शनिवार, 9 मार्च 2019

तीसरी क़सम उर्फ़ मारे गए ग़ुलफ़ाम (फणीश्वरनाथ 'रेणु') : Hindi Sahitya Vimarsh

तीसरी क़सम उर्फ़ मारे गए ग़ुलफ़ाम (फणीश्वरनाथ 'रेणु') Hindi Sahitya Vimarsh

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अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास

फणीश्वरनाथ 'रेणु' (4 मार्च 1921- 11 अप्रैल 1977 ई.,  औराही हिंगनाअररियाबिहार)
कहानियाँ
 एक आदिम रात्रि की महक
 पुरानी कहानी : नया पाठ
 रसप्रिया
 नैना जोगिन
 लाल पान की बेग़म
 तीसरी क़सम उर्फ़ मारे गये ग़ुलफ़ाम
 ठेस
प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास : मैला आँचलपरती परिकथाजुलूसदीर्घतपाकितने चौराहेपलटू बाबू रोड
कहानी-संग्रह : एक आदिम रात्रि की महकठुमरीअगिनखोरअच्छे आदमी
संस्मरण : ऋणजल-धनजलश्रुत अश्रुत पूर्वेआत्म परिचयवनतुलसी की गंधसमय की शिला पर,
रिपोर्ताज : नेपाली क्रांतिकथा
ग्रंथावली : फणीश्वरनाथ रेणु ग्रंथावली
तीसरी क़सम उर्फ़ मारे गए ग़ुलफ़ाम
फणीश्वरनाथ 'रेणु'
पात्र : हिरामन (मीता), महाजन, मुनीम, दारोग़ा साहबसिपाहीलैलाहीराबाई (हीरा)महुआ घटवारिनधुन्नीरामपलटदासलहसनवाँलालमोहरनेपाली दरबान।

हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है...
पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकता है हिरामन। बैलगाड़ी। सीमा के उस पारमोरंग राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका है। कंट्रोल के ज़माने में चोरबाज़ारी का माल इस पार से उस पार पहुँचाया है। लेकिन कभी तो ऐसी गुदगुदी नहीं लगी पीठ में!
कंट्रोल का ज़माना! हिरामन कभी भूल सकता है उस ज़माने को! एक बार चार खेप सीमेंट और कपड़े की गाँठों से भरी गाड़ीजोगबानी में विराटनगर पहुँचने के बाद हिरामन का कलेजा पोख्ता हो गया था। फारबिसगंज का हर चोर-व्यापारी उसको पक्का गाड़ीवान मानता। उसके बैलों की बड़ाई बड़ी गद्दी के बड़े सेठ जी ख़ुद करतेअपनी भाषा में।
गाड़ी पकड़ी गई पाँचवी बारसीमा के इस पार तराई में।
महाजन का मुनीम उसी की गाड़ी पर गाँठों के बीच चुक्की-मुक्की लगा कर छिपा हुआ था। दारोग़ा साहब की डेढ़ हाथ लंबी चोरबत्ती की रोशनी कितनी तेज़ होती हैहिरामन जानता है। एक घंटे के लिए आदमी अंधा हो जाता हैएक छटक भी पड़ जाए आँखों पर! रोशनी के साथ कड़कती हुई आवाज़ 'ऐ-य! गाड़ी रोको! सालेगोली मार देंगे?'
बीसों गाड़ियाँ एक साथ कचकचा कर रुक गईं। हिरामन ने पहले ही कहा था, 'यह बीस विषावेगा!दारोग़ा साहब उसकी गाड़ी में दुबके हुए मुनीम जी पर रोशनी डाल कर पिशाची हँसी हँसे 'हा-हा-हा! मुनीम जी-ई-ई-ई! ही-ही-ही! ऐ-यसाला गाड़ीवानमुँह क्या देखता है रे-ए-ए! कंबल हटाओ इस बोरे के मुँह पर से!हाथ की छोटी लाठी से मुनीम जी के पेट में खोंचा मारते हुए कहा था, 'इस बोरे को! स-स्साला!'
बहुत पुरानी अखज-अदावत होगी दारोग़ा साहब और मुनीम जी में। नहीं तो उतना रुपया क़बूलने पर भी पुलिस-दारोग़ा का मन न डोले भला! चार हज़ार तो गाड़ी पर बैठा ही दे रहा है। लाठी से दूसरी बार खोंचा मारा दारोग़ा ने। 'पाँच हज़ार!फिर खोंचा 'उतरो पहले... '
मुनीम को गाड़ी से नीचे उतार कर दारोग़ा ने उसकी आँखों पर रोशनी डाल दी। फिर दो सिपाहियों के साथ सड़क से बीस-पच्चीस रस्सी दूर झाड़ी के पास ले गए। गाड़ीवान और गाड़ियों पर पाँच-पाँच बंदूक़वाले सिपाहियों का पहरा! हिरामन समझ गयाइस बार निस्तार नहीं। जेलहिरामन को जेल का डर नहीं। लेकिन उसके बैलन जाने कितने दिनों तक बिना चारा-पानी के सरकारी फाटक में पड़े रहेंगे  भूखे-प्यासे। फिर नीलाम हो जाएँगे। भैया और भौजी को वह मुँह नहीं दिखा सकेगा कभी। ...नीलाम की बोली उसके कानों के पास गूँज गई  एक-दो-तीन! दारोग़ा और मुनीम में बात पट नहीं रही थी शायद।
हिरामन की गाड़ी के पास तैनात सिपाही ने अपनी भाषा में दूसरे सिपाही से धीमी आवाज़ में पूछा, 'का होमामला गोल होखी का?' फिर खैनी-तंबाकू देने के बहाने उस सिपाही के पास चला गया।

एक-दो-तीन! तीन-चार गाड़ियों की आड़। हिरामन ने फ़ैसला कर लिया। उसने धीरे-से अपने बैलों के गले की रस्सियाँ खोल लीं। गाड़ी पर बैठे-बैठे दोनों को जुड़वाँ बाँध दिया। बैल समझ गए उन्हें क्या करना है। हिरामन उतराजुती हुई गाड़ी में बाँस की टिकटी लगा कर बैलों के कंधों को बेलाग किया। दोनों के कानों के पास गुदगुदी लगा दी और मन-ही-मन बोला, 'चलो भैयनजान बचेगी तो ऐसी-ऐसी सग्गड़ गाड़ी बहुत मिलेगी।' ...एक-दो-तीन! नौ-दो-ग्यारह! ...
गाड़ियों की आड़ में सड़क के किनारे दूर तक घनी झाड़ी फैली हुई थी। दम साध कर तीनों प्राणियों ने झाड़ी को पार किया  बेखटकबेआहट! फिर एक लेदो ले  दुलकी चाल! दोनों बैल सीना तान कर फिर तराई के घने जंगलों में घुस गए। राह सूँघतेनदी-नाला पार करते हुए भागे पूँछ उठा कर। पीछे-पीछे हिरामन। रात-भर भागते रहे थे तीनों जन।
घर पहुँच कर दो दिन तक बेसुध पड़ा रहा हिरामन। होश में आते ही उसने कान पकड़ कर क़सम खाई थी  अब कभी ऐसी चीज़ों की लदनी नहीं लादेंगे। चोरबाज़ारी का मालतौबातौबा!... पता नहीं मुनीम जी का क्या हुआ! भगवान जाने उसकी सग्गड़ गाड़ी का क्या हुआ! असली इस्पात लोहे की धुरी थी। दोनों पहिए तो नहींएक पहिया एकदम नया था। गाड़ी में रंगीन डोरियों के फुँदने बड़े जतन से गूँथे गए थे।
दो क़समें खाई हैं उसने। एक चोरबाज़ारी का माल नहीं लादेंगे। दूसरी  बाँस। अपने हर भाड़ेदार से वह पहले ही पूछ लेता है, 'चोरी- चमारीवाली चीज़ तो नहींऔरबाँसबाँस लादने के लिए पचास रुपये भी दे कोईहिरामन की गाड़ी नहीं मिलेगी। दूसरे की गाड़ी देखे।
बाँस लदी हुई गाड़ी! गाड़ी से चार हाथ आगे बाँस का अगुआ निकला रहता है और पीछे की ओर चार हाथ पिछुआ! क़ाबू के बाहर रहती है गाड़ी हमेशा। सो बेक़ाबूवाली लदनी और खरैहिया। शहरवाली बात! तिस पर बाँस का अगुआ पकड़ कर चलनेवाला भाड़ेदार का महाभकुआ नौकरलड़की-स्कूल की ओर देखने लगा। बसमोड़ पर घोड़ागाड़ी से टक्कर हो गई। जब तक हिरामन बैलों की रस्सी खींचेतब तक घोड़ागाड़ी की छतरी बाँस के अगुआ में फँस गई। घोड़ा-गाड़ीवाले ने तड़ातड़ चाबुक मारते हुए गाली दी थी! बाँस की लदनी ही नहींहिरामन ने खरैहिया शहर की लदनी भी छोड़ दी। और जब फारबिसगंज से मोरंग का भाड़ा ढोना शुरू किया तो गाड़ी ही पार! कई वर्षों तक हिरामन ने बैलों को आधीदारी पर जोता। आधा भाड़ा गाड़ीवाले का और आधा बैलवाले का। हिस्स! गाड़ीवानी करो मुफ़्त! आधीदारी की कमाई से बैलों के ही पेट नहीं भरते। पिछले साल ही उसने अपनी गाड़ी बनवाई है।
देवी मैया भला करें उस सरकस-कंपनी के बाघ का। पिछले साल इसी मेले में बाघगाड़ी को ढोनेवाले दोनों घोड़े मर गए। चंपानगर से फारबिसगंज मेला आने के समय सरकस-कंपनी के मैनेजर ने गाड़ीवान-पट्टी में ऐलान करके कहा, 'सौ रुपया भाड़ा मिलेगा!एक-दो गाड़ीवान राज़ी हुए। लेकिनउनके बैल बाघगाड़ी से दस हाथ दूर ही डर से डिकरने लगे  बाँ-आँ! रस्सी तुड़ा कर भागे। हिरामन ने अपने बैलों की पीठ सहलाते हुए कहा, 'देखो भैयनऐसा मौक़ा फिर हाथ न आएगा। यही है मौक़ा अपनी गाड़ी बनवाने का। नहीं तो फिर आधेदारी। अरे पिंजड़े में बंद बाघ का क्या डरमोरंग की तराई में दहाड़ते हुइ बाघों को देख चुके हो। फिर पीठ पर मैं तो हूँ।...'
गाड़ीवानों के दल में तालियाँ पटपटा उठीं थीं एक साथ। सभी की लाज रख ली हिरामन के बैलों ने। हुमक कर आगे बढ़ गए और बाघगाड़ी में जुट गए  एक-एक करके। सिर्फ़ दाहिने बैल ने जुतने के बाद ढेर-सा पेशाब किया। हिरामन ने दो दिन तक नाक से कपड़े की पट्टी नहीं खोली थी। बड़ी गद्दी के बडे सेठ जी की तरह नकबंधन लगाए बिना बघाइन गंध बरदास्त नहीं कर सकता कोई।
बाघगाड़ी की गाड़ीवानी की है हिरामन ने। कभी ऐसी गुदगुदी नहीं लगी पीठ में। आज रह-रह कर उसकी गाड़ी में चंपा का फूल महक उठता है। पीठ में गुदगुदी लगने पर वह अँगोछे से पीठ झाड़ लेता है।
हिरामन को लगता हैदो वर्ष से चंपानगर मेले की भगवती मैया उस पर प्रसन्न है। पिछले साल बाघगाड़ी जुट गई। नक़द एक सौ रुपये भाड़े के अलावा बुतादचाह-बिस्कुट और रास्ते-भर बंदर-भालू और जोकर का तमाशा देखा सो फोकट में!
