गुरुवार, 27 नवंबर 2014

केशव, कहि न जाइ का कहिये—तुलसीदास

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मुहम्मद इलियास हुसैन

केशव, कहि न जाइ का कहिये ।
देखत तव रचना विचित्र अति
,समुझि मनहिमन रहिये ।
शून्य भीति पर चित्र
,रंग नहि तनु बिनु लिखा चितेरे ।
धोये मिटे न मरै भीति
, दुख पाइय इति तनु हेरे।
रविकर नीर बसै अति दारुन
,मकर रुप तेहि माहीं ।
बदन हीन सो ग्रसै चराचर
,पान करन जे जाहीं ।
कोउ कह सत्य
,झूठ कहे कोउ जुगल प्रबल कोउ मानै ।
तुलसीदास परिहरै तीनि भ्रम
, सो आपुन पहिचानै ।
विनयपत्रिका से

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