सोमवार, 30 दिसंबर 2019

#शिवदान सिंह चौहान की #रचनाएं/The Works of Shivdaan Singh Chauhan

#शिवदान सिंह चौहान की #रचनाएं/The Works of Shivdaan Singh Chauhan 

(15 मई 1918 ई. - अगस्त 2000 ई.), बमानी, सेमरा, आगरा (उत्तर प्रदेश)
(1) रक्त रंजित स्पेन (स्पेन के गृहयुद्ध पर, 1938 ई.), (2) प्रगतिवाद (1946 ई.), (3) साहित्य की परख (1948 ई.),  (4) कश्मीर : देश और संस्कृति (1949 ई.), (5) हिंदी गद्य साहित्य (1952 ई.),  (6) हिंदी साहित्य के 80 वर्ष (1954 ई.),  (7) साहित्यानुशीलन (1955 ई.), (8) आलोचना के मान (1958 ई.), (9) साहित्य की समस्याएँ (1958 ई.),  (9) आलोचना के सिद्धान्त (1960 ई.), (10) आधुनिक संस्कृति के निर्माता (11) बाबा पृथ्वीसिंह आज़ाद  (12) परिप्रेक्ष्य को सही करते हुए (1999 ई.)। 

#हिंदी भाषा में प्रयुक्त विदेशज या विदेशी शब्द

#हिंदी भाषा में प्रयुक्त विदेशज या विदेशी शब्द


हिंदी भाषा में प्रयुक्त होने वाले विदेशी शब्दों को विदेशज या विदेशी शब्द कहते हैं। ये शब्द हिंदी में फ़ारसी, अरबी, तुर्की, पश्तो, पुर्तगाली, चीनी, अंग्रेज़ी, इत्यादि से आए हैं।
आधुनिक आर्य भाषा का विकास 11 वीं शताब्दी से शुरू होता है और उसी समय से शासन-प्रशासन, धर्म-संस्कृति से संबंधित है कतिपय विदेशी शब्द हिंदी भाषा में शामिल होने शुरू हो गए और यह प्रकिया आज तक जारी है और  भविष्य में भी जारी रहेगी। आदान-प्रदान और बदलाव एक सतत् प्रक्रिया है, जिसमें पुराने शब्द अतीत के गर्भ में समाते और नए शब्द जन्म लेते रहते और घुलते-मिलते रहते हैं।
हिंदी में प्रयुक्त एशियाई शब्द
फ़ारसी, अरबी, तुर्की, पश्तो, जापानी शब्द, चीनी शब्द।
हिंदी में प्रयुक्त यूरोपीय शब्द
अंग्रेज़ी, पुर्तगाली, रूसी, फ्रांसीसी, डच, जर्मन, इतालवी शब्द।
विस्तार के लिए देखें

#पाश्चात्य प्रमुख काव्य सिद्धांत

#पाश्चात्य प्रमुख काव्य सिद्धांत

प्लेटो : अनुकरण सिद्धांत, दैवीय (ईश्वरीय) प्रेरणा सिद्धांत।
अरस्तू : अनुकरण सिद्धांत, विरेचन सिद्धांत त्रासदी।
लोंजाइनस : औदात्य या उदात्त सिद्धांत।
रिचर्डस : मूल्य सिद्धांत, सम्प्रेषण सिद्धांत, काव्य भाषा सिद्धांत।
टी. एस. इलियट : वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धान्त, निर्वैयक्तिकता का सिद्धान्त, परम्परा की परिकल्पना का सिद्धान्त।
क्रोचे : अभिव्यंजनावद।
विलियम वर्डसवर्थ : काव्यभाषा सिद्धांत, स्वच्छंदतावाद।
कॉलरिज : कल्पना सिद्धांत, फैंटेसी सिद्धान्त।
हीगेल : द्वन्द्ववाद।
कार्ल मार्क्स : द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद, मार्क्सवादी यथार्थवाद।
जार्ज लुकाच : महान यथार्थवाद।
कुर्वे एवं  फ्लावेयर : यथार्थवाद।
एमीली जोला : प्राकृत यथार्थवाद।
क्लींथ ब्रुक्स : विडम्बना और विसंगति, अंतर्विरोध।
एलन टेट : तनाव।
जाक देरिदा : विखंडनवाद, उत्तर संरचनावाद।
विलियम एम्पसन : एम्बीगुइटी, अनेकार्थता।
वी. के. विम्साट : सार्वभौमिक मूर्तविधान।
नार्थप फ्राई : मिथकीय समीक्षा।
लारेंस : अंतश्चेतनावादी यथार्थवाद।
फ्रायड : इडियन यथार्थवाद/मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद।
फ्लावर्ट : कुत्सित यथार्थवाद।
डेकार्ट और लॉक : दार्शनिक यथार्थवाद। रॉबर्ट पेन वारेन : आइरनी।
होरेस : औचित्य सिद्धांत।


गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

अंधेर नगरी' के दृश्य क्रमानुसार

अंधेर नगरीके दृश्य क्रमानुसार

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'अंधेर नगरी' का अंतिम दृश्य है :
(1) अरण्य (2) जंगल (3) बाज़ार (4) श्मशान
Question Type :           MCQ
Question ID :  61547512408
Option 1 ID :  61547548377
Option 2 ID :  61547548378
Option 3 ID :  61547548379
Option 4 ID :  61547548380
Status :            Answered
Chosen Option :          3 (120   Hindi      61547512408      61547548380     


'अंधेर नगरी' के दृश्य क्रमानुसार : समर्पण, प्रथम दृश्य (वाह्य प्रांत), दूसरा दृश्य (बाज़ार), तीसरा दृश्य (जंगल), चौथा दृश्य (राजसभा) पांचवा दृश्य (अरण्य), छठा दृश्य (श्मशान)।


रविवार, 15 दिसंबर 2019

NTA/UGC NET/JRF DEC 2019 HINDI-2 QUESTION & ANSWER (01-13)

NTA/UGC NET/JRF DEC 2019 HINDI-2 QUESTION & ANSWER (01-13) # NTA/UGC NET/JRF DEC 2019 HINDI-2 QUESTION & ANSWER (01-13) 