औरइस बार यह जनानी सवारी। औरत है या चंपा का फूल! जब से गाड़ी मह-मह महक रही है।
कच्ची सड़क के एक छोटे-से खड्ड में गाड़ी का दाहिना पहिया बेमौक़े हिचकोला खा गया। हिरामन की गाड़ी से एक हल्की 'सिसकी आवाज़ आई। हिरामन ने दाहिने बैल को दुआली से पीटते हुए कहा, 'साला! क्या समझता हैबोरे की लदनी है क्या?'
'अहा! मारो मत!'
अनदेखी औरत की आवाज़ ने हिरामन को अचरज में डाल दिया। बच्चों की बोली जैसी महीनफेनूगिलासी बोली!
मथुरामोहन नौटंकी कंपनी में लैला बननेवाली हीराबाई का नाम किसने नहीं सुना होगा भला! लेकिन हिरामन की बात निराली है! उसने सात साल तक लगातार मेलों की लदनी लादी हैकभी नौटंकी-थियेटर या बायस्कोप सिनेमा नहीं देखा। लैला या हीराबाई का नाम भी उसने नहीं सुना कभी। देखने की क्या बात! सो मेला टूटने के पंद्रह दिन पहले आधी रात की बेला में काली ओढ़नी में लिपटी औरत को देख कर उसके मन में खटका अवश्य लगा था। बक्सा ढोनेवाले नौकर से गाड़ी-भाड़ा में मोल-मोलाई करने की कोशिश की तो ओढ़नीवाली ने सिर हिला कर मना कर दिया। हिरामन ने गाड़ी जोतते हुए नौकर से पूछा, 'क्यों भैयाकोई चोरी चमारी का माल-वाल तो नहीं?' हिरामन को फिर अचरज हुआ। बक्सा ढोनेवाले आदमी ने हाथ के इशारे से गाड़ी हाँकने को कहा और अँधेरे में ग़ायब हो गया। हिरामन को मेले में तंबाकू बेचनेवाली बूढ़ी की काली साड़ी की याद आई थी।
ऐसे में कोई क्या गाड़ी हाँके!
एक तो पीठ में गुदगुदी लग रही है। दूसरे रह-रह कर चंपा का फूल खिल जाता है उसकी गाड़ी में। बैलों को डाँटो तो 'इस-बिसकरने लगती है उसकी सवारी। उसकी सवारी! औरत अकेलीतंबाकू बेचनेवाली बूढ़ी नहीं! आवाज़ सुनने के बाद वह बार-बार मुड़ कर टप्पर में एक नज़र डाल देता हैअँगोछे से पीठ झाड़ता है। ...भगवान जाने क्या लिखा है इस बार उसकी क़िस्मत में! गाड़ी जब पूरब की ओर मुड़ीएक टुकड़ा चाँदनी उसकी गाड़ी में समा गई। सवारी की नाक पर एक जुगनू जगमगा उठा। हिरामन को सबकुछ रहस्यमय  अजगुत-अजगुत  लग रहा है। सामने चंपानगर से सिंधिया गाँव तक फैला हुआ मैदान... कहीं डाकिन-पिशाचिन तो नहीं?
हिरामन की सवारी ने करवट ली। चाँदनी पूरे मुखड़े पर पड़ी तो हिरामन चीखते-चीखते रुक गया  अरे बाप! ई तो परी है!
परी की आँखें खुल गईं। हिरामन ने सामने सड़क की ओर मुँह कर लिया और बैलों को टिटकारी दी। वह जीभ को तालू से सटा कर टि-टि-टि-टि आवाज़ निकालता है। हिरामन की जीभ न जाने कब से सूख कर लकड़ी-जैसी हो गई थी!
'भैयातुम्हारा नाम क्या है?'
हू-ब-हू फेनूगिलास! ...हिरामन के रोम-रोम बज उठे। मुँह से बोली नहीं निकली। उसके दोनों बैल भी कान खड़े करके इस बोली को परखते हैं।
'मेरा नाम! ...नाम मेरा है हिरामन!'
उसकी सवारी मुस्कराती है। ...मुस्कराहट में ख़ुशबू है।
'तब तो मीता कहूँगीभैया नहीं।  मेरा नाम भी हीरा है।'
'इस्स!हिरामन को परतीत नहीं, 'मर्द और औरत के नाम में फ़र्क़ होता है।'
'हाँ जीमेरा नाम भी हीराबाई है।'
कहाँ हिरामन और कहाँ हीराबाईबहुत फ़र्क़ है!
हिरामन ने अपने बैलों को झिड़की दी  'कान चुनिया कर गप सुनने से ही तीस कोस मंज़िल कटेगी क्याइस बाएँ नाटे के पेट में शैतानी भरी है।हिरामन ने बाएँ बैल को दुआली की हल्की झड़प दी।
'मारो मतधीरे धीरे चलने दो। जल्दी क्या है!'
हिरामन के सामने सवाल उपस्थित हुआवह क्या कह कर 'गपकरे हीराबाई से? 'तोहेकहे या 'अहाँ'? उसकी भाषा में बड़ों को 'अहाँअर्थात 'आपकह कर संबोधित किया जाता हैकचराही बोली में दो-चार सवाल-जवाब चल सकता हैदिल-खोल गप तो गाँव की बोली में ही की जा सकती है किसी से।
आसिन-कातिक के भोर में छा जानेवाले कुहासे से हिरामन को पुरानी चिढ़ है। बहुत बार वह सड़क भूल कर भटक चुका है। किंतु आज के भोर के इस घने कुहासे में भी वह मगन है। नदी के किनारे धन-खेतों से फूले हुए धान के पौधों की पवनिया गंध आती है। पर्व-पावन के दिन गाँव में ऐसी ही सुगंध फैली रहती है। उसकी गाड़ी में फिर चंपा का फूल खिला। उस फूल में एक परी बैठी है। ...जै भगवती।
हिरामन ने आँख की कनखियों से देखाउसकी सवारी ...मीता ...हीराबाई की आँखें गुजुर-गुजुर उसको हेर रही हैं। हिरामन के मन में कोई अजानी रागिनी बज उठी। सारी देह सिरसिरा रही है। बोला, 'बैल को मारते हैं तो आपको बहुत बुरा लगता है?'
हीराबाई ने परख लियाहिरामन सचमुच हीरा है।
चालीस साल का हट्टा-कट्टाकाला-कलूटादेहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपने बैलों के सिवाय दुनिया की किसी और बात में विशेष दिलचस्पी नहीं लेता। घर में बड़ा भाई हैखेती करता है। बाल-बच्चेवाला आदमी है। हिरामन भाई से बढ़ कर भाभी की इज़्ज़त करता है। भाभी से डरता भी है। हिरामन की भी शादी हुई थीबचपन में ही गौने के पहले ही दुलहिन मर गई। हिरामन को अपनी दुलहिन का चेहरा याद नहीं। ...दूसरी शादीदूसरी शादी न करने के अनेक कारण हैं। भाभी की ज़िदकुमारी लड़की से ही हिरामन की शादी करवाएगी। कुमारी का मतलब हुआ पाँच-सात साल की लड़की। कौन मानता है सरधा-क़ानूनकोई लड़कीवाला दोब्याहू को अपनी लड़की गरज में पड़ने पर ही दे सकता है। भाभी उसकी तीन-सत्त करके बैठी हैसो बैठी है। भाभी के आगे भैया की भी नहीं चलती! ...अब हिरामन ने तय कर लिया हैशादी नहीं करेगा। कौन बलाय मोल लेने जाए! ...ब्याह करके फिर गाड़ीवानी क्या करेगा कोई! और सब कुछ छूट जाएगाड़ीवानी नहीं छोड़ सकता हिरामन।
हीराबाई ने हिरामन के जैसा निश्छल आदमी बहुत कम देखा है। पूछा, 'आपका घर कौन जिल्ला में पड़ता है?' कानपुर नाम सुनते ही जो उसकी हँसी छूटीतो बैल भड़क उठे। हिरामन हँसते समय सिर नीचा कर लेता है। हँसी बंद होने पर उसने कहा, 'वाह रे कानपुर! तब तो नाकपुर भी होगा? 'और जब हीराबाई ने कहा कि नाकपुर भी हैतो वह हँसते-हँसते दुहरा हो गया।
'वाह रे दुनिया! क्या-क्या नाम होता है! कानपुरनाकपुर!हिरामन ने हीराबाई के कान के फूल को ग़ौर से देखा। नाक की नकछवि के नग देख कर सिहर उठा लहू की बूँद!
हिरामन ने हीराबई का नाम नहीं सुना कभी। नौटंकी कंपनी की औरत को वह बाईजी नहीं समझता है। ...कंपनी में काम करनेवाली औरतों को वह देख चुका है। सरकस कंपनी की मालकिनअपनी दोनों जवान बेटियों के साथ बाघगाड़ी के पास आती थीबाघ को चारा-पानी देती थीप्यार भी करती थी ख़ूब। हिरामन के बैलों को भी डबलरोटी-बिस्कुट खिलाया था बड़ी बेटी ने।
हिरामन होशियार है। कुहासा छँटते ही अपनी चादर से टप्पर में परदा कर दिया 'बस दो घंटा! उसके बाद रास्ता चलना मुश्किल है। कातिक की सुबह की धूल आप बर्दास्त न कर सकिएगा। कजरी नदी के किनारे तेगछिया के पास गाड़ी लगा देंगे। दुपहरिया काट कर...।'
सामने से आती हुई गाड़ी को दूर से ही देख कर वह सतर्क हो गया। लीक और बैलों पर ध्यान लगा कर बैठ गया। राह काटते हुए गाड़ीवान ने पूछा, 'मेला टूट रहा है क्या भाई?'
हिरामन ने जवाब दियावह मेले की बात नहीं जानता। उसकी गाड़ी पर 'बिदागी' (नैहर या ससुराल जाती हुई लड़की) है। न जाने किस गाँव का नाम बता दिया हिरामन ने।
'छतापुर-पचीरा कहाँ है?'
'कहीं होयह ले कर आप क्या करिएगा?' हिरामन अपनी चतुराई पर हँसा। परदा डाल देने पर भी पीठ में गुदगुदी लगती है।
हिरामन परदे के छेद से देखता है। हीराबाई एक दियासलाई की डिब्बी के बराबर आईने में अपने दाँत देख रही है। ...मदनपुर मेले में एक बार बैलों को नन्हीं-चित्ती कौड़ियों की माला ख़रीद दी थी। हिरामन नेछोटी-छोटीनन्हीं-नन्हीं कौड़ियों की पाँत।
तेगछिया के तीनों पेड़ दूर से ही दिखलाई पड़ते हैं। हिरामन ने परदे को ज़रा सरकाते हुए कहा, 'देखिएयही है तेगछिया। दो पेड़ जटामासी बड़ है और एक उस फूल का क्या नाम हैआपके कुरते पर जैसा फूल छपा हुआ हैवैसा हीख़ूब महकता हैदो कोस दूर तक गंध जाती हैउस फूल को खमीरा तंबाकू में डाल कर पीते भी हैं लोग।'
'और उस अमराई की आड़ से कई मकान दिखाई पड़ते हैंवहाँ कोई गाँव है या मंदिर?'
