hindisahityavimarsblogspot.com
Email : iliyashussain1966@gmail.com
Mobile : 9717324769
प्रश्नोत्तरी-62 (हिंदी भाषा एवं साहित्य, आधुनिक काल, हिंदी साहित्यकारों की काव्य-पंक्तिया)
#"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निजभाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को सूल।" (भारतेंदु हरिश्चंद्र)
#"तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
झुके कूल सों जल परसन हित मनहुं सुहाए।"
(भारतेंदु हरिश्चंद्र)
#"पैधन विदेश चलि जात, यहै अति ख्वारी।
(भारतेंदु हरिश्चंद्र)
#"यह बयारी तबै बदलेगी तबे कछु्, पपीहा जब पूछिहै पीव कहां।" (प्रताप नारायण मिश्र)
#"जैसे कंता घर रहे, तैसे रहे विदेश।" (प्रताप नारायण मिश्र)
#"कौन करेजो नहिं कसकत सुनी विपत्ति बाल विधवनन की।" (प्रताप नारायण मिश्र)
#"जो विषया संतन तजी, ताहि मूढ़ लपटाति।" (राधाकृष्ण दास)
#"केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए।
उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।।" (मैथिलीशरण गुप्त, भारत भारती)
#"सखि! वे मुझसे कहकर जाते।
कह, वह मुझको अपनी पथ-बाधा ही पाते।" (मैथिलीशरण गुप्त, यशोधरा)
#"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।'" (मैथिलीशरण गुप्त, यशोधरा)
#"नारी पर नर का कितना अत्याचार है।
लगता है विद्रोह मात्र ही अब उसका प्रतिकार है।" (मैथिलीशरण गुप्त)
#"हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी। आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी।। (मैथिलीशरण गुप्त, भारत भारती)
#"जिसको नहीं गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है।" (मैथिलीशरण गुप्त)
#"अधिकार खोकर बैठना यह महादुष्कर्म है।
न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है।" (मैथिलीशरण गुप्त जयद्रथ वध)
#"वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।" (अपनी शरण गुप्त)
#"अहा! ग्राम जीवन भी क्या है,
क्यों न इसे सबका मन चाहे।" (मैथिलीशरण गुप्त)
#"हां, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,
ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है?" (मैथिलीशरण गुप्त, भारत भारती)
#"राम तुम मानव हो, ईश्वर नहीं हो क्या?
तब मैं निरीश्वर हूं, ईश्वर क्षमा करे।" (मैथिलीशरण गुप्त, भारत भारती)
#"संदेश नहीं मैं यहां स्वर्ग का लाया,
इस धरती को ही स्वर्ग बनाने आया।"
(मैथिलीशरण गुप्त, साकेत)
#"पराधीन रहकर अपना सुख शोक न सह सकता है। यह अपमान जगत् में केवल पशु ही सह सकता है।" (रामनरेश त्रिपाठी)
#"मैं ढूंढ़ता तुझे था, जब कुंज और वन में,
तू खोजता मुझे था, जब दीन के वतन में।
तू आह भन किसी की मुझको पुकारता था,
मैं था तुझे बुलाता संगीत के भजन में।"
(रामनरेश त्रिपाठी)
#"अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
(जयशंकर प्रसाद, चंद्र गुप्त)
#"दु:ख की पिछली रजनी बीच,
विकसित सुख का नवल प्रभात।"
(जयशंकर प्रसाद, कामायनी)
#"प्रकृति के यौवन का श्रृंगार, करेंगे कभी न बासी फूल।
मिलेंगे वे जाकर अतिशीघ्र, आह! उत्सुक है उनकी धूल।"
(कामायनी, जयशंकर प्रसाद)
#"नील परिधान बीच सुकुमार,
खुल रहा मृदुल अधखुला अंग।
खिला हो ज्यों बिजली का फूल,
मेघ बीच गुलाबी रंग।" (जयशंकर प्रसाद, कामायनी)
#"नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।"
(जयशंकर प्रसाद, कामायनी)
#"अपना हो या औरों का सुख, बढ़ा कि बस दु:ख बना वही।" (जयशंकर प्रसाद, कामायनी)
#"अरी वरुण की शांत कछार। (प्रसाद, लहर)
#"ले चल वहां भुलावा देकर, मेरे नाविक!