1. 'अंधेर नगरी' नाटक का अंतिम दृश्य है :
(1) आरण्य (2) जंगल (3) बाजार (4) श्मशान
उत्तर : (4) श्मशान
69    Hindi 61547512357      61547548176 (4)
2. ''तात्विक दृष्टि से न तो हम इन्हें (कबीर को पूरे) अद्वैतवादी कह सकते हैं और न एकेश्वरवादी।'' — कबीर से संबंधित यह विचार किसका है ?
(1) हज़ारीप्रसाद द्विवेदी (2) रामचंद्र शुक्ल (3) राहुल सांकृत्यायन (4) माताप्रसाद गुप्त
उत्तर : (2) रामचंद्र शुक्ल (पूर्व मध्य काल : भक्ति काल  संवत् 1375-1700), प्रकरण 1, सामान्य परिचय, 58      Hindi 61547512346      61547548130—2)
3.  दिवस का अवसान समीप था।
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरुशिखा पर थी अब राजती
कमलिनी-कुल वल्लभ की प्रभा।।
इन पंक्तियों का आशय है :
(1)  सूर्यास्त हो गया था।
(2)  आसमान में लालिमा फैलने लगी थी।
(3)  चिड़िया अपने नीड़ों में विश्राम कर रही थी।
(4)  पेड़ों की फुंगियों पर सूरज की आखिरी किरणें विराजमान थीं।
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए :
(1)  a और b
(2)  b और d
(3)  b और c
(4)  a और c
उत्तर : (2)   b और d (94 Hindi 61547512382      61547548274—2)
4. 'उर्वशी' के तृतीय अंक के आधार पर कौन-से कथन सही हैं ?
(1) शक्तिशाली और दुर्द्धर्प पुरुष भी सुंदरियों के कटाक्ष से आहत हो जाते हैं।
(2) उर्वशी मानवी है।
(3) उर्वशी कहती है — यह देह-भाव भ्रांति है।
(4) पुरुरवा के अनुसार मर्त्य मानव को देवता कहा जा सकता है।
(1)   a और b
(2)   a और d
(3)   b और c
(4)   a और c
उत्तर : (4)   a और c (95 Hindi 61547512383      61547548280—4)
5. ''पीछे लागा जाइ था, लोक बद के साथि।
आगे सतगुरु मिल्या दीपक दीया हाथि।।''
उक्त पंक्तियों में कबीर कहना चाहते हैं :
(1) लोक और वेद का अनुसरण करने के कारण मैं परमतत्व से दूर था।
(2) लोक और वेद की रूढ़िवादिता ने परमतत्व के अभिज्ञान का मार्ग प्रशस्त किया।
(3) सद्गुरु के ज्ञान रूपी प्रकाश से मैंने परमतत्व का साक्षात्कार किया।
(4) सद्गुरु ने दीपक थमा कर संसार में भटकने के लिए छोड़ दिया।
निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए :
(1)   a और b
(2)   a और c
(3)   b और c
(4)   b और d
उत्तर : (2)   a और c (71 Hindi 61547512359      61547548182—2)
6. 'उत्तरकांड' के कलयुग प्रसंग में तुलसीदास ने लिखा है :
(1) आचारहीन और वेद विरोधी लोग ज्ञानी और संन्यासी कहलाएंगे।
(2) माता-पिता अपने बच्चों को मानव धर्म की शिक्षा देंगे।
(3) पत्नी के मर जाने और घर-गृहस्थी और संपत्ति के नष्ट हो जाने के बाद लुटे-पिटे लोग संन्यास ग्रहण करेंगे।
(4) कलयुग में अच्छा समय होगा और लोग सुखी होंगे।
निम्नलिखित में से तुलसीदास द्वारा कहे गए सही विकल्प चुनिए :
(1)   a और c
(2)   b और c
(3)   a और cd
(4)   b और d
उत्तर : (1)   a और c (92 Hindi 61547512380      61547548265—1)
7. शक्ति की जिस शक्ति से उसके संकेतित का अर्थ का बोध हो, वहां कौन-सी शब्द शक्ति होती है?
(1) अमिधा (2) लक्षणा (3) व्यंजना (4) शुद्धा लक्षणा
उत्तर : (1) अमिधा (81     Hindi 61547512369      61547548221—1)
साक्षात सांकेतित अर्थ (मुख्यार्थ अथवा वाच्यार्थ) को प्रकट करने वाली शब्दशक्ति अमिधा कहलाती है।
8. प्रकाशन वर्ष की दृष्टि से निम्नलिखित काव्य-कृतियों का सही अनुक्रम है :
(1) विष्णुप्रिया, कुकुरमुत्ता, चांद का मुंह टेढ़ा है, आंगन के पार द्वार
(2) कुकुरमुत्ता, विष्णुप्रिया, आंगन के पार द्वार, चांद का मुंह टेढ़ा है
(3) आंगन के पार द्वार, चांद का मुंह टेढ़ा है, विष्णुप्रिया, कुकुरमुत्ता
(4) चांद का मुंह टेढ़ा है, विष्णुप्रिया, कुकुरमुत्ता, आंगन के पार द्वार
उत्तर : (2) कुकुरमुत्ता (1942 ई.), विष्णुप्रिया (1957 ई.), आंगन के पार द्वार (1961 ई.), चांद का मुंह टेढ़ा है (1964 ई.) (129 Hindi 61547512417 61547548414—2)
9. निर्देश : इस प्रश्न में दो कथन दिए गए हैं। इनमें से एक स्थापना (Assertation) (A) है और दूसरा तर्क (Reason) (R)
स्थापना (Assertation) (A) : भारतेंदु युग में मध्यकालीन का और आधुनिकता का द्वंद्व है।
(Reason) (R) : क्योंकि उस समय का भारतीय समाज संक्रमण से गुज़र रहा था।
दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए :  
विकल्प :
(1)   (A) सही (R) गलत
(2)   (A) सही (R) सही
(3)   (A) गलत (R) गलत
(4)   (A) गलत (R) सही
उत्तर : (A) सही (R) सही (139    Hindi 61547512427      61547548454—2)  

