शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021


#महादेवी वर्मा_पर_आचार्य रामचंद्र शुक्ल_के_कथन

#महादेवी वर्मा कहती हैं कि 'मिलन का मत ले मैं विरह में चिर हूं।' इस वेदना को लेकर इन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियां सामने रखी हैं जो लोकोत्तर हैं। कहां तक वे वास्तविक अनुभूतियां हैं और कहां तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना है, यह नहीं कहा जा सकता। (आचार्य चंद्र शुक्ल)
#छायावादी कहे जानेवाले कवियों में महादेवीजी की रहस्यवाद के भीतर रही हैं। उस अज्ञात प्रियतम के लिए के लिए वेदना ही इसके हृदय का भावकेंद्र है, जिससे अनेक प्रकार की भावनाएं छूट छूट कर झलक मारती रहती हैं। वेदना से इन्होंने अपना स्वाभाविक प्रेम व्यक्त किया है। उसी के साथ में रहना चाहती हैं। उसके आगे मिलन-सुख को भी वे कुछ नहीं गिनतीं। (आचार्य रामचंद्र शुक्ल)
#गीत लिखने में जैसी सफलता महादेवी को हुई वैसी और किसी को नहीं। न तो भाषा का ऐसा स्निग्ध और प्रांजल प्रवाह और कहीं मिलता है, न हृदय की ऐसी भावभंगी। जगह-जगह ऐसी ढली हुई और अनूठी व्यंजना से
भरी हुई पदावली मिलती है कि हृदय खिल उठता है। (आचार्य रामचंद्र शुक्ल) ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं

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