गुरुवार, 21 मई 2020

अज्ञेय की कहानियां /AJNEYA KI KAHANIYAN

अज्ञेय की कहानियां/AJNEYA KI KAHANIYAN 


(जन्म : 7 मार्च, 1911 कुशीनगरदेवरियाउ. प्र. – मृत्यु : 4 अप्रैल, 1987 नई दिल्ली)
#नाम : #सच्चिदानंद वात्स्यायन
#बचपन का नाम : #सच्चा
#ललित निबंधकार नाम  : #कुट्रिटचातन
रचनाकार नाम : #अज्ञेय (#जैनेद्र और #प्रेमचंद का दिया नाम है)।
#अज्ञेय #प्रयोगवाद एवं #नई कविता को साहित्य-जगत् में #प्रतिष्ठित करने वाले कविप्रयोगधर्मी साहित्यकार। अज्ञेय के विषय में यह कहा जाता है किवह #'कठिन काव्य के प्रेत हैं'
#पहला कहानी :जिज्ञासा (1935, ई.)
#पहला कहानी-संग्रह :  विपथगा (1932 ई.)
#अंतिम कहानी हज़ामत का साबुन (1959)
#अधूरी कहानी गृहत्याग (1932 ई.विपथगा में संकलित)
कहानी-संग्रह
  1. #विपथगा (1937), भारतीय भड़ारलीडर प्रेस इलहाबाद
  2. #परंपरा (1944), सस्वती प्रेसबनारस
  3. #अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँसस्वती प्रेसबनारस
  4. #कड़ियाँ तथा अन्य कहानियाँसस्वती प्रेसबनारस
  5. #कठोरी की बात (1945), प्रतीक प्रकाशनदिल्ली
  6. #शरणार्थी (1948), शारदा प्रकाशनबनारस
  7. #जयदोल (1951) प्रतीक प्रकाशनदिल्ली
  8. #ये तेरे प्रतिरूप (1961), राजपाल एंड संजदिल्ली
  9. जिज्ञासा एवं अन्य कहनियाँ (1965 ई.)
  10. #संपूर्ण कहानियाँ (दो खंडों में, 1975), राजपाल एंड संजदिल्ली
1मशहूर कहानियां
विपथगा (वार्तालाप-शैली)कविप्रिया (वार्तालाप-शैली में)सांपधीरज और पठार का धीरज (तीनों प्रतीकात्मक शैली में)हीली बोन की बत्तखेंमेजर चौधुरी की वापसी (दोनों मनोविश्लेषण-प्रधान शैली में)देवी (व्यंग्यप्रधान-शैली में)खित्तीन बाबू (रेखाचित्र या संस्मरण शैली)पगोडा वृक्षअकलंककड़ियापुलिस की सीटी (नाटकीय शैली)द्रोहीमनसोअमरबल्लारी (आत्मकथात्मक शैली)शरणदातामुस्लिम-मुस्लिम भाई-भाईबदलारमंते तत्र देवतानारंगियां (देश-विभाजन-संबंधी कहानियां)  गैंग्रीन (रोज़)हारीतिछायाक्षमादारोगा अमीचंदअलिखित कहानीशांति हंसी थीशत्रुपुरुष का भाग्यकोठरी की बातसिगनेलरपुलिस की सीटीचिड़ियाघरपठार का धीरज इत्यादि अज्ञेय की मशहूर कहानियां हं।

अज्ञेय (nta/ugc net/jrf syllabus) की काव्य-पंक्तियां


अज्ञेय (nta/ugc net/jrf syllabus) की काव्य-पंक्तियां


#हम हैं द्वीप, हम धरा नहीं, हम बहते नहीं हैं, क्योंकि बहना रेत होना है।

#मौन भी अभिव्यंजना है। जितना तुम्हारा सच है, उतना ही कहो।

#दुख सबको मांजता है।

#मैं ही हूं वह पदाक्रांत रिरियाता कुत्ता।

#एक क्षण क्षण में प्रवहमान व्याप्त संपूर्णता वंचना है चांदनी सित।

#उड़ चल हारिल, लिए हाथ में यही अकेला ओछा तिनका।

#नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या कि सूना है
या कि मेरा प्यार मैला है।
(कलगी बाजरे की)

#बल्कि केवल यही : ये उपमान मैले हो गये हैं।
देवता इन प्रतीकों के कर गये हैं कूच।
(कलगी बाजरे की)

#कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है। (कलगी बाजरे की)

#शब्द जादू हैं-
मगर क्या समर्पण कुछ नहीं है
 ? (कलगी बाजरे की)
          
#आ गये प्रियंवद ! केशकम्बली ! गुफा-गेह ! (असाध्य वीणा)

