प्रसिद्ध व्यंग्यकार
हरिशंकर परसाई की यह व्यंग्यकथा 'इंस्पेक्टर मातादीन चांद से लौट आए हैं' NTA/UGCNET/JRF
के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। इसमें लेखक ने भारतीय पुलिस की
कार्य-प्रणाली पर व्यंग्य किया है। परीक्षार्थियों के लाभार्थ ब्लॉग में दी जा रही
है —
इंस्पेक्टर मातादीन चांद से लौट आए हैं — हरिशंकर परसाई : Hindi Sahitya Vimarsh
वैज्ञानिक कहते हैं, चांद पर जीवन नहीं है।
सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (डिपार्टमेंट में एम। डी।
साब) कहते हैं : वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं,
वहां हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है।
विज्ञान ने
हमेशा इन्स्पेक्टर मातादीन से मात खाई है। फ़िंगर प्रिंट विशेषज्ञ कहता रहता है :
छुरे पर पाये गये निशान मुलजिम की अंगुलियों के नहीं हैं। पर मातादीन उसे सज़ा
दिला ही देते हैं।
मातादीन कहते
हैं : ये वैज्ञानिक
केस का पूरा इन्वेस्टीगेशन नहीं करते। उन्होंने चांद का उजला हिस्सा देखा और कह
दिया, वहां जीवन नहीं है।
मैं चांद का अंधेरा हिस्सा देखकर आया हूं। वहां मनुष्य जाति है।
यह बात सही है, क्योंकि अंधेरे पक्ष के मातादीन माहिर माने
जाते हैं।
पूछा जाएगा,
इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर क्यों गए थे?
टूरिस्ट की हैसियत से या किसी फ़रार अपराधी को पकड़ने? नहीं, वे भारत की तरफ़ से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत गए थे।
चांद सरकार ने भारत सरकार को लिखा था- यों हमारी सभ्यता बहुत आगे बढ़ी है। पर हमारी
पुलिस में पर्याप्त सक्षमता नहीं है। वह अपराधी का पता लगाने और उसे सज़ा दिलाने
में अक्सर सफल नहीं होती। सुना है,
आपके यहां रामराज है। मेहरबानी करके किसी पुलिस अफ़सर को भेजें जो हमारी पुलिस
को शिक्षित कर दे।
गृहमंत्री ने सचिव से कहा- किसी आई. जी. को भेज दो।
सचिव ने कहा- नहीं सर,
आई. जी. नहीं भेजा जा सकता। प्रोटोकॉल का सवाल है। चांद हमारा एक क्षुद्र
उपग्रह है। आई. जी. के रैंक के आदमी को नहीं भेजेंगे। किसी सीनियर इंस्पेक्टर को
भेज देता हूं।
तय किया गया कि हज़ारों मामलों के इन्वेस्टिगेटिंग ऑफ़िसर
सीनियर इंस्पेक्टर मातादीन को भेज दिया जाय।
चांद की सरकार को लिख दिया गया कि आप मातादीन को लेने के
लिए पृथ्वी-यान भेज दीजिये।
पुलिस मंत्री ने मातादीन को बुलाकर कहा- तुम भारतीय पुलिस
की उज्ज्वल परंपरा के दूत की हैसियत से जा रहे हो। ऐसा काम करना कि सारे अंतरिक्ष
में डिपार्टमेंट की ऐसी जय-जयकार हो कि पी.एम. (प्रधानमन्त्री) को भी सुनाई पड़ जाए।
मातादीन की यात्रा का दिन आ गया। एक यान अंतरिक्ष अड्डे पर
उतरा। मातादीन सबसे विदा लेकर यान की तरफ़ बढ़े। वे धीरे-धीरे कहते जा रहे थे, ‘प्रविसि नगर कीजै सब काजा, ह्रदय राखि कौसलपुर राजा।’
यान के पास पहुंचकर मातादीन ने मुंशी अब्दुल गफ़ूर को
पुकारा- ‘मुंशी!’
गफ़ूर ने एड़ी मिलाकर सेल्यूट फटकारा। बोला- जी, पेक्टसा !
एफ. आई. आर. रख दी है?
जी, पेक्टसा।
और रोज़नामचे का नमूना?
जी, पेक्टसा !
वे यान में बैठने लगे। हवलदार बलभद्दर को बुलाकर कहा- हमारे
घर में जचकी के बख़त अपने खटला (पत्नी) को मदद के लिए भेज देना।
बलभद्दर ने कहा- जी,
पेक्टसा।
गफ़ूर ने कहा –
आप बेफ़िक्र रहें पेक्टसा ! मैं अपने मकान (पत्नी) को भी भेज दूंगा ख़िदमत के
लिए।
मातादीन ने यान के चालक से पूछा – ड्राइविंग लाइसेंस है?
जी, है साहब !
और गाड़ी में बत्ती ठीक है?
जी, ठीक है।
मातादीन ने कहा,
सब ठीक-ठाक होना चाहिए, वरना हरामज़ादे
का बीच अंतरिक्ष में चालान कर दूंगा।
चन्द्रमा से आये चालक ने कहा- हमारे यहां आदमी से इस तरह
नहीं बोलते।
मातादीन ने कहा- जानता हूं बे ! तुम्हारी पुलिस कमज़ोर है।
अभी मैं उसे ठीक करता हूं।
मातादीन यान में क़दम रख ही रहे थे कि हवलदार रामसजीवन
भागता हुआ आया। बोला- पेक्टसा,
एस.पी. साहब के घर में से कहे हैं कि चांद से एड़ी चमकाने का पत्थर लेते आना।
मातादीन ख़ुश हुए। बोले- कह देना बाई साब से, ज़रूर लेता आऊंगा।
वे यान में बैठे और यान उड़ चला। पृथ्वी के वायुमंडल से यान
बाहर निकला ही था कि मातादीन ने चालक से कहा- अबे, हॉर्न क्यों नहीं बजाता?
चालक ने जवाब दिया- आसपास लाखों मील में कुछ नहीं है।
मातादीन ने डांटा- मगर रूल इज रूल। हॉर्न बजाता चल।
चालक अंतरिक्ष में हॉर्न बजाता हुआ यान को चांद पर उतार
लाया। अंतरिक्ष अड्डे पर पुलिस अधिकारी मातादीन के स्वागत के लिए खड़े थे। मातादीन
रोब से उतरे और उन अफ़सरों के कन्धों पर नज़र डाली। वहां किसी के स्टार नहीं थे। फ़ीते
भी किसी के नहीं लगे थे। लिहाज़ा मातादीन ने एड़ी मिलाना और हाथ उठाना ज़रूरी नहीं
समझा। फिर उन्होंने सोचा, मैं यहां
इंस्पेक्टर की हैसियत से नहीं,
सलाहकार की हैसियत से आया हूं।
मातादीन को वे लोग लाइन में ले गए और एक अच्छे बंगले में
उन्हें टिका दिया।
एक दिन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शुरू कर दिया। पहले
उन्होंने पुलिस लाइन का मुलाहज़ा किया।
शाम को उन्होंने आई.जी. से कहा- आपके यहां पुलिस लाइन में
हनुमानजी का मंदिर नहीं है। हमारे रामराज में पुलिस लाइन में हनुमानजी हैं।
आई।जी। ने कहा- हनुमान कौन थे- हम नहीं जानते।
मातादीन ने कहा- हनुमान का दर्शन हर कर्तव्यपरायण पुलिसवाले
के लिए ज़रूरी है। हनुमान सुग्रीव के यहां स्पेशल ब्रांच में थे। उन्होंने सीता
माता का पता लगाया था। एबडक्शन’का मामला था-
दफ़ा 362। हनुमानजी ने रावण को
सज़ा वहीँ दे दी। उसकी प्रॉपर्टी में आग लगा दी। पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि
अपराधी को पकड़ा और वहीँ सज़ा दे दी। अदालत में जाने का झंझट नहीं। मगर यह सिस्टम
अभी हमारे रामराज में भी चालू नहीं हुआ है। हनुमानजी के काम से भगवान राम बहुत ख़ुश
हुए। वे उन्हें अयोध्या ले आए और ‘टौन ड्यूटी’ में तैनात कर दिया। वही हनुमान हमारे
अराध्य देव हैं। मैं उनकी फ़ोटो लेता आया हूं। उसपर से मूर्तियां बनवाइए और हर
पुलिस लाइन में स्थापित करवाइए।
थोड़े ही दिनों में चांद की हर पुलिस लाइन में हनुमानजी
स्थापित हो गए।
