(जन्म : देहरादून, मृत्यु : अहमदाबाद)
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अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास
आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभ हैं౼ शमशेर बहादुर सिंह, नागार्जुन और त्रिलोचन
शास्त्री।
हिंदी कविता में अनूठे माँसल ऐंद्रीकशमशेर बहादुर सिंह प्रगतिशील त्रयी के कवि౼1 बिंबों के रचयिता शमशेर आजीवन प्रगतिवादी
विचारधारा से जुड़े रहे। दूसरे सप्तक (1951) से शुरुआत कर चुका भी नहीं हूँ मैं के लिए साहित्य अकादमी सम्मान पाने वाले शमशेर ने कविता के अलावा डायरी लिखी और हिंदी उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया।
शमशेर स्वयं पर इलियट-एजरा पाउंड-उर्दू दरबारी कविता का रुग्ण प्रभाव होना
स्वीकार करते हैं। लेकिन उनका स्वस्थ सौंदर्यबोध इस प्रभाव से ग्रस्त नहीं है।
शमशेर एक तरफ 'यौवन की उमड़ती यमुनाएं' अनुभव कर सकते थे, दूसरी तरफ 'लहू भरे गवालियर के बाजार में जुलूस'
भी देख सकते थे।
प्रमुख रचनाएँ
- कविता-संग्रह : अमन का राग (1952), एक पीली शाम (1953), एक नीला दरिया बरस रहा, कुछ कविताएं (1956),
कुछ और कविताएं (1961),
चुका भी नहीं हूं मैं
(1975), इतने पास अपने (1980), उदिता - अभिव्यक्ति का संघर्ष (1980),
बात बोलेगी (1981),
काल तुझसे होड़ है मेरी
(1988), सुकून की तलाश।
- निबन्ध-संग्रह : दोआब
- कहानी-संग्रह : प्लाट का मोर्चा
·
संपादन : 'रूपाभ', इलाहाबाद में कार्यालय सहायक (1939),
'कहानी'
में त्रिलोचन के साथ (1940), 'नया साहित्य', बंबई में कम्यून में रहते हुए (1946)
माया में सहायक संपादक (1948-54),
नया पथ और मनोहर कहानियाँ में संपादन सहयोग। दिल्ली
विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय अनुदान की एक महत्वपूर्ण परियोजना 'उर्दू हिन्दी कोश' का संपादन (1965-77), प्रेमचंद सृजनपीठ, विक्रम विश्वविद्यालय के अध्यक्ष (1981-85)।
पुरस्कार व सम्मान
·
साहित्य
अकादमी पुरस्कार (1977 ई.)
'चुका भी हूँ नहीं मैं'
के लिये
- मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार (1987)
- कबीर सम्मान (1989)
कुछ विचार
शमशेर ने संवेदनाओं के गुणचित्र उपस्थित करने के क्षेत्र
में जो महान सफलताएँ प्राप्त की हैं, वे उस क्षेत्र में अन्यत्र दुर्लभ हैं। ౼गजानन माधव
मुक्तिबोध
हम चाहें तो उन्हें रूमानी और बिंबवादी कवि भी कह सकते हैं।
अभी तक और कभी इसके बाहर वह नहीं गए। ...सहजता अगर मनुष्य का गुण है तो
शमशेर बहादुर सिंह का जीवन और काव्य उसका उदाहरण है। ...वे सौंदर्य के अनूठे
चित्रों के स्त्रष्टा के रूप में हिंदी में सर्वमान्य हैं। ౼अज्ञेय
शमशेर उन कवियों में थे, जिनके लिए मार्क्सवाद
की क्रांतिकारी आस्था और भारत की सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपरा में विरोध नहीं था। ౼डॉ.
अजय तिवारी
काव्य-पंक्तियाँ
1. मोटी धुली लॉन की दूब,
साफ मखमल-सी कालीन।
ठंडी धुली सुनहली धूप।
2. बादलों के मौन गेरू-पंख, संन्यासी, खुले है/ श्याम पथ पर/ स्थिर हुए-से,
चल।
3. 'टूटी हुई, बिखरी हुई' प्रतिनिधि कविताएँ नहीं मानी जाती। उनमें शमशेर ने लिखा है-
'दोपहर बाद की धूप-छांह
में खड़ी इंतजार की ठेलेगाड़ियां/ जैसे मेरी पसलियां../
खाली बोरे सूजों से रफू किये जा रहे है।.
जो/ मेरी आंखों का सूनापन है।'
4. उषा शीर्षक कविता में उन्होंने भोर के नभ को नीले शंख की तरह देखा है।
'प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे'।
5. वैदिक कवियों की तरह वे प्रकृति की लीला को पूरी तन्मयता से अपनाते है-
जागरण की चेतना से मैं नहा उट्ठा।
सूर्य मेरी पुतलियों में स्नान करता।
6. सूर्य मेरी पुतलियों में स्नान
करता
केश-तन में झिलमिला कर डूब जाता..
7. उन्होंने स्वयं को 'हिंदी और उर्दू का दोआब' कहा है। रूढिवाद-जातिवाद का उपहास करते हुए वे कहते हैं-
'क्या गुरुजी मनु ऽ जी को ले आयेंगे?
हो गये जिनको लाखों जनम गुम हुए।'
8, मुझे बादशाहत नहीं चाहिए
मगर तू ही कुल मेरी दुनिया है क्यों।
9. अपने प्रिय कवि महाकवि निराला को याद करते हुए शमशेर ने
लिखा है-
भूल कर जब राह- जब-जब राह.. भटका मैं
तुम्हीं झलके हे महाकवि,
सघन तम की आंख बन मेरे लिए।
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