चंद्रधर शर्मा गुलेरी (संवत्1940-1977) : आचार्य रामचंद्र शुक्ल की दृष्टि में : Hindi Sahitya Vimarsh
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अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद
इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद
इलियास
इनका (पं. चंद्रधार गुलेरी का) जन्म जयपुर में एक
विख्यात पंडित घराने में 25 आषाढ़ संवत् 1940 में हुआ था। इनके पूर्वज काँगड़े के गुलेर
नामक स्थान से जयपुर आए थे। पं. चंद्रधारजी संस्कृत
के प्रकांड विद्वान और अंग्रेजी उच्च शिक्षा से सम्पन्न व्यक्ति थे। जीवन के
अंतिम वर्षों के पहले ये बराबर अजमेर के मेयो कॉलेज में अध्यापक रहे। पीछे काशी हिंदू
विश्वविद्यालय के ओरियंटल कॉलेज के प्रिंसिपल होकर आए। पर हिन्दी के दुर्भाग्य से थोड़े
ही दिनों में संवत् 1977 में इनका परलोकवास हो गया। ये जैसे धुरंधर पंडित थे वैसे ही सरल और विनोदशील प्रकृति
के थे।
निबंधकार गुलेरी
गुलेरीजी ने 'सरस्वती' के कुछ ही महीने पीछे अपनी थोड़ी अवस्था में जयपुर से 'समालोचक' नामक एक मासिक पत्र अपने संपादकत्व में निकलवाया था। उक्त पत्र द्वारा
गुलेरीजी एक बहुत ही अनूठी लेखनशैली लेकर साहित्यक्षेत्र में उतरे थे। ऐसा गंभीर और
पांडित्यपूर्ण हास,
जैसा इनके लेखों में रहता था और कहीं देखने में
न आया। अनेक गूढ़ शास्त्रीय विषयों तथा कथाप्रसंगों की ओर विनोदपूर्ण संकेत करती हुई
उनकी वाणी चलती थी। इसी प्रसंगगर्भत्व (एल्यूसिवनेस) के कारण इनकी चुटकियों का आनंद
अनेक विषयों की जानकारी रखनेवाले पाठकों को ही विशेष मिलता था। इनके व्याकरण ऐसे रूखे
विषय के लेख भी मज़ाक़ से खाली नहीं होते थे।
यह बेधड़क कहा जा सकता है कि शैली की जो विशिष्टता और अर्थगर्भित
वक्रता गुलेरीजी में मिलती है और किसी
लेखक में नहीं। इनके स्मित हास की सामग्री ज्ञान के विविधा क्षेत्रों से ली गई है।
अत: इनके लेखों का पूरा आनंद उन्हीं को मिल सकता है जो बहुज्ञ या कम से कम बहुश्रुत
हैं।
कहानीकार गुलेरी
संस्कृत के प्रकांड प्रतिभाशाली विद्वान हिन्दी के अनन्य आराधक
श्री चंद्रधार शर्मा गुलेरी की अद्वितीय कहानी 'उसने कहा था' संवत् 1972 अर्थात् सन् 1915 की 'सरस्वती' में छपी थी। इसमें
पक्के यथार्थवाद के बीच, सुरुचि की चरम मर्यादा के भीतर, भावुकता का चरम उत्कर्ष
अत्यंत निपुणता के साथ संपुटित है। घटना इसकी ऐसी है जैसी बराबर हुआ करती है, पर उसमें भीतर से
प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झाँक रहा है , केवल झाँक रहा है निर्लज्जता के साथ पुकार या कराह
नहीं रहा है। कहानी भर में कहीं प्रेमी की निर्लज्जता, प्रगल्भता, वेदना की बीभत्स विवृत्ति
नहीं है। सुरुचि के सुकुमार से सुकुमार स्वरूप पर कहीं आघात नहीं पहुँचता। इसकी घटनाएँ
ही बोल रही हैं, पात्रों के बोलने
की अपेक्षा नहीं।
रामचंद्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का
इतिहास, आधुनिक काल, प्रकरण 4 : गद्य साहित्य का प्रसार : छोटी
कहानियाँ
सादे ढंग से केवल कुछ अत्यंत व्यंजक
घटनाएँ और थोड़ी बातचीत सामने लाकर क्षिप्र गति से किसी एक गंभीर संवेदना या मनोभाव
में पर्यवसित होनेवाली, जिसका बहुत ही अच्छा नमूना है, स्वर्गीय गुलेरीजी की प्रसिद्ध
कहानी, 'उसने कहा था'।
—रामचंद्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का इतिहास, आधुनिक काल, प्रकरण 4 : गद्य साहित्य का प्रसार : छोटी कहानियाँ
यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी
है।
—रामचंद्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का इतिहास, आधुनिक काल, प्रकरण 4 : गद्य साहित्य का प्रसार : निबंध
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