बुधवार, 26 जून 2019

नागमति वियोग खंड (पदमावत) NTANET/JRF के पाठ्यक्रम में शामिल) : Hindi Sahitya Vimarsh

नागमति वियोग खंड (पदमावत) NTANET/JRFके पाठ्यक्रम में शामिल)  : Hindi Sahitya Vimarsh


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अवैतनिक सम्पादक : मुहम्मद इलियास हुसैन
सहायक सम्पादक : शाहिद इलियास
पदमावत
मलिक मुहम्मद जायसी 
सम्पादक ; आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

नागमति वियोग खंड


नागमती चितउर पथ हेरा । पिउ जो गए पुनि कीन्ह न फेरा॥
नागर काहु नारि बस परा । तेइ मोर पिउ मोसौं हरा॥
सुआ काल होइ लेइगा पीऊ । पिउ नहिं जात, जात बरु जीऊ॥
भएउ नरायन बाबँन करा । राज करत राजा बलि छरा॥
करन पास लीन्हेउ कै छंदू । बिप्र रूप धारि झिलमिल इंदू॥
मानत भोग गोपिचँद भोगी । लेइ अपसवा जलंधार जोगी॥
लेइगा कृस्नहि गरुड़ अलोपी । कठिन बिछोह, जियहिं किमि गोपी?
सारस जोरी कौन हरि, मारि बियाधा लीन्ह?
झुरि झुरि पींजर हौं भई, बिरह काल मोहि दीन्ह॥1
पिउ बियोग अस बाउर जीऊ । पपिहा निति बोले 'पिउ पीऊ॥'
अधिक काम दाधो सो रामा । हरि लेइ सुवा गएउ पिउ नामा॥
बिरह बान तस लाग न डोली । रक्त पसीज, भीजि गई चोली॥
सूखा हिया, हार भा भारी । हरे हरे प्रान तजहिं सब नारी॥
खन एक आव पेट महँ! सांसा । खनहिं जाइ जिउ, होइ निरासा॥
पवन डोलावहिं सींचहिं चोला । पहर एक समुझहिं मुख बोला॥
प्रान पयान होत को राखा? को सुनाव पीतम कै भाखा?
आजि जो मारै बिरह कै,  आगि उठै तेहि लागि।
हंस जो रहा सरीर महँ, पाँख जरा गा भागि॥2
पाट महादेइ! हिये न हारू । समुझि जीउ, चित चेतु सँभारू॥
भौंर कँवल सँग होइ मेरावा । सँवरि नेह मालति पहँ आवा॥
पपिहै स्वाती सौं जस प्रीती । टेकु पियास, बाँधा मन थीती॥
धारतिहि जैस गगन सौं नेहा । पलटि आव बरषा ऋतु मेहा॥
पुनि बसंत ऋतु आव नवेली । सो रस, सो मधुकर, सो बेली॥
जिनि अस जीव करसि तू बारी । यह तरिवर पुनि उठिहि सवारी॥
दिन दस बिनु जल सूखि बिधांसा । पुनि सोइ सरवर सोई हंसा॥
मिलहिं जो बिछुरे साजन, अंकम भेंटि अहंत।
तपनि मृगसिरा जे सहैं, ते अद्रा पलुहंत॥3
चढ़ा असाढ़, गगन घन गाजा । साजा बिरह दुंद दल बाजा॥
धूम, साम, धौरे घन घाए । सेत धाजा बग पाँति देखाए॥
खड़ग बीजु चमकै चहुँ ओरा । बुंद बान बरसहिं घन घोरा॥
ओनई घटा आइ चहुँ फेरी । कंत! उबारु मदन हौं घेरी॥
दादुर मोर कोकिला, पीऊ । गिरै बीजु, घट रहै, न जीऊ॥
पुष्य नखत सिर ऊपर आवा । हौं बिनु नाह मँदिर को छावा?
अद्रा लाग लागि भुइँ लेई । मोहिं बिनु पिउ को आदर देई॥
जिन्ह घर कंता ते सुखी, तिन्ह गारौ औ गर्ब।
कंत पियारा बाहिरै, हम सुख भूला सर्ब॥4
सावन बरस मेह अति पानी । भरनि परी, हौं बिरह झुरानी॥
लाग पुनरबसु पीउ न देखा । भइ बाउरि, कहँ कंत सरेखा॥
रकत कै ऑंसु परहिं भुइँ टूटी । रेंगि चलीं जस बीरबहूटी॥
सखिन्ह रचा पिउ संग हिंडोला । हरियरि भूमि, कुसुंभी चोला॥
हिय हिंडोल अस डोलै मोरा । बिरह झुलाइ देइ झकझोरा॥
बाट असूझ अथाह गँभीरी । जिउ बाउर, भा फिरै भँभीरी॥
जग जल बूड़ जहाँ लगि ताकी । मोरि नाव खेवक बिनु थाकी॥
परबत समुद अगम बिच, बीहड़ वन बनढाँख।
किमि कै भेंटौं कंत तुम्ह? ना मोहि पाँव न पाँख॥5
भा भादों दूभर अति भारी । कैसे भरौं रैनि ऍंधिायारी॥
मँदिर सून पिउ अनतै बसा । सेज नागिनी फिरि फिरि डसा॥
रहौं अकेलि गहे एक पाटी । नैन पसारि मरौं हिय फाटी॥
चमकि बीजु घन गरजि तरासा । बिरह काल होइ जीउ गरासा॥
बरसै मघा झकोरि झकोरी । मोर दुइ नैन चुवैं जस ओरी॥
धानि सूखै भरे भादौं माहा । अबहुँ न आएन्हि सींचेन्हि नाहा॥
पुरबा लाग भूमि जल पूरी । आग जवास भई तस झूरी॥
थल जल भरे अपूर सब, धारति गगन मिलि एक।
धानि जोबन अवगाह महँ, दे बूड़त, पिउ! टेक॥6
लाग कुवार, नीर जग घटा । अबहुँ आउ कंत तन लटा॥
तोहि देखे पिउ! पलुहै कया । उतरा चीतु बहुरि करु मया॥
चित्रा मित्र मीन कर आवा । पपिहा पीउ पुकारत पावा॥
उआ अगस्त, हस्ति घन गाजा । तुरय पलानि चढ़े रन राजा॥
स्वाति बूँद चातक मुखपरे । समुद सीप मोती सब भरे॥
सरवर सँवरि हंस चलि आए । सारस कुरलहिं, खंजन देखाए॥
भा परगास, काँस बन फूले । कंत न फिरे बिदेसहि भूले॥
बिरह हस्ति तन सालै, धाय करै चित चूर।
बेगि आइ, पिउ! बाजहु, गाजहु होइ सदूर॥7
कातिक सरद चंद उजियारी । जग सीतल, हौं बिरहै जारी॥
चौदह करा चाँद परगासा । जनहुँ जरै सब धारति अकासा॥
तन मन सेज करै अगिदाहू । सब कहँ चंद, भएउ मोहि राहू॥
चहूँ खंड लागै ऍंधियारा । जौं घर नाही कंत पियारा॥
अबहूँ निठुर! आउ एहि बारा । परब देवारी होइ संसारा॥
सखि झूमक गावैं ऍंग मोरी । हौं झुरावँ, बिछुरी मोरि जोरी॥
जेहि घर पिउ सो मनोरथ पूजा । मो कहँ बिरह, सवति दुख दूजा॥
सखि मानैं तिउहार सब, गाइ देवारी खेलि।
हौं का गावौं कंत बिनु रही छार सिर मेलि॥8
अगहन दिवस घटा निसि बाढ़ी । दूभर रैनि, जाइ किमि गाढ़ी?
अब यहि बिरह दिवस भा राती । जरौं बिरह जस दीपक बाती॥
काँपे हिया जनावै सीऊ । तौ पै जाइ होइ सँग पीऊ॥
घर घर चीर रचे सब काहू । मोर रूप रँग लेइगा नाहू॥
पलटि न बहुरा गा जो बिछोई । अबहूँ फिरै फिरै रँग सोई॥
बज्र अगिनि बिरहिनि हिय जारा । सुलुगि सुलुगि दगधौ होइ छारा॥
यह दुख दगधा न जानै कंतू । जोबन जनम करै भसमंतू॥
पिउ सौं कहेउ सँदेसड़ा, हे भौंरा! हे काग!
