'चौथा सप्तक' के कवि नंदकिशोर आचार्य की गद्य-पद्य रचनाएँ : Hindi Sahitya Vimarsh
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अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास
नंदकिशोर आचार्य (31 अगस्त 1945 ई., बीकानेर, राजस्थान, भारत)
कवि, आलोचक, नाटककार और गाँधीवादी
दार्शनिक साहित्यकार
नाटक
• देहांतर (1987 ई., नियोग के मनोवैज्ञानिक द्वन्द्व, हमारे
समय के मनुष्य की जटिल मानसिकता, कुंठा, देह, भोग और यौवन के शाश्वत
विमर्श और सत्ता के खेल के समीकरण का उद्घाटन, पात्र : ययाति, पुरू, शर्मिष्ठा, देवयानी, बिन्दूमति)
• पागलघर (1988 ई., काल्पनिक नाटक, सरकारी सिस्टम पर कटाक्ष,
यह नाटक सत्ता के स्वयं के डर, भय और उससे बचने के
लिए किए गए क़वायदों को उजागर करता है। सत्ता हमेशा विचारवान, सत्य का साथ देने वालो को पागल कहती है, जबकि सत्ता के कृत्यों से दुनिया पागलघर में बदलता
जा रहा है। एक लेखक को पागलखाने में बंद कर के क़ैद किया जाता है, उसके ख़िलाफ़ शिकायतें हैं कि वो टी.वी. नहीं देखता, ग्यारह बजे के बाद भी पढ़ता है और वह भी 'मर्डर इन कैथेड्रल' 'अपराध और सज़ा'। पाजामा पहनता है, गिलास बाएं हाथ से उठाता है। यह सब पर्याप्त है
उसको असामान्य और पागल सिद्ध करने के लिये और इस समय में सबसे ख़तरनाक बीमारी है 'विचार', क्योंकि यह 'किसी एक को भी लग जाए तो फैलती ही जाती है।' सत्ता हमेशा चाहती है वह पुरस्कार, सुविधाओं, सम्मान के लालच में
लेखक को ख़रीद ले और आज हर आदमी अपनी क़लम की क़ीमत वसूलने के लिए तैयार है।)
• हस्तिनापुर (1992 ई., पौराणिक समस्याओं को आधुनिक संदर्भ
में उठाने का प्रयास, महाभारत के आख्यान का एक भिन्न धरातल और दृष्टिकोण से पुनराख्यान, कौरवों की हार के बाद विदुर की मां शुभा दासी और
कुन्ती के बीच संवाद, अस्मिता की दृष्टि से वह शुद्र भी है और स्त्री भी, इसलिये वह
कुरू वंश के मिथ को और रक्त शुद्धता की पूरी अवधारणा को प्रश्न-चिह्न लगाती है और कहती
है कि महाभारत में केवल भीष्म ही एकमात्र कुरू हैं और बाक़ी सब वे कुरू हैं जिन्हें
भीष्म ने मान्यता दी है। पात्र : धृतराष्ट्र, कुरू, भीष्म, व्यास, विदुर की मां शुभा, सत्यवती, अम्बिका।)
• ज़िल्ले सुभानी (1992 ई., बारह दृश्य, सत्ता का चरित्र और सत्ता
के दलालों की हक़ीक़त का पर्दाफ़ाश, सियासत और ज़िल्ल्त
के रिश्ते के बीच अमीर-उमरा की वफ़ादारी जो हमेशा सत्ता और ताक़तवर के साथ होती है और
उनकी रीढ़ विहीनता पर केंद्रित है। सत्ता हासिल करने के दावं-पेंचों के बीच यह नाटक
बड़े ही गंभीर और साहसपूर्ण ढंग से यौनाचार को भी अपना विषय बनाता है। समलैंगिक सबंध
सत्ता हासिल करने और सत्तावान महसूस करने के लिये ज़रूरी माना गया है। मुख्य पात्र
: हसन, मुबारक)
• जूते (1992 ई., हास्य-व्यंग्य-नाटक, अंधविश्वासी कंजूस सौदागर, जो फटे हुए जूते को मुक़द्दर
का जूता समझता है। वही जूता उसकी दुर्दशा और फ़टेहाली का कारण बनता
है। पात्र : ख़ुशबू चोर))
• ग़ुलाम बादशाह