हिरामन ने बीड़ी सुलगाने के पहले पूछा, 'बीड़ी पीएँआपको गंध तो नहीं लगेगी? ...वही है नामलगर ड्योढ़ी। जिस राजा के मेले से हम लोग आ रहे हैंउसी का दियाद-गोतिया है। ...जा रे ज़माना!'
हिरामन ने जा रे ज़माना कह कर बात को चाशनी में डाल दिया। हीराबाई ने टप्पर के परदे को तिरछे खोंस दिया। हीराबाई की दंतपंक्ति।
'कौन ज़माना?' ठुड्डी पर हाथ रख कर साग्रह बोली।
'नामलगर ड्योढ़ी का ज़माना! क्या था और क्या-से-क्या हो गया!'
हिरामन गप रसाने का भेद जानता है। हीराबाई बोली, 'तुमने देखा था वह ज़माना?'
'देखा नहींसुना है। राज कैसे गयाबड़ी हैफवाली कहानी है। सुनते हैंघर में देवता ने जन्म ले लिया। कहिए भलादेवता आख़िर देवता है। है या नहींइंदरासन छोड़ कर मिरतूभुवन में जन्म ले ले तो उसका तेज़ कैसे सम्हाल सकता है कोई! सूरजमुखी फूल की तरह माथे के पास तेज़ खिला रहता। लेकिन नज़र का फेरकिसी ने नहीं पहचाना। एक बार उपलैन में लाट साहब मय लाटनी केहवागाड़ी से आए थे। लाट ने भी नहींपहचाना आख़िर लटनी ने। सुरजमुखी तेज देखते ही बोल उठी  ए मैन राजा साहबसुनोयह आदमी का बच्चा नहीं हैदेवता है।'
हिरामन ने लाटनी की बोली की नक़ल उतारते समय ख़ूब डैम-फैट-लैट किया। हीराबाई दिल खोल कर हँसी। हँसते समय उसकी सारी देह दुलकती है।
हीराबाई ने अपनी ओढ़नी ठीक कर ली। तब हिरामन को लगा कि... लगा कि...
'तबउसके बाद क्या हुआ मीता?'
'इस्स! कथा सुनने का बड़ा सौक है आपको? ...लेकिनकाला आदमीराजा क्या महाराजा भी हो जाएरहेगा काला आदमी ही। साहेब के जैसे अक्किल कहाँ से पाएगा! हँस कर बात उड़ा दी सभी ने। तब रानी को बार-बार सपना देने लगा देवता! सेवा नहीं कर सकते तो जाने दोनहींरहेंगे तुम्हारे यहाँ। इसके बाद देवता का खेल शुरू हुआ। सबसे पहले दोनों दंतार हाथी मरेफिर घोड़ाफिर पटपटांग...।'
'पटपटांग क्या है?'
हिरामन का मन पल-पल में बदल रहा है। मन में सतरंगा छाता धीरे-धीरे खिल रहा हैउसको लगता है। ...उसकी गाड़ी पर देवकुल की औरत सवार है। देवता आख़िर देवता है!
'पटपटांग! धन-दौलतमाल-मवेसी सब साफ! देवता इंदरासन चला गया।'
हीराबाई ने ओझल होते हुए मंदिर के कँगूरे की ओर देख कर लंबी साँस ली।
'लेकिन देवता ने जाते-जाते कहाइस राज में कभी एक छोड़ कर दो बेटा नहीं होगा। धन हम अपने साथ ले जा रहे हैंगुन छोड़ जाते हैं। देवता के साथ सभी देव-देवी चले गएसिर्फ़ सरोसती मैया रह गई। उसी का मंदिर है।'
देसी घोड़े पर पाट के बोझ लादे हुए बनियों को आते देख कर हिरामन ने टप्पर के परदे को गिरा दिया। बैलों को ललकार कर बिदेसिया नाच का बंदनागीत गाने लगा 

'जै मैया सरोसतीअरजी करत बानी,
हमरा पर होखू सहाई हे मैयाहमरा पर होखू सहाई!'
घोड़लद्दे बनियों से हिरामन ने हुलस कर पूछा, 'क्या भाव पटुआ ख़रीदते हैं महाजन?'
लँगड़े घोड़ेवाले बनिए ने बटगमनी जवाब दिया, 'नीचे सताइस-अठाइसऊपर तीस। जैसा मालवैसा भाव।'
जवान बनिये ने पूछा, 'मेले का क्या हालचाल हैभाईकौन नौटंकी कंपनी का खेल हो रहा हैरौता कंपनी या मथुरामोहन?'
'मेले का हाल मेलावाला जाने?' हिरामन ने फिर छतापुर-पचीरा का नाम लिया।
सूरज दो बाँस ऊपर आ गया था। हिरामन अपने बैलों से बात करने लगा, 'एक कोस ज़मीन! ज़रा दम बाँध कर चलो। प्यास की बेला हो गई न! याद हैउस बार तेगछिया के पास सरकस कंपनी के जोकर और बंदर नचानेवाला साहब में झगड़ा हो गया था। जोकरवा ठीक बंदर की तरह दाँत किटकिटा कर किक्रियाने लगा थान जाने किस-किस देस-मुलुक के आदमी आते हैं!'
हिरामन ने फिर परदे के छेद से देखाहीराबई एक काग़ज़ के टुकड़े पर आँख गड़ा कर बैठी है। हिरामन का मन आज हल्के सुर में बँधा है। उसको तरह-तरह के गीतों की याद आती है। बीस-पच्चीस साल पहलेबिदेसियाबलवाहीछोकरा-नाचनेवाले एक-से-एक ग़ज़ल खेमटा गाते थे। अब तोभोंपा में भोंपू-भोंपू करके कौन गीत गाते हैं लोग! जा रे ज़माना! छोकरा-नाच के गीत की याद आई हिरामन को 
'सजनवा बैरी हो गय हमारो! सजनवा.....!
अरेचिठिया हो ते सब कोई बाँचेचिठिया हो तो....
हाय! करमवाहोय करमवा....
गाड़ी की बल्ली पर उँगलियों से ताल दे कर गीत को काट दिया हिरामन ने। छोकरा-नाच के मनुवाँ नटुवा का मुँह हीराबाई-जैसा ही था। ...क़हाँ चला गया वह ज़मानाहर महीने गाँव में नाचनेवाले आते थे। हिरामन ने छोकरा-नाच के चलते अपनी भाभी की न जाने कितनी बोली-ठोली सुनी थी। भाई ने घर से निकल जाने को कहा था।
आज हिरामन पर माँ सरोसती सहाय हैंलगता है। हीराबाई बोली, 'वाहकितना बढ़िया गाते हो तुम!'

हिरामन का मुँह लाल हो गया। वह सिर नीचा कर के हँसने लगा।
आज तेगछिया पर रहनेवाले महावीर स्वामी भी सहाय हैं हिरामन पर। तेगछिया के नीचे एक भी गाड़ी नहीं। हमेशा गाड़ी और गाड़ीवानों की भीड़ लगी रहती हैं यहाँ। सिर्फ़ एक साइकिलवाला बैठ कर सुस्ता रहा है। महावीर स्वामी को सुमर कर हिरामन ने गाड़ी रोकी। हीराबाई परदा हटाने लगी। हिरामन ने पहली बार आँखों से बात की हीराबाई से  साइकिलवाला इधर ही टकटकी लगा कर देख रहा है।
बैलों को खोलने के पहले बाँस की टिकटी लगा कर गाड़ी को टिका दिया। फिर साइकिलवाले की ओर बार-बार घूरते हुए पूछा, 'कहाँ जाना हैमेलाकहाँ से आना हो रहा हैबिसनपुर सेबसइतनी ही दूर में थसथसा कर थक गए? — जा रे जवानी!'
साइकिलवाला दुबला-पतला नौजवान मिनमिना कर कुछ बोला और बीड़ी सुलगा कर उठ खड़ा हुआ। हिरामन दुनिया-भर की निगाह से बचा कर रखना चाहता है हीराबाई को। उसने चारों ओर नज़र दौड़ा कर देख लिया  कहीं कोई गाड़ी या घोड़ा नहीं।
कजरी नदी की दुबली-पतली धारा तेगछिया के पास आ कर पूरब की ओर मुड़ गई है। हीराबाई पानी में बैठी हुई भैसों और उनकी पीठ पर बैठे हुए बगुलों को देखती रही।
हिरामन बोला, 'जाइएघाट पर मुँह-हाथ धो आइए!'
हीराबाई गाड़ी से नीचे उतरी। हिरामन का कलेजा धड़क उठा। ...नहींनहीं! पाँव सीधे हैंटेढ़े नहीं। लेकिनतलुवा इतना लाल क्यों हैंहीराबाई घाट की ओर चली गईगाँव की बहू-बेटी की तरह सिर नीचा कर के धीरे-धीरे। कौन कहेगा कि कंपनी की औरत है! ...औरत नहींलड़की। शायद कुमारी ही है।
हिरामन टिकटी पर टिकी गाड़ी पर बैठ गया। उसने टप्पर में झाँक कर देखा। एक बार इधर-उधर देख कर हीराबाई के तकिए पर हाथ रख दिया। फिर तकिए पर केहुनी डाल कर झुक गयाझुकता गया। ख़ुशबू उसकी देह में समा गई। तकिए के गिलाफ़ पर कढ़े फूलों को उँगलियों से छू कर उसने सूँघाहाय रे हाय! इतनी सुगंध! हिरामन को लगाएक साथ पाँच चिलम गाँजा फूँक कर वह उठा है। हीराबाई के छोटे आईने में उसने अपना मुँह देखा। आँखें उसकी इतनी लाल क्यों हैं?
हीराबाई लौट कर आई तो उसने हँस कर कहा, 'अब आप गाड़ी का पहरा दीजिएमैं आता हूँ तुरंत।'
हिरामन ने अपना सफरी झोली से सहेजी हुई गंजी निकाली। गमछा झाड़ कर कंधे पर लिया और हाथ में बालटी लटका कर चला। उसके बैलों ने बारी-बारी से 'हुँक-हुँककरके कुछ कहा। हिरामन ने जाते-जाते उलट कर कहा, 'हाँ,हाँप्यास सभी को लगी है। लौट कर आता हूँ तो घास दूँगाबदमासी मत करो!'
बैलों ने कान हिलाए।
नहा-धो कर कब लौटा हिरामनहीराबाई को नहीं मालूम। कजरी की धारा को देखते-देखते उसकी आँखों में रात की उचटी हुई नींद लौट आई थी। हिरामन पास के गाँव से जलपान के लिए दही-चूड़ा-चीनी ले आया है।
'उठिएनींद तोड़िए! दो मुट्ठी जलपान कर लीजिए!'
हीराबाई आँख खोल कर अचरज में पड़ गई। एक हाथ में मिट्टी के नए बरतन में दहीकेले के पत्ते। दूसरे हाथ में बालटी-भर पानी। आँखों में आत्मीयतापूर्ण अनुरोध!
'इतनी चीज़ें कहाँ से ले आए!'