10. साधारणीकरण की निम्नलिखित स्थापनाओं को उनके प्रतिपादकों से सुमेलित कीजिए :
(1) रसास्वाद में वासनात्मक तथा स्थिर मनोवृतिय़ाँ जिनके द्वारा चरित्र की सृष्टि होती है, साधारणीकरण के द्वारा आनंदमय बना दी जाती हैं, इसलिए यह वासना का संशोधन करके उनका साधारणीकरण करता है। (i) रामचंद्र शुक्ल
(2) काव्य-प्रसंग या रस के समस्त अवयवों का साधारणीकरण मानने की अपेक्षा कवि भावना का साधारणीकरण मानना मनोविज्ञान के अधिक अनुकूल है। (ii) अज्ञेय
(3) लोक-हृदय की यह सामान्य अंतर्भूमि परख कर हमारे यहां साधारणीकरण सिद्धांत की प्रतिष्ठा की गई है। यह सामान्य अंतर्भूमि कल्पित या कृत्रिम नहीं है। (iii) जयशंकर प्रसाद
(4) चमत्कारी का अर्थ मर जाता है तब उस शब्द की राग उत्तेजक रागोत्तेजक शक्ति भी क्षीण हो जाती है। उस अर्थ की प्रतिपत्ति करता है, जिससे पुनः रागात्मक संबंध स्थापित हो साधारणीकरण का यही अर्थ है। (iv) नगेंद्र (v) गुलाबराय
निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए :
1.    (a)-(iii); (b)-(iv); (c)-(i); (d)-(ii)
2.    (a)-(ii); (b)-(i); (c)-(iv); (d)-(iii)
3.    (a)-(i); (b)-(ii); (c)-(iv); (d)-(iii)
4.    (a)-(iv); (b)-(iii); (c)-(ii); (d)-(i)
उत्तर : 1.    (a)-(iii); (b)-(iv); (c)-(i); (d)-(ii)
 (124 Hindi 61547512412      61547548393—1)
11. निम्नलिखित में से व्यंग रचनाएं कौन-सी हैं?
(1) भूलने के विरुद्ध             (2) जीप पर सवार इल्लियां
(3) अपनी-अपनी बीमारी    (4) निषाद बांसुरी
निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए :
(1)   a और b
(2)   b और d
(3)   a और c
(4)   b और c
उत्तर : (4)   b और c (108      Hindi 61547512396      61547548332—4)
12. निम्नलिखित में से हिंदी के यात्रा-वृतांत हैं :
(1) याद हो कि न याद हो   (2) अरे यायावर रहेगा याद
(3) आखिरी चट्टान तक    (4) जिनकी याद हमेशा रहेगी
निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए :
(1)   b और d
(2)   a और b
(3)   a और d
(4)   b और c
उत्तर : (4)   b और c (106      Hindi 61547512394      61547548324—4)
13. प्रकाशन काल की दृष्टि से भीष्म साहनी के नाटकों का सही अनुक्रम है :
(1) हानूश, माधवी, रंग दे बसंती चोला, आलमगीर
(2) माधवी, हानूश, रंग दे बसंती चोला, आलमगीर
(3) रंग दे बसंती चोला, आलमगीर, हानूश, माधवी
उत्तर : (1) हानूश (1971 ई., चेकोस्लोवाकिया की लोककथा, जिसमें एक ताला बनानेवाले की आँख बादशाह द्वारा निकाल ली जाती है), माधवी (1985 ई., माधवी और विश्वामित्र के शिष्य गालव ऋषि की पौराणिक कथा के आधुनिक नारी की पीड़ा का चित्रांकन), रंग दे बसंती चोला (1998 ई., जालियावाला बाग़ की क्रूर कहानी के माध्यम से कर्नल डायर और शहीद ऊधवसिंह का चरित्रांकन, सामाज्यवाद और राष्ट्रवाद की टकराहट), आलमगीर (1999 पात्र : औरंगज़ेब, दारा)। 
130 HINDI 61547512418  61547548417-1

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

भाषाओं पर संभावित प्रश्न

प्रश्नोत्तरी-13 

(भाषा और साहित्य )


1. वर्तमान समय में संविधान द्वारा स्वीकृत भाषाओं की संख्या है :
(A) चौदह (B) बीस (C) बाईस (D) छब्बीस
ANS. (C) बाईस

2. संविधान के किस अनुच्छेद में देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया है ?
(A) 343 (B) 345 (C) 347 (D) 348
ANS. (A) 343

3. हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यता कब मिली ?
 (A) 26 जनवरी, 1950    (B) 14 सितम्बर, 1949
(C) 15 अगस्त, 1947     (D) 14 सितम्बर, 1955
ANS. (B) 14 सितम्बर, 1949

4. भारतीय संविधान के किन अनुच्छेदों में राजभाषा-सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख है?
(A) 343 से 351 तक (B) 434 से 315 तक
(C) 443 से 115 तक (D) 334 से 153 तक
ANS. (A) 343 से 351 तक

5. 21वें संविधान संशोधन (1967 ई.) में कौन-सी भाषा शामिल की गई?
1. नेपाली 2. बोडो 3. कोंकणी 4. सिन्धी
ANS. 4. सिन्धी

6. भारतीय संविधान के 71वें संशोधन (1992 ई.) में कौन-सी भाषा शामिल नहीं थी?
1. नेपाली 2. मणिपुरी 3. कोंकणी 4. मैथिली
ANS. 4. मैथिली

7. भारतीय संविधान के 92वें संशोधन (2003 ई.) में कौन-कौन-सा भाषाएँ शामिल की गईं?
सही विकल्प चुनिए :
(a) मैथिली और डोंगरी
(b) नेपाली और मणिपुरी
(c) कोंकणी और मैथिली
 (d) बोडो और संथाली
विकल्प :
  1. (a) और (d)
  2. (b) और (c)
  3. (c) और (d)
  4. (a) और (c)
  5. ANS. 1. (a) और (d)
8. हिंदी पर सामासिक संस्कृति के वाहन का दायित्व किस अनुच्छेद में निर्धारित किया गया है?
(1) 343 (2) 348 (3) 349 (4) 351
ANS. (4) 351

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सोमवार, 2 दिसंबर 2019

हंस जवाहिर के रचयिता क़ासिमशाह (QUASIM SHAH : THE HINDI POET) : आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टि में

हंस जवाहिर के रचयिता क़ासिमशाह (QUASIM SHAH : THE HINDI POET) : आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टिमें 


ये दरियाबाद (बाराबंकी) के रहनेवाले थे और संवत् 1788 के लगभग वर्तमान थे। इन्होंने 'हंस जवाहिर' नाम की कहानी लिखी, जिसमें राजा हंस और रानी जवाहिर की कथा है।
फारसी अक्षरों में छपी (नामी प्रेस, लखनऊ) इस पुस्तक की एक प्रति हमारे पास है। उसमें कवि ने शाहेवक्त का इस प्रकार उल्लेख करके
मुहमदसाह दिल्ली सुलतानू । का मन गुन ओहि केर बखानू
छाजै पाट छत्रा सिर ताजू । नावहिं सीस जगत के राजू
रूपवंत दरसन मुँह राता । भागवंत ओहि कीन्ह बिधाता
दरबवंत धरम महँपूरा । ज्ञानवंत खड्ग महँ सूरा
अपना परिचय इन शब्दों में दिया है
दरियाबाद माँझ मम ठाऊँ । अमानउल्ला पिता कर नाऊँ
तहवाँ मोहिं जनम बिधि दीन्हा । कासिम नाँव जाति कर हीना
तेहूँ बीच विधि कीन्ह कमीना । ऊँच सभा बैठे चित दीना
ऊँच संग ऊँच मन भावा । तब भा ऊँच ज्ञान बुधि पावा
ऊँचा पंथ प्रेम का होई । तेहि महँ ऊँच भए सब कोई
कथा का सार कवि ने यह दिया है
कथा जो एक गुपुत महँ रहा । सो परगट उघारि मैं कहा
हंस जवाहिर बिधि औतारा । निरमल रूप सो दई सवारा
बलख नगर बुरहान सुलतानू । तेहि घर हंस भए जस भानू
आलमशाह चीनपति भारी । तेहि घर जनमी जवाहिर बारी
तेहि कारनवह भएउ वियोगी । गएउ सो छाँड़ि देस होइ जोगी
अंत जवाहिर हंस घर आनी । सो जग महँ यह गयउ बखानी
सो सुनि ज्ञान कथा मैं कीन्हा । लिखेउँ सो प्रेम रहै जग चीन्हा
इनकी रचना बहुत निम्न कोटि की है। इन्होंने जगह जगह जायसी की पदावली तक ली है, पर प्रौढ़ता नहीं है। (आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का इतिहास, रीतिकाल, प्रकरण 2—ग्रंथकार कवि)

