प्रश्न हंसकर कहउठा — माखनलाल चतुर्वेदी 'एक भारतीय आत्मा' : Hindi SahityaVimarsh
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अवैतनिक सम्पादक
: मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक
सम्पादक : शाहिद इलियास
मैं स्वयं युग की
भुजा चेतन चिरंतन
नींव हूं मैं जागरण
की संचरण की,
मैं स्वयं हूं सूझ
की अंगड़ाइयों में,
प्राण-बलि की खाइयों
में खेलता हूं।
मैं विचारों का नियंत्रक
सारथी हूं,
मैं न अणु का दास
हूं, स्वामी रहा हूं
ब्रज से, बलि से,
विनय से बाज़ुओं से
एक स्वर, बस, एक स्वर
लिखता रहा हूं।
मैं अमृत की जय, मरण
का भय नहीं हूं
नियति हूं, निर्माण
हूं, बलिदान हूं मैं, ज़िंदगी हूं, साधना हूं ज्ञान हूं मैं
सूझ हूं, श्रम हूं,
प्रखर आदित्य हूं मैं
मैं ज़माना हूं, स्वयं
साहित्य हूं मैं ¡
एशिया की आन में गढ़ता
खड़ा हूं,
विश्व की आन मैं गढ़ता
खड़ा हूं,
बाढ़ में, तूफ़ान
में इंसान हूं मैं,
शीश पर हिमगिरि लिए
पहचान हूं मैं ¡
उठो, जीवन से न कतराओ
हो, खिलो तुम,
उठो, जीवन आ गया,
हंस कर मिलो तो तुम।
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