#हठ-साधना यही थी उस साधक की --
वीणा पूरी हुई
, साथ साधना, साथ ही जीवन-लीला। (असाध्य वीणा)

#मेरे हार गये सब जाने-माने कलावन्त,
सबकी विद्या हो गई अकारथ
, दर्प चूर,
कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।
अब यह असाध्य वीणा ही ख्यात हो गयी। (असाध्य वीणा)

#सब उदग्र, पर्युत्सुक,
जन मात्र प्रतीक्षमाण
 ! (असाध्य वीणा)

#राजन! पर मैं तो
कलावन्त हूँ नहीं
, शिष्य, साधक हूँ--
जीवन के अनकहे सत्य का साक्षी। (असाध्य वीणा)

#गा तू :
तेरी लय पर मेरी साँसें
भरें
, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें। (असाध्य वीणा)

#तू गा :
मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा
स्मृति का
श्रुति का -- (असाध्य वीणा)

#समाधिस्थ संगीतकार का हाथ उठा था --
काँपी थी उँगलियाँ।
अलस अँगड़ाई ले कर मानो जाग उठी थी वीणा :
किलक उठे थे स्वर-शिशु। (असाध्य वीणा)

#सहसा वीणा झनझना उठी --
संगीतकार की आँखों में ठंडी पिघली ज्वाला-सी झलक गयी --
रोमांच एक बिजली-सा सबके तन में दौड़ गया । (असाध्य वीणा)

#अवतरित हुआ संगीत
स्वयम्भू
जिसमें सीत है अखंड
ब्रह्मा का मौन
अशेष प्रभामय । (असाध्य वीणा)

#ईर्ष्या, महदाकांक्षा, द्वेष, चाटुता
सभी पुराने लुगड़े-से झड़ गये
, निखर आया था जीवन-कांचन
धर्म-भाव से जिसे निछावर वह कर देगा । (असाध्य वीणा)

#सब अंधकार के कण हैं ये ! आलोक एक है
प्यार अनन्य
 ! उसी की
विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भार मेघ को
,
थिरक उसी की छाती पर उसमें छिपकर सो जाती है
आश्वस्त
, सहज विश्वास भरी। (असाध्य वीणा)

#सबने भी अलग-अलग संगीत सुना। (असाध्य वीणा)

#बटुली में बहुत दिनों के बाद अन्न की सोंधी खुशबू।
किसी एक को नयी वधू की सहमी-सी पायल-ध्वनि।
किसी दूसरे को शिशु की किलकारी। (असाध्य वीणा)

#उसे युद्ध का ढाल :
इसे सझा-गोधूली की लघु टुन-टुन --
उसे प्रलय का डमरू-नाद। (असाध्य वीणा)

#श्रेय नहीं कुछ मेरा :
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में
वीणा के माध्यम से अपने को मैंने
सब कुछ को सौंप दिया था --
सुना आपने जो वह मेरा नहीं
,
न वीणा का था
 :
वह तो सब कुछ की तथता थी
(असाध्य वीणा)

#महाशून्य
वह महामौन
अविभाज्य
, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय
जो शब्दहीन
सबमें गाता है। (असाध्य वीणा)

#धीर, आश्वस्त, अक्लांत—
ओ मेरे अनबुझे सत्य! कितनी बार... (कितनी नावों में कितनी बार)

#आओ बैठें
इसी ढाल की हरी घास पर। (हरी घास पर क्षण भर)

#आओ, बैठो
तनिक और सट कर
, कि हमारे बीच स्नेह-भर का व्यवधान रहे, बस,
नहीं दरारें सभ्य शिष्ट जीवन की। (हरी घास पर क्षण भर)

#नमो, खुल खिलो, सहज मिलो
अन्त:स्मित
, अन्त:संयत हरी घास-सी। (हरी घास पर क्षण भर)

#पौधे, लता दोलती, फूल, झरे पत्ते, तितली-भुनगे,
फुनगी पर पूँछ उठा कर इतराती छोटी-सी चिड़िया-
और न सहसा चोर कह उठे मन में-
प्रकृतिवाद है स्खलन
क्योंकि युग जनवादी है। (हरी घास पर क्षण भर)

#क्षण-भर हम न रहें रह कर भी :
सुनें गूँज भीतर के सूने सन्नाटे में किसी दूर सागर की लोल लहर की
जिस की छाती की हम दोनों छोटी-सी सिहरन हैं-
जैसे सीपी सदा सुना करती है। (हरी घास पर क्षण भर)

#मसजिद के गुम्बद के पीछे सूर्य डूबता धीरे-धीरे,
झरने के चमकीले पत्थर
, मोर-मोरनी, घुँघरू,
सन्थाली झूमुर का लम्बा कसक-भरा आलाप
,
रेल का आह की तरह धीरे-धीरे खिंचना
, लहरें। (हरी घास पर क्षण भर)

