आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के परीक्षोपयोगी कथन-1 : Hindi Sahitya Vimarsh
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(हिन्दी भाषा एवं साहित्य) के परीक्षार्थियों के लिए सर्वोत्तम मार्गदर्शक
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सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास
आधुनिक गद्य साहित्य
? विलक्षण बात यह है कि आधुनिक गद्य साहित्य की परम्परा का प्रवर्तन
नाटक से हुआ। यह कथन किसका है ?
1. हजारी प्रसाद द्विवेदी 2. रामचन्द्र
शुक्ल 3. बच्चनसिंह 4. रामस्वरूप चतुर्वेदी
प्रबन्ध काव्य और मुक्तक आचार्य शुक्ल की दृष्टि में
? यदि प्रबन्ध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है, तो मुक्तक
एक चुना हुआ गुलदस्ता।
महादेवी वर्मा के बारे में
? इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने
रखीं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों
की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।
? छायावाद का केवल पहला अर्थात मूल अर्थ लिखकर तो हिन्दी काव्य-क्षेत्र में चलने
वाली सुश्री महादेवी वर्मा ही हैं।
जयशंकर प्रसाद
? इनकी रहस्यवादी रचनाओं को देख चाहेतो यह कहें कि इनकी
मधुवर्षा के मानस प्रचार के लिए रहस्यवाद का परदा मिल गया अथवा यों कहें कि इनकी
सारी प्रणयानूभूति ससीम पर से कूदकर असीम पर जा रही।
? शुक्ल जी
जयशंकर प्रसाद की कृति 'आंसू' को 'श्रृंगारी विप्रलम्भ' कहा है।
? प्रसाद जी ने अपना क्षेत्र प्राचीन हिन्दू काल के भीतर चुना और प्रेमी जी ने
मुस्लिम काल के भीतर। प्रसाद के नाटकों में स्कन्दगुप्त श्रेष्ठ है और प्रेमी के
नाटकों में रक्षाबन्धन।
? इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी। (चिंतामणि त्रिपाठी के बारे में)
? भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी। (बेनी के बारे में)
? इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रूप में नहीं। (महाराजा जसवंत सिंह के ग्रंथ 'भाषा भूषण' के बारे में)
? भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी। (बेनी के बारे में)
? इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रूप में नहीं। (महाराजा जसवंत सिंह के ग्रंथ 'भाषा भूषण' के बारे में)
बिहारी और बिहारी सतसई के बारे में
? इसका एक-एक
दोहा हिन्दी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है।
? इनके दोहे क्या
हैं, रस के छोटे-छोटे
छींटे हैं।
? इसमें तो रस
के ऐसे छींटे पड़ते हैं जिनसे हृदय-कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है।
? जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा।
? जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा।
? बिहारी की
भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है।
? कविता उनकी श्रृंगारी है, पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुंचती, नीचे ही रह
जाती है।
मतिराम
के बारे में
? इनका सच्चा कवि हृदय था।
? रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़ और किसी कवि में मतिराम की-सी चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती।
? रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़ और किसी कवि में मतिराम की-सी चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती।
भूषण के बारे
में
? उनके प्रति भक्ति और सम्मान की
प्रतिष्ठा हिंदू जनता के हृदय में उस समय भी थी और आगे भी बराबर बनी रही या बढ़ती
गई।
? भूषण के वीर रस के उद्गार सारी जनता के हृदय की
संपत्ति हुए।
? जिसकी रचना को जनता का हृदय स्वीकार करेगा उस कवि की कीर्ति तब तक बराबर बनी रहेगी, जब तक स्वीकृति बनी राहेगी।
? जिसकी रचना को जनता का हृदय स्वीकार करेगा उस कवि की कीर्ति तब तक बराबर बनी रहेगी, जब तक स्वीकृति बनी राहेगी।
? शिवाजी और छत्रसाल की वीरता का
वर्णनों को कोई कवियों की झूठी ख़ुशामद नहीं कह सकता।
? वे हिंदू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं।
? वे हिंदू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं।
सुखदेव मिश्र के बारे में
? छंदशास्त्र पर इनका-सा विशद
निरूपण और किसी कवि ने नहीं किया है।
देव के बारे में
? रीतिकाल के कवियों में ये (देव) बड़े
ही प्रगल्भ और प्रतिभासंपन्न कवि थे, इसमें संदेह नहीं।
? कवित्वशक्ति और मौलिकता देव में खूब थी पर उनके सम्यक
स्फूर्ण में उनकी रुचि विशेष प्रायः बाधक हुई है।
? ये (देव) आचार्य
और कवि दोनों रूपों में हमारे सामने आते हैं।
? रीतिकाल के कवियों में यह बड़े ही प्रतिभा सम्पन्न कवि थे।
पद्माकर के बारे में
? ऐसा सर्वप्रिय कवि इस काल के
भीतर को छोड़ दूसरा नहीं हुआ है। इन (पद्माकर) की रचना की रमणीयता ही इस सर्वप्रियता
का एकमात्र कारण है।
ग्वाल कवि के बारे में
? ग्वाल कवि ने देशाटन अच्छा किया था और उन्हें भिन्न-भिन्न
प्रांतों की बोलियों का अच्छा ज्ञान हो गया था।
? षट् ऋतुओं का वर्णन इन्हों (ग्वाल कवि) ने विस्तृत किया
है पर वही श्रृंगारी उद्दीपन के ढंग का।
? रीतिकाल की सनक इन (ग्वाल कवि) में इतनी अधिक थी कि इन्हें
'यमुना
लहरी' नामक देव-स्तुति में भी नवरस और षट् ऋतु सुझाई पड़ी है।
भिखारीदास के बारे में
? इनकी रचना कलापक्ष में संयत और भावपक्ष में
रंजनकारिणी है।
श्रीपति के बारे में
? श्रीपति ने काव्य के सब अंगों का
निरूपण विशद रीति से किया है।
जायसी
? जायसी का
विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य में
एक अद्वितीय वस्तु है। (जायसी ग्रंथावली की भूमिका)
? यह सूचित
करने की आवश्यकता नहीं है कि न तो सूर का अवधी पर अधिकार था और न जायसी का
ब्रजभाषा पर।
? जायसी के श्रृंगार में मानसिक
पक्ष प्रधान है, शारीरिक गौण
हैं।
? जायसी का विरह-वर्णन
हिन्दी साहित्य में एक अद्वितीय वस्तु है। (जायसी ग्रंथावली)
जायसी का क्षेत्र तुलसी की अपेक्षा में परिमित है, पर प्रेम वंदना
उनकी अत्यन्त गूढ़ है। (जायसी ग्रंथावली’ की भूमिका)
? आचार्य रामचन्द्र
शुक्ल के अनुसार, मलिक मुहम्मद
जायसी के गुरु थे ౼शेख मोहिदी (मुहीउद्दीन)
? प्रेमगाथा की
परम्परा में पद्मावत सबसे प्रौढ़ और सरस है।
मंडन मिश्र के
बारे में
? भाषा इनकी बड़ी
स्वाभाविक, चलती और व्यंजना
पूर्ण होती थी।
हिन्दी के प्रथम महाकवि और प्रथम महाकाव्य
? चन्दरबरदाई के बारे में आचार्य शुक्ल ने कहा है कि ये हिन्दी के 'प्रथम महाकवि' माने जाते हैं और इनका 'पृथ्वीराज रासो' हिन्दी का 'प्रथम महाकाव्य' है।
? पृथ्वीराज रासो के बारे में आचार्य शुक्ल ने कहा है कि भाषा की कसौटी पर यदि ग्रंथ को कसते हैं तो और भी निराश होना पड़ता है, क्योंकि वह बिल्कुल बेठिकाने है౼ उसमें व्याकरण आदि की कोई व्यवस्था नहीं है।
? चन्दरबरदाई के बारे में आचार्य शुक्ल ने कहा है कि ये हिन्दी के 'प्रथम महाकवि' माने जाते हैं और इनका 'पृथ्वीराज रासो' हिन्दी का 'प्रथम महाकाव्य' है।
? पृथ्वीराज रासो के बारे में आचार्य शुक्ल ने कहा है कि भाषा की कसौटी पर यदि ग्रंथ को कसते हैं तो और भी निराश होना पड़ता है, क्योंकि वह बिल्कुल बेठिकाने है౼ उसमें व्याकरण आदि की कोई व्यवस्था नहीं है।
विद्यापति
? विद्यापति के पद अधिकतर श्रृंगार के ही है जिनमें नायिका और नायक राधा-कृष्ण है।
? विद्यापति को कृष्ण भक्तों की परम्परा में न समझना चाहिए।
? विद्यापति के पद अधिकतर श्रृंगार के ही है जिनमें नायिका और नायक राधा-कृष्ण है।
? विद्यापति को कृष्ण भक्तों की परम्परा में न समझना चाहिए।
? आध्यात्मिक
रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गए हैं। उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने ‘गीत गोविंद’ के पदों को आध्यात्मिक संकेत बताया है, वैसे ही
विद्यापति के इन पदों को भी।
? 'सूरसागर' में जगह-जगह दृष्टिकूट वाले पद मिलते हैं। यह भी विद्यापति का अनुकरण है।
कुतबन
? इस कहानी
के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत प्रेम
का स्वरूप दिखाया है। (कुतबन कृत मृगावती
के बारे में)
शेख नबी
? यहीं प्रेममार्गी सूफी कवियों की प्रचुरता की समाप्ति समझनी चाहिए। (शेख नबी के बारे में)
? यहीं प्रेममार्गी सूफी कवियों की प्रचुरता की समाप्ति समझनी चाहिए। (शेख नबी के बारे में)
नूर मुहम्मद
? सूफ़ी आख्यान काव्यों की अखंडित परम्परा की यहीं समाप्ति मानी जा सकती है। (नूर मुहम्मद कृत 'अनुराग बांसुरी' के बारे में)
? नूर मुहम्मद को हिन्दी भाषा में कविता करने के कारण जगह-जगह इसका सबूत देना पड़ा है कि वे इस्लाम के पक्के अनुयायी थे।
? सूफ़ी आख्यान काव्यों की अखंडित परम्परा की यहीं समाप्ति मानी जा सकती है। (नूर मुहम्मद कृत 'अनुराग बांसुरी' के बारे में)
? नूर मुहम्मद को हिन्दी भाषा में कविता करने के कारण जगह-जगह इसका सबूत देना पड़ा है कि वे इस्लाम के पक्के अनुयायी थे।
श्री बल्लभाचार्य
के लिए
? जनता पर चाहे जो प्रभाव पड़ा हो पर उक्त गद्दी के भक्त शिष्यों ने सुन्दर-सुन्दर पदों द्वारा जो मनोहर प्रेम संगीत धारा बहाई उसने मुरझाते हुए हिंदू जीवन को सरस और प्रफुल्लित किया।
? जनता पर चाहे जो प्रभाव पड़ा हो पर उक्त गद्दी के भक्त शिष्यों ने सुन्दर-सुन्दर पदों द्वारा जो मनोहर प्रेम संगीत धारा बहाई उसने मुरझाते हुए हिंदू जीवन को सरस और प्रफुल्लित किया।
रसखान के बारे
में
? ये बड़े भारी कृष्णभक्त और गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के बड़े कृपापात्र शिष्य थे।
? ये बड़े भारी कृष्णभक्त और गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के बड़े कृपापात्र शिष्य थे।
सरह
? सिद्धों में 'सरह' सबसे पुराने अर्थात विक्रम