धीरे-धीरे।" (जयशंकर प्रसाद, लहर)
#"जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति सी छाई, दुर्दिन में आंसू बनकर वह आज बरसने आई।" (जयशंकर प्रसाद, आंसू)
#"हिमाद्रि तुंग श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्जवला, स्वतंत्रता पुकारती।" (जयशंकर प्रसाद, चंद्रगुप्त)
#"छेड़ो मत यह सुख का कण है।" (जयशंकर प्रसाद)
#"अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किए।
तू अब तक सोई है आली, आंखों में भरी बिहाग री। बीती विभावरी जाग री। (जयशंकर प्रसाद, लहर)
#"सुंदर है विहग सुमन सुंदर,
मानव! तुम सबसे सुंदरतम।"
(सुमित्रानंदन पंत)
सुंदर विश्वासों ही से, बनता रे सुखमय जीवन,
ज्यों सहज-सहज सांसो से, चलता उर का मृदु स्पंदन।"
(सुमित्रानंदन पंत)
#"मुक्त करो नारी को मानव, चिरबंदिनी नारी को।" (सुमित्रानंदन पंत, युगवाणी)
#"वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान। उमड़कर आंखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।। (सुमित्रानंदन पंत)
#"ऊषा की मृदु लाली में,
प्रथम किरण का आना रंगिणि।
तूने कैसे पहिचाना?
कहो, कहां हे बाल विहंगिनी।
पाया तूने यह गाना।।" (सुमित्रानंदन पंत, रश्मिबंध)
जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी,
जो स्वर्गादपि गरीयसी।" (सुमित्रानंदन पंत, स्वर्णधूलि)
#"भारत माता ग्रामवासिनी। खेतों में फैला दृग श्यामल, शस्य भरा जन-जीवन आंचल। (सुमित्रानंदन पंत, रश्मिबंध)
सामूहिक जीवन रचनाकर
तर सकते दु:ख सागर जन गण।" (सुमित्रानंदन पंत, लोकायतन)
एक बार बस और नाच तू श्यामा !
सामान सभी तैयार,
कितने ही असुर, चाहिए कितने तुझको हार?
कर मेकला मुंड मालाओं से बन बन अभिरामा।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', आह्वान)
#"दु:ख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूं आज जो नहीं कही।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', सरोज स्मृति)
#"धन्ये, मैं पिता निरर्थक था,
कुछ भी तेरे हित कर न सका।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', सरोज स्मृति)
#"हो गया व्यर्थ जीवन, मैं रण में गया हार।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', वनबेला)
#"मुक्त छंद सहज प्रकाशन वह मन का निज भावों का प्रकट अकृत्रिम चित्र।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')
#"नयनो का नरनो से गोपन--- प्रिय संभाषण।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')
#"अन्याय किधर है, उधर शक्ति कहते छल-छल,
हो गए नयन, कुछ बूंद पुन: ढलके दृगजल।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', राम की शक्ति पूजा)
#"पास ही रे हीरे की खान, खोजता कहां और नादान।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', गीतिका)
#"योग्य जन जीता है, पश्चिम की युक्ति नहीं,
गीता है--गीता है।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जागो फिर एक बार)
सनेस निर्झर बह गया है,
रेत ज्यों तन मन ढह गया है।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')
#"मैं अकेला, देखता हूं आ रही,
मेरे दिवस की सांध्य बेला।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')
#"भारति जय विजय करे।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')
#"अबे सुन बे, गुलाब,
भूल मत जो पाई ख़ुशबू रंगो आब।" (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', कुकुरमुत्ता)
#"मैं नीर भरी दु:ख की बदली।" (महादेवी वर्मा, संध्यागीत)
#"दीप मेरे जल अकंपित, घुल अचंचल।" (महादेवी वर्मा, सांध्यगीत)
#"कनक से दिन मोती-सी रात,
सुनहली सांझ गुलाबी प्रात,।" (महादेवी वर्मा, रश्मि)
#"धूप तन दीप-सी मैं,
मोम-सा तन घुल चुका
अब दीप-सा मन जल चुका है।" (महादेवी वर्मा, दीपशिखा)
#"जो तुम आ जाते एक बार।
कितनी करुणा, कितने संदेश,
पथ में बिछ जाते बन पराग।" (महादेवी वर्मा, नीहार)
#”कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए।" (बालकृष्ण शर्मा 'नवीन')
#"हो जाने दे ग़र्क़ नशे में, मत पड़ने दे फ़र्क़ नशे में। (बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', साक़ी)
#"हम दीवानों की क्या हस्ती,
आज यहां कल वहां चले।" (भगवतीचरण वर्मा)
#"बोले तुम केवल पांच मिनट
चुप रहे आदमी दस हज़ार बस पांच मिनट।" (नागार्जुन, गांधी)
#"खेत हमारे, भूमि हमारी, सारा देश हमारा है
इसीलिए तो हमको इसका, चप्पा-चप्पा प्यारा है।" (नागार्जुन)
#"घुन खाए शहतीरों पर बारह खड़ी विधाता बांचे
फटी भीत है, छत चूती है, आले पर विसतुइया नाचे
बरसाकर बेबस बच्चों पर मिनट-मिनट में पांच तमाचे इसी तरह दु:खहरण मास्टर गढ़ता है आदम के सांचे।" (नागार्जुन, युगधारा)
#"मैंने उसको जब-जब देखा लोहा देखा
लोहा जैसे तपते देखा, गलते देखा ढलते देखा। (केदारनाथ अग्रवाल)
#"अपने यहां संसद तेली की वह घानी है जिसमें आधा तेल और आधा पानी है।" (धूमिल)
#"बाबूजी! सच कहूं : मेरी निगाह में,
न कोई छोटा है, न कोई बड़ा है,
मेरे लिए, हर आदमी एक जोड़ी जूता ह
जो मेरे सामने, मरम्मत के लिए खड़ा है।" (धूमिल, मोचीराम)
हम तो सारा का सारा लेंगे जीवन,
'कम से कम' वाली बात न हमसे कीजिए।" (रघुवीर सहाय)
#"राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत भाग्य विधाता है।
फटा सुथन्ना पहने जिसका गुण हरचरना गाता है।" (रघुवीर सहाय)
#"अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाने ही होंगे।
तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब।" (मुक्तिबोध)
#"ज़्यादा लिया और दिया बहुत-बहुत कम
मर गया देश, अरे जीवित रह गए तुम।" (मुक्तिबोध)
जनता के गुणों से ही संभव, भावी उद्भव।" (मुक्तिबोध)
#"सब चुप
साहित्यिक चुप और कवि जन निर्वाक्
चिंतक शिल्पकार नर्तक चुप हैं
उनके ख़्याल से यह सब गप है।" ्(मुक्तिबोध)
#"इन दिनों कि दुहरा है कवि धंधा,
हैं दोनों चीज़ व्यस्त क़लम कंधा।" (भवानी प्रसाद मिश्र)
#"दु:ख सबको मांजता है।" (अज्ञेय)
#"मौन भी अभिव्यंजना है।
जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो।" (अज्ञेय)
#"हम नदी के द्वीप हैं, धारा नहीं हैं।" (अज्ञेय)
#"ये उपमान मेले हो गए हैं देवता इन प्रतीकों से कर गए हैं कूच।
कभी वासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है।" (अज्ञेय)
#"कोठरी में लौ जलाकर दीप की,
गिन रहा होगा महाजन सेंत की।" (अज्ञेय)
#"मैंने आहुति बनकर देखा, यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है।" (अज्ञेय, भग्नदूत)
#"आज मैं अकेला हूं, अकेले रहा नहीं जाता, जीवन मिला है यह, रतन मिला है यह।" (त्रिलोचन)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें