सोमवार, 9 सितंबर 2019

सरदार पूर्ण सिंह के निबन्ध : Hindi Sahitya Vimarsh



सरदार पूर्ण सिंह के निबन्ध : Hindi Sahitya Vimarsh

(17 फरवरी 1831, एबटाबाद, पाकिस्तान, 31 मार्च 1931, देहरादून, उत्तराखण्ड, भारत)
hindisahityavimarsh.blogspot.in
iliyashussain1966@gmail.com
Mobile : 9717324769
अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास

द्विवेदी युग के श्रेष्ठ निबंधकार, जिन्होंने मात्र 6 निबन्ध लिखकर निबन्ध-साहित्य में अमर हो गए।
पिता : सरदार करतार सिंह भागर
भाषा : हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, उर्दू
विधाएँ : कविता, निबंध, लेख
नैतिक और सामाजिक विषयों से सम्बद्ध इनके निबन्ध आवेगपूर्ण, व्यक्तिव्यंजक लाक्षणिक शैली में हैं।

निबंध : सच्ची वीरता (प्रथम निबन्ध, फ़रवरी 1909 ई. में सरस्वती में प्रकाशित), कन्यादान (अक्टूबर 1909 ई. में सरस्वती में प्रकाशित), पवित्रता (1910 ई. भाग्योदय पत्रिका में प्रकाशित, अधूरा), आचरण की सभ्यता (1912 ई.), मज़दूरी और प्रेम (1912 ई.), अमरीका का मस्ताना योगी वाल्ट विटमैन (अन्तिम निबन्ध, मई 1913 ई. में सरस्वती में प्रकाशित)।

कविता संग्रह : खुले मैदान, खुले आसमानी रंग

'मज़दूरी और प्रेम'  निबन्ध के उद्धरण
''उसके मेहनत के कण ज़मीन पर गिरकर उगे हैं और हवा तथा प्रकाश की सहायता से वे मीठे फलों के रूप में नज़र आ रहे हैं। किसान मुझे अन्न में, फूल में, फल में, आहुत हुआ सा दिखार्इ देता है। कहते हैं ब्रह्माहुति से जगत पैदा हुआ है। अन्न पैदा करने में किसान भी ब्रह्मा के समान है। खेती उसके र्इश्वरीय प्रेम का केन्द्र है।'' (मज़दूरी और प्रेम, 1912 ई., सरदार पूर्ण सिंह)

''मुझे तो मनुष्य के हाथ से बने हुर्इ कामों में उनकी प्रेममयी आत्मा की सुगंध आती है। रेफेल आदि के चित्रित चित्रों में उनकी कार्यकुशलता को देख, इतनी सदियों के बाद भी, उनके अंत:करण के सारे भावों का अनुभव होने लगता है। केवल चित्र का ही दर्शन नहीं, उसमें छिपी चित्रकार की आत्मा तक के दर्शन हो जाते हैं। परंतु यंत्रों की सहायता से बने हुए फोटो निर्जीव से प्रतीत होते हैं।'' (मज़दूरी और प्रेम, 1912 ई., सरदार पूर्ण सिंह)

''मज़दूरी और फ़क़ीरी मनुष्य के विकास के लिए परमावश्यक है। बिना मज़दूरी किए फ़क़ीरी का उच्च भाव शिथिल हो जाता है, फ़क़ीरी अपने आसन से गिर जाती है, बुद्धि बासी पड़ जाती है। मज़दूरी तो मनुष्य के समष्टि रूप का व्यष्टिरूप परिणाम है, आत्मारूपी धतु के गढ़े हुए सिक्के का नक़दी बयान है, जो मनुष्य की आत्माओं को ख़रीदने के वास्ते दिया जाता है।'' (मज़दूरी और प्रेम, 1912 ई., सरदार पूर्ण सिंह)  



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