (1954 ई॰) ka nibhand mil sakta hai please
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा संकलन किया है श्री मान जी।
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