'देवरानी जेठानी की कहानी के लेखक पंडित गौरीदत्त (1836-1906) : HindiSahitya Vimarsh
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पंडित गौरीदत्त का जन्म पंजाब
प्रदेश के लुधियाना नामक नगर में सन् 1836 में हुआ था। आपका निधन 8 फ़रवरी सन् 1906 को हुआ था।
पंडित गौरीदत्त रचित 'देवरानी
जेठानी की कहानी' हिन्दी का पहला उपन्यास (1970 ई.) माना है। अन्तर्वस्तु इतनी सामाजिक
कि तत्कालीन पूरा समाज ही ध्वनित होता है, मसलन, बाल विवाह, विवाह में फ़िज़ूलख़र्ची, स्त्रियों की आभूषणप्रियता, बंटवारा, वृद्धों, बहुओं की समस्या, शिक्षा, स्त्री-शिक्षा— अपनी अनगढ़ ईमानदारी में उपन्यास कहीं भी चूकता नहीं। डेढ़ सौ
साल पूर्व संक्रमणकालीन भारत की संस्कृति को जानने के लिए 'देवरानी जेठानी की कहानी' (उपन्यास) से बेहतर कोई दूसरा साधन नहीं हो सकता। आदर्श और यथार्थ
का जैसा संतुलित सम्मिलन इस उपन्यास में हुआ है, वह 'आदर्शोन्मुख
यथार्थवाद' का एक प्रतिमान (मॉडल) है।...
बहुत पहले डॉ. गोपाल राय ने यह प्रस्थापित कर दिया है कि हिंदी का प्रथम उपन्यास 'देवरानी जेठानी की कहानी' ही है। आपके द्वारा अनूदित 'गिरिजा' (1904) नामक एक उपन्यास
उल्लेखनीय है।
पंडित गौरीदत्त ने अपने अंगरखे
पर 'जय नागरी' शब्द अंकित करा लिया था और पारम्परिक अभिवादन के समय 'जय नागरी' ही कहा
करते थे। उनकी समाधि पर इसलिए लोगों ने 'देवनागरी प्रचारानन्द' शब्द अंकित किए थे।
जनता आपको 'देवनागरीप्रचारानन्द' और 'हिन्दी का सुकरात' तक कहती थी।
पंडित गौरीदत्त ने 'नागरी-सौ अक्षर', 'अक्षर दीपिका',
'नागरी की गुप्त वार्ता', 'लिपि बोधिनी', 'देवनागरी के भजन' और 'गौरी नागरी कोष', 'देवनागरी गजट' तथा 'नागरी पत्रिका'
नामक पत्र का सम्पादन तथा प्रकाशन किया था। यह भी उल्लेखनीय
है कि आपने 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' की स्थापना (16 जुलाई
सन् 1893) से पूर्व ही सन् 1892 में' देवनागरी प्रचारक' नामक पत्र का सम्पादक एवं प्रकाशन
करके हिन्दी-प्रचार के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
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