चित्रावली (1613 ई.) के रचयिता समान (USMAAN : THE HINDI POET) : आचार्य रामटंद्र शुक्ल की दृष्टि में


चित्रावली (1613 ई.) के रचयिता समान (USMAAN :THE HINDI POET) : आचार्यरामटंद्र शुक्ल की दृष्टि में

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M : 9717324769

ये जहाँगीर के समय में वर्तमान थे और गाजीपुर के रहनेवाले थे। इन्होंने अपना उपनाम 'मान' लिखा है। ये शाह निजामुद्दीन चिश्ती की शिष्य परंपरा में हाजी बाबा के शिष्य थे। उसमान ने सन् 1022 हिजरी अर्थात् 1613 ईसवी में 'चित्रावली' नाम की पुस्तक लिखी। पुस्तक के आरंभ में कवि ने स्तुति के उपरांत पैगंबर और चार खलीफों की, बादशाह (जहाँगीर) की तथा शाह निजामुद्दीन और हाजी बाबा की प्रशंसा लिखी है।
कवि ने 'योगी ढूँढ़न खंड' में काबुल, बदख्शाँ, खुरासन, रूस, साम, मिस्र, इस्तंबोल, गुजरात, सिंहलद्वीप आदि अनेक देशों का उल्लेख किया है। सबसे विलक्षण बात है जोगियों का अंग्रेजों के द्वीप में पहुँचना
बलंदीप देखा अंगरेजा । तहाँ जाइ जेहि कठिन करेजा।।
ऊँच नीच धान संपत्ति हेरा । मद बराह भोजन जिन्ह केरा।।
कवि ने इस रचना में जायसी का पूरा अनुकरण किया है।.....कहानी बिल्कुल कवि की कल्पित है, जैसा कि कवि ने स्वयं कहा है
कथा एक मैं हिए उपाई। कहत मीठ और सुनत सोहाई।।
कथा का सारांश यह है
नेपाल के राजा धरनीधर पँवार ने पुत्र के लिए कठिन व्रत पालन करके शिव पार्वती के प्रसाद से 'सुजान' नामक एक पुत्र प्राप्त किया। सुजानकुमार एक दिन शिकार में मार्ग भूल देव (प्रेत) की मढ़ी में जा सोया। देव ने आकर उसकी रक्षा स्वीकार की। एक दिन वह देव अपने एक साथी के साथ रूपनगर की राजकुमारी चित्रावली की वर्षगाँठ का उत्सव देखने के लिए गया और अपने साथ सुजानकुमार को भी लेता गया। और कोई उपयुक्त स्थान न देख देवों ने राजकुमार को राजकुमारी की चित्रसारी में ले जाकर रखा और आप उत्सव देखने लगे। कुमार राजकुमारी का चित्र टँगा देख उस पर आसक्त हो गया और अपना भी एक चित्र बनाकर उसी की बगल में टाँग कर सो रहा। देव लोग उसे उठा कर फिर उसी मढ़ी में रख आए। जागने पर कुमार को चित्रवाली घटना स्वप्न सी मालूम हुई, पर हाथ में रंग लगा देख उसके मन में घटना के सत्य होने का निश्चय हुआ और वह चित्रावली के प्रेम में विकल हो गया। इसी बीच में उसके पिता के आदमी आकर उसको राजधानी में ले गए। पर वहाँ वह अत्यंत खिन्न और व्याकुल रहता। अंत में अपने सहपाठी सुबुद्धि नामक एक ब्राह्मण के साथ वह फिर उसी मढ़ी में गया और वहाँ बड़ा भारी अन्नसत्र खोल दिया।
