'ध्रुवस्वामिनी' नाटक के गीत : Hindi Sahitya Vimarsh
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• मन्दाकिनी का गीत
यह कसक अरे आँसू सह जा।
बनकर विनम्र अभिमान मुझे
मेरा अस्तित्व बता, रह जा।
बन प्रेम छलक कोने-कोने
अपनी नीरव गाथा कह जा
करुणा बन दुखिया वसुधा पर
शीतलता फैलाता बह जा।
(मन्दाकिनी का गीत, प्रथम दृश्य)
• मंदाकिनी का गीत
पैरों के नीचे जलधर हों, बिजली से उनका खेल चले।
संकीर्ण कगारों के नीचे, शत-शत झरने बेमेल चलें ॥
सन्नाटे में हो विकल पवन, पादप निज पद हों चूम रहे।
तब भी गिरि पथ का अथक पथिक, ऊपर ऊँचे सब झेल चले ॥
पृथ्वी की आँखों में बनकर, छाया का पुतला बढ़ता हो।
सूने तम में हो ज्योति बना, अपनी प्रतिमा को गढ़ता हो ॥
पीड़ा की धूल उड़ाता-सा, बाधाओं को ठुकराता-सा।
कष्टों पर कुछ मुसक्याता-सा, ऊपर ऊँचे सब झेल चले ॥
खिलते हों क्षत के फूल वहाँ, बन व्यथा तमिस्रा के तारे।
पद-पद पर ताण्डव नर्तक हों, स्वर सप्तक होवें लय सारे ॥
भैरव रव से हो व्याप्त दिशा, हो काँप रही भय-चकित निशा।
हो स्वेद धार बहती कपिशा, ऊपर ऊंचे सब झेल चले ॥
विचलित हो अचल न मौन रहे, निष्ठुर श्रृंगार उतरता हो।
क्रन्दन कम्पन न पुकार बने, निज साहस पर निर्भरता हो ॥
अपनी ज्वाला को आप पिये, नव नील कण्ठ की छाप लिये।
विश्राम शांति को शाप दिए, ऊपर ऊँचे सब झेल चले ॥
(मंदाकिनी का गीत, प्रथम दृश्य)
• कोमा का गीत
यौवन! तेरी चंचल छाया।
इसमें बैठे घूँट
भर पी लूँ जो रस तू है लाया।
मेरे प्याले में
पद बनकर कब तू छली समाया।
जीवन-वंशी के छिद्रों
में स्वर बनकर लहराया।
पल भर रुकने वाले!
कह तू पथिक! कहाँ से आया
(कोमा का गीत, द्वितीय दृश्य)
• नर्तकियों का गीत
अस्ताचल पर युवती सन्ध्या की खुली अलक घुँघराली है।
लो, मानिक मदिरा की धारा
अब बहने लगी निराली है।
भरी ली पहाड़ियों
ने अपनी झीलों की रत्नमयी प्याली।
झुक चली चूमने बल्लरियों
से लिपटी तरु की डाली है।
यह लगा पिघलने मानिनियों
का हृदय मृदु-प्रणय-रोष भरा।
वे हँसती हुई दुलार-भरी
मधु लहर उठाने वाली है।
भरने निकले हैं प्यार
भरे जोड़े कुंजों की झुरमुट से।
इस मधुर अँधेरी में
अब तक क्या इनकी प्याली खाली है।
भर उठीं प्यालियाँ, सुमनों ने सौरभ मकरन्द
मिलाया है।
कामिनियों ने अनुराग-भरे
अधरों से उन्हें लगा ली है।
वसुधा मदमाती हुई
उधर आकाश लगा देखो झुकने।
सब झूम रहे अपने
सुख में तूने क्यों बाधा डाली है।
(नर्तकियों
का गीत, द्वितीय दृश्य)
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