रामदरश मिश्र की लोकप्रिय रचनाएँ
मिश्रजी का पहला
काव्य-संग्रह ‘पथ के गीत’ 1951 में प्रकाशित
हुआ था। आग की हँसी (काव्य-संग्रह) के लिए 2015 का साहित्य अकादमी
प्रस्कार।
उपन्यास : नदी बहती है, कच्चे रास्तों
का सफ़र, पानी के प्राचीर (1961 ई,), जल टूटता हुआ (1969 ई.), बीच का समय (1970 ई.), सूखता हुआ तालाब (1972 ई.), अपने लोग (1976 ई.), रात का सफर (1976 ई.), आकाश की छत (1979 ई.), आदिम राग, बिना दरवाजे का
मकान
(1984 ई.), दूसरा घर (1986 ई.), थकी हुई सुबह (1993 ई.), बीस बरस (1996 ई.), परिवार (2006 ई.)
कहानी-संग्रह : खाली घर (1969 ई.)’, ‘एक वह (1974)’, ‘दिनचर्या (1979 ई.)’, ‘सर्पदंश (1982 ई.), आज का दिन भी (1982 ई.), ‘अपने लिए (1992 ई.)’, एक कहानी लगातार (1997 ई.), फिर कब आयेंगे? (1998 ई.), वसंत का एक दिन, इकसठ कहानियाँ , मेरी प्रिय
कहानियाँ, चर्चित कहानियाँ, श्रेष्ठ
आंचलिक कहानियाँ | विदूषक (2002
ई.), दिन के साथ, 10 प्रतिनिधि
कहानियाँ, मेरी तेरह
कहानियाँ, विरासत, स्वप्न भंग (2013
ई.)। ‘सीमा’, ‘सड़क’,
‘लड़की’, ‘सर्पदंश’, ‘माँ
सन्नाटा’ और ‘बजता हुआ रेडियो’,
‘खंडहर की आवाज’, ‘मुर्दा मैदान’ इत्यादि चर्चित कहानियां हैं।
कविता-संग्रह : पथ के गीत, बैरंग-बेनाम चिट्ठियाँ,
पक गई है धूप, कंधे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया, जुलूस कहां जा रहा है,
रामदरश मिश्र की प्रतिनिधि कविताएँ, आग कुछ नहीं बोलती,
शब्द सेतु , बारिश में भीगते बच्चे,
ऐसे में जब कभी, आम पत्ते, आग की हँसी।
ग़ज़ल संग्रह
हँसी ओठ पर आँखें नम हैं
बाज़ार को निकलते हैं लोग
तू ही बता ऐ जिंदगी
संस्मरण :
स्मृतियों के छंद (1995 ई.), अपने अपने रास्ते (2001 ई.), एक दुनिया अपनी (2008 ई.), बूंद-बूँद नदी, दर्द की हँसी, नदी
बहती है। कच्चे रास्तों का सफर संस्मरण में ‘स्मृतियों के
छन्द’ में अनेक वरिष्ठ लेखकों, गुरुओं और मित्रों के
संस्मरण दिये गए हैं ।
आत्मकथा : सहचर है समय (1991 ई.) ,फुरसत के दिन (2000)। सहचर है समय चार खंडों में प्रकाशित हुआ है : जहां मैं खड़ हूं, रोशनी की पगडंडियां, टूटते-बनते दिन और उत्तर पथ।
यात्रा
वृत्त : यादों से रची यात्रा (2009 ई.) ‘तना हुआ इन्द्रधनुष, ‘भोर का सपना’, ‘पड़ोस की खुशबू’, घर से घर तक, देश-यात्रा।
समीक्षा-ग्रंथ : हिन्दी समीक्षा के स्वरूप और संदर्भ (1974 ई.), आधुनिक हिन्दी कविता के
सर्जनात्मक संदर्भ (1986 ई.), हिन्दी
उपन्यास : एक अंतर्यात्रा, हिन्दी
कहानी : अंतरंग पहचान, हिन्दी
कविता : आधुनिक आयाम, छायावाद का
रचनालोक।
ललित निबंध : ‘कितने बजे हैं? (1982
ई.), ‘बबूल और कैक्टस’ (1998 ई.),
घर-परिवेश (2003 ई.), छोटे-छोटे सुख (2006 ई.)।
डायरीः आते-जाते दिन (2008), आस-पास (2010), बाहर-भीतर।
आग की हँसी
जी नहीं
चूल्हे की आग से तो
गरम-गरम रोटियाँ निकलती हैं
जो बुझाती हैं पेट की ज्वाला,
और धीरे-धीरे आदमी की हँसी बन
जाती हैं
आप जरा आईना देखिए श्रीमान्
आपकी शीतल शालीन हँसी से
कैसे धीमी-धीमी आग फूट रही है
और धीरे-धीरे
अपनी लपेट में ले-ले रही है
दिशाओँ को-
महाज्वाला बनकर।
फिर भी आपकी माया है कि
लोग समझते हैं-
आग चूल्हे ने लगायी है
आपकी माया कितनी हसीन है मायाधर
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