संवत् 690 के हैं।
गोस्वामी तुलसीदास
? रामचरितमानस को 'लोगों के हृदय का हार' कहा है। (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने)
? गोस्वामी (तुलसीदास) जी की भक्ति पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता है उसकी सर्वांगपूर्णता।
? 'रामचरितमानस' में तुलसी केवल कवि रूप में ही नहीं, उपदेशक के रूप में भी सामने आते हैं।
? प्रेम और श्रृंगार का ऐसा वर्णन जो बिना किसी लज्जा और संकोच के सबके सामने पढ़ा जा सके, गोस्वामी (तुलसीदास) जी का ही है।
? हम निसंकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि (तुलसीदास) ही हिन्दी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।
? रामचरितमानस को 'लोगों के हृदय का हार' कहा है। (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने)
? गोस्वामी (तुलसीदास) जी की भक्ति पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता है उसकी सर्वांगपूर्णता।
? 'रामचरितमानस' में तुलसी केवल कवि रूप में ही नहीं, उपदेशक के रूप में भी सामने आते हैं।
? प्रेम और श्रृंगार का ऐसा वर्णन जो बिना किसी लज्जा और संकोच के सबके सामने पढ़ा जा सके, गोस्वामी (तुलसीदास) जी का ही है।
? हम निसंकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि (तुलसीदास) ही हिन्दी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।
? प्रबन्ध क्षेत्र में तुलसीदास का जो सर्वोच्च आसन है, उसका कारण यह
है कि वीरता, प्रेम आदि जीवन
का कोई एक ही पक्ष न लेकर तुलसी ने संपूर्ण जीवन को लिया है।
? यह शील और शील
का, स्नेह और स्नेह
का तथा नीति और नीति का मिलन है। इस मिलन के संघटित उत्कर्ष की दिव्य प्रभा देखने योग्य, यह झाँकी अपूर्व है।
? तुलसीदास उत्तरी
भारत की समग्र जनता के हृदय मंदिर में पूर्ण प्रेम प्रतिष्ठा के साथ विराज रहे हैं।
? जायसी का क्षेत्र
तुलसी की अपेक्षा में परिमित है, पर प्रेम वेदना
उनकी अत्यन्त गूढ़ है। (जायसी ग्रंथावली की भूमिका)
रामप्रसाद निरंजनी
? अब तक पाई
गई पुस्तकों में यह 'भाषा योगवासिष्ठ' ही सबसे पुराना है, जिसमें गद्य
अपने परिष्कृत रूप में दिखाई पड़ता है।
? भाषा योगवासिष्ठ को परिमार्जित गद्य की प्रथम पुस्तक और रामप्रसाद निरंजनी को प्रथम प्रौढ़ गद्य लेखक मान सकते हैं।
? भाषा योगवासिष्ठ को परिमार्जित गद्य की प्रथम पुस्तक और रामप्रसाद निरंजनी को प्रथम प्रौढ़ गद्य लेखक मान सकते हैं।
इंशा अल्ला ख़ाँ
? जिस प्रकार
वे अपनी अरबी-फारसी मिली हिन्दी को ही उर्दू
कहते थे, उसी प्रकार संस्कृत मिली हिन्दी को भाखा।
? आरंभिक काल
के चारों लेखकों में इंशा की भाषा सबसे चटकीली, मटकीली, मुहावरेदार और चलती है।
? अपनी कहानी का आरम्भ ही उन्होंने इस ढंग से किया है, जैसे लखनऊ के भाँड़ घोड़ा कुदाते हुए महफ़िल में आते हैं।
राजा लक्ष्मणसिंह
? असली
हिन्दी का नमूना
लेकर उस समय राजा लक्ष्मणसिंह ही आगे बढ़े।
प्रेमघन के बारे में
? प्रेमघन में पुरानी परम्परा का निर्वाह अधिक दिखाई पड़ता है। यहां पुरानी
परम्परा से मतलब भाषा से हैं।
लाला श्रीनिवास दास
? अंग्रेजी
ढंग का मौलिक उपन्यास पहले-पहले हिन्दी में लाला श्रीनिवास दास का परीक्षा गुरु निकला था। (श्रीनिवास दास के परीक्षा
गुरु के बारे में)
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
? हरिश्चन्द्र की भाषा को 'हरिश्चन्द्री
हिन्दी' कहा है
शुक्ल जी ने।
? वे सिद्ध वाणी के अत्यन्त सरल हृदय कवि थे।
? प्राचीन और नवीन का ही सुन्दर सामंजस्य भारतेन्दु की कला का विशेष माधुर्य है।
? इससे भी बड़ा काम उन्होंने यह किया कि साहित्य को नवीन मार्ग दिखाया और वे उसे
शिक्षित जनता के सहचर्य में ले आए।
? भारतेन्दु ने जिस प्रकार हिन्दी
गद्य की भाषा का परिष्कार किया, उसी प्रकार
काव्य की ब्रजभाषा का भी।
? अपनी सर्वतोन्मुखी प्रतिभा के बल से एक ओर तो वे पद्माकर, द्विजदेव की परम्परा में दिखाई पड़ते थे, दूसरी ओर
बंग देश के मायकेल एवं हेमचन्द्र की श्रेणी में।
? भारतेन्दु ने जिस प्रकार हिन्दी गद्य की
भाषा का परिष्कार किया, उसी प्रकार काव्य की ब्रज भाषा
का भी।
? हरिश्चन्द्र
का प्रभाव भाषा और साहित्य दोनों पर बड़ा गहरा पड़ा। उन्होंने जिस प्रकार गद्य की
भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत चलता, मधुर और
स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिन्दी साहित्य को
भी नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया।
बाबू देवकीनन्दन खत्री
? पहले मौलिक उपन्यास लेखक जिनके उपन्यासों की सर्वसाधारण में धूम हुई काशी के
बाबू देवकीनन्दन खत्री थे।
? ये वास्तव में घटना-प्रधान कथानक या क़िस्से हैं जिनमें जीवन के विविध पक्षों
के चित्रण का कोई प्रयत्न नहीं, इससे ये
साहित्य कोटि में नहीं आते हैं।
? उन्होंने साहित्यिक हिन्दी ना लिखकर हिन्दुस्तानी लिखी जो केवल इसी प्रकार की
हल्की रचनाओं में काम दे सकती है।
पंडित किशोरीलाल गोस्वामी
? उपन्यासों का ढेर लगा देने वाले दूसरे मौलिक उपन्यासकार पंडित किशोरीलाल
गोस्वामी हैं, जिनकी रचनाएँ साहित्य कोटि में
आती है।
? साहित्य की दृष्टि से उन्हें (पंडित किशोरीलाल गोस्वामी को) हिन्दी का पहला उपन्यासकार कहना चाहिए।
गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' के बारे में
? आचार्य
शुक्ल ने 'उसने कहा था' कहानी को अद्वितीय कहानी माना
है।
? इसके पक्के यथार्थवाद के बीच, सुरुचि की
चरम मर्यादा के भीतर, भावुकता का चरम उत्कर्ष अत्यन्त निपुणता के साथ सम्पुटित है।
घटना इसकी ऐसी है जैसे बराबर हुआ करती है, पर उसमें
भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झांक रहा है ౼केवल झाँक रहा है, निर्लज्जता के साथ पुकार या कराह नहीं रहा है।
? इसकी
घटनाएँ ही बोल रही है, पात्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं।
? यह बेधड़क कहा जा सकता है कि शैली कि जो विशिष्टता और अर्थगर्भित वक्रता
गुलेरी जी में मिलती है और किसी लेखक में नहीं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी
? आचार्य
शुक्ल ने महावीर प्रसाद द्विवेदी के लेखों को "बातों का संग्रह" कहा है।
? द्विवेदी जी के लेखों को पढ़ने से ऐसा जान पड़ता है कि लेखक बहुत मोटी अक़्ल
के पाठकों के लिए लिख रहा है।
? श्रीयुत पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी ने पहले पहल विस्तृत आलोचना का रास्ता
निकाला।
? इन पुस्तकों (महावीर प्रसाद द्विवेदी की आलोचनात्मक पुस्तकों) को एक मुहल्ले
में फैली बातों से दूसरे मुहल्ले वालों को कुछ परिचित कराने के प्रयत्न के रूप में
समझना चाहिए, स्वतंत्र समालोचना के रूप में
नहीं।
? यद्यपि
द्विवेदी जी ने हिन्दी के
बड़े-बड़े कवियों को लेकर गम्भीर साहित्य समीक्षा का स्थायी साहित्य नहीं प्रस्तुत
किया, पर नई निकली
पुस्तकों की भाषा आदि की खरी आलोचना करके हिन्दी साहित्य का बड़ा भारी उपकार किया।
यदि द्विवेदी जी न उठ खड़े होते तो जैसी अव्यवस्थित व्याकरण विरुद्ध और उटपटांग
भाषा चारों ओर दिखाई पड़ती थी, उसकी
परम्परा जल्दी ना रुकती। उसके प्रभाव से लेखक सावधान हो गए और जिनमें भाषा की समझ
और योग्यता थी उन्होंने अपना सुधार किया।
पंडित गोविंदनारायण मिश्र
? पंडित गोविंदनारायण मिश्र के गद्य को समास अनुप्रास में गुँथे शब्द-गुच्छों का
एक अटाला समझिए।
पंडित जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी
? उनके (पंडित जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी के) अधिकांश लेख भाषण मात्र हैं, स्थायी विषयों पर लिखे हुए निबन्ध नहीं।
मिश्रबन्धु विनोद
? आचार्य
शुक्ल ने 'मिश्रबन्धु विनोद' को बड़ा 'भारी
इतिवृत्त संग्रह' कहा है।
प्रो. नगेंद्र
? केवल प्रो. नगेंद्र की 'सुमित्रानन्दन पन्त' पुस्तक ही ठिकाने की मिली।
अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध
? काव्य अधिकतर भावव्यंजनात्मक और वर्णनात्मक है।
मैथिलीशरण गुप्त
? गुप्त जी (मैथिलीशरण गुप्त) वास्तव में सामंजस्यवादी कवि है; प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करने वाले अथवा मद में झूमाने वाले कवि नहीं हैं। सब
प्रकार की उच्चता से प्रभावित होने वाला हृदय उन्हें प्राप्त है। प्राचीन के प्रति
पूज्य भाव और नवीन के प्रति उत्साह दोनों इनमें है।
पंडित सत्यनारायण कविरत्न
? उनका (पंडित सत्यनारायण कविरत्न का) जीवन क्या था; जीवन की विषमता का एक छाँटा हुआ
दृष्टान्त था।
नरोत्तमदास की कृति
? यद्यपि यह छोटा है, पर इसकी
रचना बहुत सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है। (नरोत्तमदास की कृति सुदामा चरित के बारे में)
सूरदास के बारे में
? वात्सल्य के क्षेत्र में जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बन्द आँखों से किया, इतना किसी और कवि ने नहीं। इन क्षेत्रों का तो वे कोना-कोना झाँक आए।
? शुक्ल जी ने
तुलसी और जायसी के समकक्ष ही सूरदास को माना है।
? यदि हम मनुष्य
जीवन के संपूर्ण क्षेत्र को लेते हैं तो सूरदास की दृष्टि परिमित दिखार्इ पड़ती है, पर यदि उनके चुने
हुए क्षेत्रों (श्रृंगार तथा वात्सल्य) को लेते हैं, तो उनके भीतर उनकी पहुँच का विस्तार
बहुत अधिक पाते हैं। उन क्षेत्रों में इतना अंतर्दृष्टि विस्तार और किसी कवि का नहीं
है। (भ्रमरगीत सार की भूमिका)
? सूर की
बड़ी भारी विशेषता है नवीन प्रसंगों की उद्भावना।
? भ्रमरगीत
का महत्व एक बात से और बढ़ गया है। भक्तशिरोमणि सूर ने इसमें सगुणोपासना का निरूपण
बड़े ही मार्मिक ढंग से౼ हृदय की अनुभूति
के आधार पर तर्क पद्धति पर नहीं౼ किया है।
? 'सूरसागर' में जगह-जगह दृष्टिकूट वाले पद मिलते हैं। यह भी विद्यापति का अनुकरण है।
? यह सूचित
करने की आवश्यकता नहीं है कि न तो सूर का अवधी पर अधिकार था और न जायसी का
ब्रजभाषा पर।
? अष्टछाप
में सूरदास के पीछे इन्हीं का नाम लेना पड़ता है। इनकी रचना भी बड़ी सरस और मधुर
है। इनके सम्बन्ध में यह कहावत प्रसिद्ध है कि 'और कवि
गढ़िया नन्ददास जड़िया।'
सूरदास की तरफ़
इशारा
? इस परम्परा में मुसलमान कवि हुए हैं। केवल एक हिन्दू मिला है। (आचार्य शुक्ल ने किसकी तरफ़ इशारा किया है౼ सूरदास की तरफ़)
? इस परम्परा में मुसलमान कवि हुए हैं। केवल एक हिन्दू मिला है। (आचार्य शुक्ल ने किसकी तरफ़ इशारा किया है౼ सूरदास की तरफ़)
घनानन्द
? आचार्य
शुक्ल ने घनानन्द को 'साक्षात रस मूर्ति' कहा है।
? प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और वीर पथिक तथा ज़बांदानी का दावा रखने वाला ब्रजभाषा
का दूसरा कवि नहीं हुआ।
? भाषा के लक्षक एवं व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है, इसकी पूरी परख इन्हीं को थी।
? भाषा के
लक्ष्य एवं व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है इसकी पूरी परख घनानन्द को ही थी।
बोधा
? आचार्य
शुक्ल के अनुसार बोधा एक रसिक कवि थे।
चिन्तामणि के बारे में
? हिन्दी
रीति ग्रंथों की अखंड परम्परा एवं रीति काल का आरम्भ आचार्य शुक्ल चिन्तामणि से
मानते हैं।
? शुक्ल ने हिन्दी
का प्रथम आचार्य चिन्तामणि को माना है।
? हिन्दी रीति-ग्रंथों
की परम्परा चिन्तामणि त्रिपाठी से चली। अतः रीतिकाल का आरम्भ उन्हीं से मानना चाहिए।
केशवदास
? केशव को
कवि हृदय नहीं मिला था। उनमें वह सहृदयता और भावुकता भी न थी, जो एक कवि में होनी चाहिए। ...प्रबंधकाव्य रचना के योग्य न तो केशव में
अनुभूति ही थी, न शक्ति। ...वे वर्णन वर्णन के
लिए करते थे, न कि प्रसंग या अवसर की अपेक्षा
से। ...केशव की रचना को सबसे अधिक विकृत और अरुचिकर करने वाली वस्तु है आलंकारिक
चमत्कार की प्रवृत्ति, जिसके कारण न तो भावों की
प्रकृत व्यंजना के लिए जगह बचती है, न सच्चे
हृदयग्राही वस्तुवर्णन के लिए।
? केशव को 'कठिन काव्य का प्रेत' शुक्ल ने उनकी क्लिष्टता के
कारण कहा है।
? आचार्य शुक्ल ने केशवदास को भक्ति काल में सम्मिलित किया है।
? आचार्य शुक्ल ने केशवदास को भक्ति काल में सम्मिलित किया है।
? प्रकृति के नाना रूपों के साथ केशव के हृदय का सामंजस्य कुछ भी न था।
पन्तजी की रहस्यभावना
? पन्तजी की
रहस्यभावना स्वाभाविक है, साम्प्रदायिक (डागमेटिक) नहीं।
ऐसी रहस्यभावना इस रहस्यमय जगत् के नाना रुपों को देख प्रत्येक सहृदय व्यक्ति के
मन में कभी-कभी उठा करती है। ...'गुंजन' में भी पन्तजी की रहस्यभावना अधिकतर स्वाभाविक पथ पर पाई जाती है।
अध्यापक पूर्णसिंह
? उनकी
(अध्यापक पूर्णसिंह की) लाक्षणिकता हिन्दी गद्य साहित्य में नयी चीज थी।......भाषा और भाव की एक नयी विभूति उन्होंने
सामने रखी।’ वक्तृत्वकला
का ओज एवं प्रवाह तथा चित्रात्मकता व मूर्तिमत्ता, इनकी शैली
के दो विशिष्ट गुण हैं। ----- संक्षेप में अतिअल्पमात्रा में निबंधों का लेखन करते
हुए भी अध्यापक पूर्णसिंह ने हिन्दी निबन्धकला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पर विद्वानों के विचार
? आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के गौरव थे। समीक्षा क्षेत्र में उनका कोई
प्रतिद्वन्द्वी न उनके जीवनकाल में था, न अब कोई
उनके समकक्ष आलोचक है। आचार्य शब्द ऐसे ही कर्त्ता साहित्यकारों के योग्य हैं। (आचार्य
हजारी प्रसाद द्विवेदी)
? भारतीय
काव्यालोचन शास्त्र का इतना गम्भीर और स्वतंत्र विचारक हिन्दी में तो दूसरा हुआ ही नहीं, अन्यान्य भारतीय भाषाओं में भी हुआ है या नहीं, ठीक नहीं कह
सकते, शायद नहीं हुआ। (आचार्य
हजारीप्रसाद द्विवेदी)
? भारतीय
काव्यलोचनशास्त्र का इतना गम्भीर और स्वतंत्र विचारक हिन्दी में तो दूसरा हुआ ही
नहीं, अन्यान्य
भारतीय भाषाओं में भी हुआ है या नहीं, ठीक से नहीं कह सकते। शायद नहीं हुआ। (आचार्य शुक्ल के बारे में आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य की भूमिका)
? रामचन्द्र
शुक्ल से सर्वत्र सहमत होना सम्भव नहीं। ..... फिर भी शुक्ल जी प्रभावित करते हैं।
नया लेखक उनसे डरता है, पुराना
घबराता है, पंडित सिर
हिलाता है। वे पुराने की ग़ुलामी पसन्द नहीं करते और नवीन की ग़ुलामी तो उनको एकदम
असह्य है। शुक्ल जी इसी बात में बड़े हैं और इसी जगह उनकी कमज़ोरी है। (आचार्य
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी)
? आज तक की
हिन्दी समीक्षा में शुक्ल जी आधार स्तम्भ हैं। (डॉक्टर भगवतस्वरूप मिश्र)
? हिन्दी
साहित्य में कविता के क्षेत्र में जो स्थान 'निराला' का रहा और उपन्यास के क्षेत्र में जो स्थान 'प्रेमचंद' का रहा, आलोचना के क्षेत्रा में वही
स्थान 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' का है।
(आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, डॉ. रामविलास शर्मा)
? शुक्ल जी भारतीय पुनरुत्थान युग की उन परिस्थितयों की उपज थे, जिन्होंने राजनीति में महात्मा गांधी, कविता में
रवीन्द्रनाथ ठाकुर, जयशंकर प्रसाद आदि को उत्पन्न
किया। ౼नामवर सिंह
? इनका हृदय कवि का, मस्तिष्क आलोचक का और जीवन अध्यापक
का था। (आचार्य शुक्ल के लिए)
? हिन्दी समीक्षा को
शास्त्रीय और वैज्ञानिक भूमि पर प्रतिष्ठित करने में शुक्ल जी ने युग प्रवर्तक का
कार्य किया है। उनका यह कार्य हिन्दी के इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा। (नन्ददुलारे
वाजपेयी)
? रामविलास शर्मा ने सही लिखा है
कि "प्राचीन साहित्यशास्त्री स्थायी भावों को रसरूप में प्रकट करके साहित्यिक
प्रक्रिया का अंत निष्क्रियता में कर देते थे। शुक्ल जी ने भाव की मौलिक व्याख्या
करके निष्क्रिय रस-निष्पत्ति की जड़ काट दी है।"
? रामस्वरूप
चतुर्वेदी ने शुक्लजी के बारे में लिखा है कि आचार्य का विषय प्रतिपादन जैसा गुरु
गम्भीर है उसके बीच उनका सूक्ष्म व्यंग्य और तीव्र तथा पैना हो गया है, घनी-बड़ी मूँछों के बीच हल्की मुस्कान की तरह।
? हिन्दी साहित्य में कविता के क्षेत्र में जो स्थान 'निराला' का रहा और उपन्यास के क्षेत्र में जो स्थान 'प्रेमचन्द' का रहा, आलोचना के क्षेत्र में वही स्थान 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' का है। (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, डॉ. रामविलास शर्मा)
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