सोमवार, 19 अगस्त 2019

गीतफ़रोश (भवानीप्रसाद मिश्र रचित कविता, NTANET/JRF के पाठ्यक्रम में सम्मिलित) : Hindi Sahitya Vimarsh


गीतफ़रोश (भवानीप्रसाद मिश्ररचित कविता, NTANET/JRF के पाठ्यक्रम में सम्मिलित) : HindiSahitya Vimarsh


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अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास

जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !
जी, माल देखिए, दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं है, काम बताऊँगा,
कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,
कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने,
यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलाएगा,
यह गीत पिया को पास बुलाएगा !
जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको;
पर बाद-बाद में अक़्ल जगी मुझको,
जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान,
जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान -
मैं सोच-समझकर आख़िर
अपने गीत बेचता हूँ,
जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !
यह गीत सुबह का है, गाकर देखें,
यह गीत ग़ज़ब का है, ढाकर देखें,
यह गीत ज़रा सूने में लिक्खा था,
यह गीत वहाँ पूने में लिक्खा था,
यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है,
यह गीत बढ़ाए से बढ़ जाता है !
यह गीत भूख और प्यास भगाता है,
जी, यह मसान में भूख जगाता है,
यह गीत भुवाली की है हवा हुज़ूर,
यह गीत तपेदिक की है दवा हुज़ूर,
जी, और गीत भी हैं, दिखलाता हूँ,
जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ !
जी, छंद और बे-छंद पसन्द करें,
जी, अमर गीत और ये जो तुरत मरें !
ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात,
मैं पास रखे हूँ क़लम और दावात
इनमें से भाएँ नहीं, नए लिख दूँ,
मैं नए पुराने सभी तरह के
गीत बेचता हूँ,
जी हाँ, हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !
जी गीत जनम का लिखूँ, मरण का लिखूँ,
जी, गीत जीत का लिखूँ, शरण का लिखूँ,
यह गीत रेशमी है, यह खादी का,
यह गीत पित्त का है, यह बादी का !
कुछ और डिजायन भी हैं, यह इल्मी,
यह लीजे चलती चीज नई, फिल्मी,
यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत !
यह दुकान से घर जाने का गीत !
जी नहीं दिल्लगी की इस में क्या बात,
मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात,
तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,
जी रूठ-रुठ कर मन जाते है गीत,
जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूँ,
गाहक की मर्ज़ी, अच्छा, जाता हूँ,
मैं बिलकुल अंतिम और दिखाता हूँ,
या भीतर जा कर पूछ आइए, आप,
है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप
क्या करूँ मगर लाचार हार कर
गीत बेचता हूँ।
जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !

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