सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

नामवर सिंह की समस्त चनाएँ : Hindi Sahitya Vimarsh


नामवर सिंह की समस्त रचनाएँ  : Hindi Sahitya Vimarsh

hindisahityavimarsh.blogspot.in
iliyashussain1966@gmail.com
Mobile : 9717324769
अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास


नामवर सिंह की रचनाएँ : Hindi Sahitya Vimarsh
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अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
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नामवर सिंह (28 जुलाई, 1926-19 फरवरी 2019, जन्म : जीयनपुर, ज़िला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, मृत्यु : नई दिल्ली, भारत)
शीर्षस्थ शोधकार-समालोचक, निबन्धकार और हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के प्रिय शिष्‍य नामवर सिंह आधुनिक अर्थ में विशुद्ध आलोचना के प्रतिष्ठापक तथा प्रगतिशील आलोचना के प्रमुख स्तंभ थे।
रचनाएँ
• बक़लम ख़ुद (1951 ई., व्यक्तिव्यंजक निबन्ध-संग्रह)
शोध
• हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग (1952 ई., संशोधित संस्करण 1954 ई.)
• पृथ्वीराज रासो की भाषा (1956 ई., (संशोधित संस्करण 'पृथ्वीराज रासो : भाषा और साहित्य')
आलोचना
• आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ (1954 ई.)
• छायावाद (1955 ई.)
• इतिहास और आलोचना (1957 ई.)
• कहानी : नयी कहानी (1965 ई., नयी कहानी आन्दोलन के नए तथ्यों पर विचार, इसमें निर्मल वर्मा की कहानी 'परिंदे' को पहली 'नयी' कहानी के रूप में मान्यता दी गई है।)
• कविता के नये प्रतिमान (1968 ई., इस कृति ने डॉ. नगेन्द्र के साथ ही अज्ञेय के साहित्यिक आभामंडल को ढहाने का काम किया)
• दूसरी परम्परा की खोज (1982 ई.)
• वाद विवाद संवाद (1989 ई.)
साक्षात्कार
• कहना न होगा (1994 ई.)
• बात बात में बात (2006 ई.)
पत्र-संग्रह
• काशी के नाम (2006 ई.)
व्याख्यान
• आलोचक के मुख से (2005 ई.)
• कविता की ज़मीन और ज़मीन की कविता (2010 ई., सं. आशीश त्रिपाठी)
• प्रेमचन्द और भारतीय समाज (2010 ई., सं. आशीश त्रिपाठी)
ज़माने से दो-दो हाथ (2010 ई., सं. आशीश त्रिपाठी)
हिन्दी का गद्यपर्व (2010 ई., सं. आशीश त्रिपाठी)
• साहित्य की पहचान (2012 ई., सं. आशीश त्रिपाठी)
• आलोचना और विचारधारा (2012 ई., सं. आशीश त्रिपाठी)
• सम्मुख (2012 ई., सं. आशीश त्रिपाठी)
• साथ-साथ (2012 ई., सं. आशीश त्रिपाठी)
• आलोचना और संवाद (संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण, 2018 ई.)
• पूर्वरंग (संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण, 2018 ई.)
• द्वाभा (संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण, 2018 ई.)
• छायावाद : प्रसाद, निराला, महादेवी और पंत (संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण, 2018 ई.)
• रामविलास शर्मा (संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण, 2018 ई.)
• नामवर के नोट्स (संपादक त्रय : शैलेश कुमार, मधुप कुमार एवं नीलम सिंह, नामवर जी के जे.एन.यू के क्लास नोट्स)
• आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की जययात्रा
• हिन्दी समीक्षा और आचार्य शुक्ल
सम्पादन
• जनयुग (साप्ताहिक, 1965-1967 ई.)
• आलोचना (त्रैमासिक, 1967-1990 ई., 2000 ई. से जीवनपर्यंत)
सम्पादित पुस्तकें
• संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो  (1952 ई., आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के साथ)
• पुरानी राजस्थानी  (1955 ई., मूल लेखक : डॉ. एल. पी. तेस्सितोरी; अनुवादक : नामवर सिंह)
• चिन्तामणि, भाग-3 (1983 ई.)
• कार्ल मार्क्स : कला और साहित्य चिन्तन (अनुवादक : गोरख पांडेय)
• नागार्जुन : प्रतिनिधि कविताएँ
• मलयज की डायरी (तीन खण्डों में)
• आधुनिक हिन्दी उपन्यास (दो खंडों में)
• रामचन्द्र शुक्ल रचनावली (सह सम्पादक : आशीष त्रिपाठी)
• हजारीप्रसाद द्विवेदी : संकलित निबन्ध
• आज की हिन्दी कहानी
• आधुनिक अध्यापन रूसी कवितायें
• नवजागरण के अग्रदूत : बालकृष्ण भट्ट
नामवर सिंह पर केन्द्रित साहित्य
• आलोचक नामवर सिंह (1977 ई., सं. रणधीर सिन्हा)
'पहल' का विशेषांक — अंक-34, मई 1988 ई० — सं. ज्ञानरंजन, कमला प्रसाद
• पूर्वग्रह (अंक—44-45, 1981 ई०)
• दस्तावेज (अंक-52, जुलाई-सितंबर, 1991 ई. नामवर सिंह पर केंद्रित)
• नामवर के विमर्श (1995 ई., सं. सुधीश पचौरी, पहल, पूर्वग्रह, दस्तावेज़ इत्यादि के नामवर सिंह पर केन्द्रित विशेषांकों में से कुछ चयनित आलेखों के साथ कुछ और नयी सामग्री जोड़कर तैयार पुस्तक)
• नामवर सिंह : आलोचना की दूसरी परम्परा (2002 ई., सं. कमला प्रसाद, सुधीर रंजन सिंह, राजेंद्र शर्मा)
नामवर सिंह पर केन्द्रित 'वसुधा' का विशेषांक (अंक-54, अप्रैल-जून 2002; पुस्तक रूप में वाणी प्रकाशन से)
• आलोचना के रचना पुरुष : नामवर सिंह (2003 ई., सं. भारत यायावर, पुस्तक रूप में वाणी प्रकाशन से)
• नामवर की धरती (2007 ई.,  श्रीप्रकाश शुक्ल, आधार प्रकाशन, पंचकूला, हरियाणा)
• जे.एन.यू में नामवर सिंह (2009 ई. सं. सुमन केसरी)
'पाखी' का विशेषांक (अक्टूबर 2010 ई., सं. प्रेम भारद्वाज, पुस्तक रूप में 'नामवर सिंह : एक मूल्यांकन' नाम से सामयिक प्रकाशन से)।
'बहुवचन' का विशेषांक (अंक-50, जुलाई-सितंबर 2016 ई.,  'हिन्दी के नामवर' शीर्षक से पुस्तक रूप में अनन्य प्रकाशन, शाहदरा, दिल्ली से)।
सम्मान
• 1971 ई. साहित्य अकादमी पुरस्कार (कविता के नये प्रतिमान पर)
• 1991 ई. शलाका सम्मान (हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से)
1993 ई. साहित्य भूषण सम्मान (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से)
• 2010 ई. शब्दसाधक शिखर सम्मान ('पाखी' तथा इंडिपेंडेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी की ओर से)
• 2010 ई. महावीरप्रसाद द्विवेदी सम्मान (21 दिसम्बर 2010 ई.)
• 2017 ई. साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता (साहित्य अकादमी का सर्वोच्च सम्मान)
