अति सुधो सनेह को मारग है
जहां नेकू सयानप बांक नहीं।
लोग हैं लागि कवित्त बनावत
मोहि तौ मोरे कवित्त बनावत।
देह दहै न रहै सुधि गेह की,
भूलि हूँ नाह को नाम न लीजै।
कंत रमे उर अंतर में सुलहै नहिं क्यों सुखराशि निरन्तर।
मोहि तुम एक, तुम्हैं मो सम एनेक आहि,
कहा कछु चन्दहि चकोरनकी कमी है।
ह्वै है सोउ घरी भाग उघरी
आनन्द विधान सुखदानि दुखियान दे।
कान्ह परे बहुतायत में इकलैन की वेदन जानो कहा तुम।
उजरनि बसी है हमारी अँखियन देखौ।
यहाँ साँचे चलै तजि आपनपौ
झिझकैं कपटी जेनिसांक नहीं।
हिय आँखिन नेह की पीर तकी।
बिछुरै मिलैं मीन पतंग दशा कहाँ मो जिय गति को परसै।
_घनानन्द की काव्य-पंक्तियाँ
घनानन्द की काव्य-पंक्तियाँ https://www.google.co.in/
जहां नेकू सयानप बांक नहीं।
लोग हैं लागि कवित्त बनावत
मोहि तौ मोरे कवित्त बनावत।
देह दहै न रहै सुधि गेह की,
भूलि हूँ नाह को नाम न लीजै।
कंत रमे उर अंतर में सुलहै नहिं क्यों सुखराशि निरन्तर।
मोहि तुम एक, तुम्हैं मो सम एनेक आहि,
कहा कछु चन्दहि चकोरनकी कमी है।
ह्वै है सोउ घरी भाग उघरी
आनन्द विधान सुखदानि दुखियान दे।
कान्ह परे बहुतायत में इकलैन की वेदन जानो कहा तुम।
उजरनि बसी है हमारी अँखियन देखौ।
यहाँ साँचे चलै तजि आपनपौ
झिझकैं कपटी जेनिसांक नहीं।
हिय आँखिन नेह की पीर तकी।
बिछुरै मिलैं मीन पतंग दशा कहाँ मो जिय गति को परसै।
प्रस्तुति : मुहम्मद इलियास हुसैन
hindisahityavimarsh.blogspot.in
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