हंस जवाहिर के रचयिता क़ासिमशाह (QUASIM SHAH : THE HINDI POET) : आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टिमें
ये दरियाबाद (बाराबंकी) के रहनेवाले थे और संवत् 1788 के लगभग वर्तमान थे। इन्होंने 'हंस जवाहिर' नाम की कहानी
लिखी, जिसमें राजा हंस और रानी जवाहिर की कथा है।
फारसी अक्षरों में छपी (नामी प्रेस, लखनऊ) इस पुस्तक की एक प्रति हमारे पास है। उसमें कवि ने शाहेवक्त का इस प्रकार
उल्लेख करके
मुहमदसाह दिल्ली सुलतानू । का मन गुन ओहि केर बखानू
छाजै पाट छत्रा सिर ताजू । नावहिं सीस जगत के राजू
रूपवंत दरसन मुँह राता । भागवंत ओहि कीन्ह बिधाता
दरबवंत धरम महँपूरा । ज्ञानवंत खड्ग महँ सूरा
अपना परिचय इन शब्दों में दिया है
दरियाबाद माँझ मम ठाऊँ । अमानउल्ला पिता कर नाऊँ
तहवाँ मोहिं जनम बिधि दीन्हा । कासिम नाँव जाति कर हीना
तेहूँ बीच विधि कीन्ह कमीना । ऊँच सभा बैठे चित दीना
ऊँच संग ऊँच मन भावा । तब भा ऊँच ज्ञान बुधि पावा
ऊँचा पंथ प्रेम का होई । तेहि महँ ऊँच भए
सब कोई
कथा का सार कवि ने यह दिया है—
कथा जो एक गुपुत महँ रहा । सो परगट उघारि मैं कहा
हंस जवाहिर बिधि औतारा । निरमल रूप सो दई सवारा
बलख नगर बुरहान सुलतानू । तेहि घर हंस भए जस भानू
आलमशाह चीनपति भारी । तेहि घर जनमी जवाहिर बारी
तेहि कारनवह भएउ वियोगी । गएउ सो छाँड़ि देस होइ जोगी
अंत जवाहिर हंस घर आनी । सो जग महँ यह गयउ बखानी
सो सुनि ज्ञान कथा मैं कीन्हा । लिखेउँ सो प्रेम रहै
जग चीन्हा
इनकी रचना बहुत निम्न कोटि की है। इन्होंने जगह जगह जायसी की पदावली तक ली है, पर प्रौढ़ता नहीं है। (आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का इतिहास, रीतिकाल, प्रकरण 2—ग्रंथकार कवि)
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