'इस गाँव का दही नामी है। ...चाह तो फारबिसगंज जा कर ही पाइएगा।'
हिरामन की देह की गुदगुदी मिट गई। हीराबाई ने कहा, 'तुम भी पत्तल बिछाओ। ...क्योंतुम नहीं खाओगे तो समेट कर रख लो अपनी झोली में। मैं भी नहीं खाऊँगी।'
'इस्स!हिरामन लजा कर बोला, 'अच्छी बात! आप खा लीजिए पहले!'
'पहले-पीछे क्यातुम भी बैठो।'
हिरामन का जी जुड़ा गया। हीराबाई ने अपने हाथ से उसका पत्तल बिछा दियापानी छींट दियाचूड़ा निकाल कर दिया। इस्स! धन्न हैधन्न है! हिरामन ने देखाभगवती मैया भोग लगा रही है। लाल होठों पर गोरस का परस! ...पहाड़ी तोते को दूध-भात खाते देखा है?
दिन ढल गया।
टप्पर में सोई हीराबाई और ज़मीन पर दरी बिछा कर सोए हिरामन की नींद एक ही साथ खुली। ...मेले की ओर जानेवाली गाड़ियाँ तेगछिया के पास रुकी हैं। बच्चे कचर-पचर कर रहे हैं।
हिरामन हड़बड़ा कर उठा। टप्पर के अंदर झाँक कर इशारे से कहा  दिन ढल गया! गाड़ी में बैलों को जोतते समय उसने गाड़ीवानों के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया। गाड़ी हाँकते हुए बोला, 'सिरपुर बाज़ार के इसपिताल की डागडरनी हैं। रोगी देखने जा रही हैं। पास ही कुड़मागाम।'

हीराबाई छत्तापुर-पचीरा का नाम भूल गई। गाड़ी जब कुछ दूर आगे बढ़ आई तो उसने हँस कर पूछा, 'पत्तापुर-छपीरा?'
हँसते-हँसते पेट में बल पड़ जाए हिरामन के 'पत्तापुर-छपीरा! हा-हा। वे लोग छत्तापुर-पचीरा के ही गाड़ीवान थेउनसे कैसे कहता! ही-ही-ही!'
हीराबाई मुस्कराती हुई गाँव की ओर देखने लगी।
सड़क तेगछिया गाँव के बीच से निकलती है। गाँव के बच्चों ने परदेवाली गाड़ी देखी और तालियाँ बजा-बजा कर रटी हुई पंक्तियाँ दुहराने लगे 
'लाली-लाली डोलिया में
लाली रे दुलहिनिया
पान खाए...!'
हिरामन हँसा। ...दुलहिनिया ...लाली-लाली डोलिया! दुलहिनिया पान खाती हैदुलहा की पगड़ी में मुँह पोंछती है। ओ दुलहिनियातेगछिया गाँव के बच्चों को याद रखना। लौटती बेर गुड़ का लड्डू लेती आइयो। लाख बरिस तेरा हुलहा जीए! ...कितने दिनों का हौसला पूरा हुआ है हिरामन का! ऐसे कितने सपने देखे हैं उसने! वह अपनी दुलहिन को ले कर लौट रहा है। हर गाँव के बच्चे तालियाँ बजा कर गा रहे हैं। हर आँगन से झाँक कर देख रही हैं औरतें। मर्द लोग पूछते हैं, 'कहाँ की गाड़ी हैकहाँ जाएगीउसकी दुलहिन डोली का परदा थोड़ा सरका कर देखती है। और भी कितने सपने...
गाँव से बाहर निकल कर उसने कनखियों से टप्पर के अंदर देखाहीराबाई कुछ सोच रही है। हिरामन भी किसी सोच में पड़ गया। थोड़ी देर के बाद वह गुनगुनाने लगा 
'सजन रे झूठ मति बोलोख़ुदा के पास जाना है।
नहीं हाथीनहीं घोड़ानहीं गाड़ी 
वहाँ पैदल ही जाना है। सजन रे...।'
हीराबाई ने पूछा, 'क्यों मीतातुम्हारी अपनी बोली में कोई गीत नहीं क्या?'
हिरामन अब बेखटक हीराबाई की आँखों में आँखें डाल कर बात करता है। कंपनी की औरत भी ऐसी होती हैसरकस कंपनी की मालकिन मेम थी। लेकिन हीराबाई! गाँव की बोली में गीत सुनना चाहती है। वह खुल कर मुस्कराया  'गाँव की बोली आप समझिएगा?'
'हूँ-ऊँ-ऊँ !हीराबाई ने गर्दन हिलाई। कान के झुमके हिल गए।

हिरामन कुछ देर तक बैलों को हाँकता रहा चुपचाप। फिर बोला, 'गीत ज़रूर ही सुनिएगानहीं मानिएगाइस्स! इतना सौक गाँव का गीत सुनने का है आपको! तब लीक छोड़ानी होगी। चालू रास्ते में कैसे गीत गा सकता है कोई!'
हिरामन ने बाएँ बैल की रस्सी खींच कर दाहिने को लीक से बाहर किया और बोला, 'हरिपुर हो कर नहीं जाएँगे तब।'
चालू लीक को काटते देख कर हिरामन की गाड़ी के पीछेवाले गाड़ीवान ने चिल्ला कर पूछा, 'काहे हो गाड़ीवानलीक छोड़ कर बेलीक कहाँ उधर?'
हिरामन ने हवा में दुआली घुमाते हुए जवाब दिया  'कहाँ है बेलीकीवह सड़क नननपुर तो नहीं जाएगी।फिर अपने-आप बड़बड़ाया, 'इस मुलुक के लोगों की यही आदत बुरी है। राह चलते एक सौ जिरह करेंगे। अरे भाईतुमको जाना हैजाओ। ...देहाती भुच्च सब!'
नननपुर की सड़क पर गाड़ी ला कर हिरामन ने बैलों की रस्सी ढीली कर दी। बैलों ने दुलकी चाल छोड़ कर क़दमचाल पकड़ी।
हीराबाई ने देखासचमुच नननपुर की सड़क बड़ी सूनी है। हिरामन उसकी आँखों की बोली समझता है  'घबराने की बात नहीं। यह सड़क भी फारबिसगंज जाएगीराह-घाट के लोग बहुत अच्छे हैं। ...एक घड़ी रात तक हम लोग पहुँच जाएँगे।'
हीराबाई को फारबिसगंज पहुँचने की जल्दी नहीं। हिरामन पर उसको इतना भरोसा हो गया कि डर-भय की कोई बात नहीं उठती है मन में। हिरामन ने पहले जी-भर मुस्करा लिया। कौन गीत गाए वह! हीराबाई को गीत और कथा दोनों का शौक है ...इस्स! महुआ घटवारिनवह बोला, 'अच्छाजब आपको इतना सौक है तो सुनिए महुआ घटवारिन का गीत। इसमें गीत भी हैकथा भी है।'
...कितने दिनों के बाद भगवती ने यह हौसला भी पूरा कर दिया। जै भगवती! आज हिरामन अपने मन को खलास कर लेगा। वह हीराबाई की थमी हुई मुस्कुराहट को देखता रहा।
'सुनिए! आज भी परमार नदी में महुआ घटवारिन के कई पुराने घाट हैं। इसी मुलुक की थी महुआ! थी तो घटवारिनलेकिन सौ सतवंती में एक थी। उसका बाप दारू-ताड़ी पी कर दिन-रात बेहोश पड़ा रहता। उसकी सौतेली माँ साच्छात राकसनी! बहुत बड़ी नज़र-चालक। रात में गाँजा-दारू-अफ़ीम चुरा कर बेचनेवाले से ले कर तरह-तरह के लोगों से उसकी जान-पहचान थी। सबसे घुट्टा-भर हेल-मेल। महुआ कुमारी थी। लेकिन काम कराते-कराते उसकी हड्डी निकाल दी थी राकसनी ने। जवान हो गईकहीं शादी-ब्याह की बात भी नहीं चलाई। एक रात की बात सुनिए!'
हिरामन ने धीरे-धीरे गुनगुना कर गला साफ़ किया 
हे अ-अ-अ- सावना-भादवा के - र- उमड़ल नदिया -गे-में-मैं-यो-ओ-ओ,
मैयो गे रैनि भयावनि-हे-ए-ए-ए;
तड़का-तड़के-धड़के करेज-आ-आ मोरा
कि हमहूँ जे बार-नान्ही रे-ए-ए ...।'
ओ माँ! सावन-भादों की उमड़ी हुई नदीभयावनी रातबिजली कड़कती हैमैं बारी-क्वारी नन्ही बच्चीमेरा कलेजा धड़कता है। अकेली कैसे जाऊँ घाट परसो भी परदेशी राही-बटोही के पैर में तेल लगाने के लिए! सत-माँ ने अपनी बज्जर-किवाड़ी बंद कर ली। आसमान में मेघ हड़बड़ा उठे और हरहरा कर बरसा होने लगी। महुआ रोने लगीअपनी माँ को याद करके। आज उसकी माँ रहती तो ऐसे दुरदिन में कलेजे से सटा कर रखती अपनी महुआ बेटी को। गे मइयाइसी दिन के लिएयही दिखाने के लिए तुमने कोख में रखा थामहुआ अपनी माँ पर गुस्साई  क्यों वह अकेली मर गईजी-भर कर कोसती हुई बोली।
हिरामन ने लक्ष्य कियाहीराबाई तकिए पर केहुनी गड़ा करगीत में मगन एकटक उसकी ओर देख रही है। ...खोई हुई सूरत कैसी भोली लगती है!
हिरामन ने गले में कँपकँपी पैदा की 
'हूँ-ऊँ-ऊँ-रे डाइनियाँ मैयो मोरी-ई-ई,
नोनवा चटाई काहे नाहिं मारलि सौरी-घर-अ-अ।
एहि दिनवाँ ख़ातिर छिनरो धिया
तेंहु पोसलि कि नेनू-दूध उगटन ..।
हिरामन ने दम लेते हुए पूछा, 'भाखा भी समझती हैं कुछ या खाली गीत ही सुनती हैं?'
हीरा बोली, 'समझती हूँ। उगटन माने उबटन  जो देह में लगाते हैं।'
हिरामन ने विस्मित हो कर कहा, 'इस्स!' ...सो रोने-धोने से क्या होए! सौदागर ने पूरा दाम चुका दिया था महुआ का। बाल पकड़ कर घसीटता हुआ नाव पर चढ़ा और माँझी को हुकुम दियानाव खोलोपाल बाँधो! पालवाली नाव परवाली चिड़िया की तरह उड़ चली। रात-भर महुआ रोती-छटपटाती रही। सौदागर के नौकरों ने बहुत डराया-धमकाया  चुप रहोनहीं तो उठा कर पानी में फेंक देंगे। बसमहुआ को बात सूझ गई। भोर का तारा मेघ की आड़ से ज़रा बाहर आयाफिर छिप गया। इधर महुआ भी छपाक से कूद पड़ी पानी में। ...सौदागर का एक नौकर महुआ को देखते ही मोहित हो गया था। महुआ की पीठ पर वह भी कूदा। उलटी धारा में तैरना खेल नहींसो भी भरी भादों की नदी में। महुआ असल घटवारिन की बेटी थी। मछली भी भला थकती है पानी में! सफरी मछली-जैसी फरफरातीपानी चीरती भागी चली जा रही है। और उसके पीछे सौदागर का नौकर पुकार-पुकार कर कहता है  'महुआ ज़रा थमोतुमको पकड़ने नहीं आ रहातुम्हारा साथी हूँ। ज़िंदगी-भर साथ रहेंगे हम लोग।लेकिन...।
हिरामन का बहुत प्रिय गीत है यह। महुआ घटवारिन गाते समय उसके सामने सावन-भादों की नदी उमड़ने लगती हैअमावस्या की रात और घने बादलों में रह-रह कर बिजली चमक उठती है। उसी चमक में लहरों से लड़ती हुई बारी-कुमारी महुआ की झलक उसे मिल जाती है। सफरी मछली की चाल और तेज़ हो जाती है। उसको लगता हैवह ख़ुद सौदागर का नौकर है। महुआ कोई बात नहीं सुनती। परतीत करती नहीं। उलट कर देखती भी नहीं। और वह थक गया हैतैरते-तैरते।
इस बार लगता है महुआ ने अपने को पकड़ा दिया। ख़ुद ही पकड़ में आ गई है। उसने महुआ को छू लिया हैपा लिया हैउसकी थकन दूर हो गई है। पंद्रह-बीस साल तक उमड़ी हुई नदी की उलटी धारा में तैरते हुए उसके मन को किनारा मिल गया है। आनंद के आँसू कोई भी रोक नहीं मानते।
उसने हीराबाई से अपनी गीली आँखें चुराने की कोशिश की। किंतु हीरा तो उसके मन में बैठी न जाने कब से सब कुछ देख रही थी। हिरामन ने अपनी काँपती हुई बोली को क़ाबू में ला कर बैलों को झिड़की दी  'इस गीत में न जाने क्या है कि सुनते ही दोनों थसथसा जाते हैं। लगता हैसौ मन बोझ लाद दिया किसी ने।'
हीराबाई लंबी साँस लेती है। हिरामन के अंग-अंग में उमंग समा जाती है।
'तुम तो उस्ताद हो मीता!'
'इस्स!'
आसिन-कातिक का सूरज दो बाँस दिन रहते ही कुम्हला जाता है। सूरज डूबने से पहले ही नननपुर पहुँचना हैहिरामन अपने बैलों को समझा रहा है  'क़दम खोल कर और कलेजा बाँध कर चलो ...ए ...छि ...छि! बढ़के भैयन! ले-ले-ले-ए हे -य!'
नननपुर तक वह अपने बैलों को ललकारता रहा। हर ललकार के पहले वह अपने बैलों को बीती हुई बातों की याद दिलाता  याद नहींचौधरी की बेटी की बरात में कितनी गाड़ियाँ थींसबको कैसे मात किया था! हाँवह कदम निकालो। ले-ले-ले! नननपुर से फारबिसगंज तीन कोस! दो घंटे और!
नननपुर के हाट पर आजकल चाय भी बिकने लगी है। हिरामन अपने लोटे में चाय भर कर ले आया। ...कंपनी की औरत जानता है वहसारा दिनघड़ी घड़ी भर में चाय पीती रहती है। चाय है या जान!
हीरा हँसते-हँसते लोट-पोट हो रही है  'अरेतुमसे किसने कह दिया कि क्वारे आदमी को चाय नहीं पीनी चाहिए?'
हिरामन लजा गया। क्या बोले वह? ...लाज की बात। लेकिन वह भोग चुका है एक बार। सरकस कंपनी की मेम के हाथ की चाय पी कर उसने देख लिया है। बडी गर्म तासीर!
'पीजिए गुरु जी!हीरा हँसी!
'इस्स!'
नननपुर हाट पर ही दीया-बाती जल चुकी थी। हिरामन ने अपना सफरी लालटेन जला कर पिछवा में लटका दिया। आजकल शहर से पाँच कोस दूर के गाँववाले भी अपने को शहरू समझने लगे हैं। बिना रोशनी की गाड़ी को पकड़ कर चालान कर देते हैं। बारह बखेड़ा !
'आप मुझे गुरु जी मत कहिए।'
'तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ हैएक अच्छर सिखानेवाला भी गुरु और एक राग सिखानेवाला भी उस्ताद!'
'इस्स! सास्तर-पुरान भी जानती हैं! ...मैंने क्या सिखायामैं क्या ...?'
हीरा हँस कर गुनगुनाने लगी  'हे-अ-अ-अ- सावना-भादवा के-र ...!'
हिरामन अचरज के मारे गूँगा हो गया। ...इस्स! इतना तेज़ ज़ेहन! हू-ब-हू महुआ घटवारिन!
गाड़ी सीताधार की एक सूखी धारा की उतराई पर गड़गड़ा कर नीचे की ओर उतरी। हीराबाई ने हिरामन का कंधा धर लिया एक हाथ से। बहुत देर तक हिरामन के कंधे पर उसकी उँगलियाँ पड़ी रहीं। हिरामन ने नज़र फिरा कर कंधे पर केंद्रित करने की कोशिश कीकई बार। गाड़ी चढ़ाई पर पहुँची तो हीरा की ढीली उँगलियाँ फिर तन गईं।
सामने फारबिसगंज शहर की रोशनी झिलमिला रही है। शहर से कुछ दूर हट कर मेले की रोशनी ...टप्पर में लटके लालटेन की रोशनी में छाया नाचती है आसपास।... डबडबाई आँखों सेहर रोशनी सूरजमुखी फूल की तरह दिखाई पड़ती है।
फारबिसगंज तो हिरामन का घर-दुआर है!
न जाने कितनी बार वह फारबिसगंज आया है। मेले की लदनी लादी है। किसी औरत के साथहाँएक बार। उसकी भाभी जिस साल आई थी गौने में। इसी तरह तिरपाल से गाड़ी को चारों ओर से घेर कर बासा बनाया गया था।
हिरामन अपनी गाड़ी को तिरपाल से घेर रहा हैगाड़ीवान-पट्टी में। सुबह होते ही रौता नौटंकी कंपनी के मैनेजर से बात करके भरती हो जाएगी हीराबाई। परसों मेला खुल रहा है। इस बार मेले में पालचट्टी ख़ूब जमी है। ...बसएक रात। आज रात-भर हिरामन की गाड़ी में रहेगी वह। ...हिरामन की गाड़ी में नहींघर में!
'कहाँ की गाड़ी है? ...कौनहिरामन! किस मेले सेकिस चीज़ की लदनी है?'
गाँव-समाज के गाड़ीवानएक-दूसरे को खोज करआसपास गाड़ी लगा कर बासा डालते हैं। अपने गाँव के लालमोहरधुन्नीराम और पलटदास वग़ैरह गाड़ीवानों के दल को देख कर हिरामन अचकचा गया। उधर पलटदास टप्पर में झाँक कर भड़का। मानो बाघ पर नज़र पड़ गई। हिरामन ने इशारे से सभी को चुप किया। फिर गाड़ी की ओर कनखी मार कर फुसफुसाया  'चुप! कंपनी की औरत हैनौटंकी कंपनी की।'
'कंपनी की -ई-ई-ई!'
' ? ? ...? ? ...!
एक नहींअब चार हिरामन! चारों ने अचरज से एक-दूसरे को देखा। कंपनी नाम में कितना असर है! हिरामन ने लक्ष्य कियातीनों एक साथ सटक-दम हो गए। लालमोहर ने ज़रा दूर हट कर बतियाने की इच्छा प्रकट कीइशारे से ही। हिरामन ने टप्पर की ओर मुँह करके कहा, 'होटिल तो नहीं खुला होगा कोईहलवाई के यहाँ से पक्की ले आवें!'
'हिरामनज़रा इधर सुनो। ...मैं कुछ नहीं खाऊँगी अभी। लोतुम खा आओ।'
'क्या हैपैसाइस्स!' ...पैसा दे कर हिरामन ने कभी फारबिसगंज में कच्ची-पक्की नहीं खाई। उसके गाँव के इतने गाड़ीवान हैंकिस दिन के लिएवह छू नहीं सकता पैसा। उसने हीराबाई से कहा, 'बेकारमेला-बाज़ार में हुज्जत मत कीजिए। पैसा रखिए।मौक़ा पा कर लालमोहर भी टप्पर के क़रीब आ गया। उसने सलाम करते हुए कहा, 'चार आदमी के भात में दो आदमी खुसी से खा सकते हैं। बासा पर भात चढा हुआ है। हें-हें-हें! हम लोग एकहि गाँव के हैं। गौंवाँ-गिरामिन के रहते होटिल और हलवाई के यहाँ खाएगा हिरामन?'
हिरामन ने लालमोहर का हाथ टीप दिया 'बेसी भचर-भचर मत बको।'
गाड़ी से चार रस्सी दूर जाते-जाते धुन्नीराम ने अपने कुलबुलाते हुए दिल की बात खोल दी - 'इस्स! तुम भी ख़ूब हो हिरामन! उस साल कंपनी का बाघइस बार कंपनी की जनानी!'
हिरामन ने दबी आवाज़ में कहा, 'भाई रेयह हम लोगों के मुलुक की जनाना नहीं कि लटपट बोली सुन कर भी चुप रह जाए। एक तो पच्छिम की औरततिस पर कंपनी की!'
धुन्नीराम ने अपनी शंका प्रकट की, 'लेकिन कंपनी में तो सुनते हैं पतुरिया रहती है।'
'धत्!सभी ने एक साथ उसको दुरदुरा दिया, 'कैसा आदमी है! पतुरिया रहेगी कंपनी में भला! देखो इसकी बुद्धि। सुना हैदेखा तो नहीं है कभी!'
धुन्नीराम ने अपनी ग़लती मान ली। पलटदास को बात सूझी, 'हिरामन भाईजनाना जात अकेली रहेगी गाड़ी परकुछ भी होजनाना आख़िर जनाना ही है। कोई ज़रूरत ही पड़ जाए!'
यह बात सभी को अच्छी लगी। हिरामन ने कहा, 'बात ठीक है। पलटतुम लौट जाओगाड़ी के पास ही रहना। और देखोगपशप ज़रा होशियारी से करना। हाँ!'
हिरामन की देह से अतर-गुलाब की ख़ुशबू निकलती है। हिरामन करमसाँड़ है। उस बार महीनों तक उसकी देह से बघाइन गंध नहीं गई। लालमोहर ने हिरामन की गमछी सूँघ ली  'ए-ह!'
हिरामन चलते-चलते रुक गया - 'क्या करें लालमोहर भाईज़रा कहो तो! बड़ी ज़िद्द करती हैकहती हैनौटंकी देखना ही होगा।'
'फोकट में ही?'
'और गाँव नहीं पहुँचेगी यह बात?'
हिरामन बोला, 'नहीं जी! एक रात नौटंकी देख कर ज़िंदगी-भर बोली-ठोली कौन सुने? ...देसी मुर्गी विलायती चाल!'
धुन्नीराम ने पूछा, 'फोकट में देखने पर भी तुम्हारी भौजाई बात सुनाएगी?'
लालमोहर के बासा के बगल मेंएक लकड़ी की दुकान लाद कर आए हुए गाड़ीवानों का बासा है। बासा के मीर-गाड़ीवान मियाँजान बूढ़े ने सफरी गुड़गुड़ी पीते हुए पूछा, 'क्यों भाईमीनाबाज़ार की लदनी लाद कर कौन आया है?'
मीनाबाज़ार! मीनाबाज़ार तो पतुरिया-पट्टी को कहते हैं। ...क्या बोलता है यह बूढ़ा मियाँलालमोहर ने हिरामन के कान में फुसफुसा कर कहा, 'तुम्हारी देह मह-मह-महकती है। सच!'