#आँधी-पानी,
नदी किनारे की रेती पर बित्ते-भर की छाँह झाड़ की
अंगुल-अंगुल नाप-नाप कर तोड़े तिनकों का समूह
,
लू
,
मौन। (हरी घास पर क्षण भर)

#हम अतीत के शरणार्थी हैं;
स्मरण हमारा-जीवन के अनुभव का प्रत्यवलोकन-
हमें न हीन बनावे प्रत्यभिमुख होने के पाप-बोध से। (हरी घास पर क्षण भर)

#आओ बैठो : क्षण-भर :
यह क्षण हमें मिला है नहीं नगर-सेठों की फैयाजी से।
हमें मिला है यह अपने जीवन की निधि से ब्याज सरीखा। (हरी घास पर क्षण भर)

#झिझक न हो कि निरखना दबी वासना की विकृति है! (हरी घास पर क्षण भर)

#और रहे बैठे तो लोग कहेंगे
धुँधले में दुबके प्रेमी बैठे हैं। (हरी घास पर क्षण भर)

#नहीं सुनें हम वह नगरी के नागरिकों से
जिन की भाषा में अतिशय चिकनाई है साबुन की
किन्तु नहीं है करुणा। (हरी घास पर क्षण भर)

#यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो। (यह दीप अकेला)

#यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युगसंचय
यह गोरस
: जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय
यह अंकुर
 : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय
यह प्रकृत
, स्वयम्भू, ब्रह्म, अयुतः
इस को भी शक्ति को दे दो। (यह दीप अकेला)

#जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो। (यह दीप अकेला)


बुधवार, 20 मई 2020

नंदकिशोर नवल (1937-2020) के आलोचना-ग्रंथ NANDKISHOR NAVAL KE AALOCHNA-GRANTH

नंदकिशोर नवल (1937-2020) के आलोचना-ग्रंथ/NANDKISHOR NAVAL KE AALOCHNA-GRANTH

कविता की मुक्ति (1980 ई.), हिंदी आलोचना का विकास (1981 ई.), प्रेमचंद का सौंदर्यशास्त्र (1982 ई.), शब्द जहां सक्रिय हैं (1984 ई.), यथाप्रसंग (1992 ई.), मुक्तिबोध : ज्ञान और संवेदना (1993 ई.), समकालीन काव्ययात्रा (1994 ई.), दृश्यालेख (1995 ई.), निराला : कृति से साक्षात्कार (भाग-1, 1997 ई., भाग-2, 2000 ई.), रचना का पक्ष (2000 ई.), शताब्दी की कविता (2001 ई.), पार्श्वच्छवि (2002 ई.), निराला काव्य की छवियां (2002 ई.), कविता पहचान का संकट (2 006 ई.), निराला की तीन लम्बी कविताएं।


साखी सबदी दोहरा

साखी सबदी दोहरा ''साखी सबदी दोहरा कहि कहनी उपखान।
भगति निरूपहि अधम कवि निंदहि वेद पुरान।।'' (गोस्वामी तुलसीदास) 

अपभ्रंश के रचनाकार और उनकी रचनाएँ

अपभ्रंश के रचनाकार और उनकी रचनाएँ

#कालिदास (5वीं शती) : विक्रमोर्वशीय (चतुर्थ अंक के अपभ्रंश पद्य)
#जोइंदु (6वीं शती) : परमात्मप्रकाश और योगसार (धर्म-दर्शन)
#कान्ह (7वीं, 12वीं शती) : दोहाकोश
#देवसेन ( 933 ई.) : सावयथम्स दोहा
#पुष्पदंत (965-973 ई.) : महापुराणम्, णायकुमारचरिउ, जसहरचरिउ
#कनकामर मुनि (975-1025 ई. ) : करकंडुचरिउ
#रामसिंह (10वीं शती) : पाहुड़ दोहा
#धनंजय (10वीं शती) : दशरूपक के अपभ्रंश के पद्य
#धनपाल (10वीं शती) : भविष्यत् कहा
#सरह ( 1000-1050 ई.) : दोहाकोश
#भोज (वीं शती) : सरस्वती कंठाभरण
#जिनदत्त (1113-1155 ई. ) : जिनदत्तचर्चरी (अपभ्रंश काव्य त्रयी) , उपदेश तरंगिनी (अपभ्रंश काव्य त्रयी)
#लक्षमणमणि (1142 ई. ) : सुपाणाहचरिउ के अपभ्रंश पद्य
#हरिभद्र ( 1159 ई.) : सनत्कुमारचरिउ
# हेमचन्द्र (1088-1172 ई.) : सिद्धहेम, कुमारपाल चरित
#सोमप्रभ (1195 ई.) : कुमारपाल प्रतिबोध, अपभ्रंश भाग
#घाहिल (वीं शती उत्तरार्द्ध, वीं शती पूर्वार्द्ध) : पउमसिरिचरिउ