मातादीनजी उन कारणों का अध्ययन कर रहे थे, जिनसे पुलिस लापरवाह और अलाल हो गयी है।
वह अपराधों पर ध्यान नहीं देती। कोई कारण नहीं मिल रहा था। एकाएक उनकी बुद्धि में
एक चमक आई।उन्होंने मुंशी से कहा- ज़रा तनख़ा का रजिस्टर बताओ।
तनख़ा का रजिस्टर देखा, तो सब समझ गए। कारण पकड़ में आ गया।
शाम को उन्होंने पुलिस मंत्री से कहा, मैं समझ गया कि आपकी पुलिस मुस्तैद क्यों
नहीं है। आप इतनी बड़ी तनख़्वाहें देते हैं इसीलिए। सिपाही को पांच सौ, थानेदार को हज़ार- ये क्या मज़ाक़ है। आख़िर
पुलिस अपराधी को क्यों पकड़े? हमारे यहां
सिपाही को सौ और इंस्पेक्टर को दो सौ देते हैं तो वे चौबीस घंटे जुर्म की तलाश
करते हैं। आप तनख़्वाहें फ़ौरन घटाइए।
पुलिस मंत्री ने कहा- मगर यह तो अन्याय होगा। अच्छा वेतन
नहीं मिलेगा तो वे काम ही क्यों करेंगे?
मातादीन ने कहा- इसमें कोई अन्याय नहीं है। आप देखेंगे कि
पहली घटी हुई तनख़ा मिलते ही आपकी पुलिस की मनोवृत्ति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो
जाएगा।
पुलिस मंत्री ने तनख़्वाहें घटा दीं और 2-3 महीनों में सचमुच बहुत फ़र्क़ आ गया।
पुलिस एकदम मुस्तैद हो गई। सोते से एकदम जाग गई। चारों तरफ़ नज़र रखने लगी।
अपराधियों की दुनिया में घबड़ाहट छा गई। पुलिस मंत्री ने तमाम थानों के रिकॉर्ड
बुला कर देखे। पहले से कई गुने अधिक केस रजिस्टर हुए थे। उन्होंने मातादीन से कहा-
मैं आपकी सूझ की तारीफ़ करता हूं। आपने क्रांति कर दी। पर यह हुआ किस तरह?
मातादीन ने समझाया-बात बहुत मामूली है। कम तनख़ा दोगे, तो मुलाज़िम की गुज़र नहीं होगी। सौ रुपयों
में सिपाही बच्चों को नहीं पाल सकता। दो सौ में इंस्पेक्टर ठाठ-बाट नहीं मेनटेन कर
सकता। उसे ऊपरी आमदनी करनी ही पड़ेगी। और ऊपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को
पकड़ेगा। गरज़ कि वह अपराधों पर नज़र रखेगा। सचेत, कर्तव्यपरायण और मुस्तैद हो जाएगा। हमारे रामराज के स्वच्छ
और सक्षम प्रशासन का यही रहस्य है।
चंद्रलोक में इस चमत्कार की ख़बर फ़ैल गयी। लोग मातादीन को
देखने आने लगे कि वह आदमी कैसा है जो तनख़ा कम करके सक्षमता ला देता है। पुलिस के
लोग भी ख़ुश थे। वे कहते- गुरु,
आप इधर न पधारते तो हम सभी कोरी तनख़ा से ही गुज़र करते रहते। सरकार भी ख़ुश
थी कि मुनाफ़े का बजट बनने वाला था।
आधी समस्या हल हो गई। पुलिस अपराधी पकड़ने लगी थी। अब मामले
की जांच-विधि में सुधार करना रह गया था। अपराधी को पकड़ने के बाद उसे सज़ा दिलाना।
मातादीन इंतिज़ार कर रहे थे कि कोई बड़ा केस हो जाए तो नमूने के तौर पर उसका
इन्वेस्टिगेशन कर बताएं।
एक दिन आपसी मारपीट में एक आदमी मारा गया। मातादीन कोतवाली
में आकर बैठ गए और बोले- नमूने के लिए इस केस का ‘इन्वेस्टिगेशन’
मैं करता हूं। आप लोग सीखिए। यह क़त्ल का केस है। क़त्ल के केस में ‘एविडेंस’ बहुत पक्का होना चाहिए।
कोतवाल ने कहा- पहले क़ातिल का पता लगाया जाएगा, तभी तो एविडेंस इकठ्ठा किया जायगा।
मातादीन ने कहा- नहीं,
उलटे मत चलो। पहले एविडेंस देखो। क्या कहीं ख़ून मिला? किसी के कपड़ों पर या और कहीं?