(1992 ई., ऐतिहासिक नाटक, दिल्ली सल्तनत के समय और समाज को आधार बनाकर लिखा गया यह
नाटक मुस्लिम शासक बलवन के आख़िरी दिनों की घटनाओं पर आधारित है। चौदह दृश्यवाले
इस नाटक में बादशाह अपनी कुर्सी का ग़ुलाम हो जाता है, क्योंकि उसे हमेशा इसे बनाये रखने के लिए संघर्ष
करना पड़ता है और आवाम हमेशा हाशिए पर ही रहती है। जितना बलबन के अंतर्द्वद्व और उसके
आखिरी दिनों के चित्रण के द्वारा आज के राजनीतिक परिदृश्य पर कटाक्ष किया गया है। राजनीति
पर कुछ परिवारों की कुंडली लपेट, चुनिंदा गुट, शासक और शासित के
बीच गहरी खाई, भूला दिए गए पूर्व नायक और राजनीति की ज़रूरत बन चुके गंदे हाथ, ये सब अतीत के ही
नहीं, आज की राजनीति के भी केंद्रीय प्रकरण हैं। पात्र : बलबन, शहज़ादा मुहम्मद, बुगरा ख़ां)
• रंग त्रयी (1996, नाटक-संग्रह : ग़ुलाम
बादशाह, हस्तिनापुर, जूते)
• किमिदम् यक्षम् (प्रयोगशील नाटक किसी रहस्यकथा की तरह है जो
इसके कथ्य में भी है और शिल्प में भी, दृश्यों के भीतर दृश्यों
का खुलना, एक ही पात्र का एक नाटकीय समय में दो विभिन्न दृश्यों में प्रवेश, पहले से चल रहे दृश्य
को रोककर दूसरे दृश्य का आरंभ और फिर उसकी संपन्नता के बाद पहले वाले दृश्य का शुरू
होना क़िस्सागोई और सिनेमाई तकनीक के निर्वाह की तरह है। यथार्थावादी नाटक लगते हुए
भी यह फ़ैंटेसी की तरह लगता है। यह उत्तर आधुनिक नाट्य प्रयोग की तरह है।)
• बापू (महात्मा गांधी के जीवन के अंतिम समय के कुछ द्वंद्वों
और उन अंतिम वर्षों के अकेलेपन पर आधारित यह नाटक एक महान व्यक्तित्व के जीवन की त्रासदी है।)
• किसी और का सपना
• रंग-यात्रा (2014 ई., नाटक-संग्रह)
(नंदकिशोर आचार्य ने अपने नाटकों में सत्ता को आड़े हाथो लिया
है और उसके वास्तविक चरित्र को अनावृत किया है, जो मूलतः दमनकारी
और जनविरोधी होती है।)
कविता-संग्रह
• चौथा सप्तक (संपादक : अज्ञेय, 1979 ई.)
• जल है जहां
• वह एक समुद्र था
• शब्द भूले हुए
• आती है जैसे मृत्यु (1990 ई.)
• कविता में नहीं है जो
• बारिश में खंडहर
• रेत राग
• अन्तर्लोक (2003 ई.)
• अन्य होते हुए (2007 ई.)
• चाँद आकाश गाता है
• उड़ना संभव करता आकाश
• गाना चाहता पतझड़ (2010 ई.)
• केवल एक
पत्ती ने (2011 ई.)
• पचास कविताएँ नई सदी के लिए चयन (2011 ई.)
• इतनी शक्लों में अदृश्य
• मुरझाने को खिलते हुए
• आकाश भटका हुआ
• छीलते हुए अपने को (2013 ई.)
• पढ़त की पगडंडियाँ (2015 ई.)
• कवि का कोई घर नहीं होता
• अज्ञेय की काव्य तितीर्षा (2001 ई.)
प्रमुख कविताएँ
• कविता सुनाई पानी
ने (1-7)
• अभिधा में नहीं
• हर कोई चाहता है
• मेरी तरह
• यादों में
• सपना जो नहीं होता
• सपने में (1, 2)
विश्वकोश
• अहिंसा-विश्वकोश
आलोचना-दर्शन-निबंध इत्यादि
• सर्जक का मन (1989 ई.)
• सभ्यता का विकल्प (1995 ई.)
• साहित्य का स्वभाव (2001 ई.)
• आधुनिक विचार और शिक्षा (2003 ई.)
• संस्कृति की सामाजिकी (2005 ई.)
• सत्याग्रह की संस्कृति
(2008 ई., गाँधी-दर्शन)
• लेखक की साहित्यिकी (2008 ई.)
• मानवाधिकार की संस्कृति (2010 ई.)
• स्वराज के सवाल
(2012 ई.)
• रचना का सच
• अनुभव का भव
• संस्कृति का व्याकरण
• परम्परा और परिवर्तन
• मानवाधिकार के तक़ाज़े
• साहित्य का अध्यात्म
• रचना का अन्तरंग (सोलह निबन्ध और तीन साक्षात्कार संकलित)
• 'रूबरू' (सात साक्षात्कार संकलित, रचना के विविध पक्षों, रंगकर्म से जुड़े विविध
पहलुओं, भाषिक प्रयोगों, कविता की रचनाशीलता
एवं प्रकट भावों की संवेदनशीलता, शिक्षा के स्वरूप व उद्देश्य के प्रति प्रश्नानुकूलता व शिक्षक-शिक्षण
व्यवस्था पर बाज़ारीकरण या वैश्वीकरण के प्रभाव का रेखांकन, गांधी-चिंतन की युगीन
सार्थकता, भारतीय प्राचीन व
नवीन धारणाओं के साथ-साथ पाश्चात्य विचारों के समुचित समागम इत्यादि का विद्वतापूर्ण
वर्णन।)
• 'नाट्यानुभव' (2004 ई.,
पांच साक्षात्कार
संकलित—1. साक्षी भावी की साधना
है अभिनय, 2. थिएटर के विकेन्द्रीकरण
की ज़रूरत, 3. भाषा का नाटयान्वेषण, 4. अन्वेषण प्रक्रिया
है रंग कर्म और 5. शिक्षा प्रश्नाकुल
मस्तिष्क का विकास)
• मैं कहता आँखिन देखी : नन्दकिशोर आचार्य
उपन्यास
• तथागत (2015 ई.)
निबंध
• हिन्दी कविता की नयी सृजनशीलता ( निबंध, श्रीकान्त
वर्मा, कैलाश वाजपेयी, लीलाधर जगूड़ी, अशोक वाजपेयी इत्यादि
के रचनाकर्म की सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि का चित्रण)
• देसी लय की पुनर्प्रतिष्ठा (रघुवीर सहाय के कविता कर्म पर विचार),
• प्रवृत्ति और निवृत्ति की द्वन्द्व-कथा (रमेशचन्द्र शाह के
रचनाकर्म पर),
• स्वतन्त्रता की आध्यात्मिक व्याप्ति
• मातृभाषा में लौटने की कोशिश
• जले हुए समय को पिघलाते हुए (कहानी कर्म और निर्मल
वर्ष पर केन्द्रित),
• समसामयिकता के बहाने परम्परा पर बहस (साही का समय और साहित्य की आवश्यकता का विवेचन)
• साहित्य के गणतन्त्र के लिए (अशोक वाजपेयी के आलोचना
कर्म पर आधारित),
• परम्परा : इतिहास की चुनौतियाँ (अज्ञेय के लेखन में विद्यमान
विचारों की विवेचना)
• नयी आध्यात्मिकता (साही, अज्ञेय, नरेश मेहता इत्यादि
के साहित्य-चिंतन में पायी जाने वाली विविध आध्यात्मिकता के नये मार्ग को खोजकर प्रस्तुत
किया गया है।)
संचयन
• अज्ञेय के उद्धरण (2019 ई.)
• अज्ञेय संचयिता
(2001 ई.)
• बिनोवा संचयिता (2018 ई.)
शोध
• दि पॉलिटी इन शुक्रिनीतिसार (1987 ई.)
अनुवाद
• सुनते हुए बारिश (जापानी जेन कवि रियोकान)
• नवमानववाद (एम.एन. राय : न्यू : ह्यूमनिज्म)
• विज्ञान और दर्शन (एम.एन. राय : साइंस एंड फिलॉसॉफी)
• गांधी की मेज़बानी (2018 ई., म्यूरियल लिस्टर, अनु. नंनदकिशोर आचार्य)
• जोसेफ़ ब्रॉदस्की, ब्लादिमिर होलन, लोर्का तथा आधुनिक अरबी कविताओं का हिन्दी रूपान्तरण
• सभ्यताएँ और संस्कृतियाँ भावी इतिहास लेखन की प्रस्तावना
(2018 ई., आलोचना, दयाकृष्ण, अनु. नंदकिशोर आचार्य)
पुरस्कार एवं सम्मान
भुवनेश्वर पुरस्कार, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, राजस्थान साहित्य
अकादमी के सर्वोच्च मीरा पुरस्कार, बिहारी पुरस्कार (बिड़ला फाण्डेशन, भुवालका जनकल्याण ट्रस्ट
द्वारा सम्मानित, नाटक 'देशातर' को आकाशवाणी का प्रथम
पुरस्कार, केंद्रीय हिंदी संस्थान
द्वारा सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार, यू. पी. सरकार का महात्मा गांधी सम्मान, विद्यानिवास स्मृति
सम्मान, नरेश मेहता सम्मान,
महाराजा कुम्भा पुरस्कार, डॉ. घासीराम वर्मा पुरस्कार (2016), द्वारका निधि जयपुर
एडलोफ मागदालेना हैनी पुरस्कार (2018 ई., हिंदी साहित्य में सम्पूर्ण योगदान के लिए), महात्मा गाँधी
अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के संस्कृति विद्यापीठ में अतिथि लेखक।
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