महादेवी
वर्मा (1907-1987)
आधुनिक
साहित्य की मीरा
रेखाचित्र
- अतीत के चलचित्र (1941)
- स्मृति की रेखाएँ (1943)
संस्मरण
- पथ के साथी (1956, अपने अग्रज समकालीन
साहित्यकारों पर)
- मेरी परिवार (1972, पशु-पक्षियों पर)
- संस्मरण (1983)
ललित निबंध
- क्षणदा (1956)
चुने हुए भाषणों का संग्रह
- संभाषण (1974)
कहानियाँ
निबन्ध
- विवेचनात्मक गद्य (1942)
- श्रृंखला की कड़ियाँ (1942, भारतीय नारी की विषम
परिस्थितियों पर)
- साहित्यकार की आस्था और अन्य निबन्ध (1962, सं.
गंगा प्रसाद पांडेय, महादेवी का काव्य-चिन्तन)
- संकल्पिता (1969)
- भारतीय संस्कृति के स्वर (1984)।
- चिन्तन के क्षण
- युद्ध और नारी
- नारीत्व का अभिशाप
- सन्धिनी
- आधुनिक नारी
- स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न
- सामाज और व्यक्ति
- संस्कृति का प्रश्न
- हमारा देश और राष्ट्रभाषा
महत्वपूर्ण पंक्तियां
- सौन्दर्य परिचय -स्निग्ध खंड है और सत्य विस्मय
भरा अखण्ड।
- काव्य या कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य
के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है।
- कवि का दर्शन दीवन के प्रति उसकी आस्था का दूसरा
नाम है।
- आस्था मानव के युगान्तर से प्राप्त दार्शनिक
लक्ष्य पर केन्द्रित रागात्मक दृशटि है।
- छायावाद तो करुणा की छाया में सौन्दर्य के माध्यम
से व्यक्त होने वाला भावात्मक सर्ववाद ही रहा है और उसी रूप में उसकी
उपयागिता है।
महादेवी ने स्वयं लिखा है, ”मां से पूजा और आरती के समय सुने सूर, तुलसी तथा मीरा
आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। मां से सुनी एक करुण कथा को मैंने
प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पडौस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित
होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र् लिखे थे जो उस समय की पत्र्किाओं में प्रकाशित
भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा
बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।“
‘‘हिन्दी भाषा के
साथ हमारी अस्मिता जुडी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की
हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’
-
कविता-संग्रह
- नीहार (1930)
- रश्मि (1932)
- नीरजा (1934)
- सांध्यगीत (1935)
- यामा
(1940)
- दीपशिखा (1942)
- सप्तपर्णा
(1960, अनूदित)
- संधिनी (1965)
- नीलाम्बरा
(1983)
- आत्मिका
(1983)
- दीपगीत
(1983)
- प्रथम आयाम (1984)
- अग्निरेखा
(1990)
- पागल है
क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)
- परिक्रमा
- गीतपर्व
पुनर्मुद्रित संकलन
(निम्नलिखित संकलनों में महादेवी वर्मा की नयी कवितायें नहीं हैं, बल्कि पुराने संकलनों को ही नयी भूमिकाओं के साथ पुनर्मुद्रित किया गया है।)
(निम्नलिखित संकलनों में महादेवी वर्मा की नयी कवितायें नहीं हैं, बल्कि पुराने संकलनों को ही नयी भूमिकाओं के साथ पुनर्मुद्रित किया गया है।)
- यामा (1940)
- हिमालय (1960)
- दीपगीत (1983)
- नीलाम्बरा (1983)
- आत्मिका
(1983)
- गीतपर्व
- परिक्रमा
- संधिनी
- स्मारिका
- पागल है
क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)
महादेवी वर्मा की बाल कविताओं के दो संकलन छपे हैं—
- ठाकुरजी भोले हैं
- आज खरीदेंगे हम
ज्वाला
बंगाल के अकाल के समय 1943 में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित
किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी।
इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय (1960) नामक काव्य संग्रह का संपादन
किया था।
कुछ प्रतिनिधि कविताएँ
- अलि! मैं कण-कण को जान चली
- अलि अब सपने की बात
- अश्रु यह पानी नहीं है
- कहां रहेगी चिड़िया
- किसी का दीप निष्ठुर हूँ
- कौन तुम मेरे हृदय में
- क्या जलने की रीत
- क्या पूजन क्या अर्चन रे!
- क्यों इन तारों को उलझाते?
- जब यह दीप थके
- जाग-जाग सुकेशिनी री!
- जाग तुझको दूर जाना
- जाने किस जीवन की सुधि ले
- जीवन विरह का जलजात
- जो तुम आ जाते एक बार
- जो मुखरित कर जाती थीं
- तम में बनकर दीप
- तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!
- तेरी सुधि बिन
- दिया क्यों जीवन का वरदान
- दीपक अब रजनी जाती रे
- दीप मेरे जल अकम्पित
- धीरे-धीरे उतर क्षितिज से
- धूप सा तन दीप सी मैं
- नीर भरी दुख की बदली
- पूछता क्यों शेष कितनी रात?
- प्रिय चिरन्तन है
- बताता जा रे अभिमानी!
- बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी
हूँ
- मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
- मिटने का अधिकार
- मेरा सजल मुख देख लेते!
- मैं अनंत पथ में लिखती जो
- मैं नीर भरी दुख की बदली!
- मैं प्रिय पहचानी नहीं
- मैं बनी मधुमास आली!
- यह मंदिर का दीप
- रजतरश्मियों की छाया में धूमिल घन सा वह
आता
- रूपसि तेरा घन-केश-पाश
- लाए कौन संदेश नए घन
- वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की
- वे मुस्कराते फूल नहीं
- व्यथा की रात
- शून्य से टकरा कर सुकुमार
- सजनि कौन तम में परिचित सा
- सजनि दीपक बार ले
- सब आँखों के आँसू उजले
- स्वप्न से किसने जगाया?
- हे चिर महान्!
पुरस्कार
और सम्मान
1934 ‘ नीरजा’ पर ‘सेक्सरिया पुरस्कार’
1943 ‘ भारत भारती पुरस्कार’, (‘स्मृति की रेखाओं’ के लिये)
1952 उत्तर प्रदेश विधान परिषद की
सदस्या मनोनीत
1956
‘पद्म भूषण’
1979
साहित्य अकादमी फैलोशिप (पहली महिला)
1988
‘पद्म विभूषण’ (मरणोपरांत)
सन 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की और पं. इला चंद्र जोशी के सहयोग से 'साहित्यकार' का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ मासिक की भी संपादक रहीं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘ रंगवाणी नाट्य संस्था’ की भी स्थापना की।
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