द्विवेदी युग की कविता౼पाठक, शंकर, द्विवेदी, हरिऔध
द्विवेदी युग की समय-सीमा : 1900-1920 ई.
मुहम्मद इलियास हुसैन
Hindisahityavimarsh.blofspot.com
Mob : 9717324769
श्रीधर पाठक (1859-1928 ई.) : काव्य-ग्रन्थ ౼ मनोविनोद
(पाठक जी की प्रारंभिक रचनाओं का संग्रह तीन खंडों में, क्रमशः 1882, 1905 और 1912
ई. में), एकान्तवासी योगी (1886 ई., गोल्डस्मिथ की रचना हरमिट का खड़ीबोली में
काव्यानुवाद, प्रेमाख्यान), जगत सचाई सार (1887 ई., मूल-रचना, जीवन और जगत को सत्य
मानकर कर्म करने की प्रेरणा), उजड़ ग्राम (1889 ई., गोल्डस्मिथ के द डिजर्टेड
विलेज का ब्रजभाषा में काव्यानुवाद रोला छन्द में ), श्रान्तपथिक (1900 ई.,
गोल्डस्मिथ की रचना द ट्रैवलर का खड़ीबोली में काव्यानुवाद रोला छन्द में),
काश्मीर सुषमा (1904 ई., काश्मीर के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन, ब्रजभाषा में,
रोला छन्द में), आराध्य शोकांजलि (1906 ई., पिता की मृत्यु पर), जॉर्ज वन्दना (1911
ई., राजभक्ति का प्रदर्शन), वनाष्टक (1912 ई.), भक्ति विभा (1913 ई.), श्री गोखले
प्रशस्ति (1915 ई.), श्री गोखले गुणाष्टक (1915 ई. ब्रजभाषा में, छप्पय छन्द में),
देहरादून (1915 ई.), गोपिका गीत (1916 ई.), भारत गीत (1928 ई. देशभक्ति परक गीत)।
श्रीधर पाठक
की काव्य-पंक्तियाँ
निजभाषा बोलहु
लिखहु पढ़हु गुनहु सब लोग,
करहु सकल विषयन विषैं निज भाषा उपजोग
नाथुराम शर्मा शंकर (1859-1932 ई.) :
काव्य-ग्रन्थ ౼ अनुराग रत्न, शंकर सरोज,
गर्भण्डा रहस्य (प्रबन्धकाव्य, विधवाओं की दुर्दशा और मन्दिरों में होनेवाले
दुराचार का वर्णन), शंकर सर्वस्व (1951 ई., गीततावली, कविताकुंज, दोहा,
समस्यापूर्ति और विविध रचनाएँ ), शंकर सतसई।
रसिक
कुमुद-बन-कलाधर, प्रतिभा आगार।
कविता-कानन-केसरी,
सहृदयता आगार।।
౼ शंकर जी के
बारे में महावीर प्रसाद द्विवेदी
यह शंकर जी कौन हैं ? इनकी कविताएँ पढ़कर मैंने अपनी सम्मति बदल दी है और अब
मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि खड़ीबोली में भी सुन्दर और सरस कविताएँ हो सकती
हैं। ౼सरस्वती-सम्पादक श्री
महावीरप्रसाद द्विवेदी को एक पत्र में जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन
राजा लक्ष्मण सिंह ने उन्हें भारत प्रज्ञेन्दु और डॉ. सुधीन्द्र ने खड़ीबोली
के कबीर की उपाधि दी थी।
नाथूराम शर्मा
शंकर की काव्य-पंक्तियाँ
काहू विधि
विधि की बनावट बचैगी नाहिं
जौ पै वा वियोगिनी की आह कढ़ जाएगी
चौंक चौंक
चारों ओर चौकड़ी भरेंगे मृग
खंजन
खिलाड़ियों के पंख झड़ जाएँगे।
बोलो इन अँखियों
की होड़ करने को अब
कौन से अड़ीले
उपमान अड़ जाएँगे ?
महावीरप्रसाद
द्विवेदी (1864-1938 ई.) : काव्य-ग्रन्थ ౼ मौलिक काव्य : देवी स्तुति शतक (1892 ई., मुक्तक), कान्यकुब्जावलीव्रतम् (1898 ई., मुक्तक),
समाचारपत्र सम्पादक स्तवः (1898 ई.), नागरी (1900 ई.), काव्य मंजूषा (1903 ई.),
कान्यकुब्ज-अबला-विलाप (1907 ई.), कविता कलाप (1909 ई.), सुमन (1923 ई.), द्विवेदी
काव्यमाला (1940 ई.) अनूदित काव्य : विनय विनोद (1889 ई., भर्तृहरि के
वैराग्य शतक के दोहों का अनुवाद), विहार वाटिका (1890 ई., गीतगोविन्द का भावानुवाद), स्नेहलता (1890
ई., भर्तृहरि के श्रृंगार शतक के दोहों का अनुवाद), श्री महिम्न स्त्रोत्र (1891 ई.),
गंगालहरी (1891 ई., रत्नाकर की रचना का सवैयों में अनुवाद), ऋतु तरंगिणी (1891 ई.,
कालिदास के ऋतुसंहार का छायानुवाद), सोहागरात (बाइरन के ब्राइडल नाइट का छायानुवाद),
कुमारसंभवसार (1902 ई., कालिदास के कुमारसंभव के प्रथम पांच सर्गों का सारांश)
गद्य और पद्य
का पदविन्यास एक ही प्रकार का होना चाहिए।౼वर्ड्स्वर्थ
नागरी तेरी
दशा, अयोध्या विलाप, सरगौ नरक ठिकाना नाहिं (आल्हा छन्द में रचित कल्लू अल्हैत
संबंधी रचना),
खंड-काव्य का
लघु संस्करण : सूत पंचाशिका, द्रौपदी-वचन-वाणावली, जंबूकी न्याय, टेसू की टांग
वर्णनात्मक
प्रबंध : भारत दुर्भिक्ष, समाचारपत्र सम्पादक स्तवः, गर्दभ काव्य, कुमुद सुन्दरी
मुक्क रचनाएँ : देवी स्तुति
शतक, कविता कलाप, काव्य मंजूषा, सुमन, द्विवेदी काव्यमाला
महावीरप्रसाद
द्विवेदी की काव्य-पंक्तियाँ
श्रीयुक्त
नागरि निहारी दशा तिहारी
होवै विषाद मन माहिं अतीव भारी
इसीलिए हे
भवभूति भाविते ,
अभी यहाँ हे कविते, न आ, न आ।
सुरम्यरूपे ,
रसराशि रंजिते,
विचित्र
वर्णाभरणे, कहाँ गई ?