लहसनवाँ लालमोहर का नौकर-गाड़ीवान है। उम्र में सबसे छोटा है। पहली बार आया है तो क्याबाबू-बबुआइनों के यहाँ बचपन से नौकरी कर चुका है। वह रह-रह कर वातावरण में कुछ सूँघता हैनाक सिकोड़ कर। हिरामन ने देखालहसनवाँ का चेहरा तमतम गया है। कौन आ रहा है धड़धड़ाता हुआ? - 'कौनपलटदासक्या है?'
पलटदास आ कर खड़ा हो गया चुपचाप। उसका मुँह भी तमतमाया हुआ था। हिरामन ने पूछा, 'क्या हुआबोलते क्यों नहीं?'
क्या जवाब दे पलटदास! हिरामन ने उसको चेतावनी दे दी थीगपशप होशियारी से करना। वह चुपचाप गाड़ी की आसनी पर जा कर बैठ गयाहिरामन की जगह पर। हीराबाई ने पूछा, 'तुम भी हिरामन के साथ हो?' पलटदास ने गरदन हिला कर हामी भरी। हीराबाई फिर लेट गई। ...चेहरा-मोहरा और बोली-बानी देख-सुन करपलटदास का कलेजा काँपने लगान जाने क्यों। हाँ! रामलीला में सिया सुकुमारी इसी तरह थकी लेटी हुई थी। जै! सियावर रामचंद्र की जै! ...पलटदास के मन में जै-जैकार होने लगा। वह दास-वैस्नव हैकीर्तनिया है। थकी हुई सीता महारानी के चरण टीपने की इच्छा प्रकट की उसनेहाथ की उँगलियों के इशारे सेमानो हारमोनियम की पटरियों पर नचा रहा हो। हीराबाई तमक कर बैठ गई  'अरेपागल है क्याजाओभागो!...'
पलटदास को लगाग़ुस्साई हुई कंपनी की औरत की आँखों से चिनगारी निकल रही है  छटक्-छटक्! वह भागा।
पलटदास क्या जवाब दे! वह मेला से भी भागने का उपाय सोच रहा है। बोला, 'कुछ नहीं। हमको व्यापारी मिल गया। अभी ही टीसन जा कर माल लादना है। भात में तो अभी देर हैं। मैं लौट आता हूँ तब तक।'
खाते समय धुन्नीराम और लहसनवाँ ने पलटदास की टोकरी-भर निंदा की। छोटा आदमी है। कमीना है। पैसे-पैसे का हिसाब जोड़ता है। खाने-पीने के बाद लालमोहर के दल ने अपना बासा तोड़ दिया। धुन्नी और लहसनवाँ गाड़ी जोत कर हिरामन के बासा पर चलेगाड़ी की लीक धर कर। हिरामन ने चलते-चलते रुक करलालमोहर से कहा, 'ज़रा मेरे इस कंधे को सूँघो तो। सूँघ कर देखो न?'
लालमोहर ने कंधा सूँघ कर आँखे मूँद लीं। मुँह से अस्फुट शब्द निकला  ए - ह!'
हिरामन ने कहा, 'ज़रा-सा हाथ रखने पर इतनी ख़ुशबू! ...समझे!लालमोहर ने हिरामन का हाथ पकड़ लिया  'कंधे पर हाथ रखा थासच? ...सुनो हिरामननौटंकी देखने का ऐसा मौक़ा फिर कभी हाथ नहीं लगेगा। हाँ!'
'तुम भी देखोगे?' लालमोहर की बत्तीसी चौराहे की रोशनी में झिलमिला उठी।
बासा पर पहुँच कर हिरामन ने देखाटप्पर के पास खड़ा बतिया रहा है कोईहीराबाई से। धुन्नी और लहसनवाँ ने एक ही साथ कहा, 'कहाँ रह गए पीछेबहुत देर से खोज रही है कंपनी...!'
हिरामन ने टप्पर के पास जा कर देखा अरेयह तो वही बक्सा ढोनेवाला नौकरजो चंपानगर मेले में हीराबाई को गाड़ी पर बिठा कर अँधेरे में ग़ायब हो गया था।
'आ गए हिरामन! अच्छी बातइधर आओ। ...यह लो अपना भाड़ा और यह लो अपनी दच्छिना! पच्चीस-पच्चीसपचास।'
हिरामन को लगाकिसी ने आसमान से धकेल कर धरती पर गिरा दिया। किसी ने क्योंइस बक्सा ढोनेवाले आदमी ने। कहाँ से आ गयाउसकी जीभ पर आई हुई बात जीभ पर ही रह गई ...इस्स! दच्छिना! वह चुपचाप खड़ा रहा।
हीराबाई बोली, 'लो पकड़ो! और सुनोकल सुबह रौता कंपनी में आ कर मुझसे भेंट करना। पास बनवा दूँगी। ...बोलते क्यों नहीं?'
लालमोहर ने कहा, 'इलाम-बकसीस दे रही है मालकिनले लो हिरामन! हिरामन ने कट कर लालमोहर की ओर देखा। ...बोलने का ज़रा भी ढंग नहीं इस लालमोहरा को।'
धुन्नीराम की स्वगतोक्ति सभी ने सुनीहीराबाई ने भी  गाड़ी-बैल छोड़ कर नौटंकी कैसे देख सकता है कोई गाड़ीवानमेले में?
हिरामन ने रुपया लेते हुए कहा, 'क्या बोलेंगे!उसने हँसने की चेष्टा की। कंपनी की औरत कंपनी में जा रही है। हिरामन का क्या! बक्सा ढोनेवाला रास्ता दिखाता हुआ आगे बढ़ा  'इधर से।हीराबाई जाते-जाते रुक गई। हिरामन के बैलों को संबोधित करके बोली, 'अच्छामैं चली भैयन।'
बैलों नेभैया शब्द पर कान हिलाए।
'? ? ..!'
'भा-इ-योआज रात! दि रौता संगीत कंपनी के स्टेज पर! गुलबदन देखिएगुलबदन! आपको यह जान कर ख़ुशी होगी कि मथुरामोहन कंपनी की मशहूर एक्ट्रेस मिस हीरादेवीजिसकी एक-एक अदा पर हज़ार जान फिदा हैंइस बार हमारी कंपनी में आ गई हैं। याद रखिए। आज की रात। मिस हीरादेवी गुलबदन...!'
नौटंकीवालों के इस एलान से मेले की हर पट्टी में सरगर्मी फैल रही है। ...हीराबाईमिस हीरादेवीलैलागुलबदन...फिलिम एक्ट्रेस को मात करती है।
तेरी बाँकी अदा पर मैं ख़ुद हूँ फ़िदा,
तेरी चाहत को दिलबर बयाँ क्या करूँ!
यही ख़्वाहिश है कि इ-इ-इ तू मुझको देखा करे
और दिलोजान मैं तुमको देखा करूँ।
...किर्र-र्र-र्र-र्र ...कडड़ड़ड़डड़ड़र्र-ई-घन-घन-धड़ाम।
हर आदमी का दिल नगाड़ा हो गया है।
लालमोहर दौड़ता-हाँफता बासा पर आया  'ऐ हिरामनयहाँ क्या बैठे होचल कर देखो जै-जैकार हो रहा है! मय बाजा-गाजाछापी-फाहरम के साथ हीराबाई की जै-जै कर रहा हूँ।'
हिरामन हड़बड़ा कर उठा। लहसनवाँ ने कहा, 'धुन्नी काकातुम बासा पर रहोमैं भी देख आऊँ।'
धुन्नी की बात कौन सुनता है। तीनों जन नौटंकी कंपनी की एलानिया पार्टी के पीछे-पीछे चलने लगे। हर नुक्कड़ पर रुक करबाजा बंद कर के एलान किया जाना है। एलान के हर शब्द पर हिरामन पुलक उठता है। हीराबाई का नामनाम के साथ अदा-फिदा वग़ैरह सुन कर उसने लालमोहर की पीठ थपथपा दी  'धन्न हैधन्न है! है या नहीं?'
लालमोहर ने कहा, 'अब बोलो! अब भी नौटंकी नहीं देखोगे?' सुबह से ही धुन्नीराम और लालमोहर समझा रहे थेसमझा कर हार चुके थे  'कंपनी में जा कर भेंट कर आओ। जाते-जाते पुरसिस कर गई है।लेकिन हिरामन की बस एक बात  'धत्तकौन भेंट करने जाए! कंपनी की औरतकंपनी में गई। अब उससे क्या लेना-देना! चीन्हेगी भी नहीं!'
वह मन-ही-मन रूठा हुआ था। एलान सुनने के बाद उसने लालमोहर से कहा, 'ज़रूर देखना चाहिएक्यों लालमोहर?'
दोनों आपस में सलाह करके रौता कंपनी की ओर चले। खेमे के पास पहुँच कर हिरामन ने लालमोहर को इशारा कियापूछताछ करने का भार लालमोहर के सिर। लालमोहर कचराही बोलना जानता है। लालमोहर ने एक काले कोटवाले से कहा, 'बाबू साहेबज़रा सुनिए तो!'
काले कोटवाले ने नाक-भौं चढ़ा कर कहा - 'क्या हैइधर क्यों?'
लालमोहर की कचराही बोली गड़बड़ा गई  तेवर देख कर बोला, 'गुलगुल ..नहीं-नहीं ...बुल-बुल ...नहीं ...।'
हिरामन ने झट-से सम्हाल दिया  'हीरादेवी किधर रहती हैबता सकते हैं?' उस आदमी की आँखें हठात लाल हो गईं। सामने खड़े नेपाली सिपाही को पुकार कर कहा, 'इन लोगों को क्यों आने दिया इधर?'
'हिरामन!' ...वही फेनूगिलासी आवाज़ किधर से आईखेमे के परदे को हटा कर हीराबाई ने बुलाया  यहाँ आ जाओअंदर! ...देखोबहादुर! इसको पहचान लो। यह मेरा हिरामन है। समझे?'
नेपाली दरबान हिरामन की ओर देख कर ज़रा मुस्कराया और चला गया। काले कोटवाले से जा कर कहा, 'हीराबाई का आदमी है। नहीं रोकने बोला!'
लालमोहर पान ले आया नेपाली दरबान के लिए  'खाया जाए!'
'इस्स! एक नहींपाँच पास। चारों अठनिया! बोली कि जब तक मेले में होरोज़ रात में आ कर देखना। सबका ख़याल रखती है। बोली कि तुम्हारे और साथी हैसभी के लिए पास ले जाओ। कंपनी की औरतों की बात निराली होती है! है या नहीं?'