राजकुमारी चित्रावली भी उसका चित्र देख प्रेम में विह्वल हुई और उसने अपने नपुंसक भृत्यों को, जोगियों के वेष में राजकुमार का पता लगाने के लिए भेजा। इधर एक कुटीचर ने कुमारी की माँ हीरा से चुगली की और कुमार का वह चित्र धो डाला गया। कुमारी ने जब यह सुना तब उसने उस कुटीचर का सिर मुंड़ाकर उसे निकाल दिया। कुमारी के भेजे हुए जोगियों में से एक सुजान कुमार के उस अन्नसत्रा तक पहुँचा और राजकुमार को अपने साथ रूपनगर ले आया। वहाँ एक शिवमंदिर में उसका कुमारी के साथ साक्षात्कार हुआ। पर ठीक इसी अवसर पर कुटीचर ने राजकुमार को अंधा कर दिया और एक गुफा में डाल दिया जहाँ उसे एक अजगर निगल गया। पर उसके विरह की ज्वाला से घबराकर उसने उसे चट उगल दिया। वहीं पर एक वनमानुष ने उसे एक अंजन दिया जिससे उसकी दृष्टि फिर ज्यों की त्यों हो गई। वह जंगल में घूम रहा था कि उसे एक हाथी ने पकड़ा। पर उस हाथी को एक पक्षिराज ले उड़ा और उसने घबराकर कुमार को समुद्रतट पर गिरा दिया। वहाँ से घूमता फिरता कुमार सागरगढ़ नामक नगर में पहुँचा और राजकुमारी कँवलावती की फुलवारी में विश्राम करने लगा। राजकुमारी जब सखियों के साथ वहाँ आई तब उसे देख मोहित हो गई और उसने उसे अपने यहाँ भोजन के लिए बुलवाया। भोजन में अपना हार रखवाकर कुमारी ने चोरी के अपराध में उसे कैद कर लिया। इस बीच सोहिल नाम का कोई राजा कँवलावती के रूप की प्रशंसा सुन उसे प्राप्त करने के लिए चढ़ आया। सुजानकुमार ने उसे मार भगाया। अंत में सुजानकुमार ने कँवलावती से, चित्रावली के न मिलने तक समागम न करने की प्रतिज्ञा करके विवाह कर लिया। कँवलावती को लेकर कुमार गिरनार की यात्रा के लिए गया।
इधर चित्रावली के भेजे एक जोगी दूत ने गिरनार में उसे पहचाना और चट चित्रावली को जाकर संवाद दिया। चित्रावली का पत्र लेकर वह दूत फिर लौटा और सागरगढ़ में धुईं लगाकर बैठा। कुमार सुजान उस जोगी की सिद्धि सुन उसके पास आया और उसे जानकर उसके साथ रूपनगर गया। इसी बीच वहाँ पर सागरगढ़ के एक कथक ने चित्रावली के पिता की सभा में जाकर सोहिल राजा के युद्ध के गीत सुनाए; जिन्हें सुन राजा को चित्रावली के विवाह की चिंता हुई। राजा ने चार चित्रकारों को भिन्न भिन्न देशों के राजकुमारों के चित्र लाने को भेजा। इधर चित्रावली का भेजा हुआ वह जोगी दूत सुजान कुमार को एक जगह बैठाकर उसके आने का समाचार कुमारी को देने आ रहा था। एक दासी ने वह समाचार द्वेषवश रानी से कह दिया और वह दूत मार्ग ही में कैद कर लिया गया। दूत के न लौटने पर सुजानकुमार बहुत व्याकुल हुआ और चित्रावली का नाम ले लेकर पुकारने लगा। राजा ने उसे मारने के लिए मतवाला हाथी छोड़ा, पर उसने उसे मार डाला। इस पर राजा उस पर चढ़ाई करने जा रहा था कि इतने में भेजे हुए चार चित्रकारों में से एक चित्रकार सागरगढ़ से सोहिल के मारने वाले राजकुमार का चित्र लेकर आ पहुँचा। राजा ने जब देखा कि चित्रावली का प्रेमी वही सुजानकुमार है तब उसने अपनी कन्या चित्रावली के साथ उसका विवाह कर दिया।
कुछ दिनों में सागरगढ़ की कँवलावती ने विरह से व्याकुल होकर सुजानकुमार के पास हंस मिश्र को दूत बनाकर भेजा जिसने भ्रमर की अन्योक्ति द्वारा कुमार को कँवलावती के प्रेम का स्मरण कराया। इस पर सुजानकुमार ने चित्रावली को लेकर स्वदेश की ओर प्रस्थान किया और मार्ग में कँवलावती को भी साथ ले लिया। मार्ग में कवि ने समुद्र के तूफान का वर्णन किया है। अंत में राजकुमार अपने घर नेपाल पहुँचा और उसने वहाँ दोनों रानियों सहित बहुत दिनों तक राज्य किया।
जैसा कि कहा जा चुका है, उसमान ने जायसी का पूरा अनुकरण किया है। जायसी के पहले के कवियों ने पाँच पाँच चौपाइयों (अर्धालियों) के पीछे एक दोहा रखा है, पर जायसी ने सात चौपाइयों का क्रम रखा और यही क्रम उसमान ने भी रखा है। कहने की आवश्यकता नहीं, इस कहानी की रचना भी बहुत कुछ आध्यात्मिक दृष्टि से हुई है। कवि ने सुजानकुमार को एक साधक के रूप में चित्रित ही नहीं किया है, बल्कि पौराणिक शैली का अवलंबन करके उसने उसे परम योगी शिव के अंश से उत्पन्न तक कहा है। महादेव जी राजा धरनीधर पर प्रसन्न होकर वर देते हैं कि
देखु देत हौं आपन अंसा। अब तोरे होइहौं निज बंसा
कँवलावती और चित्रावली अविद्या और विद्या के रूप में कल्पित जान पड़ती हैं। सुजान का अर्थ ज्ञानवान है। साधनकाल में अविद्या को बिना दूर रखे विद्या (सत्यज्ञान) की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसी से सुजान ने चित्रावली के प्राप्त न होने तक कँवलावती के साथ समागम न करने की प्रतिज्ञा की थी। जायसी की ही पद्ध ति पर नगर, सरोवर, यात्रा, दानमहिमा आदि का वर्णन चित्रावली में भी है। सरोवर क्रीड़ा के वर्णन में एक दूसरे ढंग से कवि ने 'ईश्वर की प्राप्ति' की साधना की ओर संकेत किया है। चित्रावली सरोवर के गहरे जल में यह कह कर छिप जाती है कि मुझे जो ढूँढ़ ले उसकी जीत समझी जायगी। सखियाँ ढूँढ़ती हैं और नहीं पाती हैं
सरवर ढूँढ़ि सबै पचि रहीं । चित्रिनि खोज न पावा कहीं।।
निकसीं तीर भईं बैरागी । धारे ध्यान सुख बिनवै लागी।।
गुपुत तोहिं पावहि का जानी । परगट महँ जो रहै छपानी।।
चतुरानन पढ़ि चारौ बेदू । रहा खोजि पै पाव न भेदू।।
हम अंधी जेहि आप न सूझा । भेद तुम्हार कहाँ लौं बूझा।।
कौन सो ठाउँ जहाँ तुम नाहीं । हम चख जोति न देखहिं काहीं।।
पावै खोज तुम्हार सो, जेहि दिखरावहु पंथ।
कहा होइ जोगी भए, और बहु पढ़े गरंथ॥
विरहवर्णन के अंतर्गत षट्ऋतु का वर्णन सरस और मनोहर है
ऋतु बसंत नौतन बन फूला । जहँ जहँ भौंर कुसुम रँग भूला।।
आहि कहाँ सो भँवर हमारा । जेहि बिनु बसत बसंत उजारा।।
रात बरन पुनि देखि न जाई । मानहुँ दवा देहुँ दिसि लाई।।
रतिपति दुरद ऋतुपती बली । कानन देह आइ दलमली।।
(आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का इतिहास, रीतिकाल, प्रकरण 2—ग्रंथकार कवि)