एक इंस्पेक्टर ने कहा- हां, मारनेवाले तो भाग गए थे। मृतक सड़क पर बेहोश पड़ा था। एक भला
आदमी वहां रहता है। उसने उठाकर अस्पताल भेजा। उस भले आदमी के कपड़ों पर ख़ून के दाग
लग गए हैं।
मातादीन ने कहा- उसे फ़ौरन गिरफ़्तार करो।
कोतवाल ने कहा- मगर उसने तो मरते हुए आदमी की मदद की थी।
मातादीन ने कहा- वह सब ठीक है। पर तुम ख़ून के दाग़ ढूंढने
और कहां जाओगे? जो एविडेंस
मिल रहा है, उसे तो क़ब्ज़े
में करो।
वह भला आदमी पकड़कर बुलवा लिया गया। उसने कहा- मैंने तो मरते
आदमी को अस्पताल भिजवाया था। मेरा क्या क़सूर है?
चांद की पुलिस उसकी बात से एकदम प्रभावित हुई। मातादीन
प्रभावित नहीं हुए। सारा पुलिस महकमा उत्सुक था कि अब मातादीन क्या तर्क निकालते
हैं।
मातादीन ने उससे कहा- पर तुम झगड़े की जगह गए क्यों?
उसने जवाब दिया- मैं झगड़े की जगह नहीं गया। मेरा वहां मकान
है। झगड़ा मेरे मकान के सामने हुआ।
अब फिर मातादीन की प्रतिभा की परीक्षा थी। सारा महकमा उत्सुक
देख रहा था।
मातादीन ने कहा- मकान तो ठीक है। पर मैं पूछता हूं, झगड़े की जगह जाना ही क्यों?
इस तर्क का कोई ज़वाब नहीं था। वह बार-बार कहता- मैं झगड़े की
जगह नहीं गया। मेरा वहीँ मकान है।
मातादीन उसे जवाब देते- सो ठीक है, पर झगड़े की जगह जाना ही क्यों? इस तर्क-प्रणाली से पुलिस के लोग बहुत
प्रभावित हुए।
अब मातादीनजी ने इन्वेस्टिगेशन का सिद्धांत समझाया-
देखो, आदमी मारा गया
है, तो यह पक्का है किसी
ने उसे ज़रूर मारा। कोई क़ातिल है। किसी को सज़ा होनी है। सवाल है- किसको सज़ा होनी
है? पुलिस के लिए यह सवाल
इतना महत्त्व नहीं रखता जितना यह सवाल कि जुर्म किस पर साबित हो सकता है या किस पर
साबित होना चाहिए। क़त्ल हुआ है,
तो किसी मनुष्य को सज़ा होगी ही। मारने वाले को होती है, या बेक़सूर को – यह अपने सोचने की बात नहीं है।
मनुष्य-मनुष्य सब बराबर हैं। सबमें उसी परमात्मा का अंश है। हम भेदभाव नहीं करते।
यह पुलिस का मानवतावाद है।
दूसरा सवाल है,
किस पर जुर्म साबित होना चाहिए। इसका निर्णय इन बातों से होगा- (1) क्या वह आदमी पुलिस के रास्ते में आता है? (2) क्या उसे सज़ा दिलाने
से ऊपर के लोग ख़ुश होंगे?