सो धानि बिरहै जरि मुई, तेहि क धुवाँ हम्ह लाग॥9
पूस जाड़ थर थर तन काँपा । सुरुज जाइ लंका दिसि चाँपा॥
बिरह बाढ़, दारुन भा सीऊ । कँपि कँपि मरौं, लेइ हरि जीऊ॥
कंत कहाँ लागौं औहि हियरे । पंथ अपार, सूझ नहिं नियरे॥
सौंर सपेती आवै जूड़ी । जानहु सेज हिवंचल बूड़ी॥
चकई निसि बिछुरै दिन मिला । हौं दिन राति बिरह कोकिला॥
रैनि अकेलि साथ नहिं सखी । कैसे जियै बिछोही पखी॥
बिरह सचान भएउ तन जाड़ा । जियत खाइ औ मुए न छाँड़ा॥
रकत ढुरा माँसू गरा, हाड़ भएउ सब संख।
धानि सारस होइ ररि मुई, पीउ समेटहि पंख॥10
लागेउ माघ परै अब पाला । बिरहा काल भएउ जड़काला॥
पहल पहल तन रूई झाँपै । हहरि हहरि अधिकौ हिय काँपै॥
आइ सूर होइ तपु, रे नाहा । तोहि बिनु जाड़ न छूटै माहा॥
एहि माह उपजै रसमूलू । तूँ सौ भौंर मोर जोबन फूलू॥
नैन चुवहिं जस महवट नीरू । तोहि बिनु अंग लाग सर चीरू॥
टप टप बूँद परहिं अस ओला । बिरह पवन होइ मारै झोला॥
केहि क सिंगार, को पहिरु पटोरा। गीउ न हार, रही होइ डोरा॥
तुम बिनु काँपे धानि हिया, तन तिनउर भा डोल।
तेहि पर बिरह जराइ कै, चहै उड़ावा झोल॥11
फागुन पवन झकोरा बहा । चौगुन सीउ जाइ नहिं सहा॥
तन जस पियर पात भा मोरा । तेहि पर बिरह देइ झकझोरा॥
तरिवर झरहिं, झरहिं बन ढाखा । भइ ओनंत फूलि फरि साखा॥
करहिं बनसपति हिये हुलासू । मो कहँ भा जग दून उदासू॥
फागु करहिं सब चाँचरि जोरी । मोहिं तन लाइ दीन्ह जस होरी॥
जो पै पीउ जरत अस पावा । जरत मरत मोहिं रोष न आवा॥
राति दिवस बस यह जिउ मोरे । लगौं निहोर कंत अब तोरे॥
यह तन जारौं छार कै, कहौं कि 'पवन! उड़ाव'
मकु तेहि मारग उड़ि परै, कंत धारै जहँ पाव॥12
चैत बसंता होइ धामारी । मोहिं लेखे संसार उजारी॥
पंचम बिरह पंच सर मारै । रकत रोइ सगरौं बन ढारै॥
बूड़ि उठे सब तरिवर पाता । भीजि मजीठ, टेसु बन राता॥
बौरे आम फरै अब लागे । अबहुँ आउ घर, कंत सभागे॥
सहस भाव फूलीं बनसपती । मधुकर घूमहिं सँवरि मालती॥
मोकहँ फूल भए सब काँटे । दिस्टि परत जस लागहिं चाँटे॥
फरि जोबन भए नारँग साखा । सुआ बिरह अब जाइ न राखा॥
घिरिनि परेवा होइ पिउ! आउ बेगि परु टूटि।
नारि पराए हाथ है, तोहि बिनु पाव न छूटि॥13
भा बैसाख तपनि अति लागी । चोआ चीर चँदन भा आगी॥
सूरुज जरत हिवंचल ताका । बिरह बजागि सौंह रथ हाँका॥
जरत बजागिनि करु, पिउ छाहाँ । आइ बुझाउ, एंगारन्ह माहाँ॥
तोहि दरसन होइ सीतल नारी । आइ आगि तें करु फुलवारी॥
लागिउँ जरै जरै जस भारू । फिरि फिरि भूँजेसि, तजिउँन बारू॥
सरवर हिया घटत निति जाई । टूक टूक होइकै बिहराई॥
बिहरत हिया करहु पिउ! टेका । दीठि दवँगरा मेरवहु एका॥
कँवल जो बिगसा मानसर, बिनु जल गएउ सुखाइ।
कबहुँ बेलि फिरि पलुहै, जौ पिउ सींचै आइ॥14
जेठ जरै जग, चलै लुवारा । उठहिं बवंडर परहिं ऍंगारा॥
बिरह गाजि हनुबँत होइ जागा । लंकादाह करै तनु लागा॥
चारिहु पवन झकोरै आगी । लंका दाहि पलंका लागी॥
दहि भइ साम नदी कालिंदी । बिरह क आगि कठिन अति मंदी॥
उठै आगि औ आवै आंधी । नैन न सूझ, मरौं दु:ख बाँधाी॥
अधाजर भइउँ, माँसु तनु सूखा । लागेउ बिरह काल होइ भूखा॥
माँस खाइ सब हाड़न्ह लागै । अबहुँ आउ, आवत सुनि भागै॥
गिरि, समुद्र, ससि, मेघ, रवि, सहि न सकहिं वह आगि।
मुहमद सती सराहिए, जरै जो अस पिउ लागि॥15
तपै लागि अब जेठ असाढ़ी । तोहि पिउ बिनु छाजनि भइ गाढ़ी॥
तन तिनउर भा, झूरौं खरी । भइ बरखा, दुख आगरि जरी॥
बंधा नाहिं औ कंधा न कोई । बात न आव कहौं का रोई?
साँठि नाठि, जग बात को पूछा? बिनु जिउ फिरै मूँज तनु छूँछा॥
भई दुहेली टेक बिहूनी । थाँम नाहिं उठि सकै न थूनी॥
बरसै मेघ चुवहिं नैनाहा । छपर छपर होइ रहि बिनु नाहा॥
कोरौं कहाँ ठाट नव साजा ? तुम बिनु कंत न छाजनि छाजा॥
अबहुँ मया दिस्टि करि, नाह निठुर! घर आउ।
मँदिर उजार होत है, नव कै आइ बसाउ॥16
रोइ गँवाए बारह मासा । सहस सहस दुख एक एक साँसा॥
तिल तिल बरख बरख पर जाई । पहर पहर जुग जुग न सेराई॥
सो नहिं आवै रूप मुरारी । जासौं पाव सोहाग सुनारी॥
साँझ भए झुरि झुरि पथ हेरा । कौनि सो घरी करै पिउ फेरा?
दहि कोइला भइ कंत सनेहा । तोला माँसु रही नहिं देहा॥
रकत न रहा बिरह तन गरा । रती रती होइ नैनन्ह ढरा॥
पाय लागि जोरै घनि हाथा । जारा नेह, जुड़ावहु, नाथा॥
बरस दिवस धानि रोइ कै हारि परी चित झंखि।
मानसु घर घर बूझि कै, बूझै निसरी पंखि॥17
भई पुछार, लीन्ह बनबासू । बैरिनि सवति दीन्ह चिलबाँसू॥
होइ खर बान बिरह तनु लागा । जौ पिउ आवै उड़हि तौ कागा॥
हारिल भई पंथ मैं सेवा । अब तहँ पठवौं कौन परेवा॥
धौरी पंडुक कहु पिउ नाऊँ । जौं चितरोख न दूसर ठाऊँ॥
जाहि बया होइ पिउ कँठ लवा । करै मेराव सोइ गौरवा॥
कोइल भई पुकारति रही । महरि पुकारै 'लेइ लेइ दही'
पेड़ तिलोरी औ जल हंसा । हिरदय पैठि बिरह कटनंसा॥
जेहि पंखी के निअर होइ, कहै बिरह कै बात।
सोइ पंखी जाइ जरि, तरिवर होइ निपात॥18
कुहुकि कुहुकि जस कोइल रोई । रकत आंसु घुघुची बन बोई॥
भइ करमुखी नैनतन राती । को सेराव? बिरहा दुख ताती॥
जहँ जहँ ठाढ़ि होइबनबासी । तहँ तहँ होइ घुँघुचि कै रासी॥
बूँद बूँद महँ जानहुँ जीऊ । गुंजा गूँजि करै 'पिउ पीऊ'
तेहि दुख भए परास निपाते । लोहू बूड़ि उठे होइ राते॥
राते बिंब भीजि तेहि लोहू । परवर पाक, फाट हिय गोहूँ॥
देखौं जहाँ होइ सोइ राता । जहाँ सो रतन कहै को बाता?
नहिं पावस ओहि देसरा, नहिं हेवंत बसंत।
ना कोकिल न पपीहरा, जेहि सुनि आवै कंत॥19
(1) पथ हेरा=रास्ता देखती है। नागर=नायक। बाबँन करा=वामन रूप। छरा=छला। करन=राजा कर्ण। छंदू=छलछंद, धूर्तता। झिलमिल=कवच (सीकड़ों का)। अपसवा=चल दिया। पींजर=पंजर, ठठरी।
(2) बाउर=बावला। हरे-हरे=धीरे-धीरे। नारी=नाड़ी। चोला=शरीर। पहर एक...बोला=इतना अस्पष्ट बोल निकलता है कि मतलब समझने में पहरों लग जाते हैं। हंस=हंस और जीव।
(3) पाट महादेइ=पट्टमहादेवी, पटरानी। मेरावा=मिलाप। टेकु पियास=प्यास सह। बाँधु मन थीती=मन में स्थिरता बाँधा। जिनि=मत। पलुहंत=पल्लवित होते हैं, पनते हैं।
(4) गाजा=गरजा। धूम=धूमले रंग के। धारे=धावल, सफेद। ओनई=झुकी। लेई लागि=खेतों में लेवा लगा, खेत में पानी भर गया। गारौ=गौरव, अभिमान (प्राकृत-गारव, 'आ च गौरवे')
मे(5) मेह=मेघ। भरनि परी=खेतों में भरनी लगी। सरेख=चतुर। भँभीरी=एक प्रकार का फतिंगा जो संधया के समय बरसात में आकाश में उड़ता दिखाई पड़ता है।
(6) दूभर=भारी कठिन। भरौं=काटूँ, बिताऊँ; जैसे-नैहर जनम भरब बरु जाई-तुलसी। अनतै=अन्यत्रा। तरासा=डराता है। ओरी=ओलती। पुरबा=एक नक्षत्रा।
(7) लटा=शिथिल हुआ। पलुहै=पनपती है। उतरा चीतु=चित्ता से उतरी या भूली बात धयान में ला। चित्रा=एक नक्षत्र। तुरय=घोड़ा। पलानि=जीन कसकर। घाय=घाव। बाजहु=लड़ो। गाजहु=गरजो। सदूर=शार्दूल, सिंह।
(8) झूमक=मनोरा झूमक नाम का गीत। झुरावँ=सूखती हूँ। जनम=जीवन।
(9) जूभर=भारी, कठिन। नाहू=नाथ। सो धानि बिरहै...लाग=अर्थात् वही धुआं लगने के कारण मानो भौंरे और कौए काले हो गए।
(10) लंका दिसि=दक्षिण दिशा को। चाँपा जाइ=दबा जाता है। कोकिला=जलकर कोयल (काली) हो गई। सचान=बाज। जाड़ा=जाड़े में। ररि मुई=रटकर मर गई। पीउ...पंख=प्रिय आकर अब पर समेटे।
(11) जड़काला=जाड़े के मौसम में। माहा=माघ में। महवट=मघवट माघ की झड़ी। चीरू=चीर, घाव। सर=बाण। झोला मारना=बात के प्रकोप से अंग का सुन्न हो जाना। केहि क सिंगार? किसका शृंगार? कहाँ का शृंगार करना? पटोरा=एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। डोरा=क्षीण होकर डोरे के समान पतली। तिनउर=तिनके का समूह। झोल=राख, भस्म; जैसे-'आगि जो लागी समुद में टुटि टुटि खसै जो झोल'-कबीर।
(12) ओनंत=झुकी हुई। निहोर लगौं=यह शरीर तुम्हारे निहोरे लग जाए, तुम्हारे काम आ जाए।