लालमोहर ने लाल काग़ज़ के टुकड़ों को छू कर देखा  'पा-स! वाह रे हिरामन भाई! ...लेकिन पाँच पास ले कर क्या होगापलटदास तो फिर पलट कर आया ही नहीं है अभी तक।'
हिरामन ने कहा, 'जाने दो अभागे को। तक़दीर में लिखा नहीं। ...हाँपहले गुरु क़सम खानी होगी सभी कोकि गाँव-घर में यह बात एक पंछी भी न जान पाए।'
लालमोहर ने उत्तेजित हो कर कहा, 'कौन साला बोलेगागाँव में जा करपलटा ने अगर बदनामी की तो दूसरी बार से फिर साथ नहीं लाऊँगा।'
हिरामन ने अपनी थैली आज हीराबाई के जिम्मे रख दी है। मेले का क्या ठिकाना! किस्म-किस्म के पाकिटकाट लोग हर साल आते हैं। अपने साथी-संगियों का भी क्या भरोसा! हीराबाई मान गई। हिरामन के कपड़े की काली थैली को उसने अपने चमड़े के बक्स में बंद कर दिया। बक्से के ऊपर भी कपड़े का खोल और अंदर भी झलमल रेशमी अस्तर! मन का मान-अभिमान दूर हो गया।
लालमोहर और धुन्नीराम ने मिल कर हिरामन की बुद्धि की तारीफृ कीउसके भाग्य को सराहा बार-बार। उसके भाई और भाभी की निंदा कीदबी जबान से। हिरामन के जैसा हीरा भाई मिला हैइसीलिए! कोई दूसरा भाई होता तो...।'
लहसनवाँ का मुँह लटका हुआ है। एलान सुनते-सुनते न जाने कहाँ चला गया कि घड़ी-भर साँझ होने के बाद लौटा है। लालमोहर ने एक मालिकाना झिड़की दी हैगाली के साथ  'सोहदा कहीं का!'
धुन्नीराम ने चूल्हे पर खिचड़ी च्ढ़ाते हुए कहा, 'पहले यह फ़ैसला कर लो कि गाड़ी के पास कौन रहेगा!'
'रहेगा कौनयह लहसनवाँ कहाँ जाएगा?'
लहसनवाँ रो पड़ा  'ऐ-ए-ए मालिकहाथ जोड़ते हैं। एक्को झलक! बसएक झलक!'
हिरामन ने उदारतापूर्वक कहा, 'अच्छा-अच्छाएक झलक क्योंएक घंटा देखना। मैं आ जाऊँगा।'
नौटंकी शुरू होने के दो घंटे पहले ही नगाड़ा बजना शुरू हो जाता है। और नगाड़ा शुरू होते ही लोग पतिंगों की तरह टूटने लगते हैं। टिकटघर के पास भीड़ देख कर हिरामन को बड़ी हँसी आई  'लालमोहरउधर देखकैसी धक्कमधुक्की कर रहे हैं लोग!'
हिरामन भाय!'
'कौनपलटदास! कहाँ की लदनी लाद आए?' लालमोहर ने पराए गाँव के आदमी की तरह पूछा।
पलटदास ने हाथ मलते हुए माफ़ी माँगी  'क़सूरबार हैंजो सज़ा दो तुम लोगसब मंज़ूर है। लेकिन सच्ची बात कहें कि सिया सुकुमारी...।'
हिरामन के मन का पुरइन नगाड़े के ताल पर विकसित हो चुका है। बोला, 'देखो पलटायह मत समझना कि गाँव-घर की जनाना है। देखोतुम्हारे लिए भी पास दिया हैपास ले लो अपनातमासा देखो।'
लालमोहर ने कहा, 'लेकिन एक सर्त पर पास मिलेगा। बीच-बीच में लहसनवाँ को भी...।'
पलटदास को कुछ बताने की ज़रूरत नहीं। वह लहसनवाँ से बातचीत कर आया है अभी।
लालमोहर ने दूसरी शर्त सामने रखी - 'गाँव में अगर यह बात मालूम हुई किसी तरह...!'
'राम-राम!दाँत से जीभ को काटते हुए कहा पलटदास ने।
पलटदास ने बताया  'अठनिया फाटक इधर है!फाटक पर खड़े दरबान ने हाथ से पास ले कर उनके चेहरे को बारी-बारी से देखाबोला, 'यह तो पास है। कहाँ से मिला?'
अब लालमोहर की कचराही बोली सुने कोई! उसके तेवर देख कर दरबान घबरा गया - 'मिलेगा कहाँ सेअपनी कंपनी से पूछ लीजिए जा कर। चार ही नहींदेखिए एक और है।जेब से पाँचवा पास निकाल कर दिखाया लालमोहर ने।
एक रुपयावाले फाटक पर नेपाली दरबान खड़ा था। हिरामन ने पुकार कर कहा, 'ए सिपाही दाजूसुबह को ही पहचनवा दिया और अभी भूल गए?'
नेपाली दरबान बोला, 'हीराबाई का आदमी है सब। जाने दो। पास हैं तो फिर काहे को रोकता है?'
अठनिया दर्जा!
तीनों ने 'कपड़घरको अंदर से पहली बार देखा। सामने कुरसी-बेंचवाले दर्जे हैं। परदे पर राम-बन-गमन की तसवीर है। पलटदास पहचान गया। उसने हाथ जोड़ कर नमस्कार कियापरदे पर अंकित रामसिया सुकुमारी और लखनलला को। 'जै होजै हो!पलटदास की आँखें भर आई।
हिरामन ने कहा, 'लालमोहरछापी सभी खड़े हैं या चल रहे हैं?'
लालमोहर अपने बगल में बैठे दर्शकों से जान-पहचान कर चुका है। उसने कहा, 'खेला अभी परदा के भीतर है। अभी जमिनका दे रहा हैलोग जमाने के लिए।'
पलटदास ढोलक बजाना जानता हैइसलिए नगाड़े के ताल पर गरदन हिलाता है और दियासलाई पर ताल काटता है। बीड़ी आदान-प्रदान करके हिरामन ने भी एकाध जान-पहचान कर ली। लालमोहर के परिचित आदमी ने चादर से देह ढकते हुए कहा, 'नाच शुरू होने में अभी देर हैतब तक एक नींद ले लें। ...सब दर्जा से अच्छा अठनिया दर्जा। सबसे पीछे सबसे ऊँची जगह पर है। ज़मीन पर गरम पुआल! हे-हे! कुरसी-बेंच पर बैठ कर इस सरदी के मौसम में तमासा देखनेवाले अभी घुच-घुच कर उठेंगे चाह पीने।'
उस आदमी ने अपने संगी से कहा, 'खेला शुरू होने पर जगा देना। नहीं-नहींखेला शुरू होने पर नहींहिरिया जब स्टेज पर उतरेहमको जगा देना।'
हिरामन के कलेजे में ज़रा आँच लगी। ...हिरिया! बड़ा लटपटिया आदमी मालूम पड़ता है। उसने लालमोहर को आँख के इशारे से कहा, 'इस आदमी से बतियाने की ज़रूरत नहीं।'
घन-घन-घन-धड़ाम! परदा उठ गया। हे-एहे-एहीराबाई शुरू में ही उतर गई स्टेज पर! कपड़घर खचमखच भर गया है। हिरामन का मुँह अचरज में खुल गया। लालमोहर को न जाने क्यों ऐसी हँसी आ रही है। हीराबाई के गीत के हर पद पर वह हँसता हैबेवजह।
गुलबदन दरबार लगा कर बैठी है। एलान कर रही हैजो आदमी तख्तहजारा बना कर ला देगामुँहमाँगी चीज़ इनाम में दी जाएगी। ...अजीहै कोई ऐसा फनकारतो हो जाए तैयारबना कर लाए तख्तहजारा-आ! किड़किड़-किर्रि-! अलबत्त नाचती है! क्या गला है! मालूम हैयह आदमी कहता है कि हीराबाई पान-बीड़ीसिगरेट-जर्दा कुछ नहीं खाती! ठीक कहता है। बड़ी नेमवाली रंडी है। कौन कहता है कि रंडी है! दाँत में मिस्सी कहाँ है। पौडर से दाँत धो लेती होगी। हरगिज नहीं। कौन आदमी हैबात की बेबात करता है! कंपनी की औरत को पतुरिया कहता है! तुमको बात क्यों लगीकौन है रंडी का भड़वामारो साले को! मारो! तेरी...।
हो-हल्ले के बीचहिरामन की आवाज़ कपड़घर को फाड़ रही है  'आओएक-एक की गरदन उतार लेंगे।'
लालमोहर दुलाली से पटापट पीटता जा रहा है सामने के लोगों को। पलटदास एक आदमी की छाती पर सवार है - 'सालासिया सुकुमारी को गाली देता हैसो भी मुसलमान हो कर?'
धुन्नीराम शुरू से ही चुप था। मारपीट शुरू होते ही वह कपड़घर से निकल कर बाहर भागा।
काले कोटवाले नौटंकी के मैनेजर नेपाली सिपाही के साथ दौड़े आए। दारोग़ा साहब ने हंटर से पीट-पाट शुरू की। हंटर खा कर लालमोहर तिलमिला उठाकचराही बोली में भाषण देने लगा - 'दारोग़ा साहबमारते हैंमारिए। कोई हर्ज नहीं। लेकिन यह पास देख लीजिएएक पास पाकिट में भी हैं। देख सकते हैं हुजूर। टिकट नहींपास! ...तब हम लोगों के सामने कंपनी की औरत को कोई बुरी बात करे तो कैसे छोड़ देंगे?'
कंपनी के मैनेजर की समझ में आ गई सारी बात। उसने दारोग़ा को समझाया  'हुज़ूरमैं समझ गया। यह सारी बदमाशी मथुरामोहन कंपनीवालों की है। तमाशे में झगड़ा खड़ा करके कंपनी को बदनाम ...नहीं हुजूरइन लोगों को छोड़ दीजिएहीराबाई के आदमी हैं। बेचारी की जान खतरे में हैं। हुजूर से कहा था न!'
हीराबाई का नाम सुनते ही दारोग़ा ने तीनों को छोड़ दिया। लेकिन तीनों की दुआली छीन ली गई। मैनेजर ने तीनों को एक रुपयेवाले दरजे में कुरसी पर बिठाया 'आप लोग यहीं बैठिए। पान भिजवा देता हूँ।कपड़घर शांत हुआ और हीराबाई स्टेज पर लौट आई।
नगाड़ा फिर घनघना उठा।
थोड़ी देर बाद तीनों को एक ही साथ धुन्नीराम का खयाल हुआ  अरेधुन्नीराम कहाँ गया?
'मालिकओ मालिक!लहसनवाँ कपड़घर से बाहर चिल्ला कर पुकार रहा है, 'ओ लालमोहर मा-लि-क...!'
लालमोहर ने तारस्वर में जवाब दिया  'इधर सेउधर से! एकटकिया फाटक से।सभी दर्शकों ने लालमोहर की ओर मुड़ कर देखा। लहसनवाँ को नेपाली सिपाही लालमोहर के पास ले आया। लालमोहर ने जेब से पास निकाल कर दिखा दिया। लहसनवाँ ने आते ही पूछा, 'मालिककौन आदमी क्या बोल रहा थाबोलिए तो ज़रा। चेहरा दिखला दीजिएउसकी एक झलक!'
लोगों ने लहसनवाँ की चौड़ी और सपाट छाती देखी। जाड़े के मौसम में भी खाली देह! ...चेले-चाटी के साथ हैं ये लोग!
लालमोहर ने लहसनवाँ को शांत किया।
तीनों-चारों से मत पूछे कोईनौटंकी में क्या देखा। किस्सा कैसे याद रहे! हिरामन को लगता थाहीराबाई शुरू से ही उसी की ओर टकटकी लगा कर देख रही हैगा रही हैनाच रही है। लालमोहर को लगता थाहीराबाई उसी की ओर देखती है। वह समझ गई हैहिरामन से भी ज्यादा पावरवाला आदमी है लालमोहर! पलटदास किस्सा समझता है। ...किस्सा और क्या होगारमैन की ही बात। वही रामवही सीतावही लखनलाल और वही रावन! सिया सुकुमारी को राम जी से छीनने के लिए रावन तरह-तरह का रूप धर कर आता है। राम और सीता भी रूप बदल लेते हैं। यहाँ भी तख्त-हजारा बनानेवाला माली का बेटा राम है। गुलबदन मिया सुकुमारी है। माली के लड़के का दोस्त लखनलला है और सुलतान है रावन। धुन्नीराम को बुखार है तेज! लहसनवाँ को सबसे अच्छा जोकर का पार्ट लगा है ...चिरैया तोंहके लेके ना जइवै नरहट के बजरिया! वह उस जोकर से दोस्ती लगाना चाहता है। नहीं लगावेगा दोस्तीजोकर साहब?
हिरामन को एक गीत की आधी कड़ी हाथ लगी है  'मारे गए गुलफ़ाम!कौन था यह गुलफ़ामहीराबाई रोती हुई गा रही थी  'अजी हाँमरे गए गुलफाम!टिड़िड़िड़ि... बेचारा गुलफ़ाम!
तीनों को दुआली वापस देते हुए पुलिस के सिपाही ने कहा, 'लाठी-दुआली ले कर नाच देखने आते हो?'
दूसरे दिन मेले-भर में यह बात फैल गई  मथुरामोहन कंपनी से भाग कर आई है हीराबाईइसलिए इस बार मथुरामोहन कंपनी नहीं आई हैं। ...उसके गुंडे आए हैं। हीराबाई भी कम नहीं। बड़ी खेलाड़ औरत है। तेरह-तेरह देहाती लठैत पाल रही है। ...वाह मेरी जान भी कहे तो कोई! मजाल है!
दस दिन... दिन-रात...!
दिन-भर भाड़ा ढोता हिरामन। शाम होते ही नौटंकी का नगाड़ा बजने लगता। नगाड़े की आवाज़ सुनते ही हीराबाई की पुकार कानों के पास मँडराने लगती  भैया ...मीता ...हिरामन ...उस्ताद गुरु जी! हमेशा कोई-न-कोई बाजा उसके मन के कोने में बजता रहतादिन-भर। कभी हारमोनियमकभी नगाड़ाकभी ढोलक और कभी हीराबाई की पैजनी। उन्हीं साजों की गत पर हिरामन उठता-बैठताचलता-फिरता। नौटंकी कंपनी के मैनेजर से ले कर परदा खींचनेवाले तक उसको पहचानते हैं। ...हीराबाई का आदमी है।
पलटदास हर रात नौटंकी शुरू होने के समय श्रद्धापूर्वक स्टेज को नमस्कार करताहाथ जोड़ कर। लालमोहरएक दिन अपनी कचराही बोली सुनाने गया था हीराबाई को। हीराबाई ने पहचाना ही नहीं। तब से उसका दिल छोटा हो गया है। उसका नौकर लहसनवाँ उसके हाथ से निकल गया हैनौटंकी कंपनी में भर्ती हो गया है। जोकर से उसकी दोस्ती हो गई है। दिन-भर पानी भरता हैकपड़े धोता है। कहता हैगाँव में क्या है जो जाएँगे! लालमोहर उदास रहता है। धुन्नीराम घर चला गया हैबीमार हो कर।
हिरामन आज सुबह से तीन बार लदनी लाद कर स्टेशन आ चुका है। आज न जाने क्यों उसको अपनी भौजाई की याद आ रही है। ...धुन्नीराम ने कुछ कह तो नहीं दिया हैबुखार की झोंक में! यहीं कितना अटर-पटर बक रहा था  गुलबदनतख्त-हजारा! लहसनवाँ मौज में है। दिन-भर हीराबाई को देखता होगा। कल कह रहा थाहिरामन मालिकतुम्हारे अकबाल से ख़ूब मौज में हूँ। हीराबाई की साड़ी धोने के बाद कठौते का पानी अत्तरगुलाब हो जाता है। उसमें अपनी गमछी डुबा कर छोड़ देता हूँ। लोसूँघोगेहर रातकिसी-न-किसी के मुँह से सुनता है वह - हीराबाई रंडी है। कितने लोगों से लड़े वह! बिना देखे ही लोग कैसे कोई बात बोलते हैं! राजा को भी लोग पीठ-पीछे गाली देते हैं! आज वह हीराबाई से मिल कर कहेगानौटंकी कंपनी में रहने से बहुत बदनाम करते हैं लोग। सरकस कंपनी में क्यों नही काम करतीसबके सामने नाचती हैहिरामन का कलेजा दप-दप जलता रहता है उस समय। सरकस कंपनी में बाघ को ...उसके पास जाने की हिम्मत कौन करेगा! सुरक्षित रहेगी हीराबाई! किधर की गाड़ी आ रही है?
'हिरामनए हिरामन भाय!लालमोहर की बोली सुन कर हिरामन ने गरदन मोड़ कर देखा। ...क्या लाद कर लाया है लालमोहर?
'तुमको ढूँढ़ रही है हीराबाईइस्टिसन पर। जा रही है।एक ही साँस में सुना गया। लालमोहर की गाड़ी पर ही आई है मेले से।
'जा रही हैकहाँहीराबाई रेलगाड़ी से जा रही है?'
हिरामन ने गाड़ी खोल दी। मालगुदाम के चौकीदार से कहा, 'भैयाज़रा गाड़ी-बैल देखते रहिए। आ रहे हैं।'
'उस्ताद!जनाना मुसाफ़िरखाने के फाटक के पास हीराबाई ओढ़नी से मुँह-हाथ ढक कर खड़ी थी। थैली बढ़ाती हुई बोली, 'लो! हे भगवान! भेंट हो गईचलोमैं तो उम्मीद खो चुकी थी। तुमसे अब भेंट नहीं हो सकेगी। मैं जा रही हूँ गुरु जी!'
बक्सा ढोनेवाला आदमी आज कोट-पतलून पहन कर बाबू साहब बन गया है। मालिकों की तरह कुलियों को हुकम दे रहा है  'जनाना दर्जा में चढ़ाना। अच्छा?'
हिरामन हाथ में थैली ले कर चुपचाप खड़ा रहा। कुरते के अंदर से थैली निकाल कर दी है हीराबाई ने। चिड़िया की देह की तरह गर्म है थैली।
'गाड़ी आ रही है।बक्सा ढोनेवाले ने मुँह बनाते हुए हीराबाई की ओर देखा। उसके चेहरे का भाव स्पष्ट है  इतना ज़्यादा क्या है?
हीराबाई चंचल हो गई। बोली, 'हिरामनइधर आओअंदर। मैं फिर लौट कर जा रही हूँ मथुरामोहन कंपनी में। अपने देश की कंपनी है। ...वनैली मेला आओगे न?'
हीराबाई ने हिरामन के कंधे पर हाथ रखा, ...इस बार दाहिने कंधे पर। फिर अपनी थैली से रुपया निकालते हुए बोली, 'एक गरम चादर ख़रीद लेना...।'
हिरामन की बोली फूटीइतनी देर के बाद  'इस्स! हरदम रुपैया-पैसा! रखिए रुपैया! क्या करेंगे चादर?'
हीराबाई का हाथ रुक गया। उसने हिरामन के चेहरे को ग़ौर से देखा। फिर बोली, 'तुम्हारा जी बहुत छोटा हो गया है। क्यों मीतामहुआ घटवारिन को सौदागर ने ख़रीद जो लिया है गुरु जी!'
गला भर आया हीराबाई का। बक्सा ढोनेवाले ने बाहर से आवाज़ दी 'गाड़ी आ गई।हिरामन कमरे से बाहर निकल आया। बक्सा ढोनेवाले ने नौटंकी के जोकर जैसा मुँह बना कर कहा, 'लाटफारम से बाहर भागो। बिना टिकट के पकड़ेगा तो तीन महीने की हवा...।'
हिरामन चुपचाप फाटक से बाहर जा कर खड़ा हो गया। ...टीसन की बातरेलवे का राज! नहीं तो इस बक्सा ढोनेवाले का मुँह सीधा कर देता हिरामन।
हीराबाई ठीक सामनेवाली कोठरी में चढ़ी। इस्स! इतना टान! गाड़ी में बैठ कर भी हिरामन की ओर देख रही हैटुकुर-टुकुर। लालमोहर को देख कर जी जल उठता हैहमेशा पीछे-पीछेहरदम हिस्सादारी सूझती है।
गाड़ी ने सीटी दी। हिरामन को लगाउसके अंदर से कोई आवाज़ निकल कर सीटी के साथ ऊपर की ओर चली गई - कू-ऊ-ऊ! इ-स्स!
-छी-ई-ई-छक्क! गाड़ी हिली। हिरामन ने अपने दाहिने पैर के अँगूठे को बाएँ पैर की एड़ी से कुचल लिया। कलेजे की धड़कन ठीक हो गई। हीराबाई हाथ की बैंगनी साफी से चेहरा पोंछती है। साफी हिला कर इशारा करती है ...अब जाओ। आखिरी डिब्बा गुज़राप्लेटफार्म खाली सब खाली ...खोखले ...मालगाड़ी के डिब्बे! दुनिया ही खाली हो गई मानो! हिरामन अपनी गाड़ी के पास लौट आया।
हिरामन ने लालमोहर से पूछा, 'तुम कब तक लौट रहे हो गाँव?'
लालमोहर बोला, 'अभी गाँव जा कर क्या करेंगेयहाँ तो भाड़ा कमाने का मौक़ा है! हीराबाई चली गईमेला अब टूटेगा।'
 'अच्छी बात। कोई समाद देना है घर?'
लालमोहर ने हिरामन को समझाने की कोशिश की। लेकिन हिरामन ने अपनी गाड़ी गाँव की ओर जानेवाली सड़क की ओर मोड़ दी। अब मेले में क्या धरा है! खोखला मेला!
रेलवे लाइन की बगल से बैलगाड़ी की कच्ची सड़क गई है दूर तक। हिरामन कभी रेल पर नहीं चढ़ा है। उसके मन में फिर पुरानी लालसा झाँकीरेलगाड़ी पर सवार हो करगीत गाते हुए जगरनाथ-धाम जाने की लालसा। उलट कर अपने खाली टप्पर की ओर देखने की हिम्मत नहीं होती है। पीठ में आज भी गुदगुदी लगती है। आज भी रह-रह कर चंपा का फूल खिल उठता हैउसकी गाड़ी में। एक गीत की टूटी कड़ी पर नगाड़े का ताल कट जाता हैबार-बार!
उसने उलट कर देखाबोरे भी नहींबाँस भी नहींबाघ भी नहीं  परी ...देवी ...मीता ...हीरादेवी ...महुआ घटवारिन - को-ई नहीं। मरे हुए मुहर्तों की गूँगी आवाजें मुखर होना चाहती है। हिरामन के होंठ हिल रहे हैं। शायद वह तीसरी क़सम खा रहा है - कंपनी की औरत की लदनी...।
हिरामन ने हठात अपने दोनों बैलों को झिड़की दीदुआली से मारते हुए बोला, 'रेलवे लाइन की ओर उलट-उलट कर क्या देखते हो?' दोनों बैलों ने क़दम खोल कर चाल पकड़ी। हिरामन गुनगुनाने लगा  'अजी हाँमारे गए गुलफ़ाम...!'

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