मातादीन को बताया गया कि वह आदमी भला है, पर पुलिस अन्याय करे तो विरोध करता है। जहां
तक ऊपर के लोगों का सवाल है- वह वर्तमान सरकार की विरोधी राजनीति वाला है।
मातादीन ने टेबिल ठोंककर कहा- फर्स्ट क्लास केस। पक्का
एविडेंस। और ऊपर का सपोर्ट।
एक इंस्पेक्टर ने कहा- पर हमारे गले यह बात नहीं उतरती है
कि एक निरपराध-भले आदमी को सज़ा दिलाई जाए।
मातादीन ने समझाया- देखो, मैं समझा चुका हूं कि सबमें उसी ईश्वर का अंश है। सज़ा इसे
हो या क़ातिल को, फांसी पर तो
ईश्वर ही चढ़ेगा न ! फिर तुम्हे कपड़ों पर ख़ून मिल रहा है। इसे छोड़कर तुम कहां ख़ून
ढूंढते फिरोगे? तुम तो भरो एफ.
आई. आर. ।
मातादीन जी ने एफ. आई. आर. भरवा दी। ‘बख़त ज़रूरत के लिए’ जगह ख़ाली छुड़वा दी।
दूसरे दिन पुलिस कोतवाल ने कहा- गुरुदेव, हमारी तो बड़ी आफ़त है। तमाम भले आदमी आते
हैं और कहते है, उस बेचारे
बेक़सूर को क्यों फंसा रहे हो? ऐसा तो
चंद्रलोक में कभी नहीं हुआ ! बताइये, हम क्या जवाब दें? हम तो बहुत शर्मिंदा हैं।
मातादीन ने कोतवाल से कहा- घबड़ाओ मत। शुरू-शुरू में इस काम
में आदमी को शर्म आती है। आगे तुम्हें बेक़सूर को छोड़ने में शर्म आएगी। हर चीज़ का
जवाब है। अब आपके पास जो आए उससे कह दो,
हम जानते हैं वह निर्दोष है,
पर हम क्या करें? यह सब ऊपर से हो रहा है।
कोतवाल ने कहा- तब वे एस.पी. के पास जाएंगे।
मातादीन बोले- एस. पी. भी कह दें कि ऊपर से हो रहा है।
तब वे आई. जी. के पास शिकायत करेंगे।
आई. जी. भी कहें कि सब ऊपर से हो रहा है।
तब वे लोग पुलिस मंत्री के पास पहुंचेंगे।
पुलिस मंत्री भी कहेंगे- भैया, मैं क्या करूं? यह ऊपर से हो रहा है।
तो वे प्रधानमंत्री के पास जाएंगे।
प्रधानमंत्री भी कहें कि मैं जानता हूं, वह निर्दोष है, पर यह ऊपर से हो रहा है।
कोतवाल ने कहा- तब वे…
मातादीन ने कहा- तब क्या? तब वे किसके पास जाएंगे? भगवान के पास न ?
मगर भगवान से पूछकर कौन लौट सका है?
कोतवाल चुप रह गया। वह इस महान प्रतिभा से चमत्कृत था।
मातादीन ने कहा- एक मुहावरा ‘ऊपर से हो रहा है’
हमारे देश में पच्चीस सालों से सरकारों को बचा रहा है। तुम इसे सीख लो।
केस की तैयारी होने लगी। मातादीन ने कहा- अब 4-6 चश्मदीद गवाह लाओ।
कोतवाल- चश्मदीद गवाह कैसे मिलेंगे? जब किसी ने उसे मारते देखा ही नहीं, तो चश्मदीद गवाह कोई कैसे होगा?
मातादीन ने सिर ठोंक लिया, किन बेवक़ूफ़ों के बीच फंसा दिया गवर्नमेंट ने। इन्हें तो
ए-बी-सी-डी भी नहीं आती।
झल्लाकर कहा- चश्मदीद गवाह किसे कहते हैं, जानते हो? चश्मदीद गवाह वह नहीं है जो देखे- बल्कि वह है जो कहे कि
मैंने देखा।
कोतवाल ने कहा- ऐसा कोई क्यों कहेगा?