(13) पंचम=कोकिल का स्वर या पंचम राग। (वसंत पंचमी माघ में ही हो जाती है इससे 'पंचमी' अर्थ नहीं ले सकते) सगरौं=सारे। बूड़ि उठे...पाता=नए पत्तां में ललाई मानो रक्त में भीगने के कारण है। घिरिनि परेवा=गिरहबाज कबूतर या कौड़िल्ला पक्षी। नारि=(क) नाड़ी, (ख) स्त्राी।
(14) हिवंचल ताका=उत्तारायण हुआ। बिरह बजागि...हाँका=सूर्य तो सामने से हटकर उत्तार की ओर खिसका हुआ चलता है, उसके स्थान पर विरहाग्नि से सीधो मेरी ओर रथ हाँका। भारू=भाड़। सरवर हिया...बिहराई=तालों का पानी जब सूखने लगता है तब पानी सूखे हुए स्थान में बहुत सी दरारें पड़ जाती हैं जिससे बहुत से खाने कटे दिखाई पड़ते हैं। दवँगरा=वर्षा के आरंभ की झड़ी। मेरवहु एका=दरारें पड़ने के कारण जो खंड-खंड हो गए हैं उन्हें मिलाकर फिर एक कर दो। बड़ी सुंदर उक्ति है।
(15) लूवार=लू। गाजि=गरजकर। पलंका=पलँग। मंदी=धीरे-धीरे जलानेवाली।
(16) तिनउर=तिनकों का ठाट। झूरौं=सूखती हूँ। बंधा=ठाट बाँधाने के लिए रस्सी। कंधा न कोई=अपने ऊपर (सहायक) भी कोई नहीं है। साँठि नाठि=पूँजी नष्ट हुई। मूँज तनु छूँछा=बिना बंधान की मूँज के ऐसा शरीर। थाँम=खंभा। थूनी=लकड़ी की टेक। छपर छपर=तराबोर। कोरौं=छाजन की ठाट में लगे बाँस या लकड़ी। नव कै=नए सिरे से।
(17) सहस सहस साँस=एक एक दीर्घ नि:श्वास सहस्रों दु:खों से भरा था, फिर बारह महीने कितने दु:खों से भरे बीते होंगे। तिल तिल...परि जाई=तिल भर समय एक-एक वर्ष के इतना पड़ जाता है। सेराई=समाप्त होता है। सोहाग=(क) सौभाग्य; (ख) सोहागा। सुनारी=(क) वह स्त्री, (ख) सुनारिन। झूरि=सूखकर।
(18) पुछार=(क) पूछने वाली, (ख) मयूर। चिलवाँस=चिड़िया फँसाने का एक फंदा। कागा=स्त्रिायाँ बैठे कौए को देखकर कहती हैं कि 'प्रिय आता हो तो उड़ जा।' हारिल=(क) थकी हुई, (ख) एक पक्षी। धौरी=(क) सफेद, (ख) एक चिड़िया। पंडुक=(क) पीली (ख) एक चिड़िया। चितरोख=(क) हृदय में रोष, (ख) एक पक्षी। जाहि बया=संदेश लेकर जा और फिर आ (बया=आ-फारसी)। कँठलवा=गले में लगाने वाला। गौरवा=(क) गौरवयुक्त, बड़ा, (ख) गौरा पक्षी। दही=(क) दधि; जलाई। पेड़=पेड़ पर। जल=जल में। तिलोरी=तेलिया मैना। कटनंसा=(क) काटता और नष्ट करता है; (ख) कटनास या नीलकंठ। निपात=पत्राहीन।
(19) घुँघुची=गुंजा। सेराव=ठंढा करे। बिंब=बिंबाफल।

प्रस्तुति : मुहम्मद इलियास हुसैन

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