अमरकांत का रचना-संसार
(1 जुलाई 1925 - 17 फ़रवरी, 2014)
जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के नगारा गाँव में और 17 फ़रवरी, 2014 को उनका इलाहाबाद में निधन।
रचनाएँ
कहानी-संग्रह
1. ‘जिंदगी और जोंक’ (पहला कहानी संगह, 1958) 2. ‘देश के लोग’ (1964) 3. ‘मौत का नगर’ 4. ‘मित्र-मिलन तथा अन्य कहानियाँ’ 5. ‘कुहासा’ 6. ‘तूफान’ 7. ‘कला प्रेमी’ 8. ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ 9. ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’ 10. ‘एक धनी व्यक्ति का बयान’ (1997) 11. ‘सुख और दुःख के साथ’ (2002) 12. ‘जांच और बच्चे’ 13. ‘अमरकांत की सम्पूर्ण कहानियाँ’ (दो खंडों में) 14. ‘औरत का क्रोध’ ।
उपन्यास
1. ‘सूखा पत्ता’ (1959) 2. ‘काले-उजले दिन’(1969)3. ‘कंटीली रह के फूल’4. ‘ग्रामसेविका’ (1962) 5. ‘पराई डाल का पंछी’बाद में ‘सुखजीवी’(1982) नाम से प्रकाशित 6. ‘बीच की दीवार’ (1981) 7. ‘सुन्नर पांडे की पतोह’ 8. ‘आकाश पक्षी’ (1967)9. ‘इन्हीं हथियारों से’ 10. ‘विदा की रात’ 11. लहरें। ‘ख़बर का सूरज आकाश में’ (पत्रकार जीवन पर आधारित अधूरा उपन्यास)। इनके ग्यारह उपन्यासों में 'सूखा पत्ता', 'काले उजले दिन', 'बीच की दीवार', 'आकाशपक्षी', 'बिदा की रात' और 'इन्हीं हथियारों से'(2003) प्रमुख है। आज़ादी की लड़ाई को आधार बनाकर लिखे गए उपन्यास 'इन्हीं हथियारों से' का कथा-नायक उत्तर प्रदेश का वलिया जनपद है।
संस्मरण
1. ‘कुछ यादें, कुछ बातें’ (2008) 2. ‘दोस्ती’ ।
बाल साहित्य
1. ‘नेऊर भाई’ 2. ‘वानर सेना’ 3. ‘खूँटा में दाल है’ 4. ‘सुग्गी चाची का गाँव’ 5. ‘झगरू लाल का फैसला’6. ‘एक स्त्री का सफर’ 7.‘मँगरी’ 8. ‘बाबू का फ़ैसला’ 9. दो हिम्मती बच्चे ।
अमरकांत की कहानियां
पहली कहानी 'बाबू' 1949 में प्रकाशित हुई। 'डिप्टी कलक्टरी' (1955), 'दोपहर का भोजन' (1956), 'जिंदगी और जोंक' (1956), 'कुहासा', 'तूफान', 'कलाप्रेमी', 'मित्र-मिलन तथा अन्य कहानियां', 'एक धनी व्यक्ति का बयान', 'सुख दुख के साथ', 'देश के लोग', 'हत्यारे', 'बहादुर', 'फ़र्क़', 'कबड्डी', 'छिपकली', 'मौत का नगर', 'पलास के फूल' 'बउरैया कोदो' ‘एक निर्णायक पत्र’, ‘असमर्थ हिलता हाथ’, ‘इंटरव्यू’, ‘शाम के अंधेरे में भटकता नौजवान’, ‘जांच और बच्चे’, ‘शक्तिशाली’, ‘निर्माण’, ‘बस्ती’, ‘मूस’ ‘गगन विहारी’, ‘लड़का-लड़की’, ‘मछुआ’, ‘प्रिय मेहमान’, ‘उनका जाना और आना’, ‘निर्वासित’ ‘मकान’, ‘घुड़सवार’, ‘केले, पैसे और मूंगफली’, ‘गले की ज़ंजीर’, ‘नौकर’, ‘लाट’, ‘खलनायक’।
हिंदी कहानी को ‘कफन’ में प्रेमचंद जहां छोड़ते हैं, सिर्फ और सिर्फ अमरकांत ‘जिंदगी और जोंक’ के जरिये उसे आगे बढ़ाते हैं।
नयी कहानी और अमरकांत
हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकार थे। यशपाल उन्हें गोर्की कहा करते थे। कहानीकार के रूप में उनकी ख्याति सन् 1955 में 'डिप्टी कलेक्टरी' कहानी से हुई। नई कहानी के आदि शिल्पी औरछटपटाते पात्रों के कथाकार।
इलाहाबाद में अमरकान्त और शेखर जोशी की जोड़ी 'जय-वीरू' की तरह मशहूर थी। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली भैरव प्रसाद गुप्त की 'कहानी' पत्रिका के पसंदीदा कहानीकार थे। उनका वास्तविक नाम श्रीराम वर्मा है। 'सैनिक' (आगरा) नामक समाचार पत्र का सम्पादन और फिर इलाहाबाद से निकलने वाली मित्र प्रकाशन की पत्रिका 'मनोरमा' के सम्पादन से अमरकान्त अरसे तक जुड़े रहे। 'बहाव' नामक पत्रिका का सम्पादन कर रहे थे।
नयी कहानी के दौर में दो तरह के त्रिगुट चले। पहला गुट मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव का था और दूसरा अमरकांत, मार्कण्डेय और शेखर जोशी का।
‘हत्यारे’ कहानी अपनी भिन्न कथन शैली के कारण उनकी कहानियों में अपनी एक अलग पहचान रखती है|यह प्रसिद्ध कहानीकार हेमिंग्वे की कहानी ‘किलर्स’ का अनुवाद है|
डिप्टी कलेक्टरी अमरकांत की पुरस्कृत कहानी है, जिसे आजादी से हुए मोह-भंग की स्थितियों की कहानियों के समकक्ष रखा जाता है| सर्वप्रथम तो शकलदीप बाबू अपने निकम्मे बेटे की कटु आलोचना करते हैं और उसके डिप्टी-कलक्टरी के सपने का मजाक उड़ाते हैं|और बाद में अपने पुत्र को अध्ययनरत् पाकर स्वयं उसके इस लक्ष्य में पूरी जी जान से सहायता करते हैं| शकलदीप बाबू का यह करना जितना अस्वाभाविक लगता है, असल जीवन में यह उतना ही स्वाभाविक है|
डिप्टी कलेक्टरी अमरकांत की पुरस्कृत कहानी है, जिसे आजादी से हुए मोह-भंग की स्थितियों की कहानियों के समकक्ष रखा जाता है| सर्वप्रथम तो शकलदीप बाबू अपने निकम्मे बेटे की कटु आलोचना करते हैं और उसके डिप्टी-कलक्टरी के सपने का मजाक उड़ाते हैं|और बाद में अपने पुत्र को अध्ययनरत् पाकर स्वयं उसके इस लक्ष्य में पूरी जी जान से सहायता करते हैं| शकलदीप बाबू का यह करना जितना अस्वाभाविक लगता है, असल जीवन में यह उतना ही स्वाभाविक है|
‘मौत का नगर’ कहानी सांप्रदायिक दंगों से होने वाली आम जीवन की परेशानियों को बड़े क्रूर रूप में उठाती है|
पुरस्कार
साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को संयुक्त रूप से वर्ष 2009 के लिए 45वां ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्रदान गया। ‘सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार’, महात्मा गॉधी सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान का साहित्य पुरस्कार, यशपाल पुरस्कार, जन संस्कृति सम्मान, मध्य प्रदेश का कीर्ति सम्मान और बलिया के 1942 के स्वतन्त्रता (भारत छोड़ो) आन्दोलन को आधार बना कर लिखे गये इनके उपन्यास ‘इन्हीं हथियारों से’ को वर्ष 2007का प्रतिष्ठित ‘साहित्य अकादमी सम्मान’ और ‘व्यास सम्मान’ (2009)प्रदान किया गया।
मैं आज तक तय नहीं कर पाया कि ‘जिंदगी और जोंक’ जीवन के प्रति आस्था की कहानी है या जुगुप्सा,आस्थाहीनता और डिस्गस्ट् की|” —राजेन्द्र यादव
मुहम्मद इलियास हुसैन
07-03-2014
Amarakant ji se sambandhit pustako ke bre me bhi btye....
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