मातादीन ने कहा- कहेगा। समझ में नहीं आता, कैसे डिपार्टमेंट चलाते हो ! अरे चश्मदीद
गवाहों की लिस्ट पुलिस के पास पहले से रहती है। जहां ज़रूरत हुई, उन्हें चश्मदीद बना दिया। हमारे यहां ऐसे
आदमी हैं, जो साल में 3-4 सौ वारदातों के चश्मदीद गवाह होते हैं।
हमारी अदालतें भी मान लेती हैं कि इस आदमी में कोई दैवी शक्ति है जिससे जान लेता
है कि अमुक जगह वारदात होने वाली है और वहां पहले से पहुंच जाता है। मैं तुम्हें
चश्मदीद गवाह बनाकर देता हूं। 8-10
उठाईगीरों को बुलाओ, जो चोरी, मारपीट, गुंडागर्दी करते हों। जुआ खिलाते हों या शराब उतारते हों।
दूसरे दिन शहर के 8-10
नवरत्न कोतवाली में हाज़िर थे। उन्हें देखकर मातादीन गद्गद हो गए। बहुत दिन हो
गए थे ऐसे लोगों को देखे। बड़ा सूना-सूना लग रहा था।
मातादीन का प्रेम उमड़ पड़ा। उनसे कहा- तुम लोगों ने उस आदमी
को लाठी से मारते देखा था न?
वे बोले- नहीं देखा साब ! हम वहां थे ही नहीं।
मातादीन जानते थे,
यह पहला मौक़ा है। फिर उन्होंने कहा- वहां नहीं थे, यह मैंने माना। पर लाठी मारते देखा तो था?
उन लोगों को लगा कि यह पागल आदमी है। तभी ऐसी उटपटांग बात
कहता है। वे हंसने लगे।
मातादीन ने कहा- हंसो मत, जवाब दो।
वे बोले- जब थे ही नहीं, तो कैसे देखा?
मातादीन ने गुर्राकर देखा। कहा- कैसे देखा, सो बताता हूं। तुम लोग जो काम करते हो- सब
इधर दर्ज़ है। हर एक को कम से कम दस साल जेल में डाला जा सकता है। तुम ये काम आगे
भी करना चाहते हो या जेल जाना चाहते हो?
वे घबड़ाकर बोले –
साब, हम जेल नहीं
जाना चाहते ।
मातादीन ने कहा- ठीक। तो तुमने उस आदमी को लाठी मारते देखा।
देखा न ?
वे बोले- देखा साब। वह आदमी घर से निकला और जो लाठी मारना
शुरू किया, तो वह बेचारा
बेहोश होकर सड़क पर गिर पड़ा।
मातादीन ने कहा- ठीक है। आगे भी ऐसी वारदातें देखोगे?
वे बोले- साब ,
जो आप कहेंगे, सो देखेंगे।
कोतवाल इस चमत्कार से थोड़ी देर को बेहोश हो गया। होश आया तो
मातादीन के चरणों पर गिर पड़ा।
मातादीन ने कहा- हटो। काम करने दो।
कोतवाल पांवों से लिपट गया। कहने लगा- मैं जीवन भर इन
श्रीचरणों में पड़ा रहना चाहता हूं।
मातादीन ने आगे की सारी कार्यप्रणाली तय कर दी। एफ. आई. आर.
