शनिवार, 2 मार्च 2019

एक टोकरी-भर मिट्टी (माधवराव सप्रे) : Hindi Sahitya Vimarsh


एक टोकरी-भर मिट्टी (माधवराव सप्रे) : Hindi Sahitya Vimarsh   

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अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास

माधवराव सप्रे (19 जून, 1871-26 अप्रैल 1926 ई., पथरिया ग्राम, दमोह ज़िला, मध्य प्रदेश, अब छत्तीसगढ़)
अप्रैल 1901 ई. में 'छत्तीसगढ़ मित्र' में प्रकाशित पं. माधवराव की कहानी 'टोकरी भर मिट्टी' को हिन्दी की पहली मौलिक कहानी होने का गौरव प्राप्त है। इस कहानी में सामाजिक अन्याय का विरोध किया गया है।
यह कहानी अमीरी और ग़रीबी के वैमनस्य पर आधारित है। इसमें ज़मींदार समाज के शोषक वर्ग का प्रतीक है और विधवा वृद्धा शोषित वर्ग का।
विधवा की मार्मिक बातों से ज़मींदार को अपनी ग़लती पर पछतावा होता है और वह क्षमा मांगते हुए उसे उसकी झोपडी लौटा देते हैं। इस प्रकार इस कहानी में यह संदेश दिया गया है कि कभी भी घमंड या गर्व नहीं करना चाहिए।

NTA/NET/JRF के पाठ्यक्रम में यह कहानी शामिल है। इसलिए परीक्षार्थियों के लाभार्थ यहाँ प्रस्तुत है—

किसी श्रीमान् ज़मींदार के महल के पास एक ग़रीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। ज़मींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने की इच्‍छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई ज़माने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्‍या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धाकाल में एकमात्र आधार थी। जब उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती तो मारे दु:ख के फूट-फूट रोने लगती थी। और जबसे उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्‍छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी। उस झोंपड़ी में उसका मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्‍न निष्‍फल हुए, तब वे अपनी ज़मींदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्‍होंने अदालत से झोंपड़ी पर अपना क़ब्‍ज़ा करा लिया और विधवा को वहाँ से निकाल दिया। बिचारी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी।
एक दिन श्रीमान् उस झोंपड़ी के आसपास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि वह विधवा हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँची। श्रीमान् ने उसको देखते ही अपने नौकरों से कहा कि उसे यहाँ से हटा दो। पर वह गिड़गिड़ाकर बोली, ''महाराज, अब तो यह झोंपड़ी तुम्‍हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज क्षमा करें तो एक विनती है।'' ज़मींदार साहब के सिर हिलाने पर उसने कहा, ''जब से यह झोंपड़ी छूटी है, तब से मेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत-कुछ समझाया पर वह एक नहीं मानती। यही कहा करती है कि अपने घर चल। वहीं रोटी खाऊँगी। अब मैंने यह सोचा कि इस झोंपड़ी में से एक टोकरी-भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्‍हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले आऊँ!'' श्रीमान् ने आज्ञा दे दी।
विधवा झोंपड़ी के भीतर गई। वहाँ जाते ही उसे पुरानी बातों का स्‍मरण हुआ और उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। अपने आंतरिक दु:ख को किसी तरह सँभालकर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली और हाथ से उठाकर बाहर ले आई। फिर हाथ जोड़कर श्रीमान् से प्रार्थना करने लगी, ''महाराज, कृपा करके इस टोकरी को ज़रा हाथ लगाइए जिससे कि मैं उसे अपने सिर पर धर लूँ।'' ज़मींदार साहब पहले तो बहुत नाराज़ हुए। पर जब वह बार-बार हाथ जोड़ने लगी और पैरों पर गिरने लगी तो उनके मन में कुछ दया आ गई। किसी नौकर से न कहकर आप ही स्‍वयं टोकरी उठाने आगे बढ़े। ज्‍योंही टोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठाने लगे त्‍योंही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। फिर तो उन्‍होंने अपनी सब ताक़त लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, पर जिस स्‍थान पर टोकरी रखी थी, वहाँ से वह एक हाथ भी ऊँची न हुई। वह लज्जित होकर कहने लगे, ''नहीं, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।''
यह सुनकर विधवा ने कहा, ''महाराज, नाराज न हों, आपसे एक टोकरी-भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोंपड़ी में तो हज़ारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी है। उसका भार आप जन्‍म-भर क्‍योंकर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए।"
ज़मींदार साहब धन-मद से गर्वित हो अपना कर्तव्‍य भूल गए थे, पर विधवा के उपर्युक्‍त वचन सुनते ही उनकी आँखें खुल गयीं। कृतकर्म का पश्‍चाताप कर उन्‍होंने विधवा से क्षमा माँगी और उसकी झोंपड़ी वापिस दे दी।
(छत्तीसगढ़ मित्र, अप्रैल 1901 ई.)

रचनाएँ
मौलिक
• माधवराव सप्रे की कहानियाँ (1982 ई., सं. देबीप्रसाद वर्मा, हिंदुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद)
• माधवराव सप्रे : प्रतिनिधि संकलन (सं. मैनेजर पांडेय, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, नयी दिल्ली)
स्वदेशी आंदोलन और बॉयकाट
यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें
हमारे सामाजिक ह्रास के कुछ कारणों का विचार
हिन्दी ग्रंथ माला (1906 ई.)
अनूदित
हिंदी दासबोध (समर्थ रामदास की मराठी में लिखी गई प्रसिद्ध)
• श्रीमद्भगवद्गीतारहस्य (मूल लेखक- बाल गंगाधर तिलक; नारायण पेठ, तिलक मंदिर, पुणे से, प्रथम संस्करण 1917 ई.)
• महाभारत मीमांसा (मूल लेखक- चिंतामणि विनायक वैद्य; लक्ष्मीनारायण प्रेस, बनारस से प्रथम संस्करण 1920 ई., हरियाणा साहित्य अकादमी)
महाभारत मीमांसा (महाभारत के उपसंहार : चिंतामणी विनायक वैद्य द्वारा मराठी में लिखी गई प्रसिद्ध पुस्तक, प्रथम संस्करण 1920 ई.)
संपादन
• 1907 ई. हिंदी केसरी (साप्ताहिक समाचार पत्र)
• 1900 ई. छत्तीसगढ़ मित्र (मासिक पत्रिका)
सप्रे जी के कथन
"मैं महाराष्ट्री हूं पर हिंदी के विषय में मु्झे उतना ही अभिमान है जितना कि किसी हिंदीभाषी को हो सकता है।"
"जिस शिक्षा से स्वाभिमान की वृत्ति जागृत नहीं होती वह शिक्षा किसी काम की नहीं है"
"विदेशी भाषा में शिक्षा होने के कारण हमारी बुद्धि भी विदेशी हो गई है।"


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