शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

भारतेन्दु हरिश्चंद्र की कविताएँ

भारतेन्दु हरिश्चंद्र की कविताएँ

(9 सितम्बर सन् 18506 जनवरी सन् 1885)

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भक्ति सर्वस्व (1870 ई.)
सुमनांज्जलि (1870 ई.)
प्रेममालिका (1871 ई.)
वैशाख माहात्म्य (1872 ई.)
फूलों का गुच्छा (1872 ई.)
जैन-कौतूहल ( 1872 ई.)
प्रेम सरोवर (1873 ई.)
प्रेमाश्रु-वर्षण (1873 ई.)
प्रेम फुलवारी (1873 ई.)
देवी छद्म-लीला (1873 ई.)
तन्मय लीला (1874 ई.)
रानी छद्म-लीला (1874 ई.)
मुँह-दिखावनी (1874 ई.)
श्री राजकुमार-शुभागमन-वर्णन (1874 ई.)
राजकुमार सुस्वागत पत्र (1874 ई.)
भारत-भिक्षा (1875 ई.)
भारत-भिक्षा (1875 ई.)
मानसोपायन (1876 ई.)
उत्तरार्द्ध भक्तमाल (1876-77 ई.)
प्रेम-तरंग (1877 ई.)
प्रेम-विलाप (1877 ई. )
मनोमुकुल-माला (1877 ई.)
हिन्दी की उन्नति पर व्याख्यान (1877 ई.)
मूक प्रश्न (1877 ई.)
गीत-गोविंदानंद (1877-78 ई.)
सतसई सिंगार (1878 ई.)
भारत-वीरत्व (1878 ई.)
बन्दर सभा (1879 ई.)
होली (1879 ई.)
प्रेम-माधुरी (1880 ई.)
वर्षा-विनोद (1880 ई.)
विनय प्रेम पचासा (1881 ई.)
मधु-मुकुल (1881 ई.)
विजय-बल्लरी (1881 ई.)
विनय-प्रेम पचासा (1881 ई.)
विजयिनी विजय-पताका या वैजयंती (1882 ई.)
कृष्ण-चरित्र (1883 ई.)
कार्तिक स्नान (1884 ई.)
राग-संग्रह (1884 ई.)
उर्दू का स्यापा (1884 ई.)
जातीय संगीत (1884 ई.)
बकरी विलाप (1884 ई.)
रिपनाष्टक (1884 ई.)
नये जमाने की मुकरी (1884 ई.)
इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना प्रेम माधुरी की कुछ पंक्तियाँ निम्नवत हैं
मारग प्रेम को समुझै 'हरिश्चन्द्र' यथारथ होत यथा है
लाभ कछु न पुकारन में बदनाम ही होन की सारी कथा है।
जानत ही जिय मेरौ भली विधि और उपाइ सबै बिरथा है।
बावरे भारतेन्दु की दुर्लभ रचना
•           इन दुखियन को न चैन सपनेहुं मिल्यौ
•           ऊधो जो अनेक मन होते  
•           कहाँ करुणानिधि केशव सोए
•           काले परे कोस चलि चलि थक गए पाय  
•           गाती हूँ मैं...(हज़ल)
•           जगत में घर की फूट बुरी  
•           धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी
•           नींद आती ही नहीं...(हज़ल)  
•           बँसुरिआ मेरे बैर परी
•           बैरिनि बाँसुरी फेरि बजी
•           ब्रज के लता पता मोहिं कीजै
•           भारत के भुज-बल जग रक्षित
•           भारत जननि जिय क्यों उदास
•           मारग प्रेम को को समझै
•           मेरे नयना भये चकोर  
•           रहैं क्यौं एक म्यान असि दोय
•           रोअहु सब मिलिकै
•           रोकहिं जौं तो अमंगल होय
•           लखौ किन भारतवासिन की गति
•           लहौ सुख सब विधि भारतवासी
•           वह अपनी नाथ दयालुता  
•           सखी री ठाढ़े नंदकिसोर
•           सखी हम काह करैं कित जायं
•           सखी हम बंसी क्यों न भए  
•           सुनौ सखि बाजत है मुरली
•           हमहु सब जानति लोक की चालनि
•           हरि-सिर बाँकी बिराजै
•           हरि को धूप-दीप लै कीजै

•           हैं ब्रज के सिगरे मोंहि नाहक पूछत कौन बिथा है।

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