अलौकिकानन्दविधायिनी
महा
कवीन्द्रकाते, कविते, अहो कहाँ ?
तुम्हीं
अन्नदाता भारत के बैलराज, महाराज।
बिना तुम्हारे
हो जाते हम दाना-दाना को मोहताज।
अयोध्यासिंह उपाध्याय
हरिऔध (1865-1946 ई.)
उपाधियाँ : साहित्यरत्न,
साहित्यवाचस्पति, कवि सम्राट्
उपनाम : निजामाबाद
(आज़मगढ़) के कवि के फहनाम हर सुमेर के अनुकरण पर अपना नाम हरिऔध रखा।
प्रियप्रवास खड़ीबोली
का प्रथम महाकाव्य, खड़ीबोली के प्रथम महाकवि ,
काव्य-ग्रंथ :
रसिक रहस्य (1899 ई.), प्रेमाम्बुवारिधि (1900 ई.), प्रेम प्रपंच (1900 ई.), प्रेमाम्बुप्रश्रवण (1901 ई.), प्रेमाम्बुप्रवाह (1901 ई.), प्रेम
पुष्पहार (1904 ई.), उद्बोधन (1906 ई.),
काव्योपवन (1909 ई.), कर्मवीर (1916 ई.),
ऋतुमुकुर (1917 ई.), चोखे चौपदे (1924 ई.), चुभते चौपदे (1924 ई.), पद्य प्रसून
(1925 ई.), पद्य प्रमोद (1927 ई.), बोलचाल
(1928 ई.), रसकलश (1931 ई.), फूल-पत्ते (1935 ई.), कल्पलता (1937 ई.), ग्राम-गीत
(1938 ई.), बालकवितावली (1939 ई.), परिऔध
सतसई (1940 ई.), मरम स्पर्श (1956 ई.)
ब्रजभाषा-काव्य : प्रेमाम्बुवारिधि
(1900 ई.), प्रेमाम्बुप्रवाह (1901 ई.), रसकलश (1931 ई., नायिकाभेद संसंधी
रचना)
प्रबन्धकाव्य :
प्रियप्रवास (1914 ई., 17 सर्गों में श्रीकृष्ण की जीवन-लीला), पारिजात (1936
ई., 15 सर्गों में ) और वैदेही वनवास (1940 ई., 18 सर्गों में राम के द्वारा सीता
के निर्वासन की कथा वर्णित)।
हरिऔध की
काव्य-पंक्तियाँ
पीर उठे हियरो
हमारी टूक टूक होत,
ध्याइ प्राणनाथ जो कसक निज खोती ना।౼ प्रेमाम्बुप्रवाह
रूपोद्यान
प्रफुल्लप्राय कलिका राकेन्दुबिम्बाना
तन्वंगी
कलहासिनी सुरसिका क्ड़ाकलापुत्तली।।
शोभावारिधि की
अमूल्य मणि सी लावण्यलीलामयी।
श्रीराधा मृदुभाषिणी मृगदृगी माधुर्यसन्मर्ति थी।౼ प्रियप्रवास से
जी से प्यारा
जगत हित और लोक सेवा जिसे है
प्यारा सच्चा अवनितल में आत्मा त्यागी वही है।౼प्रियप्रवास से
प्यारी आशा
प्रिय मिलन की नित्य है दूर होती
कैसे ऐसे कठिन पथ का पांथ मैं हो रहा हूँ।౼प्रियप्रवास से
जनक नन्दिनी
ने दृग से आते आँसू को रोककर कहा।
प्राणनाथ सब
तो सह लूँगी क्यों जाएगा विरह सहा।।
सदा आपका
चन्द्रानन अवलोके ही मैं जीती हूँ
रूप-माधुरी-सुधा
तृषित वन चकौरिका-सम-पीती हूँ।।౼वैदेही वनवास
से
कथन
मैंने
श्रीकृष्णचन्द्र को इस ग्रंथ में एक महापुरुष की भांति अंकित किया है, ब्रह्म करके
नहीं।౼प्रियप्रवास की भूमिका से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें