आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की महत्वपूर्ण रचनाएँ/Works of Ramchandra Shukla
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सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैनआचार्य रामचन्द्र शुक्ल की महत्वपूर्ण रचनाएँ/Works of Ramchandra Shukla
रचनाएँ
- इतिहास
(क) हिन्दी साहित्य का इतिहास (सच्चे
अर्थों में हिन्दी साहित्य का सर्वप्रथम परम्परागत इतिहास, 1929 ई.)
- व्यावहारिक आलोचना-ग्रंथ
(क) गोस्वामी तुलसीदास
(तुलसी ग्रंथावली की भूमिका,1923 ई.)
(ख) जायसी (जायसी ग्रंथावली की भूमिका, 1924 ई.)
(ग)
महाकवि सूरदास (भ्रमरगीतसार
की भूमिका, 1924 ई.)
3. सैद्धान्तिक समीक्षा
(क) रस-मीमांसा (काव्य-चिन्तन संबंधी निबंधों का संग्रह, मृत्यु
के बाद प्रकाशित, 1949 ई. सं. विश्वनाथ प्रसाद
मिश्र) : काव्य की साधना, काव्य और सृष्टि प्रसार, काव्य और व्यवहार, मनुष्यता की उच्च भूमि, भावना या कल्पना, मनोरंजन, सौंदर्य, चमत्कारवाद, काव्य की भाषा, अलंकार, उपसंहार।
- निबन्ध
(क) चिन्तामणि,
भाग-1 (1939 ई., 17 निबन्ध) : भाव या
मनोविकार, उत्साह, श्रद्धा-भक्ति, करुणा, लज्जा और ग्लानि, लोभ और प्रीति, घृणा,
ईर्ष्या, भय, क्रोध, कविता क्या है, भारतेंदु हरिश्चंद्र, तुलसी का भक्ति-मार्ग,
मानस' की
धर्म-भूमि, काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था, साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद,
रसात्मक बोध के विविध।
(ख) चिन्तामणि,
भाग-2 (1945 ई.) :
प्राकृतिक दृश्य, काव्य में रहस्यवाद, काव्य
में अभिव्यंजनावाद।
(ग) चिन्तामणि,
भाग-3 (1983 ई., सं. डॉ. नामवर सिंह)
(घ)
चिन्तामणि,
भाग-4 (2004 ई., सं. डॉ. कुसुम चतुर्वेदी और डॉ.
ओमप्रकाश सिंह)
- ग्यारह वर्ष का समय (कहानी, 1903 ई.)
- बाबा राधकृष्णदास का जीवनचरित (1913 र्इ.)
- वीरसिंह देव चरित (1926 र्इ.)
- हिन्दी आ शब्द सागर कोश (1929 र्इ.)
- विचार वीथी (1930 र्इ.)
- मधुस्रोत (शुक्लजी की 1901 से 1929 र्इ. के
बीच लिखित कविताओं का संग्रह, 1971 र्इ.) इत्यादि।
- साहित्य शास्त्र :
सिद्धांत और व्यवहार पक्ष (आलोचना) : साहित्य, कल्पना का आनन्द, कविता क्या है (1909 ई.), उपन्यास, काव्य में प्राकृतिक दृश्य (1922 ई.), काव्य में रहस्यवाद (1929 र्इ), प्रेम आनंद स्वरूप है, रसात्मक बोध के विविध रूप, काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था, काव्य में अभिव्यंजनावाद (1935 र्इ.), स्वागत
भाषण, मनोविकारों का विकास, उत्साह, भारतेंदु हरिश्चंद्र और हिन्दी आ, तुलसी का भक्तिमार्ग, युग प्रवर्तक भारतेंदु हरिश्चंद्र, क्रोचे।
- भाषा, साहित्य और
समाज विमर्श : देशी भाषा की दशा,
उर्दू राष्ट्रभाषा देशी,
भाषाओं का पुनरुज्जीवन,
हिन्दी और हिन्दुस्तानी।
- शशांक (बंगला उपन्यास)
- कल्पना का आनन्द (एडिसन के
प्लेजर आव इमेजिनेशन का अनुवाद,
1901 र्इ.)
- मेगस्थानीज का भारतवर्षीय विवरण (डॉ. श्वान बक की
पुस्तक मेगास्थानीज इंडिका का अनुवाद, 1906 र्इ.)
- विश्वप्रपंच (द
यूनिवर्स का अनुवाद, 1920 र्इ.)
- बुद्धचरित (1922 र्इ.)
- आदर्श जीवन (अंग्रेज़ी)
- राज्य प्रबन्ध शिक्षा
(अंग्रेज़ी)
- स्फुट अनुवाद (अंग्रेज़ी)
इत्यादि।
'निबन्ध सम्राट' आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 4
अक्टूबर 1884, बस्ती
(उत्तर प्रदेश) और निधन 2 फ़रवरी 1941 ई. को वाराणसी
(उत्तर प्रदेश) में। उनकी प्रथम रचना 1896 र्इ. में 'आनंद कादंबिनी' में 'भारत और बसंत' (कविता) नाम से छपी
थी। उनकी कहानी 'ग्यारह वर्ष का समय' (1903 ई,)
'सरस्वती' में प्रकाशित हुई थी, जो
हिन्दी की प्रारंभिक सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से है। उनका प्रथम निबंध 'साहित्य' है, जो 1904 ईस्वी में 'सरस्वती' में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने ब्रजभाषा और खड़ी बोली में फुटकर कविताएँ
लिखीं तथा एडविन आर्नल्ड के 'लाइट ऑफ एशिया' का ब्रजभाषा में 'बुद्धचरित' नाम से पद्यानुवाद भी किया। 1919 र्इ. में
मालवीय जी के आग्रह पर शुक्ल जी ने काशी विशवविद्यालय में अध्यापन-कार्य
आरम्भ किया।
Ä "काव्य में रहस्यवाद"
निबन्ध पर इन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी से 500 रुपये का तथा चिन्तामणि पर हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग द्वारा 1200 रुपये
का मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।
Ä शुक्ल ने जोसेफ़ एडिसन के 'प्लेजर्स ऑफ़ इमेजिनेशन' का 'कल्पना का आनन्द' नाम से एवं राखाल दास वन्द्योपाध्याय के 'शशांक' उपन्यास का भी हिन्दी में रोचक अनुवाद किया।
Ä शुक्ल ने जोसेफ़ एडिसन के 'प्लेजर्स ऑफ़ इमेजिनेशन' का 'कल्पना का आनन्द' नाम से एवं राखाल दास वन्द्योपाध्याय के 'शशांक' उपन्यास का भी हिन्दी में रोचक अनुवाद किया।
Ä आचार्य शुक्ल ने जायसी के पद्मावत को हिन्दी आ का
श्रेष्ठ प्रबंध काव्य माना है।
Ä आचार्य शुक्ल ने भक्ति
आन्दोलन को पराजित मनोवृत्ति का परिणाम और मुस्लिम राज्य की प्रतिष्ठा की
प्रतिक्रिया माना है।
Ä आचार्य शुक्ल के अनुसार 'रीतिकाल' को 'श्रृंगारकाल' भी कह सकते हैं।
Ä 'कविता क्या है', 'काव्य में लोक मंगल की साधनावस्था', 'साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद' आदि निबन्ध सैद्धांतिक आलोचना के अंतर्गत आते हैं।
Ä हरिश्चन्द्र, तुलसी का भक्ति मार्ग, मानस की धर्म-भूमि इत्यादि निबन्ध व्यावहारिक आलोचना के अंतर्गत आते हैं।
Ä हिन्दी की सैद्धांतिक आलोचना को परिचय और सामान्य विवेचन के धरातल से ऊपर उठाकर गम्भीर स्वरूप प्रदान करने का श्रेय शुक्ल जी को ही है।
Ä आचार्य शुक्ल के अनुसार 'रीतिकाल' को 'श्रृंगारकाल' भी कह सकते हैं।
Ä 'कविता क्या है', 'काव्य में लोक मंगल की साधनावस्था', 'साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद' आदि निबन्ध सैद्धांतिक आलोचना के अंतर्गत आते हैं।
Ä हरिश्चन्द्र, तुलसी का भक्ति मार्ग, मानस की धर्म-भूमि इत्यादि निबन्ध व्यावहारिक आलोचना के अंतर्गत आते हैं।
Ä हिन्दी की सैद्धांतिक आलोचना को परिचय और सामान्य विवेचन के धरातल से ऊपर उठाकर गम्भीर स्वरूप प्रदान करने का श्रेय शुक्ल जी को ही है।
Ä आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के
अनुसार तुलसीदास के गुरु थे౼ नरहर्यानंद।
Ä आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने तुलसीदास का जन्मृ-स्थान माना है ౼ राजापुर।
Ä रामचन्द्र शुक्ल ने 'जायसी ग्रन्थावली' तथा 'बुद्धचरित' की भूमिका में क्रमश: अवधी तथा ब्रजभाषा का भाषा-शास्त्रीय विवेचन करते हुए उनका स्वरूप भी स्पष्ट किया है।
Ä उन्होंने सैद्धान्तिक समीक्षा पर लिखा, जो उनकी मृत्यु के पश्चात् संकलित होकर 'रस मीमांसा' नाम की पुस्तक में विद्यमान है तथा तुलसी, जायसी की ग्रन्थावलियों एवं भ्रमर गीतसार की भूमिका में लम्बी व्यावहारिक समीक्षाएँ लिखीं, जिनमें से दो 'गोस्वामी तुलसीदास' तथा 'महाकवि सूरदास' अलग से पुस्तक रूप में भी उपलब्ध हैं।
Ä दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी 'विश्व प्रपंच' पुस्तक उपलब्ध है। पुस्तक यों तो 'रिडल ऑफ़ दि युनिवर्स' का अनुवाद है, पर उसकी लम्बी भूमिका शुक्ल जी के द्वारा किया गया मौलिक प्रयास है।
Ä उन्होंने 'आलम्बनत्व धर्म का साधारणीकरण' माना।
Ä काव्य-शैली के क्षेत्र में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थापना 'बिम्ब ग्रहण' को श्रेष्ठ मानने सम्बन्धी है।
Ä आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने तुलसीदास का जन्मृ-स्थान माना है ౼ राजापुर।
Ä रामचन्द्र शुक्ल ने 'जायसी ग्रन्थावली' तथा 'बुद्धचरित' की भूमिका में क्रमश: अवधी तथा ब्रजभाषा का भाषा-शास्त्रीय विवेचन करते हुए उनका स्वरूप भी स्पष्ट किया है।
Ä उन्होंने सैद्धान्तिक समीक्षा पर लिखा, जो उनकी मृत्यु के पश्चात् संकलित होकर 'रस मीमांसा' नाम की पुस्तक में विद्यमान है तथा तुलसी, जायसी की ग्रन्थावलियों एवं भ्रमर गीतसार की भूमिका में लम्बी व्यावहारिक समीक्षाएँ लिखीं, जिनमें से दो 'गोस्वामी तुलसीदास' तथा 'महाकवि सूरदास' अलग से पुस्तक रूप में भी उपलब्ध हैं।
Ä दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी 'विश्व प्रपंच' पुस्तक उपलब्ध है। पुस्तक यों तो 'रिडल ऑफ़ दि युनिवर्स' का अनुवाद है, पर उसकी लम्बी भूमिका शुक्ल जी के द्वारा किया गया मौलिक प्रयास है।
Ä उन्होंने 'आलम्बनत्व धर्म का साधारणीकरण' माना।
Ä काव्य-शैली के क्षेत्र में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थापना 'बिम्ब ग्रहण' को श्रेष्ठ मानने सम्बन्धी है।
Ä वे कविताएँ भी लिखते थे।
उनका एक काव्य-संग्रह 'मधुस्रोत' है।
Ä शुक्ल जी 'हिन्दी शब्दसागर' के सहायक सम्पादक नियुक्त किए गए। 'हिन्दी शब्दसागर' के प्रधान सम्पादक श्यामसुन्दर दास थे। 'हिन्दी शब्दसागर' का प्रकाशन 11 खंडों में हुआ।
Ä शुक्ल जी ने 'शब्दसागर की भूमिका' के लिए 'हिन्दी साहित्य का विकास' लिखा और श्यामसुन्दर दास ने 'हिन्दी आ भाषा का विकास' लिखा। श्यामसुंदर दास की यह इच्छा थी कि दोनों भूमिकाएँ संयुक्त रूप से प्रकाशित हों और लेखक के रूप में दोनों का नाम छपे। शुक्ल जी ने इसका घोर विरोध किया। यह कहा जाता है कि सभा में लाठी के बल पर रात में अयोध्यासिंह उपाध्याय ने जाकर इतिहास पर शुक्ल जी का नाम छपवाया।
Ä श्यामसुन्दर दास ने आत्मकथा में यह स्वीकार करते हुए लिखा भी है कि आचार्य शुक्ल ने शब्दसागर बनाया और शब्दसागर ने आचार्य शुक्ल को।
Ä शुक्ल के इतिहास का ढाँचा चिंतन पर आधारित था।
Ä शुक्ल जी की मृत्यु पर जैसी शोक कविता निराला ने लिखी है, वैसी आज तक किसी की मृत्यु पर नहीं लिखी गई है।
Ä शुक्ल जी 'रस मीमांसा' पुस्तक पूरी नहीं कर पाए थे। उसके लिए उन्होंने नोट्स लिए थे। उसी नोट्स को विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने संपादित कर छाप दिया।
Ä शुक्ल जी 'हिन्दी शब्दसागर' के सहायक सम्पादक नियुक्त किए गए। 'हिन्दी शब्दसागर' के प्रधान सम्पादक श्यामसुन्दर दास थे। 'हिन्दी शब्दसागर' का प्रकाशन 11 खंडों में हुआ।
Ä शुक्ल जी ने 'शब्दसागर की भूमिका' के लिए 'हिन्दी साहित्य का विकास' लिखा और श्यामसुन्दर दास ने 'हिन्दी आ भाषा का विकास' लिखा। श्यामसुंदर दास की यह इच्छा थी कि दोनों भूमिकाएँ संयुक्त रूप से प्रकाशित हों और लेखक के रूप में दोनों का नाम छपे। शुक्ल जी ने इसका घोर विरोध किया। यह कहा जाता है कि सभा में लाठी के बल पर रात में अयोध्यासिंह उपाध्याय ने जाकर इतिहास पर शुक्ल जी का नाम छपवाया।
Ä श्यामसुन्दर दास ने आत्मकथा में यह स्वीकार करते हुए लिखा भी है कि आचार्य शुक्ल ने शब्दसागर बनाया और शब्दसागर ने आचार्य शुक्ल को।
Ä शुक्ल के इतिहास का ढाँचा चिंतन पर आधारित था।
Ä शुक्ल जी की मृत्यु पर जैसी शोक कविता निराला ने लिखी है, वैसी आज तक किसी की मृत्यु पर नहीं लिखी गई है।
Ä शुक्ल जी 'रस मीमांसा' पुस्तक पूरी नहीं कर पाए थे। उसके लिए उन्होंने नोट्स लिए थे। उसी नोट्स को विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने संपादित कर छाप दिया।
Ä “कथा साहित्य में जो कार्य प्रेमचद ने किया है, काव्य-क्षेत्र में जो कार्य निराला ने किया है; वहीं कार्य आलोचना के क्षेत्र में रामचन्द्र शुक्लजी ने
किया है।” ౼रामविलास शर्मा
Ä रीतिकाल नामकरण आचार्य शुक्ल का दिया हुआ है। उन्होंने
मध्यकाल के दूसरे भाग को रीतिकाल कहा है।
आचार्य शुक्ल की देन और रचनाएँ
Ä ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेमाश्रयी शाखा नामकरण आचार्य रामचन्द्र शु शुक्ल की देन है।
Ä ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेमाश्रयी शाखा नामकरण आचार्य रामचन्द्र शु शुक्ल की देन है।
Ä आचार्य रामचन्द्र शु शुक्ल ने 'त्रिवेणी' में तीन
महाकवियों की समीक्षाएँ प्रस्तुत की हैं ౼सूरदास, तुलसीदास और जायसी
की।
Ä आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भूषण को हिन्दू जाति का
प्रतिनिधि कवि कहा है, छत्रशाल और शिवाजी की
वीरतापूर्ण रचनाओं के कारण।
Ä आचार्य शुक्ल रसवादी आलोचक माने जाते हैं।
आचार्य शुक्ल का प्रथम निबन्ध
Ä शुक्ल के 'चिन्तामणि' के वर्तमान में चार खंड है। प्रथम खंड में 17 और द्वितीय खंड में तीन निबन्ध है।
Ä शुक्ल के 'चिन्तामणि' के वर्तमान में चार खंड है। प्रथम खंड में 17 और द्वितीय खंड में तीन निबन्ध है।
'चिंतामणि' और 'रस मीमांसा'
शुक्ल के सैद्धांतिक आलोचना-ग्रंथ है।
Ä आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कविता क्या है, साहित्य, काव्य में रहस्यवाद आदि निबंधों से सैद्धांतिक समीक्षा का सूत्रपात किया।
Ä आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कविता क्या है, साहित्य, काव्य में रहस्यवाद आदि निबंधों से सैद्धांतिक समीक्षा का सूत्रपात किया।
Ä कविता क्या है?, काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था, रसात्मक बोध के विविध रूप, काव्य में प्राकृतिक दृश्य, हरिश्चंद्र, तुलसी का भक्ति-मार्ग, मानस की धर्म-भूमि, काव्य में रहस्यवाद आदि
शुक्ल के अनमोल रत्न माने जाते हैं।
Ä शुक्ल ने पहली बार रसविवेचन को मनोवैज्ञानिक आधार दिया। 'रस मीमांसा' में रस के शास्त्रीय विवेचन की मौलिक व्याख्या प्रस्तुत की।
Ä शुक्ल ने पहली बार रसविवेचन को मनोवैज्ञानिक आधार दिया। 'रस मीमांसा' में रस के शास्त्रीय विवेचन की मौलिक व्याख्या प्रस्तुत की।
Ä शुक्लजी
के अनुसार रामकथा के भीतर कई स्थल मर्मस्पर्शी है, जिसमें सबसे मर्मस्पर्शी
रामवनगमन प्रसंग है।
Ä आचार्य शुक्ल मनोवैज्ञानिक आलोचना के जनक माने जाते हैं।
Ä आचार्य शुक्ल विचारात्मक निबन्धों को ही सर्वश्रेष्ठ
मानते हैं।
Ä हिन्दी आलोचना को साहित्यिक रूप आचार्य शुक्ल ने प्रदान किया।
Ä आचार्य शुक्ल के आदर्श कवि तुलसीदास जी है। उन्होंने जितना अधिक महत्व उन्हें दिया तथा जैसा सूक्ष्म विश्लेषण इनके काव्य का किया वैसा वे किसी अन्य कवि का नहीं कर पाए।
Ä जायसी को रामचन्द्र शुक्ल ने सूफ़ी कवि होते हुए भी भक्तों की कोटि में परिगणित किया है।
Ä हिन्दी आलोचना को साहित्यिक रूप आचार्य शुक्ल ने प्रदान किया।
Ä आचार्य शुक्ल के आदर्श कवि तुलसीदास जी है। उन्होंने जितना अधिक महत्व उन्हें दिया तथा जैसा सूक्ष्म विश्लेषण इनके काव्य का किया वैसा वे किसी अन्य कवि का नहीं कर पाए।
Ä जायसी को रामचन्द्र शुक्ल ने सूफ़ी कवि होते हुए भी भक्तों की कोटि में परिगणित किया है।
Ä सूरदास को शुक्ल जी ने प्रेम का, जिसके अंतर्गत पालन एवं
रंजन आते है, कवि माना है और तुलसीदास को
करुणा का, जिसके अंतर्गत लोकरक्षा का भाव आता है।
Ä तुलसीदास शुक्लजी के आदर्श कवि है। तुलसी को ही केन्द्रबिन्दु में रखकर शुक्लजी ने अपनी आलोचना के मानदण्ड निश्चित किये।
Ä जायसी और सूफ़ी कवियों की जिस विशेषता ने शुक्लजी को सबसे अधिक प्रभावित किया है, वह है౼ प्रकृति वर्णन।
Ä शुक्लजी ने श्रीधर पाठक और रामनरेश त्रिपाठी को सही अर्थों में स्वच्छन्दतावादी कवि माना है।
Ä तुलसीदास शुक्लजी के आदर्श कवि है। तुलसी को ही केन्द्रबिन्दु में रखकर शुक्लजी ने अपनी आलोचना के मानदण्ड निश्चित किये।
Ä जायसी और सूफ़ी कवियों की जिस विशेषता ने शुक्लजी को सबसे अधिक प्रभावित किया है, वह है౼ प्रकृति वर्णन।
Ä शुक्लजी ने श्रीधर पाठक और रामनरेश त्रिपाठी को सही अर्थों में स्वच्छन्दतावादी कवि माना है।
Ä भाषा, साहित्य और समाज को एक साथ
रखकर मूल्यांकन करने वाले आलोचक माने जाते हैं౼आचार्य शुक्ल और रामविलास
शर्मा।
Ä आचार्य शुक्ल ने प्रताप नारायण मिश्र और बालकृष्ण भट्ट की तुलना एडिशन और स्टील से की है।
Ä शुक्लजी छायावाद के आध्यात्मिक रहस्यवादी रूप के विरोधी थे।
Ä शुक्लजी रहस्यवाद को काव्य के क्षेत्र से बाहर की चीज मानते थे।
Ä आचार्य शुक्ल के इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धि है, उनका काल- विभाजन। उन्होंने हिन्दी साहित्य के 900 वर्षों के इतिहास को चार सुस्पष्ट कालखण्डों में विभाजित किया है। साथ ही इनका नामकरण भी किया है।
Ä शुक्लजी ने रीतिमुक्त कवियों को फुटकल कवियों में स्थान दिया था।
Ä 'हिन्दी समीक्षा और आचार्य शुक्ल' के लेखक नामवर सिंह है।
Ä आचार्य शुक्ल ने प्रताप नारायण मिश्र और बालकृष्ण भट्ट की तुलना एडिशन और स्टील से की है।
Ä शुक्लजी छायावाद के आध्यात्मिक रहस्यवादी रूप के विरोधी थे।
Ä शुक्लजी रहस्यवाद को काव्य के क्षेत्र से बाहर की चीज मानते थे।
Ä आचार्य शुक्ल के इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धि है, उनका काल- विभाजन। उन्होंने हिन्दी साहित्य के 900 वर्षों के इतिहास को चार सुस्पष्ट कालखण्डों में विभाजित किया है। साथ ही इनका नामकरण भी किया है।
Ä शुक्लजी ने रीतिमुक्त कवियों को फुटकल कवियों में स्थान दिया था।
Ä 'हिन्दी समीक्षा और आचार्य शुक्ल' के लेखक नामवर सिंह है।
Ä आचार्य शुक्ल को हिन्दी आ आलोचना का 'युग पुरूष' कहा
जाता है।
Ä आचार्य शुक्ल को "हिन्दी
आ साहित्य समीक्षा का बालारुण" कहा है ౼नंददुलारे वाजपेयी ने।
Ä आचार्य शुक्ल को "भवभूति का सम्मानधर्मा आचार्य" कहा है౼ रामविलास शर्मा ने।
Ä आचार्य शुक्ल को "भवभूति का सम्मानधर्मा आचार्य" कहा है౼ रामविलास शर्मा ने।
Ä हिन्दी कविता की प्रौढ़ता के युग का आरम्भ आचार्य शुक्ल
तुलसीदास से मानते हैं।
Ä आचार्य शुक्ल तुलसीदास को स्मार्त वैष्णव मानते हैं।
Ä शुक्ल ने पद्मावत की कथा के पूर्वार्द्ध को कल्पित और उत्तरार्द्ध को ऐतिहासिक माना है।
Ä आचार्य शुक्ल तुलसीदास को स्मार्त वैष्णव मानते हैं।
Ä शुक्ल ने पद्मावत की कथा के पूर्वार्द्ध को कल्पित और उत्तरार्द्ध को ऐतिहासिक माना है।
Ä आचार्य शुक्ल छायावाद के
निन्दक माने जाते हैं।
Ä शुक्ल ने घनानन्द को ब्रजभाषा का मर्मज्ञ कवि बताया है।
Ä आचार्य शुक्ल को हिन्दी आ आलोचना का 'युग पुरूष' कहा
जाता है।
Ä रामचन्द्र शुक्ल को हिन्दी आज का एकमात्र आचार्य घोषित
किया है ౼नामवर सिंह ने।
Ä आचार्य शुक्ल को 'कलात्मक निबन्ध
का जनक' माना जाता है।
Ä आचार्य शुक्ल को 'निबन्ध सम्राट' कहा जाता है।
Ä आचार्य शुक्ल को 'निबन्ध सम्राट' कहा जाता है।
Ä भारतीय
काव्यलोचनशास्त्र का इतना गम्भीर और स्वतंत्र विचारक हिन्दी में तो दूसरा हुआ
ही नहीं, अन्यान्य भारतीय भाषाओं में
भी हुआ है या नहीं, ठीक से नहीं कह सकते। शायद नहीं हुआ। (आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य की भूमिका)
Ä रामचन्द्र
शुक्ल से सर्वत्र सहमत होना सम्भव नहीं। ..... फिर भी शुक्ल जी प्रभावित करते
हैं। नया लेखक उनसे डरता है, पुराना घबराता है, पंडित सिर हिलाता है। वे पुराने की ग़ुलामी पसन्द
नहीं करते और नवीन की ग़ुलामी तो उनको एकदम असह्य है। शुक्ल जी इसी बात में
बड़े हैं और इसी जगह उनकी कमज़ोरी है। (आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी)
Hindi
Sahitya Vimarsh
UGCNET/JRF/SET/PGT
(हिन्दी भाषा एवं
साहित्य)
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सर्वोत्तम मार्गदर्शक
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सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास
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Sateek jaankari bro
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