• अध्यापन : अध्यापन कार्य का आरम्भ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से (1953-1959 ई.), जोधपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष (1970-74 ई.), आगरा विश्वविद्यालय के क.मु.हिन्दी विद्यापीठ के प्रोफेसर निदेशक (1974 ई.), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में भारतीय भाषा केन्द्र के संस्थापक अध्यक्ष तथा हिन्दी प्रोफेसर (1965-92 ई.) और अब उसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर इमेरिट्स, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति ।
• अधिकतर आलोचकों की राय में मोहन राकेश की 'मलबे का मालिक' पहली नयी कहानी है, लेकिन नामवर जी ने ऐसी कहानियों को 'अधूरा अनुभव' कह कर ख़ारिज किया और कमलेश्वर की कहानी 'परिंदे' को पहली नई कहानी के रूप में मान्यता दी।
• जब प्रगतिशील लेखक संघ में हिंदी-उर्दू के मसले पर मतभेद शुरू हुए और उर्दू लेखकों ने उपेक्षित किये जाने और उर्दू को उसका 'वाजिब हक़' न मिलने की बहस शुरू की तो नामवर जी ने एक लेख 'बासी भात में ख़ुदा का साझा' के ज़रिये हिंदी का पक्ष लिया।
• नामवर सिंह हिंदी आलोचना के शलाका पुरुष थे।
• नामवर सिंह हिंदी साहित्य में आलोचना के शिखर पुरुष थे।
   नामवर सिंह ने अपने लेखन की शुरुआत कविता से की और वर्ष 1941 में उनकी पहली कविता 'क्षत्रिय मित्र' पत्रिका में 'दीपावली' शीर्षक से छपी। दूसरी कविता थी —'सुमन रो मत, छेड़ गाना।' गाँव में थे तो ब्रजभाषा में प्रायः श्रृंगारिक कविताएं लिखा करते थे। फिर उन्होंने खड़ी बोली हिंदी में लिखना शुरू किया।
नामवर के और नामवर पर कथन
• यह प्रयास परंपरा की खोज का ही है, सम्प्रदाय-निर्माण का नहीं। पण्डितजी (हजारी प्रसाद द्विवेदी) स्वयं सम्प्रदाय-निर्माण के विरुद्ध थे। यदि 'सम्प्रदाय का मूल अर्थ है गुरु-परम्परा से प्राप्त आचार-विचारों का संरक्षण', तो पण्डितजी के विचारों के अविकृत संरक्षण के लिए मेरी क्या, 'किसी की भी आवश्यकता नहीं है। —नामवर सिंह, दूसरी परंपरा की खोज
• हर साहित्यिक दौर को अपना आलोचक पैदा करना होता है। मैं जिस पीढ़ी का आलोचक हूँ, उसके बाद की पीढ़ी का आलोचक नहीं हो सकता। —नामवर सिंह
• साहित्य की आलोचना विधा को हमेशा पक्षपातपूर्ण ही कहा जाएगा, क्योंकि इसमें आलोचक किसी की खुलकर प्रशंसा नहीं कर सकता है। नामवर सिंह
• अभिव्यक्ति के दो माध्यम क़लमऔर जीभहैं और हिन्दी साहित्य में आलोचक दूसरी विधा का उपयोग अधिक करता है। नामवर सिंह
• नामवर सिंह की आलोचना जीवंत आलोचना है। भले ही लोग या तो उनसे सहमत हुए अथवा असहमत, लेकिन उनकी कभी उपेक्षा नहीं हुई। —विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
गहराई में डुबकी लगाए बिना अनमोल रत्न हासिल नहीं किया जा सकता, लेकिन डुबकी लगाने में ख़तरा भी है और आदमी अनमोल रत्न प्राप्त करने की बजाय भारी आफ़त मोल लेता है। —नामवर सिंह
• हमने वाचिक परंपरा के एक मनस्वी को खोया है, सरोकार की बातें करने वाले बहुत हुए लेकिन समाज के आख़िरी तबके तक पहुंच पाना सिर्फ नामवर जी के लिए संभव हो पाया है। उनका काम उनके नाम से बड़ा है और उनका नाम हमारी और हमारे साथ बनारस की आत्मा में रचा बसा है। —काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ रामाज्ञा शशिधर
• क़लम के सिपाही नहीं, बातों के जादूगर हैं।

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