बदलना, बीच में पन्ने डालना, रोज़नामचा बदलना, गवाहों को तोड़ना – सब सिखा दिया।
उस आदमी को बीस साल की सज़ा हो गई।
चांद की पुलिस शिक्षित हो चुकी थी। धड़ाधड़ केस बनने लगे और
सज़ा होने लगी। चांद की सरकार बहुत ख़ुश थी। पुलिस की ऐसी मुस्तैदी भारत सरकार के
सहयोग का नतीजा था। चांद की संसद ने एक धन्यवाद का प्रस्ताव पास किया।
एक दिन मातादीनजी का सार्वजनिक अभिनंदन किया गया। वे फूलों
से लदे खुली जीप पर बैठे थे। आसपास जय-जयकार करते हज़ारों लोग। वे हाथ जोड़कर अपने
गृहमंत्री की स्टाइल में जवाब दे रहे थे।
ज़िंदगी में पहली बार ऐसा कर रहे थे, इसलिए थोड़ा अटपटा लग रहा था। छब्बीस साल
पहले पुलिस में भरती होते वक़्त किसने सोचा था कि एक दिन दूसरे लोक में उनका ऐसा
अभिनंदन होगा। वे पछताए- अच्छा होता कि इस मौक़े के लिए कुरता, टोपी और धोती ले आते।
भारत के पुलिस मंत्री टेलीविज़न पर बैठे यह दृश्य देख रहे
थे और सोच रहे थे, मेरी सद्भावना
यात्रा के लिए वातावरण बन गया।
कुछ महीने निकल गए।
एक दिन चांद की संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया गया। बहुत
तूफ़ान खड़ा हुआ। गुप्त अधिवेशन था,
इसलिए रिपोर्ट प्रकाशित नहीं हुई पर संसद की दीवारों से टकराकर कुछ शब्द बाहर
आए।
सदस्य ग़ुस्से से चिल्ला रहे थे—
कोई बीमार बाप का इलाज नहीं कराता।
डूबते बच्चों को कोई नहीं बचाता।
जलते मकान की आग कोई नहीं बुझाता।
आदमी जानवर से बदतर हो गया । सरकार फ़ौरन इस्तीफ़ा दे।
दूसरे दिन चांद के प्रधानमंत्री ने मातादीन को बुलाया।
मातादीन ने देखा – वे एकदम बूढ़े
हो गए थे। लगा, ये कई रात सोए
नहीं हैं।
रुंआसे होकर प्रधानमंत्री ने कहा- मातादीनजी, हम आपके और भारत सरकार के बहुत आभारी हैं।
अब आप कल देश वापस लौट जाइये।
मातादीन ने कहा- मैं तो ‘टर्म’ ख़त्म करके ही
जाऊंगा।
प्रधानमंत्री ने कहा- आप बाक़ी ‘टर्म’ का वेतन ले जाइये- डबल ले जाइए, तिबल ले जाइये।
मातादीन ने कहा- हमारा सिद्धांत है : हमें पैसा नहीं, काम
प्यारा है।
आख़िर चांद के प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री को एक
गुप्त पत्र लिखा।
चौथे दिन मातादीनजी को वापस लौटने के लिए अपने आई. जी. का
आर्डर मिल गया।
उन्होंने एस. पी. साहब के घर के लिए एड़ी चमकाने का पत्थर
यान में रखा और चांद से विदा हो गए।
उन्हें जाते देख पुलिसवाले रो पड़े।
बहुत अरसे तक यह रहस्य बना रहा कि आख़िर चांद में ऐसा क्या
हो गया कि मातादीनजी को इस तरह एकदम लौटना पड़ा। चांद के प्रधानमंत्री ने भारत के
प्रधानमंत्री को क्या लिखा था?
एक दिन वह पत्र खुल ही गया। उसमें लिखा था —
इंस्पेक्टर मातादीन की सेवाएं हमें प्रदान करने के लिए अनेक
धन्यवाद। पर अब आप उन्हें फ़ौरन बुला लें। हम भारत को मित्रदेश समझते थे, पर आपने हमारे साथ शत्रुवत व्यवहार किया
है। हम भोले लोगों से आपने विश्वासघात किया है।
आपके मातादीनजी ने हमारी पुलिस को जैसा कर दिया है, उसके नतीजे ये हुए हैं :
कोई आदमी किसी मरते हुए आदमी के पास नहीं जाता, इस डर से कि वह क़त्ल के मामले में फंसा
दिया जाएगा। बेटा बीमार बाप की सेवा नहीं करता। वह डरता है, बाप मर गया तो उसपर कहीं हत्या का आरोप
नहीं लगा दिया जाए। घर जलते रहते हैं और कोई बुझाने नहीं जाता — डरता है कि कहीं
उसपर आग लगाने का जुर्म क़ायम न कर दिया जाए। बच्चे नदी में डूबते रहते हैं और कोई
उन्हें नहीं बचाता, इस डर से कि
उस पर बच्चों को डुबाने का आरोप न लग जाए। सारे मानवीय संबंध समाप्त हो रहे हैं।
मातादीनजी ने हमारी आधी संस्कृति नष्ट कर दी है। अगर वे यहां रहे तो पूरी संस्कृति
नष्ट कर देंगे। उन्हें फ़ौरन रामराज में बुला लिया जाए।
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