मंगलवार, 19 मई 2020

आदिकाल की प्रवृत्तियाँ

आदिकाल की प्रवृत्तियाँ
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#सिद्ध काव्य
#नाथ काव्य
#चारण काव्य, रासो काव्य एवं प्रशस्ति काव्य
#श्रृंगार काव्य
#जैन काव्य
#सूफ़ी काव्य
#संत काव्य
#राम काव्य
#कृष्ण काव्य
#लोक काव्य
#मुक्तक एवं प्रबंध काव्यों की रचना
#गद्य रचनाएँ, व्याकरण एवं संग्रह ग्रंथ
#रासो काव्य की रचना
#वीर एवं श्रृंगार रस की प्रधानता #ऐतिहासिकता का अभाव
#संदिग्ध प्रमाणिकता
#कल्पना की प्रधानता
#संकुचित राष्ट्रीयता
#छंदों की विविधता
#डिंगल-पिंगल भाषा का प्रयोग
(1) डिंगल भाषा = अपभ्रंश+राजस्थानी का प्रयोग
(2) पिंगल = अपभ्रंश+ब्रजभाषा का प्रयोग

(साभार : हिंदी साहित्य की भूमिका, भाग-1, प्रोफ़ेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित व अन्य) 

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन #अज्ञेय की कहानियां


(जन्म : 7 मार्च, 1911 कुशीनगर, देवरिया, उ. प्र. – मृत्यु : 4 अप्रैल, 1987 नई दिल्ली)
#नाम : #सच्चिदानंद वात्स्यायन
#बचपन का नाम : #सच्चा
#ललित निबंधकार नाम  : #कुट्रिटचातन
रचनाकार नाम : #अज्ञेय (#जैनेद्र और #प्रेमचंद का दिया नाम है)।
#अज्ञेय #प्रयोगवाद एवं #नई कविता को साहित्य-जगत् में #प्रतिष्ठित करने वाले कवि, प्रयोगधर्मी साहित्यकार। अज्ञेय के विषय में यह कहा जाता है कि, वह #'कठिन काव्य के प्रेत हैं'
#पहला कहानी :# जिज्ञासा (1935, ई.)
#पहला कहानी-संग्रह :  विपथगा (1932 ई.)
#अंतिम कहानी हज़ामत का साबुन (1959)
#अधूरी कहानी : गृहत्याग (1932 ई., विपथगा में संकलित)
कहानी-संग्रह
  1. #विपथगा (1937), भारतीय भड़ार, लीडर प्रेस इलहाबाद
  2. #परंपरा (1944), सस्वती प्रेस, बनारस
  3. #अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ, सस्वती प्रेस, बनारस
  4. #कड़ियाँ तथा अन्य कहानियाँ, सस्वती प्रेस, बनारस
  5. #कठोरी की बात (1945), प्रतीक प्रकाशन, दिल्ली
  6. #शरणार्थी (1948), शारदा प्रकाशन, बनारस
  7. #जयदोल (1951) प्रतीक प्रकाशन, दिल्ली
  8. #ये तेरे प्रतिरूप (1961), राजपाल एंड संज, दिल्ली
  9. जिज्ञासा एवं अन्य कहनियाँ (1965 ई.)
  10. #संपूर्ण कहानियाँ (दो खंडों में, 1975), राजपाल एंड संज, दिल्ली
1मशहूर कहानियां
विपथगा (वार्तालाप-शैली), कविप्रिया (वार्तालाप-शैली में), सांप, धीरज और पठार का धीरज (तीनों प्रतीकात्मक शैली में), हीली बोन की बत्तखें, मेजर चौधुरी की वापसी (दोनों मनोविश्लेषण-प्रधान शैली में), देवी (व्यंग्यप्रधान-शैली में), खित्तीन बाबू (रेखाचित्र या संस्मरण शैली), पगोडा वृक्ष, अकलंक, कड़िया, पुलिस की सीटी (नाटकीय शैली), द्रोही, मनसो, अमरबल्लारी (आत्मकथात्मक शैली), शरणदाता, मुस्लिम-मुस्लिम भाई-भाई, बदला, रमंते तत्र देवता, नारंगियां (देश-विभाजन-संबंधी कहानियां)  गैंग्रीन (रोज़), हारीति, छाया, क्षमा, दारोगा अमीचंद, अलिखित कहानी, शांति हंसी थी, शत्रु, पुरुष का भाग्य, कोठरी की बात, सिगनेलर, पुलिस की सीटी, चिड़ियाघर, पठार का धीरज इत्यादि अज्ञेय की मशहूर कहानियां हं।