सुमित्रानंदन पंत (1900-1977) की रचनाएँ/Sumitranandan Pant ki Rachnayen
(20 मई 1900—28 दिसम्बर 1977)
पहली
कविता : गिरजे का घंटा (1916)
कविता
संग्रह / खंडकाव्य
- वीणा (1918, पन्त जी की प्रथम काव्यकृति, इसे कवि ने 'तुतली बोली में एक बालिका का उपहार' कहा है।)
- उच्छ्वास (1920)
- ग्रन्थि )(1920)
- पल्लव (1922-26)
- गुंजन (1926-32)
- ज्योत्सना (1934)
- युगांत (1935)
- युगवाणी (1937-38, 'युगवाणी' भारतीय साम्यवाद की ही वाणी है।)
- ग्राम्या (1939-40)
- स्वर्णकिरण (1944-45)
- स्वर्णधूलि (1946-47)
- उत्तरा (1949)
- युगपथ (1949)
- रजतशिखर (1951)
- शिल्पी (1952)
- सौवर्ण (1954)
- अतिमा (1955)
- वाणी (1957)
- चिदंबरा (1958)
- कला और बूढ़ा चाँद (1958)
- पतझड़ (1959)
- लोकायतन (1964, महाकाव्य)
- गीतहंस
(1969)
- सत्यकाम (1975, महाकाव्य)
- पल्लविनी
- आधुनिक कवि (भाग-2)
- स्वच्छंद (2000)
- मुक्ति यज्ञ
- युगांतर
- रश्मिबन्ध
- तारापथ
- मानसी
- अवगुंठित
- मेघनाद वध
चुनी
हुई रचनाओं के संग्रह
काव्य-नाटक/काव्य-रूपक
- ज्योत्ना (1934)
- रजत-शिखर (1951)
- शिल्पी (1952)
आत्मकथात्मक
संस्मरण
- साठ वर्ष : एक रेखांकन (1963)
आलोचना
- गद्यपथ (1953)
- शिल्प और दर्शन (1961)
- छायावाद : एक पुनर्मूल्यांकन (1965)
कहानियाँ
- पाँच कहानिय़ाँ (1938)
उपन्यास
- हार (1960)
अनूदित
रचनाओं के संग्रह
- मधुज्वाल (उमर ख़ैयाम की रुबाइयों का फारसी से हिन्दी में अनुवाद)
संयुक्त
संग्रह
- खादी के फूल / सुमित्रानंदन पंत और बच्चन का संयुक्त काव्य-संग्रह
पत्र-संग्रह
- पंत के
सौ पत्र (1970, सं. बच्चन)
पत्रकारिता
- 1938 में
उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक प्रगतिशील
मासिक पत्र निकाला।
कुछ
प्रतिनिधि रचनाएँ
उच्छ्वास,
आँसी की बालिका, पर्वत प्रदेश में पावस, काले बादल, छाया, नौका-विहार, परिवर्तन, भावी पत्नी के प्रति, अनंग,
चाँदनी, अप्सरा, द्रुत झरो, धेनुएँ.
- आह, धरती कितना देती
है
- आओ, हम अपना मन टोवें
- आत्मा का चिर-धन
- काले बादल
- घंटा
- छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
- जग जीवन में जो चिर
महान
- जीना अपने ही में
- द्रुत झरो
- धरती का आँगन इठलाता
- धेनुएँ
- नौका-विहार
- पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस
- परिवर्तन
- पर्वत प्रदेश में
पावस
- पाषाण खंड
- प्रथम रश्मि
- फैली खेतों में दूर तलक मखमल की कोमल हरियाली
- बाँध दिए क्यों प्राण
- भारतमाता ग्रामवासिनी
- मछुए का गीत
- महात्मा जी के प्रति
- मैं सबसे छोटी होऊँ
- यह धरती कितना देती
है
- लहरों का गीत
- वसंत
- वह जीवन का बूढ़ा
पंजर
- वायु के प्रति
- वे आँखें
- श्री सूर्यकांत त्रिपाठी के प्रति
- संध्या के बाद
- सांध्य वंदना
पुरस्कार
व सम्मान
1961 ‘पद्मभूषण’
हिंदी साहित्य की इस अनवरत सेवा के लिए
1968 ‘चिदम्बरा’ नामक
रचना पर ‘भारतीय
ज्ञानपीठ पुरस्कार’
https://www.google.co.in/
Papehon ki veh peen pukar ke lakhak kaun hain?
जवाब देंहटाएंआँसू
जवाब देंहटाएंपपीहों की वह पीन पुकार,
निर्झरों की भारी झर झर;
झींगुरों की भीनी झनकार
घनों की गुरु गंभीर गहर;
बिन्दुओं की छनती छनकार,
दादुरों के वे दुहरे स्वर||
आँसू (पल्लव काव्य-संग्रह, सुमित्रानन्दनकृत)
आँसू
जवाब देंहटाएंपपीहों की वह पीन पुकार,
निर्झरों की भारी झर झर;
झींगुरों की भीनी झनकार
घनों की गुरु गंभीर गहर;
बिन्दुओं की छनती छनकार,
दादुरों के वे दुहरे स्वर||
(सुमित्रानन्दन के काव्य-संग्रह पल्लव से)
Ansu ki Balika poem or Rashmi bandh kyo nahi hai
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