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प्रश्नोत्तरी-59 (हिंदी साहित्यकारों के परीक्षोपयोगी कथन)
"ज्ञान राशि के संचित कोष का नाम साहित्य है।" (आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेद)
"हिंदी नई चाल में ढली 1873 में।" (भारतेंदु हरिश्चंद्र)
"साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है।" (बालकृष्ण भट्ट)
"साहित्य का उद्देश्य दबे-कुचले हुए वर्ग की मुक्ति का होना चाहिए।" (प्रेमचंद)
"साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई को भी नहीं, बल्कि उनके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है।" (प्रेमचंद)
"मानव अथवा प्रकृति के सूक्ष्म किंतु व्यक्त सुंदरी में आध्यात्मिक छाया का भान मेरे विचार से छायावाद की एक सर्वमान्य व्याख्या हो सकती है।" (आचार्य नंददुलारे वाजपेयी)
"कोई कवि विचार और भाषा की परंपरा को तोड़कर नए सृजन की ओर उन्मुख होता है तो उसकी हंसी उड़ाई जाती है।" (सुदामा पांडेय 'धूमिल')
"मुझे प्रोफेसरों के बीच में छायावाद सिद्ध करना पड़ेगा।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')
"मनुष्य की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्य की मुक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग हो जाना है।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')
"यहां एक ऐसा दल है जो उच्च शिक्षित है, शायद सोशलिस्ट भी है..... ये उच्च शिक्षित जन कुछ लिखते भी हैं, इसमें मुझे संशय है। शायद इसलिए लिखने का एक नया आविष्कार इन्होंने किया है।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')
"जब मनुष्य का हृदय अपनी अभिव्यक्ति के लिए व्याकुल हो उठा, तभी स्वच्छंद छंद में उसकी छाया अंकित हुई।" (महादेवी वर्मा)
"छायावाद एक विशाल सांस्कृतिक चेतना का परिणाम था, जिसमें कवियों की भीतरी आकुलता ने ही नवीन भाषा-शैली में अपने को अभिव्यक्त किया।" (पंडित हज़ारी प्रसाद द्विवेदी)
"छायावाद व्यक्तिवाद की कविता है जिसका आरंभ व्यक्ति के महत्व को स्वीकार करने और करवाने में हुआ।" (डॉ. नामवर सिंह)
"छायावादी कवि सुंदर शब्द संचय द्वारा अपनी रचना में आकर्षण, सजावट एवं संगीत उत्पन्न करना चाहता है, अनुभूति को व्यक्त करना मुख्य ध्येय नहीं है।" (डॉ. देवराज)
"यह (छायावादी काव्य) सरासर हिमाक़त, धृष्टता, अहमन्यता तथा हमचुनोदीगरेनेस्त के सिवाय और क्या हो सकता है।" (महावीर प्रसाद द्विवेदी)
"इस कविता ने जीवन के सूक्ष्मतम मूल्यों की प्रतिष्ठा द्वारा नवीन सौंदर्य चेतना जगाकर एक वृहत समाज की अभिरुचि का परिष्कार किया और उसकी समृद्धि की समता हिंदी का केवल भक्ति-काव्य ही कर सकता है।" (डॉ. नगेंद्र)
"प्रगतिशील कविता वास्तव में छायावाद की ही एक धारा है। दोनों स्वरों में जागरण का उदात्त संदेश मिलता है, एक में मानवीय जागरण का, दूसरे में लो जागरण का।" (सुमित्रानंदन पंत)
"प्रगतिवाद और प्रयोगवाद छायावाद की उपशाखाएं हैं। ये मूलतः एक ही युग चेतना अथवा युग सत्य से अनुप्राणित हैं और एक दूसरे की पूरक हैं।" (सुमित्रानंदन पंत)
"प्रगतिवाद समाजवाद की ही साहित्यिक अभिव्यक्ति है।" (डॉ. नगेंद्र)
"प्रयोग का कोई बाद नहीं है। हम वादी नहीं रहे, नहीं हैं, न प्रयोग अपने आप में इष्ट अथवा साध्य है। ठीक उसी तरह कविता का कोई बाद नहीं है, कविता भी अपने आप में इष्ट या साध्य नहीं। अतः हमें प्रयोगवादी कहना उतना ही सार्थक या निरर्थक है, जितना कवितावादी कहना।" (अज्ञेय)
"ईश्वर ने मानव के रूप में अपनी प्रतिमा का निर्माण किया। कुशल शिल्पी होने के नाते उसने प्रत्येक प्रतिमा भिन्न और और अद्वितीय बनाई। भिन्न होने के कारण प्रतिमाएं परस्पर प्रेम कर सकीं।" (अज्ञेय)
"मैं उन व्यक्तियों में से हूं और ऐसे व्यक्तियों की संख्या शायद दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है जो भाषा का सम्मान करते हैं और अच्छी भाषा को अपने आप में एक सिद्धि मानते हैं।" (अज्ञेय)
"वस्तुतः नई कविता प्रयोगवाद का ही विकसित रूप है।" (गोविंद शर्मा 'रजनीश')
"बच्चन और दिनकर दोनों प्रतिद्वंद्वी कवि हैऔ। बच्चन की भाषा दिनकर से ज़ोरदार है। दिनकर के भाव बच्चन से अधिक उन्मादक, सारवान और सामयिक हैं। दोनों में जो एक दूसरे को ग्रहण कर लेगा वही हिंदी कविता के वर्तमान और अगले युग का नेता होगा।" (रामनरेश त्रिपाठी)
"कबीर में जैसे सामाजिक विद्रोह का तीखापन और प्रणयानुभूति की कोमलता एक साथ मिलती है, कुछ वैसा ही रचाव मुक्तिबोध